डायरी के वरक जब पलटने लगे....
डायरी के वरक जब पलटने लगे,
कारनामों से परदे सरकने लगे ।
तुमने चेहरे पे चेहरे लगाये तो क्या,
लोग चाल अब तुम्हारी समझने लगे ।
जुल्म जितने भी कर लो अंधेरे में तुम,
भाग कर रोशनी से कहाँ जाओगे ।
जिंदगी उलझनों में उलझ जायेगी,
सत्य का सामना कैसे कर पाओगे ।
सच का दामन पकड़ कर चलोगे जहाँ,
फूल ही फूल पथ में मिलेंगे वहाँ ।
तुम पे तोहमत ना कोई लगाये कहीं,
पाक दामन पे धब्बा लगे ना कभी ।
जग से रुखसत करोगे जब एक दिन,
यह जग भी तुम्हें ना भुला पायेगा ।
जब भी गुरबत के बादल उठेंगें यहाँ,
याद तुमको करेगी यह दुनिया सदा ।
जिंदगी को सॅंवारो सलीके से अब ,
काम ऐसा करो जिसकी जयकार हो ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’