अनमोल वचन.....
संगत ऐसी साधिए, जो सदगुण उपजाय ।
दुर्गुण आते ही सदा, सावधान कर जाय ।।
कर्मकांड कर भर लिये, कोठी और मकान ।
यजमानों के वास्ते, खोली नई दुकान ।।
वाणी में संयम रखें, सिद्ध होंय सब काज ।
बिगड़ी बातें भी बनें, सँवरें सारे काज ।।
कर्म , प्रेम , आराधना, सभी मुक्ति के द्वार ।
कहते वेद - पुराण भी, उससे हो उद्धार ।।
संविधान , कानून के, ढेरों पहरेदार ।
पावर फुल बन कर सभी, हो गए डंडी मार ।।
पाप - पुण्य के भेद पर, चर्चा हुई अनेक ।
आई जब मुश्किल घड़ी, भूल गए सब नेक ।।
झाड़ फूँक अरु टोटका, मन मस्तिष्क विकार ।
होता इसमें उलझ कर, तन - मन ही बीमार ।।
चारित्रिक सौन्दर्य से, ना कुछ सुन्दर होय ।
साँझ ढले, चेहरा ढले, जीवन दुखमय होय ।।
सही - सोच नीरोग - तन, जीवन मूलाधार ।
दीर्घ आयु ,जीवन सुखी, सुखमय तब संसार ।।
सबकी जिव्हा चाहती, मीठे फल, पकवान ।
तन रोगी जब हो गया, फीकी लगे दुकान ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’