डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
सार्थक शब्द समूहों की ध्वनियाँ जब किसी नियत संयोजनानुसार लिखी अथवा पढ़ी जाती हैं तो वह सृजन साहित्यिक भाषा में छन्द कहलाता है। इस तरह के सृजन में चरण, पद, तुकांत, यति, गति के साथ ही मात्राओं अथवा वर्णों की विधिवत गणना का विशेष ध्यान रखा जाता है। ये छन्द मधुर व भाव प्रधान तो होते ही हैं, सरस व मनभावन भी लगते हैं। तुकांतों एवं मात्राओं की समानता के परिणाम स्वरूप ये छंदबद्ध रचनाएँ अन्य गद्य व छंदहीन रचनाओं की अपेक्षा शीघ्र कंठस्थ भी हो जाती हैं। ऐसी रचनाओं के संगीतबद्ध स्वरूप विश्व में सदैव से लोकप्रियता पाते रहे हैं। सुपरिचित छन्द विधाओं में दोहे का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यह सर्वमान्य है कि दोहा छंद में सर्वाधिक सृजन हुआ है। दोहे की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी दो पंक्तियों में ही अभिव्यक्ति की पूर्णता मानी जाती है।
वर्तमान समय में वर्णनात्मक दोहा-शृंखला, दोहा-गीत, पुछल्ले दोहे तथा दोहे के ग्यारह-तेरह मात्रा विधान पर आधारित गजलों में भी प्रचुर लेखन हो रहा है। देश-दुनिया के विभिन्न अंचलों की तरह ही संस्कारधानी जबलपुर में भी दोहा सृजन के कवियों की बहुलता है। चार दर्जन से अधिक साहित्यिक कृतियों के सृजक जबलपुर के सुविख्यात महाकवि परमादरणीय आचार्य भगवत दुबे जी द्वारा भी लगभग 14000 दोहे सृजित किए गए हैं।
इसी शृंखला में जबलपुर के वरिष्ठ कवि श्री मनोज शुक्ल ‘मनोज’ भी लंबे अंतराल से दोहा की विभिन्न शैलियों में सृजनरत हैं। उनके नूतन दोहा संग्रह ‘मनोज’ के दोहे की पांडुलिपि मेरे हाथ में है, जिसमें विभिन्न विषयक दोहों के मोतियों को बहुवर्णी माला के रूप में पिरोया गया है। श्री शुक्ल जी दोहा-सृजन में प्रवीण होने के साथ-साथ एक दक्ष कहानीकार भी हैं। आप के अनेक काव्य व कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। क्रांति समर्पण, याद तुम्हें मैं आऊँगा, एक पाव की जिन्दगी, संवेदनाओं के स्वर आदि आपकी अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं और आधा दर्जन कृतियाँ प्रकाशनाधीन हैं। आप संस्कारधानी ही नहीं अपितु राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अनूठी छवि स्थापित करने में सफल हुए हैं। कनाडा प्रवास पर अपनी काव्यप्रस्तुतियों तथा साहित्य समागमों में श्री ‘मनोज’ जी ने अपना व हमारे देश भारत का नाम रौशन किया है। यही कारण है कि उन्हें कनाडा से आज भी आमंत्रण प्राप्त होते रहते हैं। संस्कारधानी जबलपुर में अपनी संस्था ‘मंथन’ के साथ ही जबलपुर की अधिकांश साहित्यिक संस्थाओं में आप की सक्रिय भागीदारी रहती है। सरल सहज एवं स्मित आभामंडल के धनी श्री ‘मनोज’ जी जबलपुर के अधिकांश वरिष्ठ, समवयस्क व नवांकुर साहित्यकारों के चहेते हैं।
मेरे द्वारा संग्रह के सभी दोहे गंभीरता से पढ़े गए हैं। प्रस्तुत दोहा संग्रह की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि श्री मनोज जी ने प्रथमतः चयनित शीर्षक शब्दों को लेकर दोहे लिखे हैं न कि दोहे लिख कर उनको शीर्षक प्रदान किया है। हम यदि विषयों की बात करें तो धर्म, इतिहास, राजनीति, राष्ट्रप्रेम, समाज, सौहार्द एवं समाज में फैले भ्रष्टाचार तथा कुरीतियों पर श्री शुक्ला जी की लेखनी निरंतर गतिशील रहती है। प्रकृति से लेकर राजनीति तक, देशभक्ति से लेकर भ्रष्टाचार तक, भारतीय सीमा पर तैनात जवानों से लेकर राष्ट्रद्रोहियों तक हर विषय पर केंद्रित दोहे इस संग्रह में पढ़ने को मिलेंगे। दीपावली, रक्षाबंधन, होली, दशहरा आदि पर्वों से लेकर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर आधारित दोहे इस संग्रह में समाहित हैं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों पर भी कवि का ध्यान गया है। तालिबान, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल के साथ असहज संबंधों की बात की गई है। हिंदू धर्म, हिन्दी भाषा, जनसंख्या, महँगाई पर चिंता जताई गई है। जल व पर्यावरण संरक्षण, आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ, कृषि, उद्यम, भोपाल गैस कांड, बेरोजगारी, कर्मठता आदि पर भी दिशा बोधी लेखनी चली है। गीता, रामचरित मानस, मैहर वाली माँ शारदा को भी कवि स्मरण करने से नहीं चूके। ग्रामीण परिवेश, चंडी के मेले, खेत-खलिहान, कृषक, फसल, वन, उपवन व ग्रामीण अंचलों की निश्चल-पावन संस्कृति को भी कविवर श्री मनोज जी ने इस संग्रह में स्थान दिया है। बेटियों के विकास, दहेज, नारी अस्मिता, समाज में व्याप्त कुरीतियों पर भी आपने सकारात्मक व संदेशप्रद दोहों की रचना की है। दोहों में लिखी गईं रिश्ते-नाते, आपसी संबंध, सौहार्द भाव, परोपकार, त्याग जैसी आदर्श बातें निश्चित रूप से जनमानस में नैतिकता को बढ़ावा देने में सहायक होंगी।
हम सभी के विगत दो वर्ष कोरोना महामारी की काली छाया में व्यतीत हुए हैं। निश्चित रूप से समाज एवं मानव जीवन के साथ ही इसका प्रभाव साहित्य में भी परिलक्षित हो रहा है। इस संग्रह में कोरोना आधारित अनेक दोहे लिखे गए हैं, जिनमें से एक दोहा बतौर बानगी देखे ंः-
कोरोना संजीवनी, आई घर घर आज।
टीका सबको ही लगे, तभी करेंगे राज।।
भारत एक विशाल देश होने के कारण यहाँ राजनीति के भी विभिन्न रंग-रूप दिखाई देते रहते हैं। मतदाता रूपी जनता भी समय-असमय स्वार्थी नेताओं को सबक सिखाती रहती है:-
जनता की फरियाद जो, करते नजर अंदाज।
पाँच साल के बाद फिर, उनसे छिनता ताज।।
इसी तरह एक और दोहा देखिए:-
छल विद्या में निपुण हैं, राजनीति के लोग।
जनता के सेवक बने, खाते छप्पन भोग।।
पारिवारिक रिश्तों की अहमियत बताते हुए कवि लिखते हैं:-
भारत में परिवार का, सदियों का इतिहास।
रिश्ते नातों में बँधा, जीवन का मधुमास।।
तथाकथित साधु-संतों के आचरण पर आक्रोश जताते हुए कवि लिखते हैं:-
पाखंडी धरने लगे, साधु, संत का रूप।
पोल खुली जब सामने, मुखड़ा दिखा कुरूप।।
जल एवं पर्यावरण संरक्षण पर भी कवि द्वारा चिंता करना यथोचित है। जिस तरह वनों का क्षेत्रफल लगातार कम हो रहा है, कुछ दशकों में पानी और शुद्ध पवन की समस्या का आगमन सुनिश्चित मानना चाहिए:-
नदी, बावली, झील सब, ईश्वर के वरदान।
इनका संरक्षण करें, मिलता जीवनदान।।
कर्म ही पूजा है का उदाहरण देखिए:-
कर्मठ मानव लिख रहा, खुद अपनी तकदीर।
बना रहा जो आलसी, भोग रहा वह पीर।।
उद्यम पर भी एक दोहा देखिए:-
मानव उद्यम जब करें, मिलता है सम्मान।
हाथ धरे बैठा रहे, तब घट जाता मान।।
एक ओर भारत में देशभक्ति व सुदृढ़ता के चित्र गढ़े जा रहे हैं तो दूसरी ओर यदा-कदा राष्ट्र विरोधियों के स्वर भी मुखरित होते रहते हैं:-
देश भक्ति की भावना, भरती रग-रग जोश।
राष्ट्र सुरक्षा की घड़ी, अरि के उड़ते होश।।
अभिव्यक्ति के नाम पर, माँग रहे अधिकार।
राष्ट्र विरोधी बात कर, बने देश पर भार।।
राष्ट्रध्वज, सीमा पर तैनात जवान एवं राष्ट्रप्रेम के महत्त्व को भी कवि श्री मनोज के दोहों में देखा जा सकता है।भगवान राम, राधा, कृष्ण, सुदामा, माँ आदिशक्ति को भी कवि ने शिद्दत के साथ याद किया है:-
शक्ति रूप में देवियाँ, पाती हैं सम्मान।
आराधक बन पूजता, सारा हिंदुस्तान।।
आदर्श कविताएँ सदैव संस्कारों को सुदृढ़ता प्रदान करती हैं। श्री शुक्ल जी कहते है:-
कविता देती है सदा, नेक नियति संदेश।
तुलसी और कबीर ने, बदल दिया परिवेश।।
इसी प्रकार कवि का मानना है कि सरस व सरल कविताएँ सुगमता से हृदयंगम हो जाती हैं:-
सरस, सरल, कविता लिखें, मिले सभी की दाद।
क्लिष्ट शब्द उसमें रखें, किसे रहे फिर याद।।
डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’
साहित्यकार, पत्रकार एवं ब्लागर