गवाही
मूँछ उमेठते थानेदार ने
एक ड्राइवर को
थाने में लाते ही
घुमा के दो-चार डंडे जमाये ।
और उस पर
बुरी तरह झल्लाये,
क्यों बे -
एक्सीडेंट करके भी
मुस्करा रहा है।
गोया थाने में ही कानून की
खिल्ली उड़ा रहा है।
क्या तुझे इंसान और
जानवर में
कोई फर्क नजर नहीं आया।
जो सड़क के बीच में चल रही
भैंस को तो बचा आया
किन्तु फुटपाथ में जा रहे
इंसान को कुचल आया ।
थानेदार के फिर उठे डंडे को
उसने बीच में पकड़ कर कहा -
श्री मान् थानेदार साहब ,
मैं आज
इंसान और भैंस की कीमत
अच्छी तरह जानता हूँ ।
तभी तो इस कृत्य से
अपने को धन्य मानता हूँ ।
थानेदार साहब -
भैंस की कीमत के सामने
आज इंसान
की क्या औकात है?
भैंस की कीमत तो
हजारों की होती है,
और इंसान की कीमत
बस दो कौड़ी की होती है
फिर तुम्हारा कानून तो
गवाहों पर टिका होता है ।
किसे समय है ,
जो गवाही के लिये
फालतू में
चक्कर लगायेगा ।
हजारों चढ़ोत्तरी करके भी
तुम्हारे सामने
गिड़गिड़ाएगा ।
इसलिए श्रीमान्
आज मैं मुस्करा रहा हूँ ,
गवाही के अभाव में
अब मैं घर जा रहा हूँ ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’