जीवन छोटा है, सबका और.....
जीवन छोटा है, सबका और, बहुत पड़े हैं काम ।
क्यों बैठे हो फुरसत में अब, चलना है अविराम ।
चलना ही जब नियति बनी है, चलो सुबह और शाम ।
बढ़ना है नित पथ को गढ़ना, नहीं है अब आराम ।
जितना काम करोगे जग में, उतना होगा नाम ।
बातों में यदि लगे रहे तो, बस होगे बदनाम ।
रोड़े अटकाने वालों को, कुछ न सूझे काम ।
हाथ - बांध रोते रहते हैं, रहते हैं बेकाम ।
जीवन की जब साँझ ढलेगी, तो लगेगा पूर्ण विराम ।
जब तक यह काया चलती है, किये जा अविरल काम ।
कर्म भूमि की इस धरती में, बिखरा गीता ज्ञान ।
अपना कर्म करे जा बन्धू, फल देगा भगवान ।
अपने - अपने कर्म क्षेत्र में, करना होगा काम ।
तब जग में यह देश हमारा, बनेगा पावन - धाम ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’