अनजानी गलियों में भईया.....
अनजानी गलियों में भईया ,
तुम कैसे भरमा गये ।
जाम हलाहल पी के तुम तो ,
जंगल में बिलमा गये ।
नशा नसावे घर आँगन खों ,
देहरी भी शरमावे ।
पुरा -पड़ोसी सब घर- वारे ,
सहमें से घबरावें ।
रातन नींद सबई की जावे ,
खुशहाली मुख मोड़े ।
घर में बदहाली घुस जावे ,
भूखे पेट ही सोवें ।
तन-मन रोग अनेकों पाले ,
तन बूढ़े - सा काँपे ।
जीवन की यह श्वाँस ना जाने ,
कब रूठे कब जावे ।
जबई होश आ जावे भईया,
तबई समझ लो नीको ।
गिरवे के पहले ही सम्हलो,
ऐसो जीनो सीखो ।
जो बीत गओ सो बीत गओ ,
अब बीती बात बिसारो ।
हँसी-खुशी से जीवन सारो ,
हिल - मिल सबई गुजारो ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’