फागुन के स्वर गूँज उठे.....
फागुन के स्वर गूँज उठे,
छायी भंग तरंग ।
ढोल मजीरे बज उठे,
झाँझ मृदंग के सँग ।
ये होली आयी है, गजब की छायी है ।
कि होली आयी है, गजब की भायी है ।।
तन चंदन सा महक उठा,
भई मतवाली चाल ।
लाख सम्हाले मन नहीं,
माने दिल की बात ।
ये होली रंग लायी, खुशी के क्षण लायी ।
कि होली आयी है, गजब की छायी है ।।
हवा बसंती बह रही,
मौसम है किलकन्त ।
राग द्वेष सब उड़ गये,
हुआ दुखों का अंत ।
ये होली भोली है, मधुरिमा घोली है ।
कि होली आयी हे, गजब की छायी है ।।
आँखों से अॅंखियाँ मिली,
अॅंखियों से मिली आँख ।
साड़ी चुनरी यॅूं रंगी,
ज्यों तितली की पाँख ।
ये होली आयी है, रंगों को लायी है ।
कि होली आई है, गजब की भायी है ।।
मन डूबा जब रंग में,
झूम उठे सब अंग ।
पिचकारी की धार से,
अॅंगिया हो गयी तंग ।
ये होली शरमायी, लाज से घबरायी ।
कि होली आयी है, गजब की भायी है ।।
फगुनाई की धूप में,
विरहन के जले अंग ।
अँखियाँ कन्त निहारते,
भए पथरीले पंथ ।
ये होली याद आयी, पिया मन को भायी ।
कि होली आयी है, गजब की भायी है।।
पास पड़ोसी सब खड़े,
सँग टोली हुड़दंग ।
साजन द्वारे आ गये,
हो गये सबरे दंग ।
ये होली हरजाई, प्यार से मुसकायी ।
कि होली आयी है, गजब की छायी है ।।
चूड़ियाँ तब खनकन लगीं,
तन भयो सूत कपास ।
हँसकर होली कह उठी,
प्रियतम क्यों हो उदास ?
ये होली ऋतु आयी, सभी के मन भायी।
कि खुशियाँ लौट आयीं, सभी के मन भायीं ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’