मधुमास है छाया चलो प्रिये.....
यौवन बसंत के स्वागत में,
आमंत्रण दे - दे बुला रहा ।
मधुमास है छाया चलो प्रिये,
वीणा के तारों को छेड़ें ।
मधुमास है छाया चलो प्रिये.....
वह आम्रकुंज सरिता तीरे,
वह जल क्रीड़ा की उथल-पुथल।
नीलम नक्षत्र चुनरी ओढ़े,
चंदा नभ से है बुला रहा ।
मधुमास है छाया चलो प्रिये.....
प्रेम - दीप प्रज्ज्वलित करके,
फिर सरिता तट से बहायेंगे ।
हम प्रकृति की सुषमा देख-देख,
आह्लादित मन से गायेंगे ।
मधुमास है छाया चलो प्रिये.....
मैं गीत लिखूँगा प्यार भरे,
नयनों में डूब - डूब कर के ।
तू राग रागिनी में खो कर,
स्वर को बिखराना प्राण प्रिये ।
मधुमास है छाया चलो प्रिये.....
कोहरे ने जीवन सरिता को,
अदृश्य किया है नयनों से ।
हम नव प्रभात की किरणों से,
उजियारा जग में बिखरायें ।
मधुमास है छाया चलो प्रिये.....
भयभीत न होंगे सागर से,
हम उसको मित्र बनायेंगे ।
तल में जो मोती छिपे पड़े,
हम उन्हें खोज कर लायेंगे ।
मधुमास है छाया चलो प्रिये.....
पलकों ने आज प्रतीक्षा में,
आँखों की नींद उड़ाई सखे ।
कचनार खिली है मधुवन में,
फिर दरश मिलन हुलसाई सखे।
मधुमास है छाया चलो प्रिये.....
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’