स्मृतियों के आँगन में.....
स्मृतियों के आँगन में यह,
काव्य कुंज का प्रतिरोपण ।
रंग - बिरंगे पुष्पों जैसे,
भावों का तुमको अर्पण ।
कविताओं में अनजाने ही,
लिख बैठा मन की बातें ।
मैं कवि नहीं,न कविता जानूँ ,
न जानूँ जग की घातें ।
आँखों से जो झलकी बॅूंदें ,
उनको लिख कर सौंप रहा ।
मन के उमड़े भावों की मैं ,
हृदय वेदना रोप रहा ।
माटी की यह सौंधी खुशबू ,
जब छाएगी घर आँगन में ।
संस्कृतियों के स्वर गूँजगे ,
सदा सभी के दामन में ।
यही धरोहर सौंप रहा मैं,
तुम मेरी कविताएँ पढ़ना ।
जब याद तुम्हें मैं आऊॅं तो ,
अपने कुछ पल मुझको देना ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’