पत्नी परमेश्वर
इक्कीसवीं सदी में
पति परमेश्वर विषय पर
एक कार्यक्रम में,
व्याख्यान को सुनकर-
सभा के अंत में
एक बेचारे पति ने,
गुस्से में वक्ता की कालर को
पकड़ कर ,उसे हिलाया
और फिर झॅुंझला कर बोला ।
मंच पर बड़ी लम्बी- चौड़ी
डींगें हाँक रहा था ,
और वेद- वेदान्तों की
कहानियाँ भी दुहरा रहा था ।
इस कलयुग में
सतयुग ,त्रेता, द्वापर की
बातें करता है
जो मन में आता है,
वह बकता है ।
पति पत्नी का झगड़ा तो,
हर युग में होता रहा है ।
किन्तु इस कलियुग में
दोषी पत्नी ही हो
तो भी हर मौकों पर
बेचारे पति को ही
झुकना पड़ता है ।
इसलिए तो आज
पत्नि ही परमेश्वर
कहलाती है ।
जो बेचारे पति को
जीवन भर झुकाती है।
वक्ता ने तुरंत ही
अपना कालर छुड़ाया
और उसे बड़े प्यार से
समझाया ।
यहीं तो हमारे-
तुम्हारे बीच मतभेद है
जिसका कि मुझे खेद है ।
श्रीमान् ,सचमुच
मैं अपनी पत्नी के सामने
आज तक नहीं झुका हूँ
हमेशा झगड़ने पर
वही घुटनों के बल-चल कर
मेरे पास तक आती है,
और फिर बड़े प्यार से
हाथ पकड़ कर ,
मुझे पलॅंग के नीचे से
निकालती है ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’