आचार्य भगवत दुबे, जबलपुर
आचार्य भगवत दुबे, जबलपुर
हिंदी काव्य जगत में दोहा अत्यंत लोकप्रिय विधा कही गई है। दोहा मध्यकाल में लोक भाषाओं का सर्वाधिक चर्चित और प्रचलित छंद था। तुलसी, कबीर, रहीम, खुसरो,रैदास आदि संतों - कवियों ने अपने आध्यात्मिक उपदेश एवं भक्ति प्रधान संदेश दोहों के माध्यम से जन-जन तक संप्रेषित किये हैं। भड्डरी और घाघ जैसे मौसम वैज्ञानी कवियों ने आम आदमियों और कृषकों को भी दोहों द्वारा बदलते मौसम की भविष्यवाणियों से सजग और सावधान किया है।
एक लंबे अंतराल पश्चात वर्तमान समय में पुनः दोहे लिखने वालों की संख्या निरंतर बढ़ी है। देश में अनेक दोहाकारों के अनेक दोहा संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं। उनमें श्री मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’ का भी नाम जुड़ गया है। हालाकि शुक्ल जी ने विषयांतर्गत दोहे भी बहुत लिखे हैं, जो कि अपनी विषय वस्तु को दोहे की माला में पिरोकर प्रस्तुत करना कहेंगे।
शुक्ल जी ने सहस्राधिक शब्दाधारित दोहे लिखे हैं जिनमें समाज को सकारात्मक संदेश देने वाले दोहों की बहुलता है। यहाँ पर उनके कुछ शब्द आधारित दोहों की बानगी देखिए:-
गृहस्थी:- सुखद गृहस्थी में सदा, प्रेम शांति का वास ।
हिलमिल कर रहते सभी, कटुता का हो नास।।
नारी:- नारी का सम्मान हो, सिखलाता हर धर्म।
जहाँ उपेक्षित हो रहीं, आएगी कब शर्म।।
सुंदरता:- सुंदरता की चाह में, गवाँ दिया सुख-चैन।
कोयल जैसी कूक को, तरस गए दिन-रैन ।।
पतिव्रता:- पतिव्रता परिकल्पना, प्रेम समर्पण भाव।
आपस में सद्भावना, जीवन की है नाव।।
कुटीर:- लघुकुटीर उद्योग हैं, उन्नति के सोपान।
काम मिले हर हाथ को, जीवन जीते शान।।
युवा वर्ग की विसंगतियों पर इशारा करते हुए:-
छैला बनकर घूमते, गाँव-गली पर भार।
बनें मुसीबत हर घड़ी, कैसे हो उद्धार।।
वहीं होली पर उनके कुछ दोहों की बानगी देखिएः-
बरजोरी हैं कर रहे, ग्वाल-बाल प्रिय संग।
श्याम लला भी मल रहे, गालों पर हैं रंग।।
चूनर भीगी रंग से, कान्हा से तकरार।
राधा भी करने लगीं, रंगों की बौछार।ं।
फागुन का सुन आगमन, होती अँगिया तंग।
उठीं हिलोरें प्रेम की, चारों ओर उमंग।।
गाँवों की चैपाल में, बरसे है रस-रंग।
बारे-बूढे़ झूमकर, करते सबको दंग।।
जली होलिका रात में, हुआ तमस का अंत।
अपनी संस्कृति को बचा, बने जगत के कंत।।
कवियों की होली हुई, चले व्यंग्य के बाण।
हास और परिहास सुन, मिले गमों से त्राण।।
भारत की अपनी सभ्यता संस्कृति है युद्ध की विभीषिका पर:-
हाथ जोड़कर कह रहा, भारत देश महान।
शांति और सद्भाव से, है मानव कल्यान।।
वहीं दूसरी ओरः- भेज रहे संजीवनी, भारत की तुम शान।
फँसे हुए यूक्रेन में, छात्र न हों हैरान।।
सीधे सरल सपाट शब्दों में दोहे लिखना कवि मनोज कुमार शुक्ल‘मनोज’ की विशेषता है,जो कि पाठकों के दिल में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए अपना स्थान बनाती है। मैं उनके उज्ज्वल साहित्यिक भविष्यकी कामनाकरता हूँ।उनकी लेखनी इसी तरह से चलती रहे।
आचार्य भगवत दुबे, जबलपुर