कृतज्ञता अभिव्यक्त सबको कर रहा हॅूं.....
कृतज्ञता अभिव्यक्त सबको कर रहा हॅूं ,
आभारी हूँ आभार ज्ञापित कर रहा हूँ ।
अब यहाँ की कुंजियाँ लो तुम सम्हालो,
अब बिदाई दो मुझे, मैं जा रहा हूँ ।
जब मैं आया था यहाँ अनजान था ,
राह मुश्किल थी मगर विश्वास था ।
आपका सम्बल मिला तो चल दिया,
और चाही मंजिलों को पा लिया ।
सुख में, दुख में, संग कितने पल बिताये,
तीज और त्यौहार हिल-मिल सब मनाये।
बंधुत्व के हमने स्वरों में स्वर मिलाये,
स्नेह के हर भावों को तन-मन बसाये।
आपको अनजाने में यदि है सताया,
भूल वश यदि आपके मन को दुखाया ।
मित्र की इस धृष्टता को भूल जाना,
मित्र अपना ही समझ कर माफ करना ।
यदि सजा देना है तो निःसंदेह देना,
किन्तु दिल में तुम मुझे स्थान देना ।
याचना मैं फिर क्षमा की कर रहा हूँ ,
विनत होकर आपसे फिर कह रहा हूँ ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’