मेरे प्रियवर तुम मुझको.....
मेरे प्रियवर तुम मुझको, इतना तो बतला दो ।
कब तक समझौतों के आगे, झुकना है बतला दो ।
जीवन की आपाधापी में, नादानी तो हो जाती है ।
छोटी - छोटी बातों से क्या, दूरी इतनी बढ़ जाती है ।
कितने देवालय में जाकर, ममता ने आँचल फैलाया ।
दरस-परस की आशाओं सँग, मानव तन दुर्लभ पाया ।
उनके पुण्य प्रतापों से ही, अपनी बगिया हरियाई ।
बड़े भाग्य से तब जीवन में, अपनी खुशियाँ लहराईं ।
बंधी हुई गाँठों को खोलें, मुख से मीठे बोल दो बोलें ।
ढाई आखर प्रेम का पढ़ कर, सभी प्रेम के सॅंग में होलें ।
झगड़ों के इस भॅंवर जाल से, चलो चलें सब निकलें ।
आशाओं की झोली भर कर, अब नई राह पर बढ़ लें ।
मिल- जुल कर सब प्रेम डगर में, जीवन स्वर्ग बनाएँ ।
जीवन के सारे सपनों को, हम साकार बनाएँ ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’