बीत ही जायेगी साथी.....
बीत ही जायेगी साथी ,
रात की यह कालिमा ।
नई सुबह की रोशनी में ,
रँग भरेगी लालिमा ।
हम मुसाफिर राह के ,
चलना हमारी शान है ।
शूल पथ में लाख बिखरें ,
बढ़ना हमारी आन है ।
लाख मुश्किल हों डगर में ,
पर हमें विश्वास है ।
दिल में बस यह चाह मचले ,
छू लें मंजिल पास हैं ।
दूर कितनी मंजिलें हैं,
यह हमें क्यों सोचना ।
हर कदम आगे बढ़ें,
बस यही अरमान है ।
कौन जाने नैन ‘वय’ के,
पृष्ठ अंतिम कब पढ़ें ।
चल मुसाफिर और चल,
कुछ और पग आगे बढ़ें ।
जिस डगर पर चल पड़ें,
उस डगर की शान हो।
जिस जगह हम थम गये,
बस जिंदगी का धाम हो ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’