त्रिकोण सास बहू बेटे का
तपती जेठ की
दोपहरी में
देवी माँ के
मन्दिर के लिए
एक माँ
अपने बेटे और बहू को
रिक्शे में बैठा कर
हाथ जोड़े
गर्म सड़क पर,
नंगे पैर चलती
लुड़कती, उठती, लेटती
भरे बाजार से गुजरती
शहनाई की धुनों के बीच
चली जा रही थी ।
पीछे महिलाओं के
समवेत स्वर-
दण्ड भरन तुम्हारे आई हों ,
माई केवल माँ...
माई केवल माँ...
माई केवल माँ...
मुखरित हो रहे थे ।
रिक्शे में बैठे
बेटे -बहू के
उज्ज्वल भविष्य
की मंगल कामना
और सुखों के लिये
मनौती माँगने की
इतनी कठोर साधना
वह कर रही थी ।
किन्तु कालान्तर में
यह दृश्य सब भूल जाते हैं
और फिर वही
सदियों से चले आ रहे,
सास- बहू - बेटे के
त्रिकोण में फॅंस कर
उलझ जाते हैं ।
भटक जाते हैं ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’