विरहन की पीड़ा को.....
विरहन की पीड़ा को, कौन बाँच पाएगा ।
पनघट का सूनापन, किसके मन भाएगा ।।
जग का यह बंधन जब, मन को न बाँध सका ।
तन का बैरागी पन, साथ क्या निभाएगा ।।
दिल को जब कैद रखा, तन की सलाखों में ।
चंचल मन अश्वों को, कौन रोक पाएगा ।।
भावना बेहाल जब, रो रही सिसक- सिसक ।
प्रेम की सिन्दूरी पर, कौन न मिट जाएगा ।।
तनहा जब बैठे हों, स्मृति के आँगन में ।
स्वर्णिम अतीतों को, कौन भुला पाएगा ।।
दिल की किताबों में, प्रेम भरी कविता हो ।
विरही मन प्रेमी तब, गीत क्यों न गाएगा ।।
सुगंध बनके बह रही हो, प्यार की बयार जब ।
बँधने भुजपाशों में, कौन न ललचाएगा ।।
विरहन की पीड़ा को, कौन बाँच पाएगा ।
पनघट का सूनापन, किसके मन भाएगा ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’