प्रलय तांडव कर दिया.....
घरों की दीवालों में, हजारों कीलें गड़ गयीं ।
चलते फिरते अपनों की, तस्वीरें फिर से टँग गयीं ।।
कल तलक वह भूमि, देवों की कही जाती रही ।
आज वह शमशान भूमि, बन कहर बरपा रही ।।
गंगा के वेगों को शिव ने, क्यों जटाओं में बाँधा नहीं ।
क्यों प्रलय के कहर को, रोका नहीं टोका नहीं ।।
भोले भंडारी का दिल क्या, पत्थरों का हो गया ।
या समाधि में कुछ उनकी, फिर खलल है पड़ गया ।।
भक्त ही तो थे तुम्हारे, दरश की अभिलाषा लिये ।
अनगिनत कष्टों को सहकर, द्वार तेरे अक्षत लिये ।।
भूल भक्तों से हुई थी, आप ईश्वर माफ करते ।
गाँव घर आँगन बगीचा, इस तरह से न उजड़ते ।।
प्रलय तांडव कर दिया, क्या ना बहा सैलाब से ।
फिर भी मस्तक तान कर, तुम निष्ठुर खड़े चट्टान से ।।
आराधना अब कर रहे, तुमसे तुम्हारे भक्त सारे ।
फिर प्रलय की वेदना को, ना सहें गर्दिश के मारे ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’