मन भावन ऋतुराज है आया.....
मन भावन ऋतुराज है आया,
हिलमिल स्वागत कर लो ।
खुशियों की सौगातें लाया,
प्रेम की झोली भर लो ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
गूँज रहा मृदुगान मधुप का,
मधुर पराग लपेटे ।
कोयल कूक रही कुंजन में,
प्रियतम याद समेटे ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
पिऊ -पिऊ की रटन लगाये,
राह निहारे पपीहा ।
अधरों की कब प्यास बुझेगी,
सोच रहा है पपीहा ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
श्याम वर्ण अम्बर मुस्काया,
नीली चादर ओढ़े ।
घूँघट से वसुधा मुसकाई,
पीली चुनरी ओढ़े ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
वन पलाश के झूम रहे हैं,
सजा डालियाँ लाली से ।
रंग -बिरंगे फूल हंस रहे,
वसुधा की हरियाली से ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
कदंब, नाग-केसर और चम्पा,
सूरज - मुखी , चमेली ।
गेंदा, गुलाब, केतकी ,सरसों,
लगती सभी रुपहली ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
अमराई में बौरें फूलीं,
खेतों में पीली सरसों ।
गेंहूँ की बालें हरषायीं,
खुशियाँ बरसी बरसों ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
रंग बिरंगी होली आ गई,
गले मिल रहे अपने ।
गलबहियों को डाल सुहाने,
झूम रहे हैं सपने ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
प्रेमासक्त लताएँ उलझी,
तरुवर भुजबल अंकन में ।
रंग रूप और गंध बसंती,
छाई चतुर्दिशाओं में ।
मन भावन ऋतुराज है आया.....
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’