किससे करें गुहार.....
जन सेवा के नाम पर, नेतन की भइ भीर ।
जनता का चंदन घिसें, उनको करें फकीर ।।
अधिकारी नेता हुये, चक्की के दो पाट ।
जनता को मिल पीसते, खड़ी कर रहे खाट ।।
फौज पाल कर है रखी, हर ऑफिस में आज ।
काम काज कुछ ना करें, नेतागिरि का राज ।।
करें कमाई ऊपरी, घर में खुली दुकान ।
फन फैला कर हैं खड़े, डसने को श्री मान ।।
ऑफिस में ही बैठकर, नगर भ्रमण कर आँय ।
यहाँ -वहाँ की बतकही, करके समय बिताँय ।।
हाथ पैर सब टूटते, ऐसा किया विकास ।
अस्पताल निज लूटते, जनता हुई हतास ।।
जिस पत्तल में खा रहे, उसमें करते छेद ।
इस छोटी सी बात का, समझ सके ना भेद ।।
घाट - हाट स्टेंड लगा, लूट रहे घर द्वार ।
महॅंगाई की मार है, किससे करें गुहार ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’