संत शिरोमणि धूनी वाले दादा जी पर दोहे
साँईं खेड़ा ग्राम में, प्रकट हुये थे आप ।
कष्ट निवारण के लिये, धाये थे जगताप ।।
आस्था और अनास्था, में उलझा इंसान ।
श्रद्धा औ विश्वास से, मिलते हैं भगवान ।।
मैं कैसे गु़रु वंदना, करूँ कृपा निधान ।
मैं अज्ञानी जगत में, हूँ बिल्कुल नादान ।।
राह दिखाएँ नाथ अब, आप पकड़ कर हाथ ।
जीवन है मंझधार में, पार कराओ नाथ ।।
आप चलें आगे सदा, पीछे चलूँ मैं साथ ।
जब भी गिरने मैं लगूँ, थामे मेरा हाथ ।।
दादा जी के धाम में, सकल मनोरथ होंय ।
खाली हाथ न जा सकें, काज सिद्ध सब होंय ।।
दादा के दरबार में, भक्त नवाबें शीश ।
श्रद्धा से जो माँग लें, दादा दें आशीष ।।
दादा की धूनी जले, जलें सभी के पाप ।
दया रहे उनकी सदा, हर लें सारे ताप ।।
राह कठिन है आज की, भटका है यह देश ।
सच्ची राह दिखाइये, बदलेगा परिवेश ।।
दादा केशवानंद जी, हम भक्तों की चाह ।
सब पर अपनी दया कर, हर लो उनकी आह ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’