कविता मेरे सॅंग ही रहना.....
कविता मेरे सॅंग ही रहना,
अंतिम साथ निभाना ।
जहाँ-जहाँ मैं जाऊॅं कविते ,
वहाँ - वहाँ तुम आना ।
अन्तर्मन की गहराई में ,
गहरी डूब लगाना ।
सदगुण देख न तू भरमाना ,
दुर्गुण भी बतलाना ।
जब मैं बहकूँ तो ओ कविते,
मुझको तू समझाना ।
पथ से विचलित हो जाऊॅं तो,
पंथ मुझे दिखलाना ।
बोझिल मन जब हुआ हमारा,
तू ही बनी सहारा ।
दुख में जब डूबा मन मेरा,
तुमने उसे उबारा ।
मेरे सोये मन को जगाकर,
कर्मठ मुझे बनाना ।
न्याय धर्म और सत्य डगर पर,
चलना मुझे सिखाना ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’