जीवन अनुभूतियाँ
सुन्दर तन से होत क्या, मन सुन्दर अति होय ।
सुख -दुख के साथी बनें, सफल जिंदगी होय ।।
आस निराशा से भली, तन- मन की है जान ।
समझ लिया जिसने इसे, जीता सीना तान ।।
चिन्ता यदि मन में बसे, चिता सजाएँ रोज ।
उससे नाता तोड़ दे, फिर मन झूमे रोज ।।
दुख अपनों सॅंग बाँटिए, मन हल्का हो जाय ।
उनके सँग न बाँटिए, जो दूना कर ज़ाय ।।
प्रेम और विश्वास ही, जीवन का आधार ।
यदि इनको ही खो दिया, तो जीवन बेकार ।।
निकले जब हम द्वार स़े, जाना तीरथ धाम ।
मात - पिता घर आ गए, हो गए चारों -धाम ।।
जब थे माँ की कोख में, चला रहे थे लात ।
बाहर आकर मत करो, फिर वैसा प्रतिघात ।।
लाख जतन करता रहा, दिल को सका न जीत ।
दिल से जब दिल मिल गया, जीत लिया दिल मीत ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’