ओ दीप तुझे जलना होगा.....
ओ दीप तुझे जलना होगा, तूफां से लड़ना होगा ।
इस घने तिमिर के रात्रि पहर में, उजियारा करना होगा ।।
जाति –पाँत की फसलें उगती, राजनीति के बागानों में ।
लज्जित सी आहत मानवता, सिसक रही शमशानों में ।।
स्वार्थ, मोह के गलियारों में, सारा तंत्र कलंकित है ।
गिरे चरित्र के हर पारे से, हर जन -मन आतंकित है ।।
खुलेआम नारी की अस्मत, लुटती भरे बाजारों में ।
आहत मानवता की चीखें, गूँज रही अखबारों में ।।
तुलसी , नानक और कबीरा, बंद पड़े तहखानों में ।
मस्ती ,लोफर और आवारा, बिकते हैं दुकानों में ।।
गोली की चलती बौछारें, शांत हिमालय की घाटी में ।
जब चाहे नापाक कदम भी, बढ़ते देश की माटी में ।।
गुरू -ग्रंथ के शबद कीरतन, खोये बमों धमाकों में ।
गुरुनानक गोविंद की वाणी, खोयी आज फिजाओं में ।।
उग्रवाद, आतंकी किस्से, गूँजे गली बाजारों में ।
रिश्वत , भ्रष्टाचार, घोटाले, छाये हर अखबारों में ।।
बेईमानी की फसल उगी है, खलिहानों में अटी पड़ी है ।
चरित्रवान के घर आँगन में, नेकी अब लाचार खड़ी है ।।
सिसक रही मरियम और सीता,आहत मन का ताजमहल है ।
रोती है कुरान - बाईबिल, गीता सँग रामायण नम है ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’