युद्ध की वो चुनौती हमें दे रहे.....
युद्ध की वो चुनौती हमें दे रहे,
हम भी देखेगें कितना गुरूर है भरे ।
हम तो शांति चितेरे रहे हैं सदा,
वक्त आने पर सीमा में जी भर लड़े ।
हम तो कहते रहे हैं युगों से यही,
आदमी - आदमी से लड़े न कभी ।
प्रेम से ही रहें इस धरा में सभी,
दिल किसी का भी दुखने न पाए कभी ।
हमनें वेदों पुराणों की गाईं ऋचा,
सूफी संतों ने है भाई चारा गढ़ा ।
बुद्ध की वाणी ने जग को अमृत दिया,
औ अहिंसा का हमने वरण है किया ।
हमने जीते कलिंग से अनेकों किले,
तब अहिंसा का उपदेश जग को दिया ।
विश्व – शांति के पथ पर निरंतर चले,
विश्व - बन्धुत्व का ही जलाया दिया ।
राम के राज्य का हमने स्वागत किया,
कृष्ण की गीता का हमने वंदन किया।
हमने सिर पर उठाईं कुराने शरीफ,
बाईबिल की इबारत में हुए हैं शरीक ।
जब भुजाएँ तुम्हारी फड़कने लगे,
युद्ध का ही जब उन्माद छाने लगे ।
अतीत दर्पण में झाँकना घड़ी दो घड़ी,
भूल जाओगे ,लड़ने की सब हेकड़ी ।
राणा सांगा ने घावों को झेला यहाँ,
थे शिवाजी व छत्रसाल से योद्धा यहाँ ।
भामाशाहों की कोई कमी न यहाँ,
आँधियाँ बनके पोरस लड़े हैं यहाँ ।
माँ के गर्भों में अभिमन्यु बनते यहाँ,
नारियाँ भी समर में सुसज्जित यहाँ ।
शूरवीरों की आरतियाँ सजतीं यहाँ,
गर्दनें भी गद्दारों की कटती यहाँ ।
गुरुगोविंद ने लालों को कटवा दिया,
देश पर न कभी संकट आने दिया ।
कसमें खातें हैं उनको निभाते हैं हम,
मौत को भी गले से लगाते हैं हम ।
राष्ट्र भक्ति की भावना दिलों में भरी,
भारत माता की मूरत हर मन में बसी।
उनसे कह दो न कारगिल बनाएँ कभी,
वरना मौत भी माँगे मिलेगी नहीं ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’