जीवन सूक्तियाँ
जीवन की है चासनी, प्रेम, सत्य व्यवहार ।
पका सको जितना इसे, लूटोगे संसार ।।
हम चाहें सब खुश रहें, चाहत से क्या होय ।
खुशियाँ तो मन में रमे, अन्तर मन खुश होय ।।
धर्म धुरंधर बन गये, चादर ओढ़ी नाम ।
घड़ी - परीक्षा की खड़ी, हो गए गिरगिट राम ।।
ईश, खुदा, भगवान सब, एक सत्य हैं जान ।
समझ न पाये बात जो, वह बिल्कुल अनजान ।।
पंडित , मुल्ला , पादरी, बैठे खोल दुकान ।
सब रोगों की मुक्ति का, इनके पास निदान ।।
अब प्रवचन उपदेश सब, हर मुख से मिल जाँय ।
परहित के अवसर यही, यहाँ - वहाँ छिप जाँय ।।
धर्म वही धारण करें, जो मानव हित होय ।
सधे देश का हित जहाँ, सबकी उन्नति होय ।।
रख ईश्वर में आस्था, कर्मो में विश्वास ।
जीवन में हर पल सखे, छाएगा उल्लास ।।
मन को ऐसा साधिये, बनो ना उसके दास ।
जीवन में कोई नहीं, होगा कभी उदास ।।
जीवन का मकसद नहीं, पी लो जी भर यार ।
जीवन ऐसा ना जियो, तन होवे लाचार ।।
मन को ऐसा राखिए, जीवन सुखमय होय ।
बरखा हो नित खुशी की, तन-मन सभी भिगोय ।।
हास और परिहास भी, हैं जीने के रंग ।
इनको भी अपनाइए, हैं जीवन के अंग ।।
मानवता कहती यही, उन्नति सबकी होय ।
भूखे नंगे ना रहें, मानव सुखमय होय ।।
बीते पल को भूल जा, कल के पल की सोच ।
क्या जाने कल ना मिले, इस पल की तू सोच ।।
रातों में सपने दिखें, बन गये बड़े अमीर ।
टूटें सपने जिस घड़ी, फिर हो गये फकीर ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’