हल कुछ निकले तो सार्थक है.....
हल कुछ निकले तो सार्थक है, लिखना और सुनाना ।
वर्ना क्या रचना, क्या गाना, क्या मन को बहलाना ।।
अविरल नियति-नटी सा चलता, महा काल का पहिया ।
विषधर सा फुफकार लगाता, समय आज का भैया ।।
भीष्म - द्रोण अरु कृपाचार्य सब, बैठे अविचल भाव से ।
ज्ञानी - ध्यानी मौन साधकर, बंधे हुये सत्ता सुख से ।।
ताल ठोंकते दुर्योधन हैं, घूम रहे निष्कंटक ।
पांचों पांडव भटक रहे हैं, वन-बीहड़ पथ-कंटक ।।
धृतराष्ट्र सत्ता में बैठे, पट्टी बाँधे गांधारी ।
स्वार्थ मोह की राजनीति से, धधक रही है चिनगारी ।।
गांधारी भ्राता शकुनि ने, चौपड़ पुनः बिछाई है ।
और द्रौपदी दाँव जीतने, चौसर - सभा बुलाई है ।।
शाश्वत मूल्यों की रक्षा में, अभिमन्यु की जय है ।
किन्तु आज भी चक्रव्यूह के, भेदन में संशय है ।।
क्या परिपाटी बदल सकेगी, छॅंट पायेगी घोर निशा ।
खुशहाली की फसल कटेगी, करवट लेगी नई दिशा ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’