राष्ट्रभाषा हिन्दी
हे स्वतंत्र भारत की
राष्ट्रभाषा हिन्दी
तू यहाँ क्यों जन्मी ?
अरी ओ बावली
तुझे यहाँ क्या मिला !
संविधान द्वारा घोषित
राष्ट्रभाषा का उपहार !
जिसमें अनेक संशोधनों के
पैबंद लगा दिए
और उसे
रोजी -रोटी की भाषा से
वंचित कर दिया है ।
तभी तो तेरा भक्त
आज जीवन भर पछताता है,
बेचारा चपरासी या
क्लर्क बनकर रह जाता है ।
हे स्वतंत्र भारत की
राष्ट्रभाषा हिन्दी !
तू यहाँ क्यों जन्मी ?
यदि जन्म लेना ही था,
तो रूस,चीन,जापान,जर्मनी
या इंग्लैंड, अमेरिका की
धरती पर जन्म लेती,
तो सचमुच
तेरे भाग्य खुल जाते ।
तेरे स्वागत में वे
पलक पांवड़े बिछाते ।
तब तेरे आँचल में
ज्ञान विज्ञान के
शब्द भंडार गढ़े जाते ।
तुझे इक्कीसवीं सदी में
ले जाने को दुल्हन जैसा
सजाते-सॅंवारते ।
और कम्प्यूटर की
पालकी में
बैठा कर देश- विदेश की
सैर कराते ।
फिर तेरी जय -जयकार से
सारे विश्व को गुँजाते ।
अरी ओ पगली !
तब तुझे अपने ही देश में
अपनी अस्मिता के लिए
गिड़गिड़ाना तो नहीं पड़ता।
तूने इन कृतघ्न
स्वार्थी कपूतों के बीच
रह कर क्या पाया ?
जितना पाया,
उससे कहीं अधिक खोया ।
क्या तू भूल गयी
अपनी जननी के हश्र को ।
जिसकी कोख से
न जाने कितनी भाषाएँ
जन्मी हैं ।
उसके आगे आज भी
विश्व की भाषाएँ
नतमस्तक हैं ,मौन हैं ।
आज वही संस्कृत
अपने जीवन की
इनसे भीख माँग रही है ।
जब वे उसे नहीं बचा पाए,
तो तुझे क्या बचाएँगे ?
अभी तो ये और
गुलामी की चादर को
ओढ़ेंगे , बिछाएँगे
और उसमें ही भरमाएँगे ।
हे स्वतंत्र भारत की
राष्ट्रभाषा हिन्दी ,
तू यहाँ क्यों जन्मी ?
तू यहाँ क्यों जन्मी ?
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’