दोहे मनोज के
1. प्रार्थना
गणपति जी से प्रार्थना, विजयकीर्ति सम्मान।
बुद्धि ज्ञान विज्ञान में, भारत हो धनवान।।
2. वंदना
सरस्वती से वंदना, भरें ज्ञान भंडार।
अंतर्मन दीपक जले, भाव शब्द सुविचार।।
3. प्रतिज्ञा
करें प्रतिज्ञ हम सभी, चलें नेक सब राह।
होता शुभ जीवन सफल,मिट जाते हैं दाह।।
4. पुरुषार्थ
मानव का पुरुषार्थ ही, आता है कुछ काम।
अकर्मण्य जो भी रहे, गुम जाता है नाम।।
5. अनिरुद्ध
सारा जग यह जानता, भारत है अनिरुद्ध।
पाक सदा ही हारता, कब जीता है युद्ध।।
6. इतिहास
मन में चाहत हो अगर, बन जाता इतिहास।
नव भारत की शक्ति में,सबका दृढ़ विश्वास।।
7. आजादी
आजादी के शब्द का, पहले समझें अर्थ।
कर्तव्यों का बोध हो, भटकें कभी न व्यर्थ।।
8. राष्ट्र
राष्ट्र हितों को भूल कर, निज-हित की भरमार।
आज चलन यह भा रहा, हुआ देश पर भार।।
9. तिरंगा
हाथ तिरंगा ले चले, जिसको देखो आज।
कम कीमत जो आँकते, झूठा करते नाज।।
10. आन
भारत माँ की छवि बसी, मनमोहक मुस्कान।
बेटों का कर्तव्य है, करें सभी सम्मान।।
11. मानस
मानस की चैपाइयाँ, सामंजस्य प्रतीक।
जीवन का आधार हैं, स्वप्न सजें रमणीक।।
12. फूल
बासंती ऋतु का हुआ, स्वागत फिर अनुकूल।
बाग-बगीचों में खिलें, सेवंती के फूल।।
13. सूरज
सूरज ने पहुँचा दिया, जाड़े को संदेश।
ऋतु परिवर्तन हो रहा, होगा ग्रीष्म प्रवेश।।
14. उन्वान
देश प्रेम उन्वान में, डूबा भारत देश।
संकट के बादल छटे, मिट जाएँगे क्लेश।।
15. पहचान
संकट में विजयी हुआ, बढ़ा जगत में मान।
कोविड की वैक्सीन से, भारत की पहचान।।
16. गौरव
भारत का गौरव बना, संविधान-गणतंत्र।
सभी प्रतीक्षा कर रहे, निखरेगा जब यंत्र।।
17. माटी
राम, कृष्ण, गौतम, शिवा, महावीर की शान।
माटी अपने देश की, जग में हुई महान।।
18. अस्मिता
देश-अस्मिता भूलकर, खुद को कहें महान।
दुश्मन हैं वे देश के, सावधान -पहचान।।
19. जागरण
बजे जागरण शंख अब, मानव हित हों काम।
सजग रहे जनता सभी, उन्न्ति हो अविराम।।
20. संकीर्ण
जीवन जीना हो सुखद, करें उचित व्यवहार।
सोच अगर संकीर्ण तब, दिल भी ढोता भार।।
21. पुरुषार्थ
पुरुषार्थ में ही छिपा, उन्नति का पैगाम।
करो अनोखा काम कुछ, होगा रोशन नाम।।
22. चुनाव
भला-बुरा रख सामने, करते सभी चुनाव।
अपना बुरा न चाहता, सबका यही स्वभाव।।
23. शोषण
शोषक, शोषण ही करे, कुत्ते जैसी पूँछ।
कभी न सीधी हो सकी, खूब उमेठी मूँछ।।
24. जनता
जनता की फरियाद जो, करते नजरंदाज।
पाँच साल के बाद फिर, छिन जाता है ताज।।
25. सौरभ
बिखराते सौरभ सदा, चढ़ा सुमन प्रभु शीश।
भक्तों की हर कामना, करें द्वारकाधीश।।
26. अदालत
काम अदालत का यही, मिले सभी को न्याय।
शोषित-शोषण के सभी, हट जाएँ अध्याय।।
27. संविधान
न्यायालय हर देश के, बने हुए हैं प्राण।
संविधान रक्षक यही, शोषित-जन के त्राण।।
28. किसान
अनपढ़ रहें किसान जब, शोषण की भरमार।
ठग दलाल ठगते सदा, संरक्षण दरकार।।
29. शूल
कल-कल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।
तन-मन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।
30. सरकार
लोकतंत्र में वोट से, बनती हैं सरकार।
संविधान देता सदा, जन प्रतिनिधि अधिकार।।
31. पूँजीपति
पूँजीपति भी देश के, बने उन्नयन - प्राण।
उचित नियंत्रण जब रहे, तभी देश कल्याण।।
32. राजनीति
राजनीति देने लगी, अब तो गहरे धाव।
स्वस्थ नजरिया हो अगर, लगे किनारे नाव।।
33. दल-दल
कितने दल दल-दल बने, चलें स्वार्थ की लीक।
अंतर्मन कब झाँकते, मौन मलिन सब ठीक।।
34. युद्ध
द्वंद्व-युद्ध है चल रहा, सही बुरे के बीच।
साम,दाम अरु दंड बिच, जनता बनी दधीच।।
35. अलबेली
दुनिया अलबेली बनी, जिसमें छल, बल, खार।
हँसकर जीवन को जिएँ, सुख-दुख की भरमार।।
36. लावण्य
नारी के लावण्य पर, मुग्ध रहें सब लोग।
मन दर्पण में झाँकिए, मिलें सुखों के भोग।।
37. ललाम
मोहक छवि श्री राम की, द्वापर युग घनश्याम।
दर्शन पाकर धन्य सब, मंजुल ललित ललाम।।
38. छलिया
काली करतूतें बढ़ीं, जागो हे ! भगवान ।
छलिया बनकर छल रहे, कुछ ढोंगी इंसान।।
39. पूँछ
पूँछ रही हनुमान की, राक्षस करें बवाल।
रावण की लंका जली, आसन रचा कमाल।।
40. तुलसी
भारत का अनमोल है, तुलसी-मानस ग्रंथ।
मानव उस पथ पर चले, कभी न भटके पंथ।।
41. पिंजरा
पिंजरा में पंछी जिए, अपने पंख समेट।
कैदी-जीवन काटता, स्वजनों से कब भेंट।।
42. श्रेय
पवनपुत्र हनुमान ने, बड़े किए हर काम।
अभिमानी का दमन कर, श्रेय दिया श्रीराम।।
43. जाड़ा
जाड़ा लगे गरीब को, थर-थर काँपें अंग।
गुदड़ी में सोया रहे, या अलाव के संग।।
44. अवसान
हुआ तिमिर अवसान है, आया नया प्रभात।
सुख के दिन अब आ गए, बीती काली रात।।
45. मानसरोवर
मानसरोवर में बसे, शिव को आया रास।
राजहंस विचरण करें, परमानंद निवास।।
46. क्षितिज
विश्व क्षितिज में छा गए, संत विवेकानंद।
तीस वर्ष की आयु में, भारत का आनंद।।
47. प्रयाण
जग से पूर्व-प्रयाण पर, करें बड़ा ही काम।
यही काम अमरत्वता, बनवा देता धाम।।
48. विक्षिप्त
दिल में लगती चोट जब, सहना हो दुश्वार।
घायल मन विक्षिप्त हो, रोता बारम्बार।।
49. चमत्कार
चमत्कार को देखकर, मानव होते दंग।
आस्था अरु विश्वास का, उन पर चढ़ता रंग।।
50. सदगति
सद्गति है सत्कर्म से, करें नेक ही काम।
लोक और परलोक में, हो जाता तब नाम।।
51. मोह
लोभ, मोह, आसक्ति सब, मानव के हैं दोष।
इनसे बचकर ही चलें, कभी न छाता रोष।।
52. अमंगल
कभी अमंगल मत करें, रखिए अच्छी सोच।
मंगल ही मंगल रहे, नहीं रहे संकोच।।
53. कुमार्ग
सही मार्ग पर ही चलें, मंजिल पहुंँचें आप।
जो चल पड़े कुमार्ग में, झेल रहे अभिशाप।।
54. प्रतिष्ठा
बढ़े प्रतिष्ठा देश की, मिलकर करें प्रयास।
मतभेदों को भूलकर, फसल उगाएँ खास।।
55. उत्कर्ष
जीवन में संघर्ष से, होता है उत्कर्ष।
कार्यसिध्दि मिलती सहज, मन में होता हर्ष।।
56. संज्ञान
मोदी के संज्ञान में, हर संकट का भान।
निराकरण में हैं जुटे, बनी विश्व पहचान।।
57. विश्राम
कर्मठ मानव के लिए, दिन हो चाहे रात।
कभी नहीं विश्राम है, जग में करें प्रभात।।
58. मर्यादा
मर्यादा में सब रहें, यही मंत्र है नेक।
लक्ष्मण-रेखा है खिंची, संकट हटें अनेक।।
59. वरदान
कोरोना के काल में, वैकसीन वरदान ।
भारत में निर्माण से, बढ़ी जगत में शान।।
60. संरचना
संरचना परिवार की, मिलजुल रहना साथ।
सुख-दुख आपस में बटें, कुशल चितेरे हाथ।।
61. भरोसा
करें भरोसा ईश पर, कर्म करें नित आप।
सभी कार्य होंगे सफल, मिट जाएँ संताप।।
62. उमंग
मन में भरें उमंग को, जीवन है सौगात।
छोटी सी है जिंदगी, व्यर्थ फिरे बौरात।।
63. जिज्ञासा
जिज्ञासा मन में रखें, बने सभी गुणवान।
पीढ़ी दर पीढ़ी चले, इससे बढ़ता ज्ञान।।
64. स्वाद
प्रभु ने जिह्वा को दिया, जिससे मिलता स्वाद।
तृप्ति बोध होता सदा, ब्रह्म ग्रंथि का नाद।।
65. हर्षित
हर्षित वातावरण से, हट जाता मन-भार।
जीवन खुशियों से भरा,तन-मन हो गुलजार।।
66. समास
दो शब्दों में अर्थ को, व्यापक करे समास।
सुनते ही हम जल्द से, सहज करें आभास।।
67. सोच
सोच समझकर बोलते, ज्ञानी अपनी बात।
अज्ञानी हर बात पर, खाते रहते मात।।
68. सेवा
सेवा फल मीठा रहे, प्रभु देते हैं साथ।
दीन दुखी की तृप्ति से, ऊँचा होता माथ।।
69. समय
समय बड़ा बलवान है, पल में देता मात।
किसकी किस्मत कब फिरे, किस घर करे प्रभात।।
70. सुरसा
महँगाई सुरसा हुई, मचा रखा उत्पात।
बलशाली हनुमत कृपा, निश्चित देंगे मात।।
71. घनश्याम
श्याम देह घनश्याम की, गोरी राधा संग।
दोनों में बस प्रेम का, छाया चोखा रंग।।
72. उपालम्भ (उलाहना)
उपालम्भ सुनते सदा, मातु यशोदा, नंद।
दधि माखन चोरी करे, करे सभी से द्वंद्व।।
73. संदेश
देश-प्रेम संदेश का, सभी करें सम्मान।
इसमें हित सबका निहित, बढ़ती जग में शान।।
74. गोपी
ग्वाल-बाल, गोपी रहे, द्वापर में ब्रज धाम।
बाल-सखा उनके रहे, जगत पिता घनश्याम।।
75. बाँसुरी
मुरलीधर की बाँसुरी, छेड़े मधुरिम तान।
तन-मन सम्मोहित करे, करती कष्ट निदान।।
76. अंतःकरण
मानव का अंतःकरण, करता सदा सचेत।
ज्ञानी जन सुनते सभी, रक्षित करें निकेत।।
77. शेर
सीमा पर चैकस रहें, प्रहरी दिन हो रात।
भारत मांँ के शेर हैं, दुश्मन को दें मात।।
78. सौजन्य
जब मिलते सौजन्य से, बढ़ जाता अनुराग।
मिले हाथ से हाथ जब, मतभेदों को त्याग।।
79. चित्र
चित्र उकेरो हृदय में, प्रभु का कर गुणगान।
वही सदा रक्षा करें, वही करें कल्यान।।
80. संगम
सेवा कर मांँ-बाप की, कुछ हो जाते धन्य।
संगम में डुबकी लगा, लूट रहे कुछ पुण्य।।
81. कलियुग
कलियुग के इस दौर में, कब होती नित भोर।
छल प्रपंच के जोर से, घिरा तमस चहुँ ओर।।
82. निराहार
निराहार जप-तप करें, इसका बड़ा महत्त्व।
निर्मल तन-मन से सधें, पूजन का अभिसत्त्व।।
83. पारस
नैतिकता जबसे गुमी, लोग बजाते बीन।
पारस मणि है खो गयी, कैसे बदले सीन।।
84. वैतरणी
तन-मन में शुचिता रहे, कलियुग का विश्वास।
यह वैतरणी पार हो, जब तक तन में श्वांस।।
85. बियाबान
जीव-जंतु बेहाल हैं, ढूँढ़ें सरिता-कूप।
बियाबान जंगल हुए, प्रकृति बदलती रूप।।
86. हलधर
हलधर श्री बलराम ने, देख-कृष्ण की ओर।
अब फिर से पकड़ा गया, क्यों रे माखन चोर।।
87. आंदोलन
आंदोलन कर सड़क को, बाधित करते लोग।
पथिक सभी अब कोसते, फैला कैसा रोग।।
88. उद्योग
दौर चला षड्यंत्र का, टाँग खींचते लोग।
ईश्वर खड़ा निहारता, कैसा यह उद्योग।।
89. अनमोल
देश, प्रेम अरु एकता, तीनों हैं अनमोल।
राष्ट्र सुरक्षा के लिए, इससे बड़ा न बोल।।
90. हिमालय
सदियों से अविचल खड़ा, श्वेत-कांत चितचोर।
तुंग हिमालय देखता, दुश्मन की ही ओर।।
91. उद्योग
मानव ने उद्योग कर, किए अनोखे काम।
यंत्रों का निर्माण कर, पाए नये मुकाम।।
92. परिधान
तन सजता परिधान से, बसे सभी की आंँख।
बगिया जन मन मोहती, लदे फूल से शाख।।
93. परिणाम
लोभ, मोह, विद्वेष छल, बुरे रहें परिणाम।
पास न इनके जाइए, हृदय बसेंगे राम।।
94. लक्ष्य
लक्ष्य साध कर जो बढ़े, मिले सफलता नेक।
दिशा हीनता में फंँसा, भटके राह अनेक।।
95. अनाथ
मात-पिता का साथ ही, आशीषों के द्वार।
विदा हुए जग से तभी, पड़े उठाना भार।।
96. देव
त्यागें जो माता-पिता, देव न देते साथ।
कुपित न इनको कीजिए, होगे नहीं अनाथ।।
97. अगहन
अगहन ने दस्तक दिया, हुआ शीत का जोर।
सूरज की किरणें लगें, मनभावन, चितचोर।।
98. आकाश
श्रम मानव का शौर्य है, खुला हुआ आकाश।
जितने पर फैला सको, उतना रहे प्रकाश ।।
99. अलाव
ठिठुरन कितनी भी रहे, अंदर जले अलाव।
आशाओं की ताप से, भरते जल्दी घाव।।
100. सागर
सागर से भयभीत सब, डगमग चलती नाव।
पर मानव का हौसला, भर देता हर घाव।।
101. कविता
कवि ने दिया समाज को, नव-चिंतन उपहार।
भावपूर्ण कविता लिखी, मन-दर्पण उद्गार।।
102. कामिनी
नव पल्लव, सी कामिनी, नारी की है देह।
जीवन की मधु यामिनी, प्रेम-प्रीत का गेह।।
103. खंजन
खंजन नयन चकोर है, चितवन करे धमाल।
रात चंद्रमा को तके, उस पर हुआ निहाल।।
104. कोकिला
कुहू-कुहू कर कोकिला, गाती मंगल गान।
स्वर लहरी में डूब कर, सबका खींचे ध्यान।।
105. सदाचार
सदाचार का पाठ ही, देता जग संदेश।
चरित्रवान जीवन जिएँ, सबके मिटते क्लेश।।
106. संकल्प
देश-भक्ति संकल्प लें, भारत के सब लोग।
उन्नति के घर में पहुँच, खाएँ छप्पन भोग।।
107. शुभकामना
संतति को शुभकामना, रहें सभी खुशहाल।
हर संकट टल जाऐंगे, बीतेगा दुष्काल।।
108. छाँव
मात-पिता की छांँव में, चहुँदिश था उल्लास।
बिछुड़ गए हमसे तभी, हम हैं बड़े उदास।।
109. बसंत
ऋतु बसंत फिर आ रही, लेकर के सौगात।
होली की फिर मस्तियांँ, रंगों की बरसात।।
110. मंत्र
मंत्र सफलता का यही, कर्म साधना योग।
विमुख रहे जो कर्म से, मांँगे मिले न भोग।।
111. सुरभि
प्रेम-सुरभि जग में भली, घर-घर बिखरे नेह।
अहंकार को त्यागिए, नश्वर है यह देह।।
112. कलेवर
वैक्सीन अब मिल गई, बीती काली रात।
नए कलेवर में जिएँ, होगा नया प्रभात।।
113. सविता
सविता ने झाँका विहँस, बिखराई नव भोर।
जड़-चेतन सब जग उठे, मन में नाचे मोर।।
114. अंतरिक्ष
अंतरिक्ष में छा गया, भारत का परिवेश।
कर्मठता ने दे दिया, जग को शुभ-संदेश।।
115. परिवेश
विश्व गुरू भारत बना, जग को है संदेश।
खुशियों की झोली भरें, तब बदले परिवेश।।
116. गरीबी
देख गरीबी रो पड़े, गोकुल के घनश्याम।
मित्र सुदामा को दिया, नगर सुदामा-धाम।।
117. दंभ
नेताओं में दंभ का, बढ़ा अनोखा रोग।
विनय भाव भूले सभी, सत्ता मद का योग।।
118. मुद्रा
मुद्रा के भंडार से, देश बने संपन्न।
कर्मशीलता से सभी, रहते नहीं विपन्न।।
119. गीता
गीता का उपदेश है, रखें कर्म पर ध्यान।
फल की इच्छा छोड़ दें, यही बड़ा है ज्ञान।।
120. पुनीत
मास्क लगाकर ही रहें, सबके लिए पुनीत।
कोरोना के काल में, क्यों होते भयभीत।।
121. माँ
माँ ममता की छाँव है, माँ का रूप अनूप।
संतानों को पालती, रंक रहे या भूप।।
122. ममता
मांँ की ममता है बड़ी, जिसका कभी न मोल।
सुख सुविधा कब मांँगती, चाहे मीठे बोल।।
123. शिक्षा
नैतिक शिक्षा है बड़ी, इस जग में अनमोल।
जीवन को सुखमय रखे, मार्ग प्रगति के खोल।।
124. सूर्याेदय
सूर्याेदय की रश्मियाँ, भर देतीं उत्साह।
सभी कर्म की राह में, चलते बेपरवाह।।
125. निर्माण
शिक्षा का उद्देश्य ही, मूल्यों का निर्माण।
देश प्रगति पथ पर बढ़े, हो सबका कल्याण।।
126. अनदेखी
अनदेखी जो कर रहे, जनता की फरियाद।
उनसे सत्ता छीन कर, कर देती बर्बाद।।
127. तिमिर
ज्ञानवान अज्ञान का, करता है उपचार।
दूर भगाता तिमिर को, फैलाता उजियार।।
128. ज्योतिर्मान
दीवाली की रात में, दीपक-ज्योतिर्मान।
रात अमावस की छटे, दीपक का अभियान।।
129. सूरज
सूरज नित ही ऊगता, देता है संदेश।
कर्म करें नित ही सभी, मिट जाएँगे क्लेश।।
130. बिजली
वैज्ञानिक इस सदी में, बिजली का उपयोग।
इसके बिन जीवन कठिन, करें सभी उपभोग।।
131. प्रमाद
नेताओं को है लगा, बस सत्ता का स्वाद।
कुर्सी पाते ही चढ़े, उनको गजब प्रमाद।।
132. रंक
राजा, रंक, फकीर का, लिखा गया है भाग्य।
जितने दिन जीवन मिले, यह उसका सौभाग्य।।
133. विचित्र
है विचित्र जनतंत्र में, जनहित का विश्वास।
भ्रष्टाचारी लिख रहे, एक नया इतिहास।।
134. शालीन
रावण के वंशज बढ़े, कैसी होगी भोर।
राम खड़े शालीन हैं, तिमिर बढ़ा चहुँ ओर।।
135. खेल
खेल रहा दानव अभी, लुका छुपी का खेल।
मानव पर संकट बढ़ा, कर ले ईश्वर मेल।।
136. दीपक
दीपक का संदेश है, दिल में भरें उजास।
घोर तिमिर का नाश हो, कोई हो न उदास।।
137. आलोक
सूरज का आलोक ही, भर देता संदेश।
कर्म सभी अपना करें, तो बदले परिवेश।।
138. उजास
घोर अमावस रात में, दीपक करे उजास।
जीवन का तम दूरकर, भरता है उल्लास।।
139. सौहार्द
मानवता का भाव ही, मानव पर उपकार।
मानव में सौहार्द हो, स्नेह प्रेम सत्कार।।
140. दीवाली
रामलला मंदिर बना, हर्षित हुआ समाज।
हर घर दीवाली मने, सुख का हो अब राज।।
141. सूर्य
सारे जग में सूर्य ही, निर्भय करे प्रकाश।
भोर करे नित धरा में, फिर निखरे आकाश।।
142. देहरी
बीच देहरी बैठकर, किया पाप का अंत।
बचा भक्त प्रहलाद को, बना दिया भगवंत।।
143. अटारी
बड़ी अटारी पर खड़ा, नेताओं का दम्भ।
जनता बेबस है खड़ी, आश्वासन है खम्भ।।
144. गंगा घाट
डुबकी गंगा घाट की, क्या कर देगी माफ।
मुख दमके इंसान का, कर्म करे जो साफ।।
145. पर्ण कुटी
पर्ण कुटी में शांति है, जप ले सीताराम।
महलों में रहकर कभी, नहीं मिले आराम।।
146. जुलाहा
तन पर कपड़े पहनना, गया जुलाहा भूल।
उसने धागे से बुना, अपने दिल का शूल।।
147. शांत
शांत सौम्य रघुकुल तिलक,त्रेता के श्री राम।
आदर्शों के प्राणधन, मर्यादा के धाम।।
148. वेदना
छद्म वेष धरकर करें, देश-प्रेम की बात।
मन में होती वेदना, राष्ट्र-कुठारा घात।।
149. कारावास
द्वापर युग अवतार ले, जन्में कारावास।
दुष्टों का संहार कर, बना गए इतिहास।।
150. बुद्ध
राजपाट सब त्याग कर, बन वैरागी शुद्ध।
तांडव-हिंसा देखकर, बन गए गौतम बुद्ध।।
151. उमंग
फागुन की रँगरेलियाँ, मन में भरे उमंग।
ले ढपली फिर हाथ में, सभी बजावें चंग।।
152. बाल्मीकि
बालमीकि भटके बहुत, तब उपजा है ज्ञान।
रामायण सदग्रंथ रच, बनी सुखद पहचान।।
153. मनुज
देव मनुज दानव सभी, ऋषि कश्यप संतान।
संस्कार के बीज से, अलग- अलग पहचान।।
154. घातें
कितनी घातें दे रहे, शत्रु-पड़ोसी देश।
छद्म रूप धर कर सदा, पहुँचाते हैं क्लेश।।
155. लिप्सा
राम गए वनवास को, पद लिप्सा को छोड़।
जन मानस में बस गए, आया तब शुभ मोड़।।
156. आयु
जीने की यह लालसा, इसका कभी न अंत।
खत्म हुई जब आयु तो, कोई बचा न संत।।
157. मोर
मोर बना जब बावला, देख प्रकृति का रूप।
झूम-झूम कर नाचता, लगता बड़ा अनूप।।
158. परिवार
भारत में परिवार का, सदियों का इतिहास।
रिश्ते-नातों में बसा, जीवन का मधुमास।।
159. संसार
यह संसार विचित्र है, भिन्न-भिन्न हैं भोग।
रहन-सहन, जीवन-मरण, भाँति-भांँति के लोग।।
160. दृष्टि
सबकी अपनी दृष्टि है, अपना सुख संसार।
जीवन जीते हैं सभी, जीने से ही प्यार।।
161. अंतरंग
सभी पड़ौसी से रखें, अंतरंग संबंध।
शांति और सदभाव से, बहती सुखद सुगंध।।
162. अभिव्यक्ति
प्रजातंत्र अभिव्यक्ति का, चला अनोखा दौर।
चाहे जो कुछ बोलना, मचा गजब का शोर।
163. वार्ता
वार्ता से ही सुलझते, समस्याओं के हल।
ठुकराएँ प्रस्ताव जब, मिले कहाँ से फल।।
164. हल्दी
बसंत पंचमी पर्व पर, फैली सरसों पीत।
हल्दी कुमकम को लगा, गाए सबने गीत।।
165. अर्पण
कविताएँ अर्पण सभी, सरस्वती के नाम।
ऐसी बुद्धि, विवेक दें, करें जगत हित काम।।
166. शैल पुत्री
प्रथम दिवस नवरात्रि का, सजे सती दरबार।
मातु शैलपुत्री बनीं, भोले-शिव का हार।।
167. श्रद्धा
पुण्य पर्व नवरात्रि का, श्रद्धा-जप का योग।
माँ की पूजा-अर्चना, भग जाते हैं रोग।।
168. नववर्ष
संवत्सर नववर्ष यह, खुशियों का आगाज।
हिन्दू संस्कृति का सुभग, नव-प्रभात शुभकाज।।
169. कोरोना
कोरोना को रोकना, हम सब का कत्र्तव्य।
मानवता रक्षित रहे, मंगलकारी हव्य।।
170. भारत माता
भारत माता देखती, उन पूतों की ओर।
जिनसे भारत देश में, खिले सुनहरी भोर।।
171. मित्र
मित्र वही है आपका, जो बनता निस्वार्थ।
दोष देख कर टोंकता, बन जाता है पार्थ।।
172. धर्म
धर्म कभी करता नहीं, भेद भाव अपमान।
पाखंडी खुद रूप धर, बन जाते भगवान।।
173. दर्पण
दर्पण जब हो सामने, करता सच उजियार।
झूठ नहीं वह बोलता, बदलो रूप हजार ।।
174. परिवार
टूट रही परिवार से, मात-पिता की डोर।
वृद्धाश्रम में रख रहे, नवयुग की यह भोर।।
175. शहीद
जो शहीद हो गए हैं, सीमाओं पर वीर।
हम सबका कत्र्तव्य है, बदलें घर-तकदीर।।
176. रक्तबीज
सूक्ष्म जीव का वायरस, रक्तबीज धर रूप।
कलयुग का दानव यही, डरते मानव-भूप।।
177. भारत
पूज्यनीय भारत रहा, देवों का यह धाम।
राम कृष्ण गौतम यहाँ, महावीर से नाम।।
178. भारतवंशी
देश-विदेशों में बसे, भारतवंशी लोग।
हृदय सभी का मोहते, करते सब सहयोग।।
179. विश्व
विश्व पटल पर छा गई, हिंदी देखो आज।
मोदी जी ने रख दिया, भारत के सिर ताज।।
180. अवसर
प्रभु देता अवसर सदा, रखिए इसका ध्यान।
चूक गए तो फिर नहीं, मिल पाता सम्मान।।
181. संकट
संकट का जब दौर हो, लें विवेक से काम।
घबराएँ बिल्कुल नहीं, करें काम निष्काम।।
182. धैर्य
कार्य कठिन होते नहीं, जप लें प्रभु का नाम।
संकट हो जब आप पर, करें धैर्य रख काम।।
183. गेह
गेह सभी हैं चाहते, जीव जन्तु अरु लोग।
जहाँ सदा मिलता रहे, स्वजनों का सहयोग।।
184. मातृभूमि
मातृ भूमि की चाहना, मानव मन का भाव।
जो इसके विपरीत हैं, करते वही छलाव।।
185. निदान
संकट हो जब देश में, मिल-जुल करें निदान।
हों सकुशल मानव सभी, राह तभी आसान।।
186. अनुग्रह
हुआ अनुग्रह राम का, पूर्ण हो रहे काज।
विश्व पटल पर छा गया, भारतवंशी राज।।
187. कत्र्तव्य
शासन का कत्र्तव्य है, हों विकास के काम।
देश हितों को घ्यान रख, मिले सुयश परिणाम।।
188. दस्यु
दस्यु समस्या अब नहीं, उसने बदला रूप।
अब गुंडों के वेश में, कुछ दिखते प्रतिरूप।।
189. भूकंप
जबलपूर भूकंप से, काँप चुका हर बार।
आज तलक भूले नहीं, उजड़े थे घर द्वार।।
190. कुटिया
कुटिया एक गरीब की, होती महल समान।
शाम ढले विश्राम कर, भोर-हुए बलवान।।
191. चैपाल
गाँवों की चैपाल में, जमता जब रस रंग।
झूम-झूम कर नाचते, हो जाते सब दंग।।
192. नवतपा
जेठ माह में नवतपा, बरसाता अंगार।
सड़कें सब वीरान सी, घर तब कारागार।।
193. पीर
मजदूरों की पीर को, पढ़ न सकी सरकार।
पैदल ही वे चल पड़े, स्वजनों की दरकार।।
194. साकेत
रामजन्म की आस्था, जन्मभूमि साकेत।
सबकी है यह चाहना, सुंदर बने निकेत।।
195. वाटिका
पुष्प वाटिका जनक की, बनी प्रेम की धाम।
जहाँ नेह की डोर से, बँधे स्वयं श्री राम।।
196. सरस
सरस सरल कविता लिखें, मिले सभी की दाद।
क्लिष्ट शब्द उसमें रखें, किसे रहे फिर याद।।
197. अनुदित
भाषा-भावों से परे, अनुदित हैं श्री राम।
मन मंदिर में जब रहें,बने हृदय सुख-धाम।।
198. बाँसुरी
द्वापर युग के कृष्ण की, बजे बाँसुरी आज।
हर मन की चाहत यही, सजे वही सुर साज।।
199. बेकल
अपने घर में बंद सब, कोरोना का राज।
मानव-मन बेकल हुआ, संकट छाया आज।।
200. समीर
वृक्ष सदा देते हवा, बहता मंद समीर।
जंगल में हर जीव को, मिलता निर्मल नीर।।
201. नीर
हरी-भरी वन सम्पदा, सुरभित बहे समीर।
जल स्तर घटता नहीं, निर्मल मिलता नीर।।
202. सागौन
धरा-अधर उंँगली धरे, कटा हरा सागौन।
निर्मम हत्या हो रही, सरकारें हैं मौन।।
203. संदेश
भारत का संदेश अब, गढ़ना नया समाज।
देश तरक्की पर बढ़े, होगा सिर पर ताज।।
204. प्राणवायु
प्राणवायु मिलती रहे, हो नित सुखद प्रभात।
जीवन में तब सजेगी, खुशियों की बारात।।
205. सर्जक
सर्जक बने समाज यह, गुणीजनों की खान।
हर विकास के पथ गढ़ें, सृजनशील गुणवान।।
206. अवगाहन
हर मन अवगाहन करे, मानवता की सोच।
दुष्ट भाव मन से भगें, कभी न आए मोच।।
207. अरिहंत
मन का अरि-मर्दन करे, कहलाता अरिहंत।
सच्चा मानव तब वही, बन जाता भगवंत।।
208. वैतरणी
वैतरणी के पार की, सबकी होती चाह।
सही राह पर ही चलें, सरल सहज है राह।।
209. सरोज
मुस्काता है कीच से, उठकर फूल सरोज।
लक्ष्मी को भाता वही, भक्त चढ़ाते रोज।।
210. जलधर
जलधर, नभचर, चर-अचर, होती सब में जान।
जन्म-मरण के खेल में, तजना पड़ते प्रान।।
211. संवाद
रिश्तों में मधु-चासनी, रहे सदा भरपूर।
बंद हुए संवाद जब, अपनों से फिर दूर।।
212. पेट
पेट कर्म की प्रेरणा, इसका बड़ा महत्त्व।
सब करते हैं साधना, यह जीवन का तत्त्व।।
213. पीठ
पेट पीठ से जब मिले, भूख करे अल्सेट।
दोनों में दूरी बढ़े, तृप्त रहे तब पेट।।
214. आपदा
करें प्रबंधन आपदा, संकट से हो मुक्ति।
बड़े बुजुर्गों से सदा, मिली हमें यह युक्ति।।
215. आशाएँ
आशाएंँ मन में जगें, फैलातीं उजियार।
विजयी होते हैं वही, रचता सुख संसार।।
216. उजियार
ज्ञानी अपने ज्ञान से, बिखराता उजियार।
अज्ञानी जग का सदा, करता बंटाढार।।
217. नेपथ्य
गूँज रही नेपथ्य से, खतरे की आवाज।
घर में ही अब बैठकर, सुख का पहनें ताज।।
218. प्रशस्ति
सद्कर्मों का मान हो, स्वागत मिले प्रशस्ति।
बदले मानव आचरण, यही देश की शक्ति।।
219. चंचलता
चंचलता मन में बसे, उस पर लगे लगाम।
जिसने वश में कर लिया, होता जग में नाम।।
220. नैतिकता
मानव ने यदि पढ़ा हो, नैतिकता का पाठ।
दिशा-हीनता रोकती, बढ़ जाते तब ठाठ।।
221. संस्कारों
नैतिकता की धूप से, नींव करें मजबूत।
सदाचार की राह से, भग जाएँगे भूत।।
222. मादकता
रीझ गया मानव अगर, मादकता की ओर।
जीवन में भटका वही, मुश्किल होती भोर।।
223. यौवन
यौवन में रहता सदा, मस्ती से गठजोड़।
प्रौढ़ अवस्था में तभी, आ जाता नव मोड़।।
224. मौलिकता
मौलिकता कृतिकार को, दिलवाती पहचान।
लोगों के दिल पहुँच कर, पाता वह सम्मान।।
225. लोलुपता
धन की लोलुपता बढ़ी, जग में चारों ओर।
नैतिकता को छोड़कर, बनें सुसज्जन चोर।।
226. आलोक
सत्त्कर्मों की राह में, मिलता कभी न शोक।
दिव्य शक्ति का आगमन, बिखराता आलोक।।
227. भागीरथी
भागीरथी प्रयास कर, भारत बना महान।
सभी समस्या खत्म कर, जीता सीना तान।।
228. पाखंडी
पाखंडी धरने लगे, साधु संत का रूप।
पोल खुली जब सामने, मुखड़ा दिखा कुरूप।।
229. वर्तिका
जली वर्तिका दीप की, बिखरा गया उजास।
तिमिर भगा जग से सभी, जगी हृदय में आस।।
230. कुंजी
श्रम की कुंजी है सही, खुलें प्रगति के द्वार।
कभी न जीवन में मिले, कर्मवीर को हार।।
231. परिमल
परिमल की बिखरे महक, हो जाता शृंगार।
प्रेम बसे मन आँगना, खुलें हृदय के द्वार।।
232. उपवास
रोटी नहीं नसीब में, पेट करे उपवास।
हर गरीब का बस यही, छोटा सा इतिहास।।
233. फसल
फसल पके जब खेत में, ताके-खड़ा किसान।
चिंता उसकी है यही, कटे- रखें खलिहान।।
234. कंचन
कंचन दाने देखकर, खुशी कृषक परिवार।
उचित दाम वह पा सके, जीवन बेड़ा पार।।
235. खेत
लहराती हर खेत में, उम्मीदों की आस।
स्वर्णमयी बालें हुईं, खुशियाँ आईं पास।।
236. माटी
माटी जग अनमोल है, वही कराती मेल।
माटी से उपजे फसल, माटी का ही खेल।।
237. उदास
लिप्साओं के जाल में, मानव हुआ उदास।
उच्च विचारों से बढ़े, अन्तस में विश्वास।।
238. लिप्सा
धन की लिप्सा बढ़ गई, भौतिकता की प्यास।
मानव का जीवन बना, यही गले की फाँस।।
239. वैभव
धन वैभव औ सम्पदा, नहीं रहा कुछ मोल।
जीवन ही इंसान का, होता है अनमोल।।
240. संकीर्ण
दृष्टि अगर संकीर्ण है, भोगे मानव कष्ट।
निज स्वार्थों में लिप्तता, जीवन होता भ्रष्ट।।
241. पुरुषार्थ
जीवन में पुरुषार्थ का, होता बड़ा महत्त्व।
मंजिल पाने के लिए, उचित यही है तत्त्व।।
242. चुनाव
मनुज यदि हर मोड़ पर, करते सही चुनाव।
भले-बुरे को भाँप ले, कभी न लगता घाव।।
243. शोषण
शोषण-शोषक हैं बुरे, दोनों बड़े कलंक ।
मिलकर देश समाज को, करते सदा निरंक।।
244. चंद्रमौलि
चंद्रमौलि संकट-हरण, सावन भादों माह ।
पूजन अर्चन से सदा, मिलता है उत्साह ।।
245. विष
चंद्रमौलि विष पी गए, जग की हर ली पीर।
जटा-जूट से है बहा, पाप मोचनी नीर।।
246. फुहार
मेघों का शुभ आगमन, जल की पड़े फुहार।
जड़-चेतन खुश हो उठे, लो आ गई बहार।।
247. परिमल
परिमल बिखरे बाग में, भौरों का गुंजार ।
मानव को हर्षित करे, खुशियों का संसार ।।
248. तुलसी
तुलसी का साहित्य है, सद्भावों का ग्रंथ।
हिंदु संस्कृति का यही, निर्मल पावन पंथ ।।
249. रश्मियाँ
सूर्य देव की रश्मियाँ, करतीं हैं नित भोर।
तमस हरे इस जगत का,हो प्रकाश चहुँ ओर।।
250. निनाद
राष्ट्र धर्म सबसे बड़ा, मत हो व्यर्थ विवाद।
सबका स्वर अब एक हो, गूंँजे यही निनाद।।
251. कुचक्र
पाक-चीन-नेपाल का, भू-विस्तार कुचक्र।
भारत की सरकार का, चला सुदर्शन चक्र।।
252. छल
छल-विद्या में निपुण हैं, राजनीति के लोग।
जनसेवक खुद को कहें, खाते छप्पन भोग।।
253. सौरभ
सौरभ सत्-साहित्य का, बिखरे चारों ओर।
पढ़ता-लिखता जो सदा, उसके जीवन भोर।।
254. फूल
फूल खिलें जब बाग में, महक उठे मकरंद।
मधुप गान करने लगें, कविगण लिखते छंद।।
255. सूरज
भोर हुई सूरज उगा, फैला गया उजास।
कर्म-पथिक आगे चलें, बढ़ जाता विश्वास।।
256. वैभव
भारत का वैभव रहा, शिल्प कला का ज्ञान।
एलोरा की गुफा हो, खजुराहो की शान।।
257. निपुण
हस्त शिल्प प्रस्तर कला, निपुण रहे हैं लोग।
मीनाक्षी तंजावरू, कर्म भक्ति अरु भोग।।
258. विपदा
विपदा की छाई घटा, चीन पाक नेपाल।
सीमा पर प्रहरी खड़े, नहीं झुकेगा भाल।।
259. पक्षपात
पक्षपात की नीतियाँ, पहुँचाती हैं क्लेष।
सामाजिक परिवेश में, बढ़ जाता विद्वेष।।
260. मायावी
मायावी कुछ शक्तियांँ, घृणित भ्रमित हैं जान।
इनसे बचना ही सदा, कर ईश्वर का ध्यान।।
261. आहत
सीमा पर दुश्मन खड़ा, आहत हुए जवान।
घर के ही कुछ भेदिए, घूमें सीना तान।।
262. परिवेश
चीन पड़ोसी दे रहा, सारे जग को क्लेश।
मानवता आहत करे, रोता है परिवेश।।
263. पछुवा
पूरब में पछुआ चली, संस्कृति पर आघात।
संस्कारों पर कर रही, क्षण प्रतिक्षण प्रतिघात।।
264. पड़ोसी
तीन पड़ोसी हो गए, अपने बैरी-देश।
सीमा पर आघात कर, पहुँचाते हैं क्लेश।।
265. विभोर
देख सुदामा मित्र को, मचा महल में शोर।
सुनी कृष्ण ने जब व्यथा, उनके घर में भोर।।
266. दहेज
कभी न हो पाया भला, जिसने लिया दहेज।
श्रम-साध्य ही श्रेष्ठ है, सुख की सजती सेज।।
267. आघात
वाणी में संयम रखें, नहीं करें प्रतिघात।
सबका हित इसमें सधे, कटुता को दें मात।।
268. नारी
देव मनुज दानव सभी, नारी की संतान।
नारी माँ के रूप में, खुद पाती सम्मान।।
269. मिटृटी
जीवन मिट्टी का घड़ा, शीतल जल भंडार।
जिस दिन फूटा, मिल गया, माटी में संसार।।
270. संबंध
जीवन में संबंध हों, प्राणवान गतिशील।
मानवता की राह में, कभी न चुभती कील।।
271. संकल्प
करते हैं संकल्प सब, नहीं करेंगे पाप।
समय गुजरते फिर वही, उसको देते नाप।।
272. चाबी
ताले की चाबी अलग, बुध्दिमान की खोज।
फिर भी दुर्जन खोलकर, चोरी करते रोज।।
273. व्याल
मनुज मनुजता त्याग कर, बना व्याल औ बाघ।
हिंसक पशु ने छोड़ दी, जो थे पहले घाघ ।।
274. पाप
पाप-पुण्य के फेर में, मानवता का लोप।
सज्जन मानव ही सदा, जग का झेलें कोप।।
275. प्रसंग
शुचि प्रसंग श्री राम के, देते हैं संदेश।
जीवन में अनुसरण से, कभी न छाएँ क्लेश।।
276. मानस
मानस अद्भुत ग्रंथ है, शुभ प्रसंग संदेश।
मानव के संकट छटें, प्रगति करे फिर देश।।
277. अनुपम
राम कथा संवाद के, अनुपम सभी प्रसंग।
ज्ञान और वैराग्य का, है रोचक सत्संग।।
278. विभूति
ज्ञान और विज्ञान में, पारंगत जो लोग।
इसकी परम विभूति से, हरता मानव रोग।।
279. झील
नदी बावली झील सब, ईश्वर के वरदान।
इनका संरक्षण करें, मिलता जीवन दान।।
280. आँचल
कष्टों में छलकें सदा, कृपा सिन्धु के नैन।
प्रभु का आँचल जीव को, देता है सुख चैन।।
281. अभिसार
प्रीत-मिलन तन-मन जगे, प्रेम भरा संसार।
ऋतु बसंत का आगमन, प्रियतम से अभिसार।।
282. अनुप्रास
छंदों में अनुप्रास का, करें उचित उपयोग।
अलंकार से जब सजें, तन्मय पढ़ते लोग।।
283. अजेय
साहस दृढ़ता से भरा, बनता वही अजेय।
संकट आने पर सदा, उनको मिलता श्रेय।।
284. अनिकेत
नैतिकता कहती यही, सब को मिले निकेत।
अर्ध-सदी पश्चात भी, भटक रहे अनिकेत।।
285. नवगीत
धरा प्रकृति मौसम हवा, शृंगारित नवगीत।
गीत दिलों में बस रहा, बन जाता मनमीत।।
286. पनघट
गाँवों के पनघट गुमे, मन में है संत्रास।
सुख-दुख की बातें गुमीे, बेमन हुए उदास।।
287. दिनमान
भुवन भास्कर आ गए, जब तक था दिनमान।
अस्ताचल को जब गये, बढ़ा चंद्र का मान।।
288. शिल्प
शिल्प कला के क्षेत्र में, भारत बड़ा महान।
मूर्ति शिल्प की दक्षता, जग जाहिर पहचान।।
289. परिमल {चंदन}
परिमल में लिपटे रहें, विषधर काले सर्प।
खुशबू सदा बिखेरता, कभी न करता दर्प।।
290. देश
महावीर गौतम यहाँ, जग में उनका मान।
देव धरा का देश यह, राम कृष्ण भगवान।।
291. वेश
भारत का परिवेश ही, मानवता का वेश।
कभी नहीं विचलित हुआ, सुखद सुपावन देश।।
292. आवेश
जन्म भूमि खातिर लड़े, त्याग क्रोध आवेश।
पाँच सदी बीतीं तभी, मिला कोर्ट आदेश।।
293. समावेश
समावेश सबको किया, रखा देश ने मान।
जाति, धर्म, मजहब भुला, सबका है सम्मान।।
294. परिवेश
सद्भावों की डोर से, गुथा हुआ परिवेश।
बंधन में है बँध गया, अपना भारत देश।।
295. अनुपम
सत्य, अहिंसा, कर्म का, सुंदर है परिवेश।
सारे जग में छा गया, अनुपम भारत देश।।
296. देह
पंचतत्त्व की देह है, क्षणभंगुर पहचान।
इठलाना इस पर नहीं, जलता है शमशान।।
297. मेह
मेह, क्षितिज में खो गए, नहीं हुई बरसात।
व्याकुल आँखें देखतीं, नहीं मिली सौगात।।
298. नेह
बादल बरसें नेह के, हुआ प्रकृति उपकार।
हरित चूनरी ओढ़कर, ऋतु का है सत्कार।।
299. गेह
संघर्षों के बाद ही, मिला राम को गेह।
जनमानस हर्षित हुआ, कलियुग का है नेह।।
300. अनुवाद
नयनों का अनुवाद कर, लिखते छंद सुजान ।
शृंगारिक कविता रचें, रस का करें बखान।।
301. चंदन
शीतल चंदन धारते, मस्तक पर हर संत।
वाणी के माधुर्य से, दुख का करते अंत।।
302. नदी
नदी सरोवर प्राण हैं, जीवन के आधार।
रखें सुरक्षित हम सभी, तब जीने का सार।।
303. आकाश
सूर्य, चंद्र, तारे सभी, देते सदा प्रकाश।
मानव उनको नाप कर, भ्रमण करे आकाश।।
304. सागर
सागर में नदियाँ मिलें, बदले में सौगात।
उदधि-नीर बादल भरें, करते फिर बरसात।।
305. पेड़
पेड़ काटकर खुश हुए, कुछ मूरख इंसान।
झुलसा गर्मी में तभी, हुआ उसे यह भान।।
306. रेगिस्तान
सूखी नदियाँ ताल सब, दिखते रेगिस्तान।
शोषण मानव ने किया, कैसा है इन्सान।।
307. गुलाब
काँटों में खिलता सदा, मोहक फूल गुलाब।
खुशबू से मन मोहता, लगता वही नवाब।।
308. प्रफुल्लित
हृदय प्रफुल्लित हो अगर, बने काम आसान।
हार कभी मिलती नहीं, झुकता सकल जहान।।
309. कमान
संकट की हर घड़ी में, राह बनी आसान।
सेना को जब से मिली, अंकुशरहित कमान।।
310. क्वाँर
क्वाँर माह नवरात्रि का, नवदुर्गा उपवास।
विजयादशमी का दिवस, हृदय भरे उल्लास।।
311. चकोर
चन्दा और चकोर का, बड़ा अजब संबंध।
इक टक उसे निहारता, कैसा है अनुबंध।।
312. विरोध
बदले चाल, चरित्र सब, राजनीति में आज।
बस विरोध के नाम पर, गूँज रही आवाज।।
313. अभियोग
राजनीति में लग रहे, मनचाहे अभियोग।
दाँव-पेंच में उलझकर, भटक रहे कुछ लोग।।
314. प्रबुद्ध
मानव देश, समाज हित, रहें द्वेष से दूर।
मन प्रबुद्ध होता तभी, फल मिलता भरपूर।।
315. निष्काम
कर्म सदा निष्काम हो, मिलती कभी न हार।
विद्वानों से है सुना, यह गीता का सार।।
316. लगाव
विषय वासना,मोह तज, निश्छल हुआ लगाव।
हरि चरणों में मन लगा, पूजन,भक्ति,जुड़ाव।।
317. कलम
कलम सदा चलती रहे, मन भावन सुविचार।
जहाँ दिखे मानव-अहित, करंे करारा वार।।
318. यामा
यामा को दे चाँदनी, जब उजली सौगात।
देख मुदित प्रेमी सभी, करें दुखों को मात।।
319. अनुराग
पीहर से बेटी गई, लेकर मन अनुराग।
प्रियतम से अठखेलियाँ, खुशियों का नव-भाग।।
320. आमंत्रण
आमंत्रण दिल से मिला, दौड़ पड़े हैं पाँव ।
कंटक पथ को भूलकर, लगे पास ही गाँव।।
321. नलिनी
रूप जलाशय का खिला, नलिनी के जब संग।
दिखती अनुपम छटा तब, प्रकृति उलीचे रंग।।
322. रोटी
रोटी जैसा ही लगे, पृथ्वी का भूगोल।
देश विदेशों में बने, होती है वह गोल।।
323. घाव
मन के घावों का कठिन, होता है उपचार।
तन के भरते घाव सब, वैद्य करे उपकार।।
324. पंछी
मन-पंछी बन बावरा, ऊँची भरे उड़ान।
लौटे पुनः जमीन पर, तब सच्ची पहचान।।
325. प्यास
कुआँ पास आता नहीं, जब लगती है प्यास।
हम जाते नजदीक जब, पूरण होती आस।।
326. पहाड़
सीना तानें हैं खड़े, जग में बड़े पहाड़।
पर मानव के कर्म ने, उनके तोड़े हाड़।।
327. दर्पण
मन दर्पण इंसान का, है सच्चा प्रतिरूप।
मानव की पहचान कर, कहते सभी अनूप।।
328. अनुवाद
करें नैन अनुवाद तो, हो जाता है ज्ञान।
प्रेम क्रोध विद्वेष का, करवाता है भान।।
329. उल्लास
प्रिय का सुनकर आगमन, झूम उठा संसार।
तन-मन में उल्लास का, हो जाता संचार।।
330. शिथिल
शिथिल पड़ें जब इंद्रियाँ, तन का है वनवास।
मन का हाल विचित्र है, बढ़ता दृढ़ विश्वास।।
331. अभिनव
अभिनव भारत रच रहा, एक नया इतिहास।
देख रहा सारा जगत, फैला हुआ उजास।।
332. पुरस्कार
पुरस्कार उनको मिलें, रहते जो बदनाम।
हर सरकारी तंत्र का, बड़ा अनोखा काम।।
333. नाम
कर्म पथिक का जगत में, हुआ हमेशा नाम।
पीढ़ी दर पीढ़ी सदा, करते हैं जो काम।।
334. शिखर
उच्च शिखर छू लीजिए, रखकर दृढ़ विश्वास।
जिसके अंदर यह नहीं, करें व्यर्थ ही आस।।
335. सामान
जोड़-जोड़ कर मर गए, हर सुख का सामान।
नियति नटी के सामने, बेबस है इंसान।।
336. समकालीन
कविता समकालीन की, भरती रंग अनेक।
सुगम बोध संदेश दे, राह दिखाती नेक।।
337. षड्यंत्र
दौर चला षड्यंत्र का, राजनीति में आज।
सत्ता सुख सब चाहते, करें निरंकुश राज।।
338. सैलाब
सूखा सावन ही गया, भादों में सैलाब।
बादल बरसे इस तरह, उफन पड़े तालाब।।
339. वामन
तम का बढ़ा प्रभाव जब, धर वामन का रूप।
तीन-पगों में नाप ली, तीन लोक, अरु भूप।।
340. नागिन
कोरोना से सब दुखी, डरे सभी हैं देश।
नागिन बनकर नाचता, जहर भरा परिवेश।।
341. कानून
समता का कानून ही, करता है कल्याण।
समरसता को बींधते, भेदभाव के बाण।।
342. कृष्ण
दिया कृष्ण ने जगत को, कर्म-योग उपहार।
फल की इच्छा छोड़ कर, कर्म करे संसार।।
343. राधा
राधा की आराधना, हरती तन-मन क्लेश।
प्रेम-शक्ति जग में बड़ी, द्वापर का संदेश।।
344. प्रेम
इस दुनिया में प्रेम ही, मजबूती की डोर।
एक बार जो बंँध गया, जीवन में है भोर।।
345. समर्पण
भाव समर्पण का रहे, पति-पत्नी के बीच।
सुखमय जीवन बेल को, नित्य नेह से सींच।।
346. त्याग
त्याग तपस्या से बने, मानव देव समान।
संस्कार आदर्श से, भारत बना महान।।
347. लोक कल्याण
लोक-भाव, कल्याण का, शासन का हो मंत्र।
उन्नति और विकास का, परिचायक है तंत्र।।
348. दुष्ट-दमन
दुष्ट-दमन, कलिमल हरण, प्रभु ही कृपा निधान।
भक्ति भाव से पूजिए, होंगे कष्ट निदान।।
349. धर्म
मानवता को मानिए, सब धर्मों का धर्म।
मानव हित को समझता, समझा उसने मर्म।।
350. कर्म
कर्म, धर्म से है बड़ा, उन्नति का सोपान।
देश प्रगति पथ पर बढ़े, जग करता सम्मान।।
351. ज्ञान
ज्ञान और विज्ञान से, बनता देश महान।
जितना व्यापक क्षेत्र हो, उतना है सम्मान।।
352. योग
योग-गुरू भारत बना, दिया जगत को ज्ञान।
सभी निरोगी ही रहें, मानव ले संज्ञान।।
353. भक्ति
भक्ति योग कहता सदा, जाग्रत रखो विवेक।
ईश्वर में रख आस्था, मानव बनता नेक।।
354. त्योहारों
हर त्योहारों की छटा, है संस्कृति की जान।
एक सूत्र में सब बँधे, यह भारत की शान।।
355. अक्षर
वेद ऋचाएँ मंत्र सब, अक्षर से निर्माण।
ज्ञान और विज्ञान का, हैं अचूक यह बाण।।
356. अवसर
अवसर आता एक दिन, सबके जीवन काल।
चूक हुयी तो शर्म से, झुक जाता है भाल।।
357. आदर
आदर देते आप जब, पाते हैं सम्मान।
कभी अनादर मत करें, दुगनी होती शान।।
358. दूभर
दृढ़ इच्छा से ही बनें, दूभर सबके काम।
ईश्वर देता साथ है, जग में होता नाम।।
359. उर
त्रेता से कलिकाल तक, सबके उर में राम।
नगर अयोध्या फिर सजा, उसका यह परिणाम।।
360. कोरोना
कोरोना का संक्रमण, फैला है चहुँ ओर।
छूने से यह बढ़ रहा, सचमुच आदम खोर।।
361. अँगड़ाइयाँ
खेत और खलिहान में, श्रम की है दरकार।
फसलें ले अँगड़ाइयाँ, देश करे सत्कार।।
362. अधिकार
आजादी अधिकार है, देशभक्ति कत्र्तव्य।
रक्षा में जो प्राण दें, है महानतम् हव्य।।
363. विश्वास
संकट के हर काल में, लगी सभी को आस।
भारत की सरकार पर, बढ़ा आज विश्वास।।
364. शारदा
मैहर की मांँ शारदा, सब पर कृपा निधान।
दर्शन करते भक्तगण, पूर्ण करे वरदान।।
365. नवरात्रि
दिव्य पर्व नवरात्रि में, मंदिर का निर्माण।
आज अयोध्या फिर सजी, जैसे तन में प्राण।।
366. सहनशीलता
सहनशीलता है भरी, भारत में भरपूर।
संघर्षों की राह चल,बना विश्व का नूर।।
367. कानून
अपराधी भी समझते, सज्जनता है मौन।
बने सभी कानून पर, अमल करेगा कौन।।
368. सरकार
चुनी हुई सरकार जब, करती अच्छे काम।
तब विरोध के नाम पर, कुछ नेता बदनाम।।
369. ललकार
संकट जब हो देश में, गूँज उठे ललकार।
देशभक्ति उर में जगे, धारदार तलवार।।
370. मशाल
जागरूक बनकर जिएँ, थामे रखें मशाल।
जनहित में सब काम हों, सद्गुण मालामाल।।
371. शृंगार
ऋतु बसंत ने कर दिया, वसुधा का शृंगार।
तन-मन पुलकित हो उठे, अद्भुत है उपहार।।
372. अभिसार
ऋतुराजा है आ गया, प्रीत मिलन अभिसार।
सरसों पीली खिल गई, बासंती मनुहार।।
373. दुश्वार
पिया गए परदेश में, रातें हैं दुश्वार।
संझा-बेरा आ गई, भुज बंधन अभिसार।।
374. वंदनवारे
वंदनवारे बँध गए, खुशियों की सौगात।
बेटी का मंडप सजा, घर आई बारात।।
375. तकदीर
कर्मठ मानव लिख रहा, खुद अपनी तकदीर।
बना रहा जो आलसी, भोग रहा वह पीर।।
376. प्राण
तन से निकले प्राण जब, तन का क्या है मोल।
हीरा माणिक व्यर्थ है, प्राण रहें अनमोल।।
377. मिश्री
प्रियतम प्यारे हैं लगें, यह जीवन अनमोल।
प्रेमी के मीठे वचन, लगते मिश्री-घोल।।
378. चंचरीक (भौंरा)
चंचरीक करने लगा, मधुवन में नव गान।
फूलों के मकरंद पर, छेड़ी उसने तान।।
379. पतझड़
पतझड़ के पहले सदा, आता है मधुमास।
नव पल्लव ज्यों झूम कर, मना रहे उल्लास।।
380. हरसिंगार
बगिया की छवि देखकर, हँसता हरसिंगार।
भौरों का गुंजन हुआ, लुटा दिया सब प्यार।।
381. बहार
मधुमासी ऋतु आ गई, छायी मस्त बहार।
कोयल की सुर तान सँग, बहती मधुर बयार।।
382. फागुन
फागुन का यौवन निरख, बौरा गया समीर।
गालों को छूकर गया, छलक उठा है नीर।।
383. पाटल (गुलाब)
सबके दिल को भा गई, मनमोहक मुस्कान।
उपवन में पाटल हँसा, गूँजा गुंजन गान।।
384. शिविका (डोली)
बाबुल अँगना छोड़ कर, चली पिया के देश।
घर से शिविका चल पड़ी, नव जीवन परिवेश।।
385. चषक (शराब प्याला)
स्वाद चषक का जब चढ़ा, भूला जीवन मोल।
मानव फिर बचता कहाँ, रह जाता बस खोल।।
386. सेमल
सेमल का जो वृक्ष है, औषिधियों की खान।
इसका जो सेवन करे, रखे स्वस्थ तन-जान।।
387. कामदेव
कामदेव के बाण से, मूर्छित हुआ समाज।
संयम सबके टूटते, नैतिकता नाराज।।
388. नैतिकता
नैतिकता के पाठ से, सुदृढ़ बने समाज।
कार्य अनैतिक जब करें, नहीं सुरक्षित ताज।।
389. प्रेम
प्रेम हृदय में जब बसे, जग को करे निहाल।
काम, वासना, क्रोध से, मानव खींचे खाल।।
390. ज्ञान
ज्ञान जगत में है बड़ा, उसका कहीं न छोर।
जितना उसे सहेजते, होती घर में भोर।।
391. उन्वान
सीमा में रक्षा करे, देश भक्ति उन्वान।
ऐसे जज्बे को नमन, जो देते बलिदान।।
392. संताप
मनाव खुद पैदा करे, रोग शोक संताप।
कर्मठ मानव जूझकर, उनको देता नाप।।
393. निर्मल
निर्मल-मन को चाहते, सबको है दरकार।
दूषित-मन से भागते, कौन करे सत्कार।।
394. नाहर
सीमा पर नाहर सदा, करते दुश्मन साफ।
शरणागत को देखकर, कर देते हैं माफ।।
395. नृप
सच्चा-नृप दिल में बसे, होता कृपा निधान।
जन-जन की पीड़ा हरे, दुख का करे निदान।।
396. नानक
नानक के संसार में, भाँति-भाँति के लोग।
कुछ रोगों को पालते, कुछ फैलाते रोग।।
397. निपुणता
दृढ़ निश्चय अरु लगन में, होती है जब वृद्धि।
सबसे आगे वह चले, मिले उसी को सिद्धि।।
398. निकेत
निर्धन को है कब मिला, अपना उसे निकेत।
नेता होते यदि सही, क्यों रहते अनिकेत।।
399. आराधना
करें ईश आराधना, समय कठिन है आज।
खुशहाली में सब जिएँ, सुखमय रहे समाज।।
400. वेदना
मानवता गुम हो गई, शोर मचा चहुँ ओर।
यही वेदना आज की, कैसी होगी भोर।।
401. चैतन्य
रहें सदा चैतन्य ही, जाग्रत रखें विवेक।
जीवन में निर्भय बढ़ें, राह मिलेगी नेक।।
402. संकल्प
कर्मयोग संकल्प से, हो जाते सब काम।
इसके बल पर ही बढ़ें, जग में सबके नाम।।
403. चेतना
सुप्त चेतना जब जगे, होती जीवन भोर।
तिमिर कभी छाता नहीं, नाचे जीवन मोर।।
404. पतवार
युवा देश की शक्ति हैं, थाम रखें पतवार।
पार लगे नैया सही, सच्चे खेवनहार।।
405. उपाय
चलो सभी मिल बैठकर, खोजें नये उपाय।
सद्भावों की डोर से, आपस में गुँथ जाँय।।
406. छंद
कविता है मंदाकिनी, मन होता खुशहाल।
छंद रूप में जब सजे, सबको करे निहाल।।
407. वनवास
कटा आज वनवास है, लौटे हैं श्री राम।
दीपों से है सज गया, सकल अयोध्या धाम।।
408. अभियान
छेड़ें मिल-जुलकर सभी, एक बड़ा अभियान।
जिससे भारत देश का, बढ़े जगत में मान।।
409. परिवार
सुसंस्कृत परिवार से, बनता नेक समाज।
यही देश निर्माण में, पहनाता है ताज।।
410. चूल्हा
चूल्हा कहता अग्नि से, हम दोनों का साथ।
कितने युग बदले मगर, कभी न छूटा हाथ।।
411. धुआँ
अम्मा का चूल्हा बुझा, मिली धुआँ से मुक्ति।
नव पीढ़ी ने खोज ली, गैस सिलेंडर युक्ति।।
412. चूल्हा
चूल्हा ने जग से कहा, बदला हमने रूप।
जंगल में मंगल रहे, ढले समय अनुरूप।।
413. उज्ज्वला
आज उज्ज्वला गैस ने, फैलाये हैं पैर।
अब हरियाली हँसेगी, नहीं प्रकृति से बैर।।
414. जीवन
जीव-जन्तु सब खुश हुये, सबने जोड़े हाथ।
अपना जीवन धन्य है, अब मानव का साथ।।
415. मजदूरी
मजदूरी मिलती नहीं, मानव खड़ा उदास।
घर की चिंता है उसे, काम नहीं कुछ पास।।
416. पहचान
मजदूरी से देश की, होती है पहचान।
आर्थिक उन्नति का यही, पैमाना है जान।।
417. मूलाधार
मजदूरी मजदूर की, जीवन का आधार।
रहन-सहन जीवन-मरण, सबका मूलाधार।।
418. निर्भय
श्रमिक-भलाई के लिए, मिलजुल करें प्रयास।
उन्नति के स्तंभ ये, होगा देश विकास।।
419. अस्मिता
नारी की अब अस्मिता, लुटे सरे बाजार।
अपराधी बेखौफ हैं, जागो अब सरकार।।
420. संवेदना
मानव की संवेदना, डूब मरी है आज।
मानवता रोती फिरे, नहीं किसी को लाज।।
421. ललकार
पाक रहा नापाक ही, बढ़ा रखी तकरार।
सीमा पर सैनिक उसे, खूब रहे ललकार।।
422. भोर
भोर सुनहरी आ गई, मधुवन छटा अनूप।
भँवरों का गुँजन हुआ, मौसम बदले रूप।।
423. क्षितिज
भोर क्षितिज से हँस रही, देख प्रकृति का रूप।
ईश्वर भी तब कह उठा, नव प्रभात ही भूप।।
424. ऊषा
ऊषा ने करवट बदल, झाँका खिड़की ओर।
इतनी जल्दी आ गया, कैसा है चितचोर।।
425. उजास
दीपक ने जग से कहा, होना नहीं उदास।
कदम-कदम पर साथ हूँ, मैं बिखराउँ उजास।।
426. सूर्य
सूर्य ठंड में दे रहा, तपस भरा आराम।
छोड़ रजाई चल निकल, अपने कर ले काम।।
427. नागफनी
मंदिर में तुलसी नहीं, नागफनी का राज।
भक्तों में श्रद्धा नहीं, लूट रहे हैं बाज।।
428. पाहुने
घर में आए पाहुने, चिंतित है परिवार।
बड़ी समस्या आ खड़ी, कैसे हो सत्कार।।
429. लक्ष्य
सुखमय जीवन सब जियें, आए नहीं विराम।
जीवन में बस लक्ष्य हो, जीतें दुख-संग्राम।।
430. कडवाहट
कडवाहट मन में भरे, पालें जो यह रोग।
खुद चिंता में जल मरें, करें न सुख का भोग।।
431. तकदीर
कर्म साधना से सभी, गढ़ते हैं तकदीर।
आओ मिलकर बदल दें, जीवन की तस्वीर।।
432. जल
जल जीवन मुस्कान है, समझो इसका अर्थ।
पानी बिन सब सून है, नहीं बहाओ व्यर्थ।।
433. साल
साल पुराना जा रहा, ‘नव’ देता संदेश।
गुजरी बातें भूल जा, तब बदले परिवेश।।
434. पसीना
नाच उठे सब गाँव में, ले ढपली औ ढोल।
बहा पसीना खेत में, फसल उगी अनमोल।।
435. धूप
वर्षा जल से हम भरें, ताल बाँध औ कूप।
साफ स्वच्छ इनको रखें, नहीं छलेगी धूप।।
436. उद्यम
मानव उद्यम जब करे, मिलता है सम्मान।
हाथ धरे बैठा रहे, घट जाता सब मान।।
437. कुंचन
यौवन की दहलीज को, पार करे जब नार।
लट-कुंचन अठखेलियाँ, झूमे बारम्बार ।।
438. वागीश
दिल सबका जो जीतता, कहलाता वागीश।
खुशियों से झोली भरे, हम सबका जगदीश।।
439. राघव
रघुकुल में राघव हुए, त्रेतायुग की शान।
उनको कलयुग पूजता, न्यौछावर हर-जान।।
440. चंचला
लक्ष्मी होती चंचला, करे तमस कब भोर।
मोहित सबको कर रही, लुभा रही चहुँ ओर।।
441. नारी
नारी को जग पूजता, वह माता का रूप।
देव, मनुज, दानव सभी, दिल से लगे अनूप।।
442. नारी
नारी नर की खान है, जाने जग संसार।
माँ, पत्नी, दुहिता बने, घर का बाँटे भार।।
443. पिपीलिका
नन्हीं एक पिपीलिका, देती श्रम संदेश।
मिलकर हम सब ठान लें, बदलेगा परिवेश।।
444. गैस कांड
गैस कांड की त्रासदी, जब भी आती याद।
जीवित रहते भी मरे, कहीं नहीं फरियाद।।
445. डाक्टर
लाशों के अंबार को, देख सभी हैरान।
डाक्टर सारे जुट गये, लगे बचाने प्रान।।
446. अंगार
दिल में जब अंगार हों, धधकेगा फिर देश।
प्रेम सृजन के भाव से, सजता है परिवेश।।
447. सरकार
जनहित के जब काम हों, तब अच्छी सरकार।
निजी स्वार्थ में डूबकर, हो जाती बेकार।।
448. न्याय
न्याय-प्रणाली उचित हो, मिले सभी को न्याय।
जनता जब संतुष्ट हो, तब स्वर्णिम अध्याय।।
449. मंच
ज्ञानी बैठे मंच पर, रहता सदा प्रकाश।
तिमिर सभी मन के मिटें, मन उड़ता आकाश।।
450. कानून
सदा कड़े कानून ही, करते हैं कल्यान।
अपराधी डर कर रहें, बाकी सीना तान।।
451. नैतिकता
नैतिकता स्वीकार्य ही, मानवता की शान।
मापदंड की श्रेष्ठता, सदा बढ़ाता मान।।
452. जीत
जीत सदा मिलती नहीं, जीवन में हर बार।
हार मिले तो सोचिये, कैसे करें सुधार।।
453. उल्लास
जीवन में उत्साह का, बना रहे बस साथ।
सारा जग तब साथ में, होते नहीं अनाथ।।
454. त्यौहार
आता जब त्योहार है, खुशियाँ लाता साथ।
मन हर्षित हो झूमता, गर्वित होता माथ।।
455. संयोग
मानव का सत्कर्म से, होता जब संयोग।
भाग्योदय होता तभी, पल में बनता योग।।
456. सत्य
सत्य हमेशा सत्य है, सदा रहा सिरमौर।
झूठ सदा टिकता नहीं, कहीं न इसका ठौर।।
457. भ्रमर
काम वासना से घिरे, भ्रमर हुए बदनाम।
बगिया अब बेचैन है, होती काली-शाम।।
458. स्वर्णिम
हम सबका दायित्व है, यह सबका है न्यास।
स्वर्णिम देश बना रहे, मिलजुल करें प्रयास।।
459. अंतस्
अंतस् मन की वेदना, क्यों है भ्रष्ट-समाज।
अंत करें तब ही भला, होगा स्वर्णिम राज।।
460. खादी
गांधी हुए अतीत के, भूला उसे समाज।
खादी का अब युग गया, छाया फैशन आज।।
461. जुगनू
जुगनू करती रोशनी, जाने सकल जहान।
अंधकार से लड़ रही, वह नन्हीं सी जान।।
462. उदार
राम कृष्ण की भूमि है, सदियों का इतिहास।
दिल उदार रखते यहाँ, सबको आता रास।।
463. अभिनंदन
देश प्रगति पथ पर चला, कभी न मानी हार।
उसका अभिनंदन करें, हम सब बारम्बार।।
464. कल्पना
देश भक्ति में डूबकर,नेक करें सब काज।
संविधान की कल्पना, सुदृढ़ बने समाज।।
465. तंत्र
भ्रष्टाचारी तंत्र ने, खो दी शर्मो-लाज।
अनाचार है बढ़ गया, रोता आज समाज।।
466. आखर
ढाई आखर प्रेम से, जीतें सब संसार।
दुश्मन को भी जीत कर, बना सकें किरदार।।
467. नेह
काम क्रोध अरु मोह से, रहता है जो दूर।
प्रेम सदा दिल में बसे, जीता वह भरपूर।।
468. उजास
अपनी संस्कृति है भली, इस पर बड़ा गुमान।
दिल में भरे उजास वह, जग जाहिर पहचान।।
469. मीत
जीवन सजता मीत से, सुर से है संगीत।
शब्द छंद में जब ढलें, बनता गीत पुनीत ।।
470. पंख
बेटी है परदेश में, नहीं मिला संदेश।
पंख नहीं कैसे उड़ूँ, मन में भारी क्लेश।।
471. हर्ष
निश्छल प्रेम रहे सदा, जीवन में हो हर्ष।
घर समाज अरु देश का, तब होता उत्कर्ष।।
472. रक्षक
गौरव गाथा रच गए, कर दुश्मन संहार।
रक्षक बनकर हैं खड़े, सीमा पहरेदार।।
473. प्राची
प्राची से सूरज निकल, जग में भरे उजास।
पश्चिम में वह डूबकर, होता मलिन उदास।।
474. चितचोर
सूरज प्राची दिशा से, पहले करता भोर।
सारा जग है बोलता, भारत को चितचोर।।
475. नवदौर
ज्ञान और विज्ञान का, आया है नव दौर।
अंधकार है छट रहा, तम का कहीं न ठौर।।
476. अन्वेष
वर्तमान इस सदी में, नित होते अन्वेष।
रूप बदलता जा रहा, वंचित रहें न शेष।।
477. पहचान
भारत की संस्कृति रही, जग में सदा महान।
संकट के हर दौर में, नहीं गुमी पहचान।।
478. लालिमा
नील गगन में लालिमा, करती भाव विभोर।
पंछी उड़ते झुंड में, मिलकर करते शोर।।
479. खगकुल
जग में खगकुल घूमते, देते हैं संदेश।
हम पक्षी सब एक कुल, अलग-अलग परिवेश।।
480. प्रभात
कष्ट सहे हैं बहुत अब, गुजर गई वह रात।
पंछी कलरव कर रहे, चल उठ हुआ प्रभात।।
481. लाली
लाली बिखरी भोर की, वन में नाचे मोर।
लोग काम पर चल पड़े, कल-पुर्जों का शोर।।
482. वोट
फ्री का लालच दे सभी, माँग रहे हैं वोट।
नेतागण क्यों कर रहे, कर्म घर्म पर चोट।।
483. प्रारब्ध
लिखा हुआ प्रारब्ध में, अमिट रहा है लेख।
मिटा नहीं है भाग्य से, रहा जगत है देख।।
484. अंतरिक्ष
अंतरिक्ष के क्षेत्र में, जग में किया धमाल।
भारत का झंडा गड़ा, सच में हुआ कमाल।।
485. संविधान
संविधान की आड़ ले, आग लगाते लोग।
पहन मुखोटा घूमते, मन में पाले रोग।।
486. संघर्ष
कैसा यह संघर्ष है, छल छद्मों का शोर।
आपस में हम लड़ रहे, कैसी होगी भोर।।
487. अन्तद्र्वन्द्व
सी. ए. ए. के नाम पर, मचा हुआ है द्वन्द्व।
कैसी यह आँधी चली, हर मन अन्तद्र्वन्द्व।।
488. फगुआ
फगुआ मिलकर गा रहे, चहुँ दिश उड़े गुलाल।
रंगों की बरसात से, भींग उठी चैपाल।।
489. फगुहारे
फगुहारे निकले सभी, मन-मस्ती में साथ।
होली का त्योहार है, लिए रंग हैं हाथ।।
490. भाँग
भाँग पिये कुछ घूमते, कुछ तो पिए शराब।
होली के त्योहार को, पीकर करें खराब।।
491. उन्मत्त
पीकर कुछ उन्मत्त हैं, बिगड़े उनके बोल।
गली-गली में घूमते, कब बज जाते ढोल।।
492. गुलमोहर
गुलमोहर के फूल ने, दिया प्रेम संदेश।
गाँव की पगडंडी का, शृंगारित परिवेश।।
493. अमराई
अमराई की छाँव में, गूँजी कोयल तान।
पवन-झकोरे दे गए, तन-मन में मुस्कान।।
494. चंचरीक
फूलों का विध्वंश कर, मधुवन किया कुरूप।
चंचरीक बौरा गए, यह कैसा है रूप।।
495. कचनार
फागुन में कचनार ने, बदला है परिवेश।
है मौसम ऋतुराज का, चलो पिया के देश।।
496. ऋतुराज
आया जब ऋतुराज तब, बहती मस्त बयार।
तन-मन में आनंद का, करती है संचार।।
497. लज्जा
गुलमोहर के फूल से, सुर्ख हुए हैं गाल।
लज्जा से हैं भर उठे, जैसे मला गुलाल।।
498. विश्वास
नेताओं से उठ गया, अब सबका विश्वास।
एक तुम्हीं से सर्वदा, लगी हुई प्रभु आस।।
499. अभिनव
मोदी की सरकार का, साहस-अभिनव-काम।
भारत को जग कर रहा, झुककर आज प्रणाम।।
500. अभियान
मानवता सबसे बड़ी, बस अपनी पहचान।
पाखंडों को छोड़ने, मिल छेड़ें अभियान।।
501. मयंक
नभ में खिले मयंक ने, फैलाया उजियार।
भगा अँधेरा घरों का, शीतल बही बयार।।
502. चाँदनी
चंदा की जब चाँदनी, निकली चूनर डाल।
देव मनुज मोहित हुए, मिलकर हुआ धमाल।।
503. आराधना
माता की आराधना, अद्भुत देती शक्ति।
जाति-पाँति को भूल कर, करते श्रृद्धा भक्ति।।
504. आयु
जीने की है लालसा, इसका कभी न अंत।
खत्म हुई जब आयु तो, राजा बचे न संत।।
505. मोर
मोर हुआ है बावला, देख प्रकृति का रूप।
मस्ती में जब नाचता, सबको लगे अनूप।।
506. रेवड़ी
रेवड़ी सबको बाँटते, सत्ता खातिर आज।
टैक्स प्रदाता देखते, राजनीति की खाज।।
507. संसार
रहन-सहन,जीवन-मरण,भाँति-भांँति के लोग।
यह संसार विचित्र है, अलग-अलग हैं भोग।।
508. दृष्टि
सबकी अपनी दृष्टि है, अपना है संसार।
जीवन जीते हैं सभी, जीने से है प्यार।।
509. अनुबंध
संविधान अनुबंध है, निर्भय रहते लोग।
लिखित नियम कानून का, परिपालन सहयोग।।
510. चकोर
शशि-चकोर की मित्रता, दुर्लभ है श्रीमान।
प्रिय को सदा निहारता, व्याकुल तजता प्रान।।
511. चाँदनी
रात चाँदनी ने कहा, सुन प्रिय मेरी बात।
घोर तिमिर की रात है, मिलकर देंगे मात।।
512. चितवन
चितवन नयन कटार से, नारी करती वार।
प्रेम-लेप उपचार से, पीड़ा का संहार।।
513. अक्षर
अक्षर-अक्षर बोलते, मन दर्पण के बोल।
अंतर्मन को झाँकते, शब्द-शब्द अनमोल।।
514. आँखें
आँखें अक्षर बाँचतीं, प्रिय पाती संदेश।
छिपे अर्थ को खोजतीं, रहे न कुछ भी शेष।।
515. किरण
आस-किरण मन में जगे, सिद्ध सभी हों काम।
तिमिर हटेंगे स्वयं ही, ऊँचा होगा नाम।।
516. नवप्रभात
नव प्रभात की किरण उग, देती है संदेश।
उठ रे मानव जाग अब, बदलेंगे परिवेश।।
517. मानसून
मानसून का आगमन, दे जाता उल्हास।
ग्रीष्म तपन के बाद ही, मेघा बरसें खास।।
518. चातक
स्वाति बूँद की चाह में, चातक रहे अधीर।
आँख उठाए देखता, उसकी कैसी पीर।।
519. उलझन
उलझन बढ़ती जा रही, कोरोना का रोग।
स्पर्श मात्र से बढ़ रहा, अलग-थलग हैं लोग।।
520. अरविंद
मंदिर में श्री कृष्ण की, छवि मोहक अरविंद।
मनकों की माला लिए, जपें सभी गोविंद।।
521. अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति के नाम पर, माँग रहे अधिकार।
राष्ट्र विरोधी बात कर, बने देश पर भार।।
522. अयोद्धा
नवमी तिथि को चैत्र में, जन्मे थे प्रभु राम।
नगर अयोध्या धन्य है, बना राम का धाम।।
523. रामायण
रामायण की है कथा, सभ्य सुसंस्कृति बात।
सामाजिक परिवेश का, सद्भावी सौगात।।
524. स्वर्णिम
चंद्रगुप्त के काल में, ऊँचा रहा कपाल।
ज्ञान औ विज्ञान का, स्वर्णिम था वह काल।।
525. अरविंद
मोहक चितवन ईश की, नेत्र युगल अरविंद।
मन मंदिर में बस गई, छवि मूरत गोविंद।।
526. शक्ति
कविता से मुझको मिली, अद्भुत जीवन शक्ति।
अंतस के हर भाव को, मिल जाती अभिव्यक्ति।।
527. हिम्मत
हिम्मत हो जब साथ में, ईश्वर देता साथ।
जीत उसी की है सदा, सबका झुकता माथ।।
528. दया
दया धर्म का मूल है, बाकी सब निर्मूल।
जिसके अंदर यह नहीं, बनकर चुभता शूल।।
529. कर्म
कर्म जगत में मुख्य है, यह जीवन का मर्म।
गीता का उपदेश पढ़, यही बड़ा है धर्म।।
530. रजनी
रजनी का संदेश है, कुछ कर ले विश्राम।
अगले दिन फिर भोर में, तुझको करना काम।।
531. दिनकर
पूरब से दिनकर चला, लिए उजाला साथ।
भोर हुई चल जाग रे, तेरे हैं दो हाथ।।
532. पर्वत
अक्सर जीवन में मिले, पर्वत जैसी पीर।
विजयी होते हैं वही, जो होते गंभीर।।
533. सरिता
सरिता सा मन में बहे, पावन र्निमल नीर।
जग में वही प्रणम्य है, होता है जो वीर।।
534. शक्ति
शक्ति भक्ति श्रद्धा सभी, भारत के हैं रंग।
जीने के ही ढंग ये, हैं संस्कृति के अंग।।
535. शारदा
मैहर की माँ शारदा, बैठीं उच्च पहाड़।
द्वार खड़े दो सिंह हैं, रक्षा करें दहाड़।।
536. फागुन
फागुन की पुरवा बही, हँसी खुशी चहुँ ओर।
होली के रस रंग में, डूबे माखन चोर।।
537. महुआ
महुआ चढ़ा दिमाग में, भूला घर की राह।
दिन में तारे गिन रहा, जग से बेपरवाह।।
538. सुधा
चाहत सबके मन रहे, पिएँ सुधा रस आज।
पाकर हम अमृत्व को, सिर पर पहने ताज।।
539. मदन
हुआ मदन है बावला, ऋतु बसंत की भोर।
बाग बगीचे हँस रहे, मधुप मचाएँ शोर।।
540. बसंत
आहट सुनी बसंत की, मधुकर पहँुचे बाग।
स्वर लहरी में गा उठे, पुष्पों से अनुराग।।
541. पिचकारी
फागुन में राधा रँगी, मुरली रही निहार।
ले पिचकारी मारते, तक-तक बारम्बार।।
543. नूपुर
नूपुर पैरों में पहन, राधा छिपती ओट।
नूपुर-ध्वनि पहचानते, यही बड़ी थी खोट।।
544. सुदामा
बाँह पकड़ के कृष्ण ने, कहा सुदामा बोल।
छुप-छुप कर खाए चनें, करी पोटली गोल।।
545. शृंगार
नारी का शृंगार है, कुंतल अधर कपोल।
लज्जा रूप लुभावना, मन जाता है डोल।।
546. घूँघट
घूँघट के अंदर हँसे, मन भावन चितचोर।
मन के लड्डू खा रहे, नृत्य करे मन-मोर।।
547. प्रीति
प्रीति हुई श्री कृष्ण से, जगे भक्ति का नेह।
मीरा नाचीं मगन हो, छोड़ दिया निज गेह।।
548. कामिनी
ज्वार चढ़े जब प्रेम का, छोड़ चले घर द्वार।
मन भावन है कामिनी, बने गले का हार।।
549. नयन
चितवन नयन कटार से, घायल करती नार।
योगी सँग भोगी सभी, उसके हुए शिकार।।
550. दशहरा
महल दशानन का ढहा, वनवासी की जीत।
पर्व दशहरा ने रचे, खुशियों के नव गीत।।
551. सत्य
विजय सत्य की हो गई, जीत गए प्रभु राम।
लंकापति के हार से, गिरा असत्य धड़ाम।।
552. नवरात्रि
सजा हुआ नवरात्रि पर, माता का दरबार।
धूप-दीप-नैवेद्य से, सब करते मनुहार।।
553. शरद
हुआ शरद का आगमन, मौसम बदले रंग।
धूप सुहानी अब लगे, आग -रजाई संग।।
554. गरबा
गुजराती गरबा हुआ, इस जग में विख्यात।
माँ दुर्गा की भक्ति में, डूबंे जन दिन-रात।।
555. भाई
लक्ष्मण सम भाई नहीं, त्यागा था घर द्वार।
बड़े भ्रात के साथ में, रक्षा का धर भार।।
556. बहिन
चीर-हरण पर बहन का, संकट से उद्धार।
कृष्ण-द्रौपदी की कथा, भाई-बहन का प्यार।।
557. पुत्र
दशरथ के हर पुत्र में, पितृ भक्ति सम्मान।
राजपाट को छोड़कर, रखा वचन का मान।।
558. माता
माता है इस जगत में, सबकी तारण हार।
भक्ति भाव आराधना, धर्म सनातन सार।।
559. पिता
धर का मुखिया पिता है, उसका जीवन दाँव।
दुख दर्दों को भूलकर, देता सबको छाँव।।
560. जनमेदिनी
उमड़ पड़ी जनमेदिनी, नवदुर्गा में आज।
दर्शन का संकल्प ले, मातृ-भक्ति सुर-साज।।
561. प्रतिदान
स्नेह और आशीष है, मीठे अनुपम बोल।
मिले सदा प्रतिदान में, शक्ति-विजय अनमोल।।
562. वाणी
वाणी का माधुर्य ही, सम्मोहन का बाण।
कार्यकुशलता है बढ़े, हर संकट से त्राण।।
563. आह्वान
भारत का आह्वान है, जग का हो कल्याण।
मानव वादी सब रहें, लगंे न उस पर बाण।।
564. सुचिता
जग में सुख सद्भावना, भारत देश प्रमाण।
सुचिता का आह्वान हो, मानव का कल्याण।।
565. परिणाम
नेक कार्य करते रहें, बढ़ें सदा अविराम।
मंजिल सदा पुकारती, मिलें सुखद परिणाम।।
566. संकट
नेक-नियति मन में रखें, चलें सभी इस राह।
कभी न संकट आ सके, कभी न मिलती आह।।
567. क्वाँर
क्वाँर माह नवरात्रि को, नव दुर्गा का रूप।
शक्ति रूप आराधना, जप-तप करें अनूप।।
568. कार्तिक
कार्तिक में दीपावली, धन-लक्ष्मी का वास।
गहराता तम दूर हो, नव जीवन की आस।।
569. अगहन
अगहन मासी शरद ऋतु, देती यह संदेश।
मौसम ने ली करवटें, कट जाएँगें क्लेश।।
570. मुकुल
मुकुल खिलें जब बाग में, बिखरेगी मुस्कान।
भौरों का संगीत तब, छेड़े मधुरिम तान।।
571. मंजुल
मंजुल छवि श्री राम की, मन मंदिर की शान।
हृदय अयोध्या बन रहा, करें सभी गुणगान।।
572. आस्था
आस्था अरु विश्वास ही, ईश्वर से सत्संग।
सदाचार जीवन रहे, रख मानवता संग।।
573. शांति
सुख-दुख की ही सोच से, बनते हैं मनमीत।
विश्व शांति चहुँ ओर हो, मानवता की जीत।।
574. रूपसी
देख रूपसी नार को, मन होता बेजार।
घायल दिल तब चाहता,साथ बने उपचार।।
575. क्रंदन
तालिबान की सोच से, लहू बहा अफगान।
क्रंदन करता है मनुज, बन गया कब्रिस्तान।।
576. कलरव
वृक्षों पर कलरव करें, पक्षी सुबहो-शाम।
घर, आँगन में गूँजता, भक्ति-भाव हरिनाम।।
577. चंपा
पुष्प बड़े मोहक लगें, लगते सबको नेक।
चंपा के शृंगार से, होता प्रभु अभिषेक।।
578. परिमल
तन महके परिमल सरिस, वाणी में हो ओज।
सभ्य सुसंस्कृति सौम्यता, नित होती है खोज।।
579. मकरंद
फूलों में मकरंद रस, उपवन में चहुँ ओर।
बागों में कलरव हुआ, भौरों का है शोर।।
580. कली
वर्तमान दिखती कली, बनकर खिलता फूल।
डाली से मत तोड़िए, कभी न करिए भूल।।
581. प्रभात
कर्मयोग-पर्याय है, होती नई प्रभात।
भक्ति योग के संग में, तम को दे तू मात।।
582. भाषा
भावों की अभिव्यक्ति में, भाषा चतुर सुजान।
उसकी करते वंदना, भाषा-विद् विद्वान।।
583. संवाद
भाषा से संवाद है, संवादों से नेह।
वाणी की माधुर्यता, मधुर प्रेम का गेह।।
584. हिंदी
स्वर, व्यंजन लालित्य है, हिंदी का शृंगार।
वैज्ञानिक लिपि भी यही, कहता है संसार।।
585. शब्द
मिश्री जैसे शब्द हैं, नदिया जैसी धार।
हिंदी से अपनत्व का, महके अनुपम प्यार।।
586. अर्थ
शब्द-शब्द में अर्थ है, हिंदी सरल सुबोध।
लिखना पढ़ना एक सा, विद्वानों का शोध।।
587. देवनागरी
देवनागरी से हुआ, हिंदी का गठजोड़।
स्वर-शब्दों की तालिका, अनुपम है बेजोड़।।
588. अल्पना
रंग बिरंगी अल्पना, शृंगारित घर-द्वार।
आगत का स्वागत करें, संस्कारित परिवार।।
589. अवगाहन
जितना अवगाहन करें, उतनी होती खोज।
तभी सफलता है मिले, बढ़ता तन-मन ओज।।
590. अंबुज
मन का पंछी फिर उड़ा, जगी प्रेम की आस।
पोखर में अंबुज खिला, भगी विरह संत्रास।।
591. अस्ताचल
सूरज अस्ताचल चला, करने को विश्राम।
चंदा से कह कर गया, चलें हुई अब शाम ।।
592. अवलंब
वृद्धों का अवलंब ही, उसकी है संतान।
बस आश्रय ही चाहता, जब तन से हैरान।।
593. पहचान
सुयश गर्व सम्मान सँग, मुखड़े पर मुस्कान।
याद दिलाती है वही, जग में चिर पहचान।।
594. व्यास
वेद व्यास ने हैं रचे, अनुपम ग्रंथ महान।
पढ़ कऱ मानव कर रहा, नूतन अनुसंधान।।
595. रजनीगंधा
रजनीगंधा की महक, छा जाती चहुँ ओर।
मन मयूर सा नाचता, होकर भाव विभोर।।
596. कुंदन
मानव मन कुंदन बने, निर्मल रहे स्वभाव।
चिंता से तिरते रहें, ले चिंतन की नाव।।
597. संधान
भारत की गौरव कथा, भरती नवल उडा़न।
जड़ विहीन घाती बने, उन पर हो संधान।।
598. मुस्कान
मुखड़े पर मुस्कान हो, मिले सदा सम्मान।
सूरत-रोनी देख कर, गुम जाती पहचान।।
599. व्यास
वेद व्यास ने हैं लिखे, अनुपम वेद-पुरान।
ग्रंथ महाभारत रचा, लेखक बने महान।।
600. आश्वासन
आश्वासन की लिस्ट है, नेता जी के साथ।
पैसा खुद का है नहीं, कोष लुटाते हाथ।।
601. कर्म
कर्म-राह निर्माण की, नहीं चाहते लोग।
अजगर बन आराम से, खाते मोहन भोग।।
602. संधान
भारत की गौरव शिला, राणा हुए महान।
छद्म वेश बहुरूपिए, करें बाण संधान।।
603. राष्ट्र भक्त
राष्ट्र विरोधी ताकतें, चलतीं सीना तान।
राष्ट्र भक्त सब जानते, लें कैसे संज्ञान।।
604. प्रत्यंचा
प्रत्यंचा पर खींचकर, करें व्यंग्य संधान।
शब्द बाण से व्यथित हैं, राष्ट्र भक्त इंसान।।
605. कदाचरण
सबके हित की सोच से, लेखक बने महान।
कदाचरण से जो ग्रसित, विध्वंसक संधान।।
606. कानन
गिरि, कानन, सरिता, पवन, ठंडी बहे बयार।
मौसम की अठखेलियाँ, भर देती हैं प्यार।।
607. रघुनंदन
रघुनंदन हिय में बसें, निर्मल रहे स्वभाव।
लोभ-मोह की खोह से, बचकर चलती नाव।।
608. पनघट
पनघट प्यासा रह गया, सरिता रही उदास।
घट जल से वंचित रहा, बुझी न मन की प्यास।।
609. काजल
काजल आँजा आँख में, लगा डिठौना माथ।
आँचल की छाया मिली, माँ की ममता साथ।।
610. रक्षाबंधन
रक्षाबंधन पर्व यह, भ्रातृ-बहन का प्यार।
611. सौगात
रक्षाबंधन पर्व में, रक्षा की सौगात।
सुखद प्रेम की डोर है, सामाजिक जज्बात।।
612. कजरी
सावन में कजरी हुई, सुना मेघ मल्हार।
वर्षा में मन भींजता, कर प्रियतम शृंगार।।
613. सुरसरि
बहती है सुरसरि नदी, शिव का है वरदान।
मुक्ति-पाप संकट हरे, मानव का कल्यान।।
614. वर्तिका
दीप वर्तिका जब जले, तम का होता नाश।
राग द्वेष हिंसा भगे, कटें नाग के पाश।।
615. रक्षाबंधन
रक्षाबंधन आ गया, बहना करे दुलार।
बचपन की अठखेलियाँ, रचे नेह संसार।।
616. काजल
दिल को घायल कर गई, दारुण दुखद विछोह।
आँखों में काजल लगा, चितवन लेती मोह।।
617. राष्ट्र
राष्ट्र-धर्म सबसे बड़ा, हो सबको संज्ञान।
शेष धर्म निजिता रहे, यही सूत्र है जान।।
618. तिरंगा
आजादी की शान है, भारत की पहचान।
बना तिरंगा विश्व में, सुख शांति की खान।।
619. गान
राष्ट्र-गान जब भी चले, सभी करें सम्मान।
देश भक्ति कहते इसे, हो सबको यह भान।।
620. जनगण
जनगण-मंगल हो सदा, प्रजातंत्र की नींव।
सुख-सुविधा सबको मिले, खुशी रहे हर जीव।।
621. जनता
लोकतंत्र अवधारणा, जनमत की सरकार।
मत देकर वह चुन रही, उस पर हो उपकार।।
622. अवतार
पाप धरा पर जब बढ़े , प्रभु लेते अवतार।
आकर अरि-मर्दन करें, जग के तारणहार।।
623. चमत्कार
चमत्कार की है घड़ी, टीके का निर्माण।
कोविड का संकट टला, सबसे बड़ा प्रमाण।।
624. समाधि
गर्वितमन सबका हुआ, देखी अटल समाधि।
राष्ट्र समर्पण भाव था, भारत रत्न उपाधि।।
625. उजागर
तालिबान को देखकर, हुई उजागर बात।
आश्रित होकर जो जिया,मिला सदा आघात।।
626. अंतर्मन
अंतर्मन की यह व्यथा, भाई है परदेश।
राखी उसे निहारती, मन में भारी क्लेश।।
627. बदरी
बदरी बरसी झूमकर, नाचे जंगल मोर।
हरी भरी हैं वादियाँ, पशु-पक्षी का शोर।।
628. बिजली
बिजली चमकी गगन में, वर्षा का संकेत।
दादुर झींगुर गा उठे, हरियाएँगे खेत।।
629. मेघ
उठे मेघ आकाश में, बही हवाएँ तेज।
गोरी रस्ता देखती, लेटी अपने सेज।।
630. चैमास
हँसा देख चैमास को, मुरझाया जो फूल।
मुख की रंगत बढ़ गई, तन की झाड़ी धूल।।
631. ताल
ताल तलैयाँ बावली, छलके यौवन रूप।
बहती नदिया बावरी, प्रेम भरे रस-कूप।।
632. मुस्कान
अधरों में मुस्कान हो, प्रियतम का हो साथ।
जीवन जीने की कला, समय चूमता माथ।।
633. किलकार
बच्चों की किलकार से, हँसता है घर द्वार।
सारे दुख हैं भागते, वैभव सुख परिवार।।
634. सावन
सावन में राखी बँधी, भाई बहन का प्यार।
बचपन की अठखेलियाँ, गढ़ता नव संसार।।
635. नदियाँ
वर्षा में नदियाँ हुईं, सागर सी विकराल।
पृथ्वी डूबी जलज में, आईं बनकर काल।।
636. बौछार
दुख की जब बौछार हो, प्रभु का जपलें नाम।
छाए संकट सब हटें, बिगड़े बनते काम।।
637. क्रांति
मानव पर संकट बढ़ें, सहन शक्ति हो पार।
क्रांति बने उद्घोष तब, रचें नया संसार।।
638. वीरगति
अंग्रेजों के काल में, कब शुभ होती भोर।
संघर्षों में वीरगति, जुल्म हुए घनघोर।।
639. कृतज्ञ
हम कृतज्ञ हैं देश के, हम सब पर अहसान।
जन्म दिवस से आज तक, मिला हमें सम्मान।।
640. स्वतंत्र
जनता सभी स्वतंत्र है, नैतिक हो यह ज्ञान।
कत्र्तव्यों का बोध हो, अधिकारों का भान।।
641. देशभक्ति
संकट कभी न आ सके, जग में रहा प्रमाण।
देशभक्ति मन में बसे, तभी राष्ट्र निर्माण।।
642. अरि
देश भक्ति की भावना, भरती रग-रग जोश।
राष्ट्र सुरक्षा की घड़ी, अरि के उड़ते होश।।
643. परावलम्बी
परावलम्बी जो हुआ, तालिबान आधीन।
साहस धीरज आत्मबल, कभी न बनता दीन।।
644. धानी
धानी चूनर ओढ़ कर, चढ़ा केसरी रंग।
झंडा वंदन हो रहा, देश-प्रेम-सत्संग।।
645. यामा (रात)
यामा में इूबी धरा, घन गरजा आकाश।
बिजली चमकी साथ में, हुआ कंस का नाश।।
646. घनश्याम
श्याम वर्ण घनश्याम का, राधा गोरी-रंग।
प्रेम सरोवर में बसें, आदि काल से संग।।
647. चातुर्मास
भक्ति कर्म आराधना, ज्ञान, ध्यान, सत्संग।
शुभ दिन चातुर्मास के, पावन सुभग प्रसंग।।
648. महादेव
महादेव की है कृपा, चार-मास त्योहार।
गौरी सुत की वंदना, कान्हा का अवतार।।
649. पावस
पावस का स्वागत हुआ, गुमी उमस की छोर।
सारे दुख हैं हट गए, खुशियों की हिलकोर।।
650. सावन
सावन-भादों में चली, मेघों की बारात।
हरियाली घोड़े चढ़ी, पावस की सौगात।।
651. बरसात
भीगा तन बरसात में, नाच उठा मन मोर।
पड़ी फुहारें धरा में, बदला मौसम शोर।।
652. धान
सावन की बौछार ने, भरे खेत के पेट।
रोपे-धान किसान ने, था जो मटिया-मेट।।
653. नदिया
मेघों से अमृत मिला, नदियाँ र्हुइं अधीर।
मीठे जल को ले चलीं, बदली है तकदीर।।
654. किलोल
साँझ-सबेरे वृक्ष पर, पंछी करें किलोल।
परामर्श यह कर रहे, जीवन है अनमोल।।
655. किलकार
सरकस में जोकर दिखा, गूँज उठी किलकार।
भगी उदासी छोड़कर, हँसी-खुशी तकरार।।
656. वाचाल
नेता जी वाचाल हैं, जनता रहती मूक।
इसी विरोधाभास से, हो जाती है चूक।।
657. नदिया
नदिया प्यासी बह रही, सागर रहा पुकार।
दोनों का फिर से मिलन, कैसे हो साकार।।
658. बौछार
मेघों ने बौछार कर, दिया धरा को सींच।
दूब हरित हो खिल उठी, रही दिलों को खींच।।
659. आचमन
पूजन अर्चन आचमन, सँग करता जो भक्ति।
ईश्वर की आराधना, सबको मिलती शक्ति।।
660. मेघ
मेघ कहीं दिखते नहीं, राह गए हैं भूल।
अंतर्मन में चुभ रहे, मौसम के अब शूल।।
661. पुरवाई
उल्टी पुरवाई बही, खेत हुए वीरान।
कृषक देखता मेघ को, रोपें कैसे धान।।
662. मानसून
मानसून को देखकर, कृषक हुए बेचैन।
खेत यहाँ सूखे पड़े, उत्तर-दिश है रैन।।
663. पगडंडी
सूरत बदली गाँव की, बिछा दिये पाषाण।
पगडंडी अब है कहाँ, सड़कों का निर्माण।।
664. प्रेम
डोर प्रेम की थाम कर, नभ में भरें उड़ान।
सृजन करें हम राष्ट्रहित, बढ़े जगत में मान।।
665. विश्वास
प्रेम और विश्वास से, बनती सुदृढ-नीव।
अंतर्मन की भावना, विकसित-पुष्पित जीव।।
666. प्रतीक्षा
करे प्रतीक्षा आपकी, मत कर तू परवाह।
मंजिल खड़ी निहारती, चलो कर्म की राह।।
667. परीक्षा
घड़ी परीक्षा की यही, रहें सुरक्षित आप।
जब तक वायरस न हटे, दो गज दूरी नाप।।
668. अलगाव
आतंकी अलगाव का, नित गाते हैं राग।
बहा खून निर्दाेष का, खेल रहे हैं फाग।।
669. मिलन
उम्र गुजरती जा रही, लगी मिलन की आस।
प्रभु से है यह प्रार्थना, चरणों में विश्वास।।
670. घात
घात और प्रतिघात से, पहुँचाते आघात।
मित्र कभी न बन सकें, बनती कभी न बात।।
671. आषाढ़
जेठ गया आषाढ़ ने, मन में भरी उमंग।
पहुनाई फिर सावनी, मौसम बदले रंग।।
672. उमस
उमस बढ़ी आषाढ़ में, चिन्तित हुए किसान।
खाद बीज घर में रखे, कैसे दुखद विहान।।
673. चक्रवात
चक्रवात उठने लगे, बढ़ा हवा का वेग।
उमड़-घुमड़ कर मेघ ने, दिया धरा को नेग।।
674. कजरी
कजरी ठुमकी दादरा, गायन के है हार।
वर्षा में संगीत की, बहती है रसधार।।
675. घनश्याम
प्रकट हुए घनश्याम अब, बदलेंगे परिवेश।
नभ में बिजली कौंधती, वर्षा का संदेश।।
676. कुवलय
पोखर में कुवलय खिले, देख सभी हैं दंग।
केशव को अर्पित करें, नील वर्ण है रंग।।
677. कुमुदबंधु
खिलते हैं जब झील में, रंग-बिरंगे फूल।
कुमुद-बंधु को देख कर, दुखड़े जाते भूल।।
678. वाचक
वाचक अपने ज्ञान से, देता सदा प्रकाश।
दोषों से वह मुक्ति दे, करता तम का नाश।।
679. विरहित
दुर्याेधन विरहित रहे, कुल के बुझे चिराग।
द्वापर का युग कह रहा, दुहराएँ मत राग।।
680. वापिका
जीव-जन्तु निर्जीव के, जीवन पर है शोध।
प्यास बुझाती वापिका, छट जाते अवरोध।।
681. प्राणायाम
करें सुबह उठ कर सभी, प्राणायाम-विहार।
साँसों से जीवन-मरण, रहता दिल गुलजार।।
682. संकटकाल
गुजरा संकट काल यह, आया है इक्कीस।
वैक्सीन है आ गई, देख भगा वह बीस।।
683. चकोरी
नयन चकोरी देखती, कैसी अनबुझ प्यास।
देख चंद्रमा हँस उठा, फिर भी हटी न आस।।
684. हिलकोर
तन-मन जैसे नाचता, ज्यों जंगल में मोर।
शांत सरोवर में उठी, खुशियों की हिलकोर।।
685. प्रसून
अमरित बूँदों ने किया, नव जीवन संचार।
नव-प्रसून हैं खिल उठे, उनका है सत्कार।।
686. पावस
पावस में झरने बहें, भरें जलाशय कूप।
अमृत पीकर खिल उठे, जंगल लगे अनूप।।
687. दादुर
रिमझिम वारिश से हुई, खुशियों की बरसात।
दादुर झींगुर मगन हो, सुर को देते मात।।
688. आनंद
उमस पसीने तपन से, मिली हमें सौगात।
मेघ झरें आनंद के, खुशियों की बरसात।।
689. वर्षा
वर्षा-जल संचय करें, व्यर्थ न जाए नीर।
यह सबकी चिंता हरे, मिट जाती हर-पीर।।
690. जलधार
आँखों की जलधार ने, बड़े किए हर काम।
हृदय द्रवित जब हो उठे, पहुँचें उचित मुकाम।।
691. कवच
टीकाकरण ही कवच है, कोरोना के काल।
निर्भय हो लगवाइए, तन-मन हो खुशहाल।।
692. राहत
राहत है इस बात पर, जग में घटे मरीज।
रहें सुरक्षित हम सभी, कोरोना नाचीज।।
693. उड़ान
जीवन भरे उड़ान अब, प्रगति रहे गतिमान।
सुख वैभव समृद्धि से, भारत हो धनवान।।
694. व्यवसाय
पटरी पर चलता रहे, सबका हर व्यवसाय।
कर्म साधना सब करें, दुगनी हो फिर आय।।
695. ललित
ललित कला में दक्ष सब, कौशल का हो भाव।
अविरल उन्नति धार में, बढ़े हमारी नाव।।
696. गिलोेय
बरगद, पीपल, आँवला, तुलसी, शमी, गिलोय।
जीवन में अनमोल हैं, रोगी कभी न होय ।।
697. बरगद
जीवन के निर्माण में, हर बचपन की आस।
बरगद सी छाया मिले, मातु-पिता के पास।।
698. पीपल
पीपल की छाया सुखद, सबको देती छाँव।
अतिथि देव कहकर सदा, पीड़ा हरता गाँव।।
699. आँवला
आँवला नवमी तिथि को, शुभ पूजन का योग।
परिवारों के साथ में, मिलता मोहन भोग।।
700. तुलसी
तुलसी की हैं पत्तियाँ, देतीं अमरित-घोल।
घर-घर में सब पूजते, औषधि में अनमोल।।
701. शमी
बनी रहे शनि की कृपा, पूजन की दरकार।
शमी औषधी खान है, हरती वात-विकार।।
702. मुहूर्त
सदियों लटका मामला, मिला कोर्ट से त्राण।
शुभ मुहूर्त पूजा हुई, अब मंदिर निर्माण।।
703. प्रियता
प्रियता से दूरी बने, कष्टों की भरमार।
सम्बंधों को साधिए, घट जाएँगे भार।।
704. कोरोना
करें प्रतीक्षा हम सभी, कोरोना हो दूर।
मिटे अमंगल की घड़ी, जीना हो भरपूर।।
705. पत्र
पत्र लिखे हमने बहुत, भेजे उनके पास।
पहुँच न पाए उन तलक, टूट गई फिर आस।।
706. अनमोल
प्यार बड़ा अनमोल है, बढ़े जगत में मान।
जितना भी हम बाँटते, खुद की बढ़ती शान।।
707. प्रतिवाद
वाद और प्रतिवाद ही, नेताओं का कर्म।
कर्म भाव लोपित किया, भूल गए निज धर्म।।
708. मुक्ति
मुक्ति सभी हैं चाहते, करते रहते जाप ।
लोक और परलोक में, मिटें सभी संताप।।
709. दुत्कार
अज्ञानी के भाग्य में, जीवन भर दुत्कार।
ज्ञानी को मिलता सदा, प्रेम भरा सत्कार।।
710. नेपथ्य
रंग-मंच के पात्र सब, डोरी प्रभु के हाथ।
जब गूँजे नेपथ्य से, छोडं़े जग का साथ।।
711. मिर्च
सदा मिर्च तीखी लगे, कटु वाणी मत बोल।
मीठी वाणी बोलिए, जो अमरित का घोल।।
712. अनुभव
अनुभव कहता है यही, बने वही हमराज।
सोचे समझें परख लें, तभी बचेगी लाज।।
713. अनुभूति
शांति और उत्साह से, दिल के जुड़ते तार।
कर्मठता अनुभूति से, मन से हटता भार।।
714. अनुकृति
ईश्वर की अनुकृति बना, पूजा करते लोग।
मन मैला,तन स्वच्छ हो, कभी न बनता योग।।
715. अनुमान
मंजिल पाने के लिये, मापदंड अनुमान।
निकल पड़े जब राह में, बन जाओ हनुमान।।
716. पीर
कृषक खड़ा है राह पर, उसके मन की पीर।
मौसम की जब मार हो, पाँवों में जंजीर।।
717. जनता
जनता चुनती ही रही, लोकतंत्र सरकार।
आशाओं को ध्वस्त कर, फिर बन जाती भार।।
718. जगत
गुण-अवगुण हर काल में,,सबको इसका भान।
रहे जगत खुशहाल जब, रखें गुणों का मान।।
719. जीवन
जीवन हमको है मिला, जीने का अधिकार।
सबको अवसर मिल सके, इसकी है दरकार।।
720. जीव
जीव वनस्पति ये सभी, हैं ईश्वर के रूप।
सबका ही कल्याण हो, होती प्रकृति अनूप।।
721. जन्म
जन्म-मरण के बीच का, होता छोटा काल।
कुछ जीने के काल में, करते बड़ा कमाल।।
722. तुंग
तुंग हिमालय है खड़ा, भारत का सिरमौर।
सागर रक्षक है बना, नित शुभ होती भोर।।
723. कौड़ी
फूटी कौड़ी है नहीं, बनते राजा भोज।
स्वप्न महल के देखते, सुबह-शाम ही रोज।।
724. इष्ट
इष्ट देव आराधना, प्रतिदिन प्रातः-शाम।
कपटी-मन, तन में बसे, मिलते कैसे राम।।
725. अर्गला
पाठ अर्गला कीजिए, सप्तशती का रोज।
माँ दुर्गा रक्षा करें, नौ-कन्या को भोज।।
726. मुद्रा
मुद्रा के भंडार सँग, करुणा का हो भाव।
दोनों के सत्संग से, चलती जग में नाव।।
727. कागा
छत पर कागा बैठ कर, देता है संदेश।
देख पाहुने आ रहे, बदलेगा परिवेश।।
728. सेवा
सेवा को तत्पर रहें, यही राह अब नेक।
हर मन में करुणा बसे, मानवता है एक।।
729. उमंग
आतंकी है वायरस, कौन बचा हे नाथ।
अब उमंग उत्साह से, छूट रहा है साथ।।
730. कीर्तन
मंदिर में कीर्तन जमीं, प्रभु से जुड़ा लगाव।
छाया संकट दूर हो, भरें सभी के घाव।।
731. अक्षर
कविता अक्षर-धाम हैं, अक्षर-अक्षर मंत्र।
जप-तप है आराधना, संकट का है यंत्र।।
732. स्वप्न
स्वप्न सलोने खो रहे, छायी तम की रात।
प्रभु सबका कल्याण कर, आए सुखद प्रभात।।
733. प्रभात
गहरा तम जग से हटे, नव प्रभात की चाह।
यह आशा विश्वास ही, है जीवन की राह।।
734. महावीर
संकट जब हो सामने, होते नहीं अधीर।
महावीर उसको कहें, बाहुबली से वीर।।
735. संजीवनी
कोरोना संजीवनी, आई घर-घर आज।
टीका सबको ही लगे, तभी करेंगे राज।।
736. शोक
शोक घरों में छा रहा, रहें सुरक्षित आप।
मास्क लगाकर ही चलें, दो गज दूरी नाप।।
737. समाधान
समाधान की राह ही, करती संकट दूर।
मिलकर उसे तलाशिए, कहलाएँगे शूर।।
738. प्रत्याशा
प्रत्याशा बढ़ने लगी, मिली दवाई नेक।
टीका लगने पर लगा, काटेंगे फिर केक।।
739. झरोखा
आँख झरोखा बन गए, झाँक सके तो झाँक।
अंतर्मन के भाव को, सहज-भाव से आँक।।
740. खिड़की
मानव का कद जब बढ़े, तब छूता आकाश।
दिल की खिड़की खोल कर, मन में भरें प्रकाश।।
741. अटारी
बहा पसीना श्रमिक का, सुंदर बना मकान।
बनी अटारी कह रही, क्यों श्रम से अनजान।।
742. आँगन
आँगन सारे मिट गए, दिखतीं हैं दीवार।
डुप्लेक्सों में जी रहे, जीवन की दरकार।।
743. दहलीज
पार किया दहलीज को, प्राणों पर है भार।
मास्क लगाकर ही रहें, यदि जीवन से प्यार।।
744. संवत्सर
ब्रह्माजी की सृष्टि की, गणना की आरम्भ।
संवत्सर की यह कथा, सतयुग से प्रारम्भ ।।
745. नववर्ष
सनातनी नववर्ष का, खुशी भरा यह मास।
धरा प्रफुल्लित हो रही, आया है मधुमास।।
746. देवियाँ
शक्ति रूप में देवियाँ, पाती हैं सम्मान।
आराधक बन पूजता, सारा हिन्दुस्तान।।
747. चैत्र
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, आता है नव वर्ष।
धरा प्रकृति मौसम हवा, मन को करता हर्ष।।
748. माता
माता का आँचल सुखद, सबको मिलती छाँव।
दमके जीवन स्वर्ण सम, शहर बसें या गाँव।।
749. नटखट
नटखट कृष्णा छिप गए, आते देखा मात।
खड़ी गोपियों ने कहा, वहाँ छिपे हो तात।।
750. मीरा
मीरा ने है कर लिया, प्रेम मगन विष पान।
विष को अमृत बना कर, रखा प्रेम का मान।।
751. शूल
शूल चुभे हैं अनगिनत, नहीं किया परवाह।
आज तभी मंजिल दिखी, मिली हमें है राह।।
752. स्वर्ण
जीवन दमके स्वर्ण सम, सबके मन की चाह।
मेहनत ही वह रास्ता, जो दिखलाती राह।।
753. कुंतल
कुंतल में उलझे रहे, प्रभु का लिया न नाम।
चैथापन जब आ खड़ा, तब जपते हो राम।।
754. शृंगार
अक्षय-मन शृंगार हो, तन का होता व्यर्थ।
मन से मन जब है मिले, तब जीने का अर्थ।।
755. अभिसार
प्रियतम के बिन शून्य है, निकले हर पल आह।
कठिन डगर अभिसार की, हर पल ढूँढ़े राह।।
756. वंदनवार
द्वारे वंदनवार हैं, मंडप में ज्योनार।
बाबुल की आँखें भरीे, डोली है तैयार।।
757. मनुहार
ईश्वर से मनुहार कर, व्यापे कभी न रोग।
प्रभु से करे मनौतियाँ, और चढ़ावें भोग।।
758. प्राण
तन में प्राण अमोल है, सब हैं मालामाल।
दुर्जन की मत पूछिए, हरने को बेहाल।।
759. पिचकारी
पिचकारी ले हाथ में, किशन खड़े हैं ओट।
पीछे राधा आ गईं, उनको देने चोट।।
760. अबीर
झोली भरे अबीर की, ब्रज का नंदकिशोर।
ग्वालों की टोली बना, गुँजा रहा हर छोर।।
761. गुलाल
माथे लगा गुलाल जब, होली की सौगात।
भूले सभी मलाल को, बनती बिगड़ी बात।।
762. होली
रंगों में डूबे सभी, होली की हुड़दंग।
मौसम है बौरा गया, जैसे पी हो भंग।।
763. फाग
टिमकी गूँजी गाँव में, चला फाग का शोर।
हुरियारों की फाग को, देख रही है भोर।।
764. चाौपाल
नहीं रही चैपाल अब, सुलझें जहाँ बवाल।
जुम्मन से रंजिश मिटे, गले मिले हर साल।।
765. टकसाल
आतंकी टकसाल पर, कसा शिकंजा आज।
नजरबंद नेता किए, मिटा दहशती राज।।
766. धमाल
होली की हुड़दंग में, होगा नहीं धमाल।
कोरोना का आगमन, बंदिश रही कमाल।।
767. उछाल
आया बड़ा उछाल फिर, व्यापारिक परिवेश।
साहस धीरज ने दिया, उन्नति का संदेश।।
768. मालामाल
वैकसीन निर्माण में, भारत मालामाल।
संकट के इस दौर में, जग को किया निहाल।।
769. कस्तूरी
कस्तूरी है नाभि में, फिर भी मृग अनजान।
सुख-दुख अंदर झाँक ले, क्यों भटके नादान।।
770. फागुन
स्वर्णिम बालें झुक गईं, संभले अब न भार।
फागुन की पुरवा बही, खिली धूप कचनार।।
771. महुआ
बहक रहा मन बावरा, कोई कहे बुखार।
मौसम महुआ का हुआ, सबको चढ़ा खुमार।।
772. किंशुक (पलाश)
किंशुक ने बिखरा दिया, अधरों की मुस्कान।
बाँहों में भरकर प्रकृति, झूम उठी स्वर-तान।।
773. गुलमुहर
खिला गुलमुहर बाग में, गूँजा मंगलगान।
शिवरात्रि की है घड़ी, सब करते शिव ध्यान।।
774. फसल
खेतों में फसलें खड़ी, लगे सुहाना दृश्य।
झूम-झूम लहरा रहीं, सुन्दर लगे भविष्य।।
775. किसान
फसलें देख किसान का, ऊँचा उठता भाल।
माथे से संकट टला, सबको करें निहाल।।
776. खेत
कर्म भूमि ही खेत है, नैतिकता है बीज।
जितना इसको बो सकें, अद्भुत है यह चीज।।
777. माटी
मेहनत करते श्रमिक जो, खाते छप्पन भोग।
माटी की खुशबू गजब, जुड़े अनेकों लोग।।
778. खलिहान
उपज रखें खालिहान में, जब श्रमवीर किसान।
मन आनंदित हो उठे, चलते सीना तान।।
779. सुधा
गरलकंठ धारण किया, कर शिव ने कल्यान।
सभी देवगण ने किया, कलश-सुधा रस पान।।
780. सुगंध
परिणय बंधन में बँधें, युगल-प्रणय अनुबंध।
पति-पत्नी बन प्रेम हो, वातावरण सुगंध।।
781. सितार
झंकृत हुआ सितार जब, धरा छेड़ती तान।
मंद पवन बहला रही, छा जाती मुस्कान।।
782. सरसों
ऋतु बसंत का आगमन, धरा बदलती वेश।
पीली सरसों फूलती, स्वर्ण-प्रभा संदेश।।
783. स्वर्ण
स्वर्ण-प्रभा आभा लिए, आया सूरज भोर।
पंक्षी कलरव कर रहे, खुशियों का है शोर।।
784. कान
कान कृष्ण के सुन रहे, नूपुर में थी खोट।
राधा छिप जाती कहीं, काम न आती ओट।।
785. कुटी
न्यारी कुटी बनाइए, जहाँ विराजें राम।
दया प्रेम सद्भावना, सही बड़े हैं धाम।।
786. कुटीर
लघु-कुटीर उद्योग हैं, उन्नति के सोपान।
काम मिले हर हाथ को, जीवन जीते शान।।
787. गृहस्थी
सुखद गृहस्थी में सदा, प्रेम शांति का वास।
हिलमिलकर रहते सभी, कटुता का है नास।।
788. नारी
नारी का सम्मान हो, सिखलाता हर धर्म।
जहाँ उपेक्षित हो रहीं, आएगी कब शर्म।।
789. सुंदरता
सुंदरता की चाह में,, गवाँ दिया सुख चैन।
कोयल जैसी कूक को, तरस गए दिन-रैन।।
790. मुखड़ा
मुखड़ा सुंदर देखकर, मोहित है संसार।
कोयल-कागा परखने, बुद्धि की दरकार।।
791. कोमलता
कोमलता मन में भरें, यह जीवन रस रंग।
प्रेम कलश छलके सदा, मादक लगते अंग।।
792. अंतरंग
शांति और सद्भाव से, बहती प्रगति सुगंध।
सदा पड़ोसी से रहें, अंतरंग संबंध।।
793. अभिव्यक्ति
प्रजातंत्र-अभिव्यक्ति का, ढपली ले कर शोर।
छदम वेषधर गा रहे, कैसे होगी भोर।।
794. प्रस्ताव
वार्ता से ही सुलझते, समस्याओं के हल।
ठुकराएँ प्रस्ताव जब, कैसे मिलेगा फल।।
795. हल्दी
हल्दी कुमकुम सी लगी, मौसम-माथे प्रीत।
बसंत पंचमी पर्व में, फैली सरसों पीत।।
796. पीड़ा
पीड़ा जिसके भाग में, लिख देता भगवान।
कर्मठ मानव जूझकर, पाता सदा निदान।।
797. अर्पण
अर्पण कविताएँ सभी, सरस्वती के नाम।
ज्ञान-बुद्धि देती रहें, करें जगत हित काम।।
798. आराधना
माता की आराधना, अद्भुत देती शक्ति।
भेद-भाव को भूल कर, करते हैं सब भक्ति।।
799. अपराधी
अपराधी अपराध कर, निर्भय घूमें आज।
निरअपराधी बंद हैं, थाने का अब राज।।
800. झील
झील रही निर्मल सदा, दूषित करते लोग।
कूड़ा-करकट डालकर, तन में पालें रोग।।
801. अलाव
गाँवों की चैपाल में, फिर से जला अलाव।
मिलकर सबजन बैठते, दिखा नहीं अलगाव।।
802. किलकार
गूँज रही किलकार है घर आँगन में आज।
शहनाई जो बज रही, खुशियाँ हैं सरताज।।
803. मेला
चंडी का मेला भरा, झूलों की भरमार।
चाट-चटौनी बिक रही, गले मिले सब यार।।
804. खलिहान
खुश होते खलिहान हैं, बढ़ती पैदावार।
अपने अंक समेटकर, रखता है भंडार।।
805. उजियार
दीपक जलकर सदा से, फैलाता उजियार।
तमस भगाकर मनुज पर, करता है उपकार।।
806. मदिर
मदिर-नयन है रस-भरे, तेज चलाती बाण।
दिल को घायल कर रही, सबको देती त्राण।।
807. अंगूरी
अंगूरी छलका रही, बहती मधुमय धार।
पीने वाले पी रहे, नयनन चले कटार।।
808. समय
समय बड़ा बलवान है,क्या राजा क्या रंक।
पल में वही पछाड़ता, करता वही निशंक।।
809. पल
पल दो पल की जिंदगी, हँसी-खुशी से जीत।
समय दुबारा कब मिले, बिछड़़ेंगे हर-मीत।।
810. क्षण
प्रेम-क्षमा की डोर में, बँधकर पा सम्मान।
क्षण भंगुर यह देह है, मत कर तू अभिमान।।
811. भावी
क्षण में सब बदले यहाँ, वर्तमान अरु भूत।
भावी ले जाए कहाँ, कथा बाँचता सूत।।
812. काल
काल खड़ा जब द्वार में, नहीं दिखेगी भोर।
ईश्वर का तू ध्यान कर, पकड़ अभी से छोर।।
813. साँस
काल करे सो आज कर, कल को मत दे छूट।
किसको कल का है पता, साँस न जाए टूट।।
814. निमिष
निमिष-निमिष हम बढ़़ रहे,मंजिल की ही ओर।
खड़ा विश्व फिर सुन रहा, जगत-गुरू का शोर।।
815. घाव
कोरोना के घाव ने, दिया हमें आघात।
प्राण-निमिष जाते रहे, भारत ने दी मात।।
816. पतिव्रता
पतिव्रता परिकल्पना, प्रेम समर्पण भाव।
आपस में सद्भावना, जीवन की है नाव।।
817. दिव्य-पुरुष
दिव्य पुरुष में शक्तियाँ, मुखड़े पर आलोक।
अनगिन होतीं खूबियाँ, कभी न फटके शोक।।
818. धरा
सहनशील है यह धरा, पाले मातु समान।
कितना ही दूषित करें, रखे सभी का घ्यान।।
819. पहाड़
ईश्वर से कुछ माँगने, ऊँचे चढ़े पहाड़।
दूषित-मन लेकर गए, केवल तोड़े हाड़।।
820. बिम्ब
दया-प्रेम का बिम्ब ही, ईश्वर का प्रतिरूप।
दौड़ पडं़े सब उस दिशा, जहाँ खिली हो धूप।।
821. अनुराग
चैथेपन में बढ़ गई, प्रभु जी से अब आस।
द्वेष मोह सब भूलकर, ईश्वर के हैं दास।।
822. अनूप
झरने नदी पहाड़ से, लगती प्रकृति अनूप।
सदियों से मोहित करे, मानव को यह रूप।।
823. मनमोहक
मनमोहक छवि देखने, सहते ठंडक धूप।
मन को शांति कब मिली, भटके मंदिर-कूप।।
824. परस
मानव परिणय में बँधे, मूक-प्रणय संवाद।
दरस-परस से कर रहे, दुनिया को आबाद।।
825. परिणय
मंगल-परिणय की घड़ी, फिर आई इस वर्ष।
भगा करोना देश से, चहुँ दिश छाया हर्ष।।
826. प्रणय
प्रणय निवेदन कर रहा, मौसम फिर से आज।
समय पर्यटन भ्रमण का, चलो देखने ताज।।
827. प्रियतमा
स्वागत में अब पाँवड़े, बिछा रहे नित छोर।
सुंदर लगती प्रियतमा, उठती प्रेम हिलोर।।
828. प्रीति
प्रीति-डोर में बँध गए, जो कल थे अनजान।
हाथों में अब हाथ ले, चलते सीना तान।।
829. आँचल
बसें किसी भी देश में, शहर रहे या गाँव।
ममता का आँचल सदा, देता सबको छाँव।।
830. पीयूष
आँचल-ढक पीयूष से, देती जीवन दान।
करें मातृ की वंदना, वही बचाती जान।।
831. सैनिक
सैनिक फिर से चल दिए, पूछ न पाए हाल।
सैन्य-बुलावा आ गया, था संकट का काल।।
832. बुखार
अर्थ व्यवस्था देखकर, अरि को चढ़ा बुखार।
याचक बनकर है खड़ा, अब करना व्यापार।।
833. बीमार
कोरोना की मार से, हुआ विश्व बीमार।
साहस दृढ़ता धर्य से, उबरा अब बाजार।।
834. चोट
चोट लगी गहरी मगर, टूटा अरि का मोह।
घाटी में अब शांति है, खत्म हुआ विद्रोह।।
835. औषधि
कड़वी औषधि ही सही, करती है उपचार।
दवा समझ कर पीजिए, तन का मिटे विकार।।
836. उपचार
संकट जब हो देश पर, करना है उपकार।
राष्ट्रवाद की सोच से, हो जाता उपचार।।
837. संजीवनी
भेज रहे संजीवनी, यह भारत की शान।
फँसे हुए यूक्रेन में, छात्र न हों हैरान।।
838. पीड़ा
जननी की पीड़ा यही, पैदा किया सपूत।
कालांतर में फिर वही, डरवाते बन भूत।।
839. संवाद
कैसे हो संवाद अब, टूट गई हर आस।
लड़ने को आतुर दिखें, रहते हांे जब पास।।
840. मन्मथ
मन्मथ ने बिखरा रखी, चारों ओर बहार।
मुदित धरा भी देखती, उछले नदिया धार।।
841. दुकूल
मौसम ने ली करवटें, दमके टेसू फूल।
स्वागत सबका कर रहे, ओढ़े खड़े दुकूल।।
842. लंकापति
लंकापति के राज्य से, दुखी रहा संसार।
करके दर्शन राम का, जीवन से उद्धार।।
843. अलकें
अलकें छू कर गाल को, देतीं प्रिय संदेश।
धैर्य रखो प्राणेश्वरी, बदलेगा परिवेश।।
844. बिंदिया
अलकें बिंदिया चूमकर, करती है सम्मान।
नारी की महिमा बड़ी, करता जग गुणगान।।
845. आँखें
आँखें राह निहारतीं, प्रियतम की हर रोज।
दर्शन-कर फिर दीखता, मुख मंडल में ओज।।
846. व्यवहार
माँ की आँखें देखतीं, पुत्रों का व्यवहार।
नन्हें पैरों से घिसट, आते-पाने प्यार।।
847. अधर
अधर फड़कते रह गए, बुझी न दिल की प्यास।
सीमाओं पर चल दिए, जगा गए फिर आस।।
848. मुरली
मुरली साजे अधर में, सजती ब्रज की रास।
राधा-गोपी नाचतीं, छाता ज्यों मधुमास।।
849. निष्फल
निष्फल रहे प्रयास सब, नहीं सुधरते लोग।
सद्कर्माें से भटक कर, पाते दुख का भोग।।
850. कविता
कविता देती है सदा, नेक नियति संदेश।
तुलसी और कबीर ने, बदल दिया परिवेश।।
851. सारस्वत
ज्ञान तत्त्व जो बाँटता, फैलाता उजियार।
सारस्वत वह देवता, हरता कलुष विचार।।
852. प्रदर्शन
लोग प्रदर्शन कर रहे, भूल गए कत्र्तव्य।
अधिकारों के लिए ही, चाह रहे हैं हव्य।।
853. मकरंद
फूलों के मकरंद पर, भौंरे लिखते छंद।
बागों में गुंजन करें, गाते नित हैं बंद।।
854. पवन
पवन लटों से खेलता, उलझाता हर बार।
परेशान लट कह उठी, हमने मानी हार।।
855. सिहरन
पावस की बूँदें गिरीं, गोरी के जब गाल।
सिहरन तन-मन में हुई, जैसे मली गुलाल।।
856. उपहार
सजनी का साजन खड़ा, माँग रहा है प्यार।
गालों पर धर-अधर ने, दिया प्रेम उपहार।।
857. प्रेम
प्रेम बड़ा अनमोल है, भूला नहीं गरीब।
जीवन जीने की कला, दिल के बड़़े करीब।।
858. प्रतीक
अधरों ने छेड़ी गजल, दीपक प्रेम प्रतीक।
नयन शरम से झुक गए, दृश्य हुआ रमणीक।।
859. प्रतिबिंब
अपने ही प्रतिबिंब को, हुआ देख हैरान।
सज्जनता का रूप धर, हँसता है शैतान।।
860. प्रतीति
सुख-प्रतीति में जी रहे, नेताओं के संग।
उनकी ही हर बात पर, जग पर चढ़ता रंग।।
861. अवनि
सजी ओस की बूँद हैं, तरुवर तृण मकरंद।
हर्षित अवनि बिखेरती, मणि-मोती सानंद।।
862. अंबर
अंबर में है बैठकर, सूरज करता जाप।
अधरों की मुस्कान से, हर लेता संताप।।
863. पूस
पूस माह के दिवस सब, जाड़े की सौगात।
तन-मन को है नापती, करती सबको मात।।
864. अगहन
अगहन दस्तक दे रहा, ठंडी बहे बयार।
टँगी रजाई अरगनी, करती है मनुहार।।
865. फसल
फसल खड़ी है खेत में, चिंतित रहे किसान।
पके-कटे पैसा मिले, पहनें तब परिधान।।
866. नार
भारत की यह नार है, बाँध-पीठ में लाल।
कर्म भूमि या समर हो, नहीं झुका है भाल।।
867. मजदूरनी
मेहनतकश मजदूरनी, देती जग को मात।
ममता का भी ध्यान रख, भोजन दे दिन रात।।
868. वियोग
देशभक्त सेना प्रमुख, असमय हुआ वियोग।
सी डी यस रावत विपिन, दुखद रहा संयोग।।
869. ऋद्धांजलि
ऋद्धांजलि हम दे रहे, हाथ जोड़ कर आज।
रावत जी पर नाज है, किए देश हित काज।।
870. थरथर
काँप रहा थरथर बदन, बढ़ा ठंड का जोर।
शीत लहर ऐसी बही, हो जा अब तो भोर।।
871. मार्गशीर्ष
मार्गशीर्ष के माह में, होती श्रद्धा भक्ति।
भक्तगणों को मिल रही, इससे अद्भुत शक्ति।।
872. कंबल
कंबल ओढ़े सो गए, फिर भी कटे न रात।
ओढ़ रजाई बावले, बन जाएगी बात।।
873. ठंड
ठंड कड़ाके की पड़ी, घर में जले अलाव।
फिर भी भगती है नहीं, लगता बड़ा दुराव।।
874. ठिठुर
पारा गिरता जा रहा, ठिठुर रहे हैं लोग।
बदले मौसम को सभी, सुना रहे हैं भोग।।
875. अंगीठी
जली अंगीठी बीच में, दिल में जगी हिलोर।
समय गुजरता ही गया, देख हो गई भोर।।
876. आँच
आँच आग की तापते, नित्य श्रमिक मजदूर।
सड़क किनारे रह रहे, बेघर हैं मजदूर।।
877. कुनकुना
नीर कुनकुना पीजिए, ठंडी का है जोर।
स्वस्थ रहे तन-मन सभी, लगे सुहानी भोर।।
878. धूप
धूप, दीप नैवेद्य से, करते सब आराध्य।
भक्ति भाव से पूजते, पूजन के हैं साध्य।।
879. कुहासा
दुर्घटना से बच रहे, जीवन है अनमोल।
देख कुहासा सड़क पर, चालक बोले बोल।।
880. स्वेटर
स्वेटर बुनतीं नारियाँ, दिखे समर्पण भाव।
परिवारों के प्रति दिखे, उनका नेह लगाव।।
881. शाल
शाल उढ़ाकर अतिथि का, किया उचित सम्मान।
संस्कृति अपनी है यही, कहलाता भगवान।।
882. कंबल
ओढ़े कंबल चल दिए, कृषक और मजदूर।
कर्मजगत ही श्रेष्ठ है, नहीं रहा मजबूर।।
883. रजाई
ओढ़ रजाई खाट में, दादा जी का रंग।
सुना रहे हैं ठंड के, रोचक भरे प्रसंग।।
884. अंगीठी
बीच अंगीठी जब जले, वार्तालापी भाव।
मौसम के इस दौर में, बढ़ता बड़ा लगाव।।
885. पूस
पूस माह की ठंड यह, काँपें सबके हाड़।
सूरज की जब तपन हो, भागे तब ही जाड़।।
886. ठंड
जाड़े में ओले गिरें, बढ़ती जाती ठंड।
पट्टी में बैठा हुआ, भोग रहा है दंड।।
887. ऊन
ऊन लिए है हाथ में, रखी सिलाई पास।
माँ की ममता ने बुने, स्वेटर कुछ हैं खास।।
888. धूप
वर्षा ऋतु का आगमन, जंगल नाचें मोर।
देख धूप है झाँकती, मनभावन चितचोर।।
889. आँगन
आँगन में बैठे सभी, जला अंगीठी ताप।
दुख दर्दों को बाँटते, दिल को लेते नाप।।
890. शशि
शीतल-शशि की रश्मियाँ, जग को करें निहाल।
देती हैं संदेश यह, जीवन हो खुशहाल।।
891. आलोक
भारत को गौरव मिला, जग में हुआ महान।
बिखर गया आलोक अब, फिर पाया सम्मान।।
892. तारक
तारक जग के राम हैं, सबके पालनहार।
संकट में रक्षा करें, लगे न जीवन भार।।
893. भुवन
देव प्रभाकर भुवन में, बिखरा गए प्रकाश।
उठो बावले चल पड़ो, होते नहीं निराश।।
894. पुंज
ज्योति पुंज दीपावली, करे तिमिर का नाश।
विस्तारित होता रहे, खुशियों का आकाश।।
895. योग
योग-गुरू भारत बना, दिया जगत संदेश।
स्वस्थ निरोगी हांे सभी, बदलेगा परिवेश।।
896. विवेकानंद
युवा विवेकानंद ने, विश्व शांति पैगाम।
भारत की पहचान दे, किया अनोखा काम।।
897. श्वास
तन में जब तक श्वास है, जीवन की है आस।
जिस दिन हमसे रूठती, मृत्यु नाचती पास।।
898. अनुलोम
तन-योगी साधक बना, कर अनुलोम-विलोम।
हर्षित-मन जग में जिया, स्वस्थ निरोगी व्योम।।
899. प्राणायाम
करते प्राणयाम जो, होते स्वस्थ निरोग।
दीर्घ आयु होते तभी, बनते सभी सुयोग।।
900. मंजरी
मातु यशोदा मथ रही, मथनी से पय सार।
लटकी जो मंजीर है, बजती बारम्बार।।
901. बारूद
कट्टरता की सोच ही, मानवता पर भार।
बैठी है बारूद पर, दुनियाँ की सरकार।।
902. मेदनी
निकल पड़ी जन-मेदनी, विंध्याचल को आज।
नव-दुर्गा का पर्व यह, सभी बनेंगे काज।।
903. चीवर
गेरू-चीवर पहनकर, चले राम वनवास।
अनुज लखन सीता चलीं, दशरथ हुए उदास।।
904. कलिका
कोमल कलिका देखकर, हर्षित पालनहार।
फूल खिलेगा बाग में, खुश होगा संसार।।
905. संविधान
संविधान वह ग्रंथ है, पावन सुखद पुनीत।
अधिकारों कर्तव्य का, अनुबंधित यह मीत।।
906. गणतंत्र
भारत के गणतंत्र का, करता जग यशगान।
जनता के हित साधकर, सबका रखता मान।।
907. राष्ट्रगान
राष्ट्रगान हर देश का, गरिमा-शाली मंत्र।
आराधक हम नागरिक, राष्ट्र समर्पण तंत्र।।
908. तिरंगा
हाथ तिरंगा ले चले, राष्ट्रभक्त चहुँ ओर।
गणतंत्री त्यौहार यह, लहराता है भोर।।
909. सौगंध
सेना की सौगंध है, झुके न भारत भाल।
हो दुश्मन कितना बड़ा, होगी सफल न चाल।।
910. रागनी
प्रेम रागनी बह चली, नव युगालों के बीच।
मधुरिम रात गुजर गई, प्रिय स्मृतियाँ सींच।।
911. राग-रागनी
राग-रागनी में बसे, प्रेम भाव का वास।
पूजन अर्चन संग में, प्रभु को आता रास।।
912. मयूर
हर्षित हुआ मयूर है, चला प्रेम संवाद।
देख मयूरी नाचती, मेघों का है नाद।।
913. पुष्पज
वासंती ऋतु आ गई, भौरों का मधु गान।
पुष्पज पर गुंजन करें, किया झूम रस पान।।
914. अंगना (स्त्री)
अंगना के पजना बजे, खुशियों के बरसात।
घर आई नव पाहुनी, शुभ मुहूर्त की रात।।
915. पर्जन्य
बरस उठे पर्जन्य हैं, गरज-धरज के साथ।
झूम उठी है यह धरा, बढ़े कृषक के हाथ।।
916. कुसुमाकर
कुसुमाकर प्रिय आ गया, लेकर मस्त बहार।
गली-गली में झूमते, मस्ती में नर-नार।।
917. वसंत
ऋतु वसंत की धूम है, बाग हुए गुलजार।
रंग-बिरंगे फूल खिल, लुटा रहे हैं प्यार।।
918. पलाश
हँस पलाश कहने लगा, फागुन आया द्वार।
राधा खड़ी उदास है, कान्हा से तकरार।।
919. महुआ
चखा नहीं फिर भी चढ़ा, मादकता का जोर।
महुआ मन में आ बसा, तन में उठी हिलोर।।
920. खुमार
वासंती मौसम हुआ, तन-मन चढ़ा खुमार।
मादक महुआ सा लगे, होली का त्यौहार।।
921. सेमल
सेमल का यह वृक्ष है, गुणकारी भरपूर।
मानव का हित कर रहा, औषधि में है नूर।।
922. संझा
संझा बिरिया बीतती, ईश्वर से मनुहार।
द्वारे-बैठ निहारती, प्रियतम से है प्यार।।
923. पतंग
आशाओं की डोर हो, नित जीवन की भोर।
मन की उड़े पतंग जब, पकड़ रखो हर छोर।।
924. माघ
माघ माह की पूर्णिमा, होती पुण्य महान।
नदी किनारे पर करें, डुबकी-कर फिर दान।।
925. किंशुक (पलाश)
मौसम में किंशुक खिले, मधुमासी त्योहार।
प्रेम-प्रणय की चाहना, प्रकृति करे मनुहार।।
926. वसंत
है बसंत द्वारे खड़ा, ले कर रंग गुलाल।
बैर बुराई अलविदा, जग से हटें मलाल।।
927. टेसू
टेसू ने बिखरा दिए, लाल रेशमी रंग।
परछी में है पिस रही, सिल-बट्टे से भंग।।
928. ऋतुराज
स्वागत है ऋतुराज का, सबके मन को हर्ष।
पीली सरसों खिल उठी, मिलकर करें विमर्ष।।
929. मध्वासव
मध्वासव-मधुमास में, छाया है चहुँ ओर।
बिन पीये ही मगन हैं, होती ऐसी भोर।।
930. विजया (दुर्गा)
विजया से वरदान का, झुका रहे यह शीश।
बनी रहे सब पर कृपा, फल देते जगदीश।।
931. चाहत
मन में चाहत हों बड़ी, ऊँची भरो उड़ान।
अपने पर फैला उड़ो, जग में बढ़ती शान।।
932. नेक
नेक काम सब ही करें, जग में होता नाम।
याद रखे पीढ़ी सदा, देश बनेगा धाम।।
933. फसल
हरित क्रांति है आ गई, भारत है धनवान।
फसल उगाकर भर रहा, पेट और खलिहान।।
934. मिट्टी
मिट्टी की महिमा अलग, सभी झुकाते माथ।
जनम मरण शुभ कार्य में, हरदम रहता साथ।।
935. खलिहान
कृषक भरें खलिहान को, रक्षा करें जवान।
खुशहाली है देश में, जगत करे यशगान।।
836. अन्न
अन्न उपजता खेत में, श्रम जीवी परिणाम।
बहा पसीना कृषक का, प्रातकाल से शाम।।
937. किसान
कुछ किसान दुख में जिएँ, कष्टों की भरमार।
उपज मूल्य अच्छा मिले, मिलकर करें विचार।।
938. बरजोरी
बरजोरी हैं कर रहे, ग्वालबाल प्रिय संग।
श्यामलला भी मल रहे, गालों पर हैं रंग।।
939. चूनर
चूनर भीगी रंग से, कान्हा से तकरार।
राधा भी करने लगीं, रंगों की बौछार।।
940. अँगिया
फागुन का सुन आगमन, होती अँगिया तंग।
उठी हिलोरें प्रेम की, चारों ओर उमंग।।
941. रसिया
रसिया ने फिर छेड़ दी, ढपली लेकर तान।
ब्रज में होरी जल गई, गले मिले वृजभान।।
942. गुलाल
रंगों की बरसात में, उड़ती रही गुलाल।
गले मिल रहे हैं सभी, करने लगे धमाल।।
943. बरसे
गाँवों की चैपाल में, बरसे है रस-रंग।
बारे-बूढ़े झूमकर, करते सबको दंग।।
944. होलिका
जली होलिका रात में, हुआ तमस का अंत।
अपनी संस्कृति को बचा, बने जगत के कंत।।
945. होली
कवियों की होली हुई, चले व्यंग्य के बाण।
हास और परिहास सुन, मिला गमों से त्राण।।
946. बाँह
बाँह थाम कर चल पड़े, मोदी जी के साथ।
देश प्रगति पथ पर चला, बढ़े सभी के हाथ।।
947. छैला
छैला बनकर घूमते, गाँव-गली पर भार।
बनें मुसीबत हर घड़ी, कैसे हो उद्धार।।
948. महान
हाथ जोड़कर कह रहा, भारत देश महान।
शांति और सद्भाव से, है मानव कल्यान।।
949. ग्रीष्म
ग्रीष्म-तप रहा मार्च से, कमर कसे है जून।
जब आएगा नव तपा, तपन बढ़ेगी दून।।
950. चिरैया
पतझर में तरु झर गए, ग्रीष्म मचाए शोर।
उड़ीं चिरैया देखकर, कल को यहाँ न भोर।।
951. गौरैया
गौरैया दिखती नहीं, ममता देखे राह।
दाना रोज बिखेरती, रही अधूरी चाह।।
952. लू
भरी दुपहरी में लगे, लू की गरम थपेड़।
कर्मवीर अब कृषक भी, दिखते सभी अधेड़।।
953. तपन
सूरज की अब तपन का, दिखा रौद्र अवतार।
सूख रहे सरवर कुआँ, सबको चढ़ा बुखार।।
954. पनघट
पनघट बिछुड़े गाँव से, टूटा घर-संवाद।
सुख दुख की टूटी कड़ी, घर-घर में अवसाद।।
955. कुआँ
कुआँ नहीं अब शहर में, ट्यूबबैल हैं गाँव।
पीने को पानी नहीं, दिखती कहीं न छाँव।।
956. जेठ
जेठ दुपहरी की तपन, दिन हो चाहे रात।
उमस बढ़ाती जा रही, पहुँचाती आघात।।
957. ताल
ताल सभी बेहाल अब, नदी गई है सूख।
तरुवर झरकर ठूँठ से, दिखे नहीं वे रूख।।
958. पंछी
प्रकृति हुई अब बावली, बदला है परिवेश।
पंछी का कलरव कहाँ, चले गए परदेश।।
959. यश-अपयश
यश-अपयश की डोर है, हर मानव के हाथ।
जितना उसे सहेजता, फल मिलता है साथ।।
960. विचार
जीवन कैसा जी रहे, मिलकर करो विचार।
लोक और परलोक में, मिलें पुष्प के हार।।
961. अभिमान
हमसे अच्छा कौन है, करो न यह अभिमान।
कूएँ के मेंढक सदा, रखें यही बस शान।।
962. सच्चा-साथी
मन सच्चा-साथी बने, समझो नहीं अनाथ।
निर्भय होकर तुम बढ़ो, हरदम रहता साथ।।
963. समय
चलो समय के साथ में, समय बड़ा अनमोल।
गुजरा समय न लौटता, ज्ञानी जन के बोल।।
964. राह
राह चुनो अच्छी सदा, जीवन में है भोर।
गलत राह में जब बढं़े, तम का बढ़ता जोर।।
965. मोहन-भोग
दिखे जगत में बहुत से, भाँति-भाँति के लोग।
तृप्त-पेट को ही भरें, देते मोहन भोग।।
966. अकड़
अकड़ दिखाते जो बहुत, पागल हैं वे लोग।
विनम्र भाव से जो जिएँ, घेरे कभी न रोग।।
967. सच्चा-रिश्ता
चलो आपके साथ हैं, कदम बढ़ाते साथ।
सच्चा-रिश्ता है वही, थामे हरदम हाथ।।
968. मन-मंदिर
मन-मंदिर में राम हों, रक्षक तब हनुमान।
सीता रूपी शांति से, सुखद-सुयश धनवान।।
969. रामराज्य
रामराज्य का आसरा, राजनीति की डोर।
देख पतंगें गगन में, पकड़ न पाते छोर।।
970. अनुभव
अनुभव कहता है यही, दुख में जो दे साथ।
सच्चा मानव है वही, कभी न छोड़ें हाथ।।
971. दोहा
दोहा में ंदेश हो, भाषा, सरल, सुबोध।
सहज भाव में ही लिखें, दिखे नहीं अवरोघ।।
972. ताल
ताल हुए बेताल अब, नीर गया है सूख।
सूरज की गर्मी विकट, उजड़ रहे हैं रूख।।
973. नदी
नदी हुई है बावली, पकड़ी सकरी राह।
सूना तट है देखता, जीवन की फिर चाह।।
974. पोखर
पोखर दिखते घाव से, तड़प उठे हैं जीव।
उपचारों के नाम पर, खड़ी कर रहे नीव।।
975. झील
झील हुई ओझल अभी, नाव सो रही रेत।
तरबूजे, सब्जी उगीं, झील हो गई खेत।।
976. झरने
हरियाली गुम हो रही, सूरज करता दाह।
प्यासे झरने है खड़े, दर्शक भूले राह।।
977. अतिक्रमण
बढ़ा अतिक्रमण देश में, खड़ी कर रहा खाट।
राष्ट्र-सृजन के दौर में, बुलडोजर के ठाट।।
978. बुलडोजर
बुलडोजर से पथ बनें, बुलडोजर से बाँध।
पर्वत को भी तोड़ता, बने प्रगति का काँध।।
979. वेदांत
शांति और सौहार्द से, आच्छादित वेदांत।
धर्म ध्वजा की शान यह, सदा रहा सिद्धांत।।
980. विहान
आभा बिखरी क्षितिज में, खुशियों की सौगात।
नव विहान अब आ गया, बीती तम की रात।।
981. संविधान
संविधान से झाँकती, मानवता की बात।
दलगत की मजबूरियाँ, पहुँचाती आघात।।
982. ओजस्वी
मन ओजस्वी जब रहे, कहते तभी मनोज।
सरवर के अंतस उगंे, मोहक लगें सरोज।।
983. आराधना
देवों की आराधना, करते हैं सब लोग।
कृपा रहे उनकी सदा, भगें व्याधि अरु रोग।।
984. अमीर
दिल से बने अमीर सब, कब धन आया काम।
साथ नहीं ले जा सकें, हो जाती जब शाम।।
985. अमर
नाम अमर होता वही, बड़ा करे जो काम।
परहित में जो प्राण दे, बने उसी का धाम।।
986. महल
महल अटारी हों बड़ी, दिल का छोटा द्वार।
स्वार्थ करे अठखेलियाँ, बिछुड़ें पालनहार।।
987. घर
छोटा-घर पर दिल बड़ा, हँसी खुशी किल्लोल।
जीवन सुखमय से कटे, होता यह अनमोल।।
988. ममता
माँ की ममता ढूँढ़ती, वापस मिले दुलार।
वृद्धावस्था के समय, बसे दिलों में प्यार।।
989. वृद्धाश्रम
बेटों के संसार में, वृद्धों का क्या काम।
वृद्धाश्रम में रख दिया, वही हुए बदनाम।।
990. सूरज
आँख दिखा सूरज चला, अस्ताचल की ओर।
चंदा ने शीतल किया, धरती का हर छोर।।
991. धरती
धरती की पीड़ा यही, उजड़ा घर संसार।
खनिज-संपदा लुट गई, वृक्षों का संहार।।
992. गगन
नील गगन में उड़ रहे, पंछी संग जहाज।
मानव के पर उग गए, समय कर रहा नाज।।
993. पारा
सूरज का पारा चढ़ा, बढ़ा ग्रीष्म का रूप।
धरती तप कर कह उठी, बदरी लगे अनूप।।
994. पखेरू
प्राण पखेरू उड़ गए, तन हो गया निढाल।
अर्थी सज कर चल पड़ी, रिश्ते सब बेहाल।।
995. अनिकेत
पुत्र मोह कैकेई घिरी, वर माँगे अभिप्रेत।
चले राम सिय लखन संग, हुए राम अनिकेत।।
996. पंछी
प्रात पखेरू उड़ चले, दानों की है खोज।
नन्हें-पंछी डाल पर, राह निहारें रोज।।
997. नई सदी
नई सदी अब आ गई, चैराहे हर ओर।
भ्रमित हो रहे हैं सभी, पकड़ें किसका छोर।।
998. सागर
सागर की लहरें सदा, करतीं आत्मविभोर।
जीवन के संघर्ष में, प्रेरक हैं हिलकोर।।
999. सरोवर
शांत सरोवर दे रहा, जग को यह संदेश।
अंतस से उगते कमल, छवि मोहक परिवेश।।
1000. हुंकार
सागर की सिंह गर्जना, भरती है हुंकार।
लड़ें चुनौती से सभी, कभी न मिलती हार।।
1001. छंद
छंदबद्ध कविता लिखें, पाठक पढ़ें प्रवीण ।
गायक गाएँ मधुर स्वर, समझें हर ग्रामीण।।
1002. शब्द
शब्द शब्द में ओज है, शब्द शब्द माधुर्य।
हिन्दी में लालित्य है, कविता का चातुर्य।।
1003. ग्रंथ
ग्रंथ अनेकों हैं लिखे, ऋषि मुनियों के काल।
विश्व जगत में आज हम, सबसे मालामाल ।।
1004. संवाद
परम्परा संवाद की, रही हमारे देश।
द्वापर में श्रीकृष्ण का, शांति-दूत संदेश ।।
1005. भाषा
भाषा में संवाद ही, कहलाता अनमोल ।
वाणी में हो मधुरता, लगते अमरित बोल।।
1006. वाणी
मीठी वाणी बोलिए, करिए प्रिय संवाद।
सुखद रहे वातावरण, कभी न हो अवसाद।।
1007. व्याकरण
भाषा में है व्याकरण, अभिव्यक्ति की जान।
सक्षम हिन्दी कह रही, हमको बड़ा गुमान।।
1008. वृष्टि
ग्रीष्म काल के बाद ही, होती अमरित ’वृष्टि’।
धरा स्वयं शृंगार कर, रचे अनोखी सृष्टि।।
1009. धाराधर
इन्द्र देव ने ले रखा, ’धाराधर’ का भार।
प्राणी हैं निश्चिंत सब, ईश्वर ही आधार।।
1010. बरसात
यह मौसम ’बरसात’ का, करता है फरियाद।
प्रियतम का हो साथ तब, दूर हटें अवसाद।।
1011. प्यास
’प्यास’ अधूरी रह गयी,बिछुड़ गए फिर श्याम।
ब्रज की रज व्याकुल हुई, छोड़ चले ब्रजधाम।।
1012. पुष्करिणी
’पुष्करिणी’ के ताल में, खिलें कमल अनमोल।
नंदी के मुख से बहे, अविरल अमरित घोल।।
1013. पावस
पावस का सुन आगमन,दिल में उठे हिलोर।
धरा गगन हर्षित हुआ, नाच उठा मन मोर ।।
1014. अनुभूति
पावस देती है सुखद, हरियाली अनुभूति।
करें मंत्रणा हम सभी, जल-संरक्षण नीति।।
1015. बरसा
मेघों ने बरसा दिया, जल की अमरित बूँद।
चलो सहेजें मिल अभी, आँखों को मत मूँद।।
1016. धन
धन की बरसा हो रही, हुआ देश धनवान।
खड़ा पड़ोसी रो रहा, देखो पाकिस्तान।।
1017. फुहार
बरखा ने जब कर दिया, अमरित की बौछार।
ग्रीष्म हुआअब अलविदा,तन-मन पड़ीं फुहार।।
1018. खेत
बरसा की बूँदें गिरीं, हर्षित हुआ किसान।
चला खेत की ओर फिर, करने नया विहान।।
1019. पसीना
खेत और खलिहान में, फिर झाँकी मुस्कान।
बहे पसीना कृषक का, पहने तब परिधान।।
1020. बीज
बरखा की बूँदें गिरीं, हर्षित माटी-बीज।
कृषक देखता है उसे, फिर आएँगे तीज।।
1021. किस्मत
बीज अंकुरित हो गए, देखे विहँस किसान।
ईश्वर ने किस्मत लिखी, होगा नया विहान।।
1022. बदरी
बदरी नभ में छा गई, लुभा रही चितचोर।
पानी की बूँदें गिरें, तब नाचे मन मोर।।
1023. बिजली
बिजली चमकी गगन में, लरज रहे हैं नैन।
प्रियतम को पाती लिखी, लौटो घर तब चैन।।
1024. मेघ
गरज चमक कर मेघ ने, भेजी है सौगात।
शीतल करने आ रही, मनभावन बरसात।।
1025. चैमास
जब आया चैमास यह, है पुलकित मधुमास।
धरा प्रफुल्लित हो उठी, मिलकर खेलें रास।।
1026. ताल
चैमासे का आगमन, सुनकर हैं खुशहाल।
ताल तलैया बावली, नाच उठी दे ताल।।
1027. पसीना
देख पसीना बह रहा, कृषक खड़ा है खेत।
जेठ पूस सावन-झरे, हर फसलों को सेत।।
1028. जेठ
जेठ उगलता आग है, श्रमिक रहा है ताप।
अग्नि पेट की शांत हो, करे कर्म का जाप।।
1029. अग्नि
अग्नि-परीक्षा की घड़ी, करो विवेकी बात।
आपस में मिलकर रहें, दुश्मन को दें मात।।
1030. ज्वाला
मरघट में ज्वाला जली, दे जाती संदेश।
मानव की गति है यही, छोड़ चला वह वेश।।
1031. आतप
सूरज का आतप बड़ा, दे जाता संताप।
वर्षा ऋतु ही रोकती, सबका रुदन-प्रलाप।।
1032. भूख
खुश होता है वह श्रमिक, उसको मिले रसूख।
उसके घर चूल्हा जले, मिटे पेट की भूख।।
1033. मनमीत
मन से मन का हो मिलन, बन जाता मनमीत।
शब्दों की माला बने, मोहक बनता गीत।।
1034. पारिजात
इन्द्रप्रस्थ उद्यान की, पारिजात थी जान।
स्वर्ग धरा से वृक्ष यह, लाए कृपा निधान।।
1035. प्रपात
संगमरमर की वादियाँ, भेड़ाघाट प्रपात।
शरद पूर्णिमा रात में, करे स्वर्ग को मात।।
1036. अंगार
जेठ माह में नव तपा, उगले मुख अंगार।
धरती को व्याकुल करे, हो कैसे उद्धार।।
1037. उपवास
तन-मन की शुद्धि करे, जो करता उपवास।
दीर्घायु जीवन जिए, स्वस्थ निरोगी आस।।
1038. बिजली
बिजली कड़की गगन में, मेघा छाए भोर।
सूरज की गर्मी गई, मानसून का शोर।।
1039. पानी
जीवन पानी-बुलबुला, जीने का हो ढंग।
समझा जिसने है इसे, झूमा पी कर भंग।।
1040. हवा
शुद्ध हवा बहती यहाँ, वृक्षों की भरमार।
इठलाती नदियाँ बहें, न्याग्रा-सी जलधार।।
1041. तूफान
मानव साहस से भरा, कभी न मानी हार।
जीवन में तूफान सब, हैं बेबस लाचार।।
1045. आँधी
घाव दिया आँधी गई, छोड़ा जख्म निशान।
उपचारों से भर गया, फिर से उगा विहान।।
1046. तपस्या
करें तपस्या साधना, सुखमय जीवन मंत्र।
सतकर्मों की राह से, सुखद सिद्धि का तंत्र।।
1047. निर्भीक
मन होता निर्भीक जब, जग भी देता साथ।
राह दिखाता जगत को, सबका झुकता माथ।।
1048. आचरण
नेक आचरण हैं उचित, मिले सफलता नेक।
नीति नियम परिपालना, जाग्रत रखें विवेक।।
1049. मंत्र
शिक्षक देते मंत्र हैं, करें साधना-जाप।
कदम चूमता तब समय, सफल तभी हैं आप।।
1050. गूँज
मन मंदिर में गूँजती, ऋद्धा की वह डोर।
गूँज रही संसार में, होती तब शुभ-भोर।।
1051. अलौकिक
अलौकिक प्रतिभा लिए, कुछ जन्में हैं लोग।
उनके पुण्य प्रताप से, मिलता सबको भोग।।
1052. संस्कार
वृक्षों की पूजा करी, भूले सब संस्कार।
हाथ कुल्हाड़ी थाम ली, काटा मूलाधार।।
1053. प्रियतम
हरी-भरी है यह धरा, प्राण-वायु चहुँ ओर।
मन आनंदित है यहाँ, लगता प्रिय हर छोर।।
1054. धरती
धरती कहती गगन से, कितना है विस्तार।
तेरा तो कुछ है नहीं, बस सूना संसार।।
1055. गगन
मेघ गगन में छा रहे, सबको लगी है आस।
जेठ गया आषाढ़ अब, सुखद हुआ आभास।।
1056. पाताल
सूख गया पाताल अब, रोता कृषक निराश।
इन्द्र देव वर्षा करें, प्रकृति का न हो नाश।।
1057. त्रिलोक
गूँजे सुखद त्रिलोक में, प्रभु की जय जयकार।
भक्तजनों की धूम है, लीला अपरंपार।।
1058. त्रिभुवन
शिवशंकर त्रिभुवन बसे, काशी शिव का धाम।
सोमवार का शुभ दिवस, विश्वनाथ का नाम।।
1059. अधर
अधर फड़कते रह गए, प्रियतम आए द्वार।
प्रेम-पियासे ही रहे, मिला न कुछ उपहार।।
1060. अलता
रच-हाथों में मेहँदी, बाँधा बिखरे -केश।
पावों में अलता लगा, चली सजन के देश।।
1061. अलकें
अलकें लटकीं गाल पर, सपन सलोना रूप।
आँखों में साजन बसे, ऋतु बसंत की धूप।।
1062. ओष्ठ
कंपन करते ओष्ठ हैं, पिया-सेज-शृंगार।
नव जीवन की कल्पना, खड़े प्रेम के द्वार।।
1063. अलि
अलि ने कानों में कहा, जाती बाबुल देश।
रक्षाबंधन आ रहा, भाई का संदेश।।
1064. आरंभ
करें कार्य आरंभ शुभ, लेकर प्रभु का नाम।
मिले सफलता आपको, पूरण होते काम।।
1065. प्रारब्ध
मिलता है सबको वही, लिखता प्रभु प्रारब्ध।
अधिक न इससे पा सके, कितना हो उपलब्ध।।
1066. आदि
आदि शक्ति दुर्गा बनीं, जग की तारण हार।
शत्रुदलन कलिमल हरण, रक्षक पालनहार।।
1067. अंत
अंत भला तो सब भला, कहते गुणी सुजान।
कर्म करें नित नेक सब, मदद करें भगवान।।
1068. मध्य
मध्य रात्रि शारद-निशा, खिला चाँद आकाश।
तारागण झिलमिल करें, बिखरा गए प्रकाश।।
1069. प्रपंच
छल-प्रपंच का दौर यह, चला देश में आज।
समझदार जनता हुई, कैसे चले सुराज।।
1070. पावस
पावस की बूँदें गिरीं, हर्षित फिर खलिहान।
धरा प्रफुल्लित हो उठी, हरित क्रांति अनुमान।।
1071. पपीहा
गूँज पपीहा की सुनी, अब तक बुझी न प्यास।
आम्र कुंज में बैठकर, स्वाति बूँद की आस।।
1072. मेघ
मेघ गरज कर चल दिए, देकर यह संदेश।
बरसेंगे उस देश में, भक्ति कृष्ण -अवधेश।।
1073. हरियाली
शिव की अब आराधना, हरियाली की धूम।
काँवड़ यात्रा चल पड़ी, आया सावन झूम।।
1074. घटा
छाई सावन की घटा, रिमझिम पड़ी फुहार।
भीगा तन उल्हास से, उमड़ा मन में प्यार।।
1075. पाती
पाती लिखकर भेजती, बाबुल आँगन देश।
दरस-बरस अँखियन बसी, सावन का उन्मेश।।
1076. बाबुल
सावन आया है सखी, चल बाबुल के देश।
आँगन में झूले पड़े, बदलेंगे परिवेश।।
1077. कजरी
झूला सावन में लगें, गले मिलें मनमीत।
कजरी की धुन में सभी, गातीं महिला गीत।
1078. देवी
देवी की आराधना, कजरी-सावन-गीत।
नारी करतीं प्रार्थना, जीवन-पथ में जीत।।
1079. त्योहार
सावन-भादों माह में, पड़ें तीज-त्यौहार।
संसाधन कैसे जुटें, महँगाई की मार।।
1080. तीज
भाद्र माह कृष्ण पक्ष को, आती तृतिया तीज ।
महिला निर्जल वृत करें, दीर्घ आयु ताबीज।।
1082. सिंदूर
लाड़ो चूड़ी पहन कर, भर माथे िसंदूर।
चली पराए देश में, मात-पिता मजबूर।।
1083. चूड़ी
शृंगारित परिधान में, चूड़ी ही अनमोल।
रंग बिरंगी चूड़ियाँ, खनकातीं कुछ बोल।।
1084. मेहँदी
सपनों की डोली सजा, आई पति के पास।
हाथों में रच-मेहँदी, पिया मिलन की आस।।
1085. मनभावनी
लालरँग मेहँदी रची, आकर्षित सब लोग।
प्रियतम के मनभावनी, मिलते अनुपम भोग।।
1086. झूला
सावन की प्यारी घटा, लुभा रही चितचोर।
झूला झूलें चल सखी, हरियाली चहुँ ओर।।
1087. जन्माष्टमी
सावन में झूला सजें, कृष्ण रहे हैं झूल।
भारत में जन्माष्टमी, मना रहे अनुकूल।।
1088. अतिवृष्टि
अल्प-वृष्टि, अति-वृष्टि से, जूझ रहा संसार।
पर्यावरण बचाइए, तब होगा उद्धार।।
1089. पर्व
भारत में जन्माष्टमी, पर्व मनाते लोग।
पूजन अर्चन संग में, लगते लड्डू भोग।।
1090. सखी
हाथों में रच मेहँदी, छाईं खुशियाँ भोर।
झूला झूलें दो सखी, नभ का नाँपें छोर।।
1091. साजन
रचा हाथ में मेहँदी, दुल्हन का शृंगार।
सपनों में साजन बसे, छोड़ा घर संसार।।
1092. परहित
अपने हित की चाह में, मानव बना पिशाच।
परहित सेवा भाव से, कभी न आती आँच।।
1093. अधर
अधर फड़कते रह गए, प्रियतम आए द्वार।
प्रेम पियासे ही रहे, मिला न कुछ उपहार।।
1094. अलता
रच-हाथों में मेहँदी, बाँधा बिखरे केश।
पाँवों में अलता सजा, चली सजन के देश।।
1095. अलकें
अलकें लटकीं गाल पर, सपन सलोना रूप।
आँखों में साजन बसे,़ ऋतु बसंत की धूप।।
1096. ओष्ठ
कंपन करते ओष्ठ जब, पिया-सेज-शृंगार।
नव जीवन की कल्पना, खड़े प्रेम के द्वार।।
1097. अलि
अलि ने कानों में कहा, जाती बाबुल देश।
रक्षाबंधन आ गया, भाई का संदेश।।
1098. पराग
कण-पराग के चुन रहे, भ्रमर कर रहे गान।
कली झूमतीं दिख रही, प्रकृति करे अभिमान।।
1099. काजल
नयनों में काजल लगा, देख रही सुकुमार।
चितवन गोरा रंग ले, लगे मोहनी नार।।
1100. किताब
खोली प्रेम किताब की, सभी हो गए धन्य।
नेह सरोवर डूबकर, फिर बरसें पर्जन्य।।
1101. फुहार
तन पर पड़ी फुहार जब, वर्षा का संकेत।
सावन की बरसात में, कजरी का समवेत।।
1102. गौरैया
गौरैया दिखती नहीं, राह गईं हैं भूल।
घर-आँगन सूने पड़े, हर मन चुभते शूल।।
1103. झरोखा
स्वयं झरोखा झाँकिए, अन्तर्मन में आप।
दूषित भाव नकारिए, दूर करें संताप।।
1104. क्षीर (दूध)
नीर-क्षीर का भेदकर, हटा अँधेरी रात।
हर मानस में हँस है, रखें विवेकी बात।।
1105. छीर (वस्त्र)
भूख गरीबी में पिसा, किसने समझी पीर।
अश्रु बहे इतने सुनो, भींग चुके हर छीर।।
1106. तीर
कर्कश वाणी तीर सम, उतरे दिल के पार।
मीठी वाणी बन शहद, सदा करे उपचार।।
1107. बिजना
बिजना डोले हाथ में, तपी दुपहरी धूप।
चाहत निर्मल नीर की, घर-आँगन में कूप।।
1108. मौका
मौका कभी न चूकिए, हिस्से में शुभ काम।
ईश्वर का वरदान यह, जग में रोशन नाम।।
1109. अक्षत
रोली-अक्षत का तिलक, झुका रहे सब शीश।
सुख वैभव बरसे सदा, कृपा करें जगदीश।।
1110. अक्षर
सरस्वती आराधना, मंदिर अक्षर धाम।
ज्ञानार्जन की साधना, ज्ञानी करें प्रणाम।।
1111. अंकुर
अंकुर निकसे धरा से, दिया जगत को ज्ञान।
यही हमारी मातु है, करें सभी गुणगान ।।
1112. अंजन
आँखों में अंजन लगा, चली पिया के देश।
सपनों की दुनिया दिखे, बुला रहा परिवेश।।
1113. अधीर
मानव हुआ अधीर अब, रामराज्य की आस।
दौर-विसंगति का बढ़ा, चुभी गले में फाँस ।।
1114. अंतर्मन
अंतर्मन में नेह का, बिखरे प्रेम प्रकाश।
मानव जीवन सुखद हो, हर मानव की आश।।
1115. ऊर्जा
शांति प्रेम सौहार्द को, सच्चे मन से खोज।
भारत की ऊर्जा यही, मन में रहता ओज।।
1116. वातायन (खिड़की)
उर-वातायन खुली रख, ताने नया वितान।
जीवन सुखमय तब बने, होगा सुखद विहान।।
1117. वितान (टेंट)
अंतर्मन की यह व्यथा, किससे करें बखान।
फुटपाथों पर सो रहे, सिर पर नहीं वितान।।
1118. विहान (सुबह)
खड़ा है सीना तानकर, भारत देश महान।
सदी बीसवीं कह रही, होगा नवल विहान।।
1119. विवान (सूरज की किरणें)
अंधकार को चीर कर, निकलीं सुबह विवान।
जग को किया प्रकाशमय, फिर भी नहीं गुमान।।
1120. व्रत
ब्रह्मचर्य-व्रत-साधना, रहा देवव्रत नाम।
श्री शांतनु के पुत्र थे, अटल प्रतिज्ञा-धाम।।
1121. उपवास
तन-मन को निर्मल रखे, पूजन व्रत उपवास।
जीवन सुखद बनाइए, हटें सभी संत्रास।।
1122. फल
फल की इच्छा छोड़कर, कर्म करें अविराम।
गीता में श्री कृष्ण का, सार-तत्व अभिराम।।
1123. निर्जल
तीजा के त्यौहार में, निर्जल व्रत उपवास।
शिव की है आराधना, पावन भादों मास।।
1124. मौन
विजयी होता क्रोध पर, जिसने सीखा मौन।
सुखमय जीवन ही जिया, व्यर्थ लड़ा है कौन।।
1125. संस्कृति
देश-विदेशों में रहे, कभी न उतरा रंग।
अनुष्ठान व्रत जप सभी, संस्कृति के हैं अंग।
1126. आराधना
ईश्वर की आराधना, निर्मल-मन उपवास।
भक्ति-भाव की भावना, सहज सरल है खास।।
1127. फल
फल की सबको कामना, वृक्षों का उपकार।
पालें-पोसें घर-धरा, उनका हो सत्कार।।
1128. निर्मल
निर्जल जीवन कष्टमय, चाहत निर्मल नीर।
जीवन का आधार यह, कब सुलझेगी पीर।।
1129. शक्ति
बड़ी शक्ति है मौन में, कहता रहा मनोज।
रखता संकट काल में, अंतर्मन में ओज।।
1130. अंजन
आँखों में अंजन लगा, माँ ने किया दुलार।
कोई नजर न लग सके, किया मातु उपचार।।
1131. आनन
आनन-फानन चल दिए, पूँछ न पाए हाल।
सीमा पर वापस गए, चूमा माँ का भाल।।
1132. आनन (चेहरा)
आनन पढ़ना यदि सभी, लेते मिलकर सीख।
दश-आनन को द्वार से, कभी न मिलती भीख।।
1133. आनन
गज-आनन की वंदना, करती बुद्धि विकास।
दुख की हटती पोटली, बिखरे ज्ञान उजास।।
1134. आमंत्रण
आमंत्रण है आपको, खुला हुआ है द्वार।
प्रेम पत्रिका है प्रिये, करता हूँ मनुहार।।
1135. आँचल
गाँवों का आँचल सुखद, मिले सभी को छाँव।
हरियाली से है घिरा, श्रमिकजनो का गाँव।।
1136. अलकें
घुँघराली अलकें लटक, चूमें अधर कपोल।
कान्हा खड़े निहारते, झूल रहीं हिंडोल।।
1137. अक्षत
रोली-अक्षत का तिलक, लगा रहे प्रभु-शीश।
सुख वैभव बरसे सदा, कृपा करें जगदीश।।
1138. अक्षर
सरस्वती आराधना, मंदिर अक्षर धाम।
ज्ञानार्जन की साधना, ज्ञानी करें प्रणाम।।
1139. अंकुर
अंकुर निकसे धरा से, दिया जगत को ज्ञान।
यही हमारी मातु है, करें सभी गुणगान।।
1140. अंजन
आँखों में अंजन लगा, चली पिया के देश।
सपनों की दुनिया दिखे, बुला रहा परिवेश।।
1141. अधीर
मानव हुआ अधीर अब, रामराज्य की आस।
दौर-विसंगति का बढ़ा, चुभी गले में फाँस।।
1142. श्रेष्ठ
भारत जग में श्रेष्ठ है, मिलते जहाँ सुमित्र।
धर्माें का संगम यहाँ, नदियाँ मिलें पवित्र।।
1143. छाँव
माँ का आँचल है सुखद, मिले सदा ही छाँव।
कष्टों से जब भी घिरा, मिली गोद में ठाँव।।
1144. कृतार्थ
मन कृतार्थ तब हो गया, देखस मित्र संदेश।
याद किया परदेश में, मिला सुखद परिवेश।।
1145. कलकंठी
कलकंठी-आवाज सुन, दिल आनंद विभोर।
वन-उपवन में गूँजता, नाच उठा मनमोर।।
1146. कुंदन
दमक रहा कुंदन सरिस, मुखड़ा चंद्र किशोर।
यौवन का यह रूप है, आत्ममुग्ध चहुँ ओर।।
1147. गुंजार
चीता का सुन आगमन, भारत में उन्मेश।
कोयल की गुंजार से, झंकृत मध्यप्रदेश।।
1148. घनमाला
घनमाला आकाश में, छाई है चहुँ ओर।
बरस रहे हैं भूमि पर, जैसे आत्मविभोर।।
1149. नेकी
नेकी खड़ी उदास है, लालच का बाजार।
मानवता मूरत बनी, दिखी बहुत लाचार।।
1150. परिधान
बैठ गया यजमान जब, पहन नया परिधान।
देख रहा ईश्वर उसे, मन में है अभिमान।।
1151. अनाथ
देखो किसी अनाथ को, उसका दे दो साथ।
अगर सहारा मिल गया, होगा नहीं अनाथ।।
1152. सौजन्य
सही मित्र सौजन्य से, मिलते हैं हर बार।
दुश्मन खड़े निहारते, मन में पाले खार।।
1153. सरपंच
गाँवों के सरपंच ने, दिया सभी को ज्ञान।
फसलों की रक्षा करें, प्राण यही भगवान।।
1154. तृषा,(प्यास)
मानव की यह तृषा ही, करवाती नित खोज।
संसाधन को जोड़कर, भरती मन में ओज।।
1155. मृदा,(मिट्टी)
कृषक मृदा पहचानता, बोता फिर है बीज।
लापरवाही यदि हुई, वह रोया नाचीज।।
1156. मृणाल,(कमल, की जड़)
कीचड़-बीच मृणाल ने, दिखलाया वह रूप।
पोखर सम्मानित हुआ, सबको लगा अनूप।।
1157. तृषित
तृषित रहे जनता अगर, नेता वह बेकार।
स्वार्थी नेता डूबते, फँसे नाव मँझधार ।।
1158. मृषा (झूठ-मूठ)
नयन मृषा कब बोलते, मुख से निकलें बोल।
सच्चाई को परखने, दोनों को लें तौल।।
1159. मृषा
प्रिये मृषा मत बोलिए, बनती नहीं है बात।
पछताते हम उम्र भर, बस रोते दिन-रात।।
1160. पोखर
पोखर में मृणाल खिले, मुग्ध हुआ संसार।
सूरज का पारा चढ़ा, प्रकृति करे मनुहार।।
1161. दीपक
मानवता की ज्योत से, नव प्रकाश की पूर्ति।
सबके अन्तर्मन जगे, मंगल-दीपक-मूर्ति।।
1162. वर्तिका
जले वर्तिका दीप की, फैलाती उजियार।
राह दिखाती जगत को, संकट से उद्धार।।
1163. दीवाली
रात अमावस की रही, घिरा तमस चहुँ ओर।
राम अयोध्या आ गए, दीवाली की भ् ाोर।।
1164. रजनी
रजनी का घूँघट उठा, दीपक आत्म विभोर।
जीवन साथी मिल गया , बना वही चितचोर।।
1165. रंगोली
रंगोली द्वारे सजे, आए जब त्यौहार।
रंग बिरंगे पर्व सब, खुशियाँ भरें हजार।।
1166. रोशनी
दीवाली की रोशनी, बिखराती उजियार।
प्रखर रश्मियाँ दीप की, करे तमस संहार ।।
1167. उजियार
हिन्दू-संस्कृति है भली, नहीं किसी से बैर।
फैलाती उजियार को, माँगे सबकी खैर।।
1168. जगमग
जगमग दीवाली दिखी, देश कनाडा यार।
आतिशबाजी देख कर, सही लगा त्यौहार।।
1169. तम
तम घिरता ही जा रहा, सीमा के उस पार।
चीन-पाक आतंक का, कैसे हो उपचार।।
1170. दीप
दीप-मालिके कर कृपा, फैला दे उजियार।
सद्भावों की भोर हो, खुलें प्रगति के द्वार।।
1171. साँसें
गिनती की साँसें मिली, जीवन है अनमोल।
सद्कर्मों पर ध्यान दें, सब धर्मों के बोल।।
1172. आँखें
आँखें फटी निहारतीं, कलियुग की करतूत।
प्रेमी हत्या कर रहे, धोएँ सभी सबूत।।
1173. बातें
खत्म नहीं बातें हुईं, बीत गई जब रात।
प्रेमी ने हँस कर कहा, कल फिर होगी बात।।
1174. रातें
रातें अब छोटी हुईं, दिन हो गए जवान।
बिस्तर पर करवट बदल, बैठा हिन्दुस्तान।।
1175. घातें
कितनी घातें दे रहे, शत्रु-पड़ोसी देश।
छद्म रूप धर कर सदा, पहुँचाते हैं क्लेश।।
1176. अवसर
प्रभु देता अवसर सदा, रखिए इसका ध्यान।
चूक गए तो फिर नहीं, मिल पाता सम्मान।।
1177. अनुग्रह
हुआ अनुग्रह राम का, पूर्ण हुए सब काज।
विश्व पटल पर छा गया, भारतवंशी राज।।
1178. आपदा
करें प्रबंधन आपदा, संकट से हो मुक्ति।
बड़े बुजुर्गों से सदा, मिली हमें यह युक्ति।।
1179. प्रशस्ति
सद्कर्मों का मान हो, स्वागत मिले प्रशस्ति।
बदले मानव आचरण, यही देश की शक्ति।।
1180. प्रतिष्ठा
बढ़े प्रतिष्ठा देश की, मिलकर करें प्रयास।
मतभेदों को भूलकर, फसल उगाएँ खास।।
1181. ललाम
मोहक छवि श्री राम की, द्वापर युग घनश्याम।
दर्शन पाकर धन्य सब, मंजुल ललित ललाम।।
1182. लावण्य
नारी के लावण्य पर, मुग्ध हुए सब लोग।
मन दर्पण में झाँकिए, मिलें सुखों के भोग।।
1183. लौकिक
लौकिक परलौकिक सभी, सुख पाता इंसान।
प्रेम भक्ति में जो मगन, वही रहा धनवान।।
1184. लतिका
लतिका है मनभावनी, बँधे नेह की डोर।
लिपटे प्रेम से अंग में, रहती भाव विभोर।।
1185. ललक
जीवन जीने की ललक, हर प्राणी की चाह।
मिलकर सुखद बनाइए, यही नेक है राह।।
1186. शीत
शीत-लहर से काँपता, तन-मन पात समान।
ओढ़ रजाई बावले, क्यों बनता नादान।।
1187. शरद
शरद सुहानी छा गई, करती हर्ष विभोर।
रंगबिरंगी तितलियाँ, भ्रमर मचाते शोर।।
1188. माघ
माघ-पूस की रात में, सड़कें सब सुनसान।
शीत हवा बहती विकट, काँपें सबके प्रान।।
1189. पूस
कहा माघ ने पूस से, तेरी क्या औकात।
अभी तुझे बतला रहा, दूँगा निश्चित मात।।
1190. कुहासा
बढ़ा कुहासा ओस का, गाड़ी चलतीं लेट।
प्लेट-फार्म में बैठकर, प्रिय कब होगी भेंट।।
1191. चाँदनी
रात चाँदनी में मिले, प्रेमी युगल चकोर।
प्रणय गीत में मग्न हो, नाच उठा मन मोर।।
1192. स्वप्न
स्वप्न देखता रह गया, लोकतंत्र का भोर।
वर्ष गुजरते ही गए, शेष रह गया शोर।।
1193. परीक्षा
घड़ी परीक्षा की यही, दुख में जो दे साथ।
अवरोधों को दूर कर, थामें प्रिय का हाथ।।
1194. विलगाव
घाटी के विलगाव में, नेतागण कुछ लिप्त।
उनके कारण देश यह, हुआ बहुत अभिशप्त।।
1195. मिलन
प्रणय मिलन की है घड़ी, गुजरी तम की रात।
मिटी दूरियाँ हैं सभी, नेह प्रेम की बात।।
1196. आमंत्रण
आमंत्रण नव वर्ष को, बजे सुखद संगीत।
रूठे बिछुड़े जो खड़े, गले मिलें मनमीत।।
1197. अभ्यर्थना
प्रभु से कर अभ्यर्थना, सफल करें सब काज।
रक्षा जीवन की करें, सुखद शांति का राज।।
1198. आचमन
बुरे कर्म का आचमन, करना मिलकर मीत।
जीवन होगा तब सफल, गाएँगे मिल गीत।।
1199. अंचन
आँखों में अंजन लगा, निकली प्रिय चितचोर।
प्रेमी जन हैं रीझते, मन में नाचे मोर।।
1200. अंगीकार
तुमने अंगीकार कर, जगा दिया सौभाग्य।
जीवन के दुख हर लिए, भगा दिया वैराग्य।।
1201. विग्रह
विग्रह शालिगराम का, देव विष्णु प्रतिरूप।
पूजन अर्चन हम करें, दर्शन सुखद अनूप।।
1202. वितान
उड़ने को आकाश है, फैला हुआ वितान।
पंछी पर फैला उड़े, मानव उड़ें विमान।।
1203. विहंग
उड़ते दिखें विहंग हैं, नापें नभ का छोर।
शाखों पर विश्राम कर, उड़ते फिर नित भोर।।
1204. विहान
नव विहान अब हो रहा, भारत में फिर आज।
विश्व पटल पर छा गया, सिर में पहने ताज।।
1205. विवान
किरणें बिखरा चल पड़ा, रथ आरूढ़ विवान।
प्राणी को आश्वस्त कर, गढ़ने नया विहान।।
1206. अंत
अंत भला तो सब भला, सुखमय आती नींद।
शुभारंभ कर ध्यान से, सफल रहे उम्मीद ।।
1207. अनंत
श्रम अनंत आकाश है, उड़ने भर की देर।
जिसने पर फैला रखे, वही समय का शेर।।
1208. आकाश
पक्षी उड़ें आकाश में, नापें सकल जहान।
मानव अब पीछे नहीं, भरने लगा उड़ान।।
1209. अवनि
अवनि प्रकृति अंबर मिला, प्रभु का आशीर्वाद।
धर्म समझ कर कर्म कर, मत चिंता को लाद।।
1210. अचल
अचल रही है यह धरा, आते जाते लोग।
अर्थी पर सब लेटते, सिर्फ करें उपभोग।।
1211. धूप
बदला मौसम कह रहा, ठंडी का है राज।
धूप सुहानी लग रही,इस अगहन में आज।।
1212. धवल
धुआँधार में नर्मदा, निर्मल धवल पुनीत।
गंदे नाले मिल गए, बदला मुखड़ा पीत।।
1213. धनिक
धनिक तनिक भी सोचते, कर देते उद्धार।
कृष्ण सखा संवाद कर, हरते उसका भार।।
1214. धरती
धरती कहती गगन से, तेरा है विस्तार।
रखो मुझे सम्हाल के, उठा रखा है भार।।
1215. धरित्री
जीव धरित्री के ऋणी, उस पर जीवन भार।
रखें सुरक्षित हम सभी, हम सबका उद्धार।।
1216. परिवर्तन
परिवर्तन से देश में, diदखने लगा उजास।
शत्रु पड़ोसी देख कर, मन में बड़ा उदास।।
1217. भूजल
भूजल पर्यावरण अब, देता है संदेश।
हरित क्रांति लाना हमें, तब बदले परिवेश।।
1218. फसल
फसल खड़ी है खेत में, आनन पर मुस्कान।
पल पल रहा निहारता, बैठा कृषक मचान।।
1219. सोना
सोना उपजे खेत में, कृषक बने धनवान।
यही शिला श्रम की सुखद, मिले सदा सम्मान।।
1220. कृषक
कृषक आधुनिक हो गया, ट्रैक्टर कृषि संयंत्र।
बदल रहे हैं गाँव अब, बिगुल बजाता तंत्र।।
1221. खेत
कृषक ला रहे खेत में, नित नूतन कृषि यंत्र।
इन उपकरणों ने दिया, उन्नति के नवमंत्र।।
1222. कुसुम
कुसुम खिले हैं बाग में, सुरभित हुई बयार।
मुग्ध हो रहे लोग सब, बाग हुए गुलजार ।।
1223. बसंत
ऋतु बसंत की पाहुनी, स्वागत करें मनोज।
बाग बगीचे खेत में, दिखता चहुँ दिश ओज।।
1224. अलसी
अलसी से कपड़े बने, बीजों से है तेल।
जो खाते इस बीज को, स्वस्थ निरोगी मेल।।
1225. सरसों
खेतों में सरसों खिली, चूनर ओढ़ी पीत।
बासंती ऋतु आ गई, झूम उठे मनमीत।।
1226. खेत
खेत सभी हर्षित हुए, फसलें हुईं जवान।
श्रम की सिद्धि हो गई, ऊगा नया विहान।।
1227. खलिहान
फसल काट खलिहान तक, बना स्वयं मजदूर।
कोठी में धन-धान्य रख, नहीं हुआ मजबूर।।
1228. फागुन
देख माघ मुस्का रहा, फाग खड़ा दहलीज।
रंग गाल में मल गया, राधा आँखें मींज।।
1229. सूत्र
माह जनवरी छब्बीस, बासंती गणतंत्र।
संविधान के सूत्र से, संचालन का यंत्र।।
1230. बसंत
ऋतु बसंत की धूम फिर, बाग हुए गुलजार।
रंग-बिरंगे फूल खिल, बाँट रहे हैं प्यार।।
1231. शिशिर
शिशिर काल में ठंड ने, दिखलाया वह रूप।
नदी जलाशय जम गए, तृण हिमपात अनूप।।
1232. ऋतु
स्वागत है ऋतु-राज का, छाया मन में हर्ष।
पीली सरसों बिछ गई, मिलकर करें विमर्ष।।
1233. बहार
आम्रकुंज बौरें दिखीं, करे प्रकृति शृंगार।
कूक रही कोयल मधुर, छाई मस्त बहार।।
1234. राह
चटृटानों को चीर कर, नदी बनाती राह।
मानव मन यदि ठान ले, पूरण होती चाह।।
1235. हित
हित सबका हम चाहते, जनता देश समाज।
जुड़ें सभी अब देश हित,सुख यश वैभव राज।।
1236. केतकी
श्वेत पीत यह केतकी, लगा सुगंधित फूल।
आकर्षक मन भावनी, ओढ़े खड़ी दुकूल।।
1237. कचनार
बवासीर मधुमेह में, औषधि से भरपूर।
पौधा यह कचनार का, लता बिखेरे नूर।।
1238. रसाल
मौसम आया द्वार में, करना नहीं मलाल।
आम्रकुंज में दिख रहा, मोहक पीत रसाल।।
1239. ऋतुराज
ऋतुओं का ऋतुराज है, मनमोहक मधुमास।
प्रकृति हवा सँग झूमती,दिल को आता रास।।
1240. किंशुक
सुग्गे जैसी चोंच ले, लगता किंशुक फूल।
विरही को समझा रहा, विरह वेदना शूल।।
1241. फागुन
फागुन का यह मास अब, लगता मुझे विचित्र।
छोड़ चला संसार को, परम हमारा मित्र।।
1242. फाग
उमर गुजरती जा रही, फाग न आती रास।
प्रियतम छूटा साथ जब, उमर लगे वनवास।।
1243. पलास
रास न आते हैं अभी, अब पलास के फूल।
बनकर दिल में चुभ रहे, काँटों से वे शूल।।
1244. वन
वन में झरे पलास जब, दिखें गिरे अंगार।
आग लगाने को विकल, लीलेंगे संसार।।
1245. जोगी
धर जोगी का रूप दिल, चला छोड़ संसार।
तन बेसुध सा है पड़ा, जला रहा अंगार।।
1246. रामचरित मानस
राम चरित मानस बृहद, यह अनुपम है ग्रंथ।
संस्कृति का प्रतिबिंब यह,सकल सुमंगल पंथ।।
1247. रहल
सुखद रहल पावन पवित्र, तुलसी का साहित्य।
जीवन में अनमोल यह, करें अनुसरण नित्य।।
1248. अतुल्य
अतुल्य हमारा देश यह, सब देशों से देश ।
देश विदेशों में रहा, यहाँ नहीं कुछ क्लेश।।
1249. राष्ट्रधर्म
राष्ट्रधर्म सबसे बड़ा, हो इसका आभास।
प्रगति राह पर सब बढ़ें, मानवता को रास।।
1250. परिवेश
समझोतों में हल छिपा, भागे हैं हर क्लेश।
सुखमय जीवन की घड़ी,नेक सुखद उपदेश।।
1251. भाषा
सहज सरल भाषा लिखी, साधारण परिवेश।
दोहे लिखे मनोज ने, भाव पूर्ण संदेश।।
1252. अज्ञान
छंदो का ज्ञाता नहीं, मैं बिल्कुल अग्यान।
मुझसे जैसा बन सका, लिखता गया सुजान।।
1253. आभार
साहित्यकार, कवि दोस्त, सबके प्रति आभार।
सानिध्य-मिला लिख सका, हृदय भाव उद्गार।।
1254. क्षितिज
क्षितिज नापने उड़ चला, पंछी नित ही भोर।
शाम देख कर फिर मुड़े, सुनने कलरव शोर ।।
1255. वायुयान
वायुयान में बैठ कर, उड़े कनाडा देश।
अंतहीन इस क्षितिज का, समझ न पाया वेश।।
1256. पलाश
मन में खिला पलाश है, होली का त्यौहार।
साजन रूठे हैं पड़े, सुबह-सुबह तकरार।।
1257. भूषित
धरा वि-भूषित वृक्ष से, करती है शृँगार।
प्राणवायु देती सुखद, जीवन हर्ष अपार।।
1258. उन्मेश
भूषित प्रकृति संपदा, दर्शन का उन्मेश।
पर्यटक आते देखने, मिटते मन के क्लेश।।
1259. अबीर
ऋतु बसंत में बह रही, मादक-मंद समीर।
हुई प्रकृति है बावली, माथे लगा अबीर।।
1260. मुखड़ा
मुखड़ा चितवन पर लगा, सेमल-लाल अबीर।
सुधबुध भूली मोहनी, प्रियतम हृदय अधीर।।
1261. सुकुमार
लखन राम सुकुमार सिय, चले कौशलाधीश।
मातु-पिता आशीष ले, बढ़े नवा कर शीश।।
1262. राधिका
प्रेम राधिका का अमर, जग करता नित याद।
भक्त सभी जपते सदा, जब आता अवसाद।।
1263. उपवास
तन-मन को निर्मल करे, जो करता उपवास।
रोग शोक व्यापे नहीं, जीवन भर मधुमास।।
1264. लोचन
लोचन हैं राजीव के, श्याम वर्ण अभिराम।
द्वापर में फिर आ गए, अवतारी घन-श्याम।।
1265. मिठास
वाणी सिक्त मिठास की, होती है अनमोल।
जीवन भर जो स्वाद ले, बोले मिश्री घोल।।
1266. रोटी
रोटी दुनिया से कहे, धर्म-कर्म-ईमान।
मुझसे ही संसार यह, गुँथा हुआ है जान।।
1267. गुलाब
मुखड़ा सुर्ख गुलाब-सा, नयन झील कचनार।
ओंठ रसीले मद भरे, घायल-दिल भरमार।।
1268. मुँडेर
कागा बैठ मुँडेर पर, सुना गया संदेश।
खुशियाँ घर में आ रहीं, मिट जाएँगे क्लेश।।
1269. पाती
पाती लिखकर भेजती, प्रियतम को परदेश।
होली हम पर हँस रही, रूठा सा परिवेश।।
1270. साक्षी
सनकी प्रेमी दे गया, सबके मन को दाह।
दृश्य-कैमरा सामने, साक्षी बनी गवाह।।
1271. शृंगार
नारी मन शृंगार का, पौरुष पुरुष प्रधान।
दोनों के ही मेल से, रिश्तों का सम्मान।।
1272. पाणिग्रहण
संस्कृति में पाणिग्रहण, नव जीवन अध्याय।
शुभाशीष देते सभी, होते देव सहाय।।
1273. वेदी
अग्निहोत्र वेदी सजी, करें हवन मिल लोग।
ईश्वर को नैवेद्य फिर, सबको मिलता भोग।।
1274. विवाह
मौसम दिखे विवाह का, सज-धज निकलें लोग।
मंगलकारी कामना, उपहारों का योग।।
1275. जंगल
जंगल सारे कट गए, नहीं मिली जब छाँव।
सारे पक्षी दुबक कर, बैठ गए लघु ठाँव।।
1276. गर्मी
बैरन गर्मी ने किया, सबको है बेचैन।
दुबके पंछी छाँव में, नीर ढूँढ़ते नैन।।
1277. मिथ्या
मिथ्या वादे कर रहे, राजनीति के लोग।
मिली जीत फिर भूलते, खाते छप्पन भोग।।
1278. छलना
छलना है संसार को, कैसा पाकिस्तान।
पहन मुखौटे घूमता, माँगे बस अनुदान।।
1279. सर्प
सर्प बिलों में छिप गए, स्वर्ग हुआ आबाद।
काश्मीर पर्यटन बढ़ा, खत्म हुआ उन्माद।।
1280. मछुआरा
मछुआरा तट बैठकर, देख रहा जलधार।
मीन फँसेगी जाल में, सुखमय तब परिवार।।
1281. जाल
मोह जाल में उलझकर, मन होता बेचैन।
सजे चिता की सेज फिर, पथरा जाते नैन।।
1282. लू
ज्येष्ठ माह का नवतपा, बरसाता है आग।
लू-लपटों से घिर चुके, सभी रहे हैं भाग।।
1283. लपट
झुलस रहे हैं लपट से, शहर गाँव खलिहान।
श्रमजीवी श्रम कर रहे, पहिन फटी बनियान।।
1284. ग्रीष्म
ग्रीष्म काल में चल पड़ा, पर्यटन का है शोर।
हिल स्टेशन फुल हुए, लगे सुहानी भोर।।
1285. प्रचण्ड
सूरज प्रचण्ड तप रहा, जेठ लगा जब माह।
आएगा आषाढ़ तब, खतम करेगा दाह।।
1286. अग्नि
सूरज अग्नि उगल रहा, सूख गये मृत-पात।
फिर नवपल्लव ऊगते, खाद बनें हर्षात ।।
1287. पथिक
जीवन के हम हैं पथिक, चलें नेक ही राह।
चलते-चलते रुक गए, तन-मन दारुण दाह।।
1288. मझधार
जीवन-सरि मझधार में, प्रियजन जाते छोड़।
सबके जीवन काल में, आता है यह मोड़।।
1289. आभार
जो जितना सँग में चला, उनके प्रति आभार।
हृदय कृतघ्न न हो कभी, यह जीवन का सार।।
1290. उत्सव
जीवन उत्सव की तरह, हों खुशियाँ भरपूर।
दुख, पीड़ा, संकटघड़ी, खरे उतरते शूर।।
1291. छाँव
धूप-छाँव-जीवन-मरण, हैं जीवन के अंग।
मानव मन-संवेदना, दिखलाते बहु रंग।।
1292. आभार
सबके प्रति आभार है, दिखलाई जो राह।
कवितातल तक जा सका, नाप सका कुछ थाह।।
1293. बाँसुरी
हिंदी रचनाकारों से, हुआ पटल धनवान।
गद्य-पद्य की बाँसुरी, मोहक लगे सुजान।।
1294. सजल
छंद, गीत, मुक्तक, सजल, पढ़कर बनो महान।
सिद्ध हस्त कवि वृंद जन, जुड़े सभी गुणवान।।
1295. आभारी
आभारी हम आपके, सबके प्रति आभार।
विसंगतियों से आपने, मुझको लिया उबार।।
1296. प्रणम्य
सबरे पटल प्रणम्य हैं, जो जग करे प्रकाश।
हिंदी ध्वज फहरा रहे, बड़ी लगी है आश।।
1297. कोंपल
कोंपल खिली डगाल पर, हर्षाया वट वृक्ष।
स्वागत आगत कर रहा, वर्षों से वह दक्ष।।
1298. कलगी
झूमी कलगी शीश पर, मुर्गे ने दी बाँग।
चला जगाने जगत को, पीकर सोए भाँग।।
1299. कुसुम
कुसुम फूल के फायदे, औषधि गुण भरपूर।
उदर रोग का शमन कर, आँखों का है नूर।।
1300. डाली
डाली झूमी वृक्ष की, पत्तों से संवाद।
पथिक थका-हारा सुनो, चखा फलों का स्वाद।।
1301. विटप
धरा विटप को पालती, प्रकृति लुटाती प्यार।
वायु प्रदूषण रोकती, जीव जगत उपकार।।
1302. आभार
सबके प्रति आभार है, दिखलाई जो राह।
कवितातल तक जा सका,नाप सका कुछ थाह।।
1303. ज्वार
ज्वार बाजरा खाइए, मिटें उदर के रोग।
न्यूट्रीशन तन को मिले, होता उत्तम भोग।।
1304. सुकुमार
बाल्यकाल सुकुमार है, रखें सदा ही ख्याल।
संस्कारों की उम्र यह, होता उन्नत भाल।।
1305. पुलकन
मन की पुलकन बढ़ गई, मिली खबर चितचोर।
बेटी का घर आगमन, बाजी ढोलक भोर ।।
1306. चितवन
चितवन झाँकी राम की, राधा सँग घनश्याम।
आभा मुख की निरखते, हृदय बसें श्री राम।।
1307. कस्तूरी
मृग कस्तूरी ढूँढ़ता, व्यर्थ हुआ बेचैन।
अंदर तन में है रखा, ढूँढ़ न पाए नैन।।
1308. कबूतर
बोल कबूतर गुटरगूँ, क्या देगा संदेश।
चैट मेल अब भेजते, बदल गया परिवेश।।
1309. खेत
फसलों का निर्यात कर, हुआ देश विख्यात।
खेत सभी हरिया उठे, हरे भूख दिन रात।।
1310. अशोक
खड़ा विश्व के सामने, भारत हुआ अशोक।
शत्रु पड़ोसी देश भी, उन्नति सके न रोक।।
1311. दृष्टि
दूर-दृष्टि का अर्थ ही, मोदी जी का नाम।
किए अनोखे कार्य हैं, दुर्लभ निपटे काम।।
1312. धूप
तेज धूप में झुलसता, मानव का हर अंग।
छाँव-छाँव में ही चलें, पानी-बाटल संग।।
1313. कपोल
लाली बढ़ी कपोल की, पड़ी तेज जब धूप।
मुखड़े की वह लालिमा, लगती बड़ी अनूप।।
1314. आखेट
आँखों के आखेट से, लगे दिलों पर तीर ।
मृगनयनी घायल करे, कितना भी हो वीर।।
1315. प्रतिदान
मानवता कहती यही, करें सुखद प्रतिदान।
बैर बुराई छोड़ कर, प्रस्थापित प्रतिमान ।।
1316. निकुंज
आम्र-निकुंज में डालियाँ, झुककर करें प्रणाम।
आगत का स्वागत करें, चखें स्वाद चहुँ याम।।
1317. आजादी
कैसे कुछ इंसान हैं, मचा रखी है लूट।
आजादी के नाम पर, समझें बम्फर छूट।।
1318. उत्कर्ष
सही दिशा में अब बढ़े, भारत का उत्कर्ष।
प्रगति और उत्थान से, जन मानस में हर्ष।।
1319. लोकतंत्र
लोकतंत्र बहुमूल्य यह, समझें इसका मूल्य।
राष्ट्र धर्म के सामने, होता सब कुछ शून्य।।
1320. भारत
भारत ऐसा देश यह, सदियों रहा गुलाम।
किन्तु ज्ञान विज्ञान से, पाया विश्व मुकाम।।
1321. तिरंगा
हाथ तिरंगा थामकर, गूँजी जय-जयकार।
राष्ट्र भक्ति सँग एकता, जनमानस का प्यार।।
1322. सावन
आया सावन झूम कर, हरियाली हर ओर।
पीहर में झूलें सखी, कजरी का है शोर।।
1323. फुहार
सावन लगता है मधुर, रिमझिम पड़े फुहार।
कोयल राग अलापता, करता है मनुहार।।
1324. झूले
बाबुल का संदेश है, आ जा बेटी पास।
झूला डाले बाग में, सखियाँ आईं खास।।
1325. सखी
यौवन में झूलें सखी, बचपन लौटा पास।
मन गोरी का बावला, सावन पावस खास।।
1326. कजली
चैपालों में गूँजता, कजली का स्वर रोज।
कोयल के संगीत से, नवप्रभात सा ओज ।।
1327. परदेश
चला ऊँट का काफिला, पिया चले परदेश।
नजरें उसे निहारतीं, छूट रहा परिवेश।।
1328. मेघ
मेघ बरसते हैं वहाँ, जहाँ प्रकृति की जीत।
वृक्ष उगाकर बन रहे, मानव-जग के मीत।।
1329. हलधर
पानी खेतों में भरा, हर्षित हुआ किसान।
रोपे-पौधे खेत में, मिला उसे वरदान।।
1330. हरियाली
हरियाली को मिल गया, पावस का संदेश।
सावन-भादों बरसते, बदलेंगे परिवेश।।
1331. छतरी
मेघों की छतरी तनी, खुश हैं सभी किसान।
माटी की सौंधी महक, चलते सीना तान।।
1332. नाव
हिचकोलें लेकर बढ़े, सबकी जीवन-नाव।
ईश्वर की सब कृपा है, हों कृतज्ञ के भाव।।
1333. अंकुर
अंकुर निकसे प्रेम का, प्रियतम का आधार।
नेह-बाग में जब उगे, लगे सुखद संसार ।।
1334. मंजूषा
प्रेम-मंजूषा ले चली, सजनी-पिय के द्वार।
बाबुल का घर छोड़कर, बसा नवल संसार।।
1335. भंगिमा
भाव-भंगिमा से दिखें, मानव-मन उद्गार।
नवरस रंगों से सजा, अन्तर्मन शृंगार।।
1336. पड़ाव
संयम दृढ़ता धैर्यता, मंजिल तीन पड़ाव ।
मानव उड़े आकाश में, मन से हटें तनाव।।
1337. मुलाकात
मुलाकात के क्षण सुखद, मन में रखें सहेज।
स्मृतियाँ पावन बनें, बिछे सुखों की सेज।।
1338. दर्पण
नित-दर्पण में झाँकिए, निरखें अपना रूप।
अंदर-बाहर एक से, गुण हों सुखद अनूप।।
1339. उपहार
दिया सुखद उपहार है, ईश्वर ने अनमोल।
मानव रूपी धर्म से, चखते अमरत घोल।।
1340. विराम
सभी विवादों पर लगा, अब तो पूर्ण विराम।
कश्मीरी परिक्षेत्र में, हुए सृजन के काम।।
1341. हरा-भरा
हरा-भरा यह देश है, इसका रखना ख्याल।
सबका ही कर्तव्य है, बढ़ें न व्यर्थ बवाल।।
1342. समीर
धरा प्रफुल्लित हो गई, ऋतु आई बरसात।
बहने लगा समीर है, मिली मधुर सौगात।।
1343. अंबुद
उमड़-घुमड़ अंबुद चले, हाथों में जलपान।
प्यासों को पानी पिला, पाया शुभ वरदान।।
1344. नटखट
नटखट बादल खेलते,लुका-छिपी का खेल।
कहीं तृप्त धरती करें, कहीं सुखाते बेल।।
1345. प्रार्थना
यही प्रार्थना कर रहे, धरती के इंसान।
जल-वर्षा इतनी करो, धरा न जन हैरान।।
1346. चारुता
प्रकृति चारुता से भरी, झूम उठे तालाब।
मेघों ने बौछार कर, खोली कर्म-किताब।।
1347. अभिसार
वर्षा-ऋतु का आगमन, नदियाँ हैं बेताब।
उदधि-प्रेम अभिसार में, उफनातीं सैलाब।।
1348. सावन
सावन के त्यौहार हैं, पूजन-पाठ प्रसंग।
रक्षाबंधन-सूत्र से, चढ़ें नेह के रंग।।
1349. बादल
उमड़-घुमड़ बादल चले, लेकर प्रेम फुहार।
तनमन अभिसिंचित करें,जड़चेतन उपकार।।
1350. मेघ
मेघ बरसते हैं वहाँ, जहाँ प्रभु घनश्याम।
उनकी कृपा अनंत है, मानव मन विश्राम।।
1351. झड़ी
झड़ी लगी आनंद की, गिरिजा-शिव परिवार।
सावन-भादों घर रहें, महिमा अपरंपार।।
1352. चैमास
कर्म-धर्म का योग ले, आया है चैमास।
मंगलमय खुशहाल का, माह रहा है खास।।
1353. बूँदाबाँदी
बूँदाबाँदी ने भरा, तन-मन में उल्लास।
जेठ माह की ज्वाल से,मन था बड़ा उदास।।
1354. बरसात
धरा मुदित हो कह उठी, लो आई बरसात।
अनुपम छटा बिखेर दी, गर्मी को दी मात।।
1355. धाराधार
रूठे बादल घिर गए, बरसे धाराधार।
ग्रीष्म काल दुश्वारियाँ, बदल गया संसार।।
1356. पावस
प्रिय पावस की यह घड़ी,लगती सबको नेक।
नव अंकुर निकले विहँस, मुस्कानें हैं एक।।
1357. चातुर्मास
भक्ति भाव आराधना, आया चातुर्मास।
धर्म धुरंधर कह गए, माह यही हैं खास।।
1358. धार
नदिया के तट बैठकर, देखी उसकी धार।
मीन करे अठखेलियाँ, कभी न मानी हार।।
1359. लहर
सुखदुख की उठती लहर,हर दिन होती भोर।
सफल वही तैराक जो, पार करे बिन शोर।।
1360. प्रवाह
नद-प्रवाह जीवनमधुर, सागर का जलक्षार।
कंठ प्यास की कब बुझी,यह जीवन का सार।।
1361. भँवर
मानव फँसता भँवर में, बचकर निकले वीर।
संयम दृढ़ता धैर्य से, बन जाते रघुवीर।।
1362. कलकल
कलकल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।
तनमन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।
1363. सच्चाई
सच्चाई परिधान वह, श्वेत हंस चितचोर।
धारण करता जो सदा, आँगन नाचे मोर।।
1364. परिधान
नवल पहन परिधान सब, चले बराती संग।
द्वार-चार में हैं खड़े, स्वागत के नव रंग।।
1365. सौभाग्य
कर्म अटल सौभाग्य है, बनता जीव महान।
फसल काट समृद्धि से, जीता सीना तान।।
1366. बदनाम
मानव को सत्कर्म से, मिल जाते हैं राम।
फँसता जो दुष्कर्म में, हो जाता बदनाम।।
1367. आहत
सरल देह-उपचार है, औषधि दे परिणाम।
आहत मन के घाव को, भरना मुश्किल काम।।
1368. यात्रा
अंतिम यात्रा चल पड़ी, समझो पूर्ण विराम।
मुक्तिधाम का सफर ही, सबका अंतिम धाम।।
दोहे मनोज के
1. प्रार्थना
गणपति जी से प्रार्थना, विजयकीर्ति सम्मान।
बुद्धि ज्ञान विज्ञान में, भारत हो धनवान।।
2. वंदना
सरस्वती से वंदना, भरें ज्ञान भंडार।
अंतर्मन दीपक जले, भाव शब्द सुविचार।।
3. प्रतिज्ञा
करें प्रतिज्ञ हम सभी, चलें नेक सब राह।
होता शुभ जीवन सफल,मिट जाते हैं दाह।।
4. पुरुषार्थ
मानव का पुरुषार्थ ही, आता है कुछ काम।
अकर्मण्य जो भी रहे, गुम जाता है नाम।।
5. अनिरुद्ध
सारा जग यह जानता, भारत है अनिरुद्ध।
पाक सदा ही हारता, कब जीता है युद्ध।।
6. इतिहास
मन में चाहत हो अगर, बन जाता इतिहास।
नव भारत की शक्ति में,सबका दृढ़ विश्वास।।
7. आजादी
आजादी के शब्द का, पहले समझें अर्थ।
कर्तव्यों का बोध हो, भटकें कभी न व्यर्थ।।
8. राष्ट्र
राष्ट्र हितों को भूल कर, निज-हित की भरमार।
आज चलन यह भा रहा, हुआ देश पर भार।।
9. तिरंगा
हाथ तिरंगा ले चले, जिसको देखो आज।
कम कीमत जो आँकते, झूठा करते नाज।।
10. आन
भारत माँ की छवि बसी, मनमोहक मुस्कान।
बेटों का कर्तव्य है, करें सभी सम्मान।।
11. मानस
मानस की चैपाइयाँ, सामंजस्य प्रतीक।
जीवन का आधार हैं, स्वप्न सजें रमणीक।।
12. फूल
बासंती ऋतु का हुआ, स्वागत फिर अनुकूल।
बाग-बगीचों में खिलें, सेवंती के फूल।।
13. सूरज
सूरज ने पहुँचा दिया, जाड़े को संदेश।
ऋतु परिवर्तन हो रहा, होगा ग्रीष्म प्रवेश।।
14. उन्वान
देश प्रेम उन्वान में, डूबा भारत देश।
संकट के बादल छटे, मिट जाएँगे क्लेश।।
15. पहचान
संकट में विजयी हुआ, बढ़ा जगत में मान।
कोविड की वैक्सीन से, भारत की पहचान।।
16. गौरव
भारत का गौरव बना, संविधान-गणतंत्र।
सभी प्रतीक्षा कर रहे, निखरेगा जब यंत्र।।
17. माटी
राम, कृष्ण, गौतम, शिवा, महावीर की शान।
माटी अपने देश की, जग में हुई महान।।
18. अस्मिता
देश-अस्मिता भूलकर, खुद को कहें महान।
दुश्मन हैं वे देश के, सावधान -पहचान।।
19. जागरण
बजे जागरण शंख अब, मानव हित हों काम।
सजग रहे जनता सभी, उन्न्ति हो अविराम।।
20. संकीर्ण
जीवन जीना हो सुखद, करें उचित व्यवहार।
सोच अगर संकीर्ण तब, दिल भी ढोता भार।।
21. पुरुषार्थ
पुरुषार्थ में ही छिपा, उन्नति का पैगाम।
करो अनोखा काम कुछ, होगा रोशन नाम।।
22. चुनाव
भला-बुरा रख सामने, करते सभी चुनाव।
अपना बुरा न चाहता, सबका यही स्वभाव।।
23. शोषण
शोषक, शोषण ही करे, कुत्ते जैसी पूँछ।
कभी न सीधी हो सकी, खूब उमेठी मूँछ।।
24. जनता
जनता की फरियाद जो, करते नजरंदाज।
पाँच साल के बाद फिर, छिन जाता है ताज।।
25. सौरभ
बिखराते सौरभ सदा, चढ़ा सुमन प्रभु शीश।
भक्तों की हर कामना, करें द्वारकाधीश।।
26. अदालत
काम अदालत का यही, मिले सभी को न्याय।
शोषित-शोषण के सभी, हट जाएँ अध्याय।।
27. संविधान
न्यायालय हर देश के, बने हुए हैं प्राण।
संविधान रक्षक यही, शोषित-जन के त्राण।।
28. किसान
अनपढ़ रहें किसान जब, शोषण की भरमार।
ठग दलाल ठगते सदा, संरक्षण दरकार।।
29. शूल
कल-कल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।
तन-मन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।
30. सरकार
लोकतंत्र में वोट से, बनती हैं सरकार।
संविधान देता सदा, जन प्रतिनिधि अधिकार।।
31. पूँजीपति
पूँजीपति भी देश के, बने उन्नयन - प्राण।
उचित नियंत्रण जब रहे, तभी देश कल्याण।।
32. राजनीति
राजनीति देने लगी, अब तो गहरे धाव।
स्वस्थ नजरिया हो अगर, लगे किनारे नाव।।
33. दल-दल
कितने दल दल-दल बने, चलें स्वार्थ की लीक।
अंतर्मन कब झाँकते, मौन मलिन सब ठीक।।
34. युद्ध
द्वंद्व-युद्ध है चल रहा, सही बुरे के बीच।
साम,दाम अरु दंड बिच, जनता बनी दधीच।।
35. अलबेली
दुनिया अलबेली बनी, जिसमें छल, बल, खार।
हँसकर जीवन को जिएँ, सुख-दुख की भरमार।।
36. लावण्य
नारी के लावण्य पर, मुग्ध रहें सब लोग।
मन दर्पण में झाँकिए, मिलें सुखों के भोग।।
37. ललाम
मोहक छवि श्री राम की, द्वापर युग घनश्याम।
दर्शन पाकर धन्य सब, मंजुल ललित ललाम।।
38. छलिया
काली करतूतें बढ़ीं, जागो हे ! भगवान ।
छलिया बनकर छल रहे, कुछ ढोंगी इंसान।।
39. पूँछ
पूँछ रही हनुमान की, राक्षस करें बवाल।
रावण की लंका जली, आसन रचा कमाल।।
40. तुलसी
भारत का अनमोल है, तुलसी-मानस ग्रंथ।
मानव उस पथ पर चले, कभी न भटके पंथ।।
41. पिंजरा
पिंजरा में पंछी जिए, अपने पंख समेट।
कैदी-जीवन काटता, स्वजनों से कब भेंट।।
42. श्रेय
पवनपुत्र हनुमान ने, बड़े किए हर काम।
अभिमानी का दमन कर, श्रेय दिया श्रीराम।।
43. जाड़ा
जाड़ा लगे गरीब को, थर-थर काँपें अंग।
गुदड़ी में सोया रहे, या अलाव के संग।।
44. अवसान
हुआ तिमिर अवसान है, आया नया प्रभात।
सुख के दिन अब आ गए, बीती काली रात।।
45. मानसरोवर
मानसरोवर में बसे, शिव को आया रास।
राजहंस विचरण करें, परमानंद निवास।।
46. क्षितिज
विश्व क्षितिज में छा गए, संत विवेकानंद।
तीस वर्ष की आयु में, भारत का आनंद।।
47. प्रयाण
जग से पूर्व-प्रयाण पर, करें बड़ा ही काम।
यही काम अमरत्वता, बनवा देता धाम।।
48. विक्षिप्त
दिल में लगती चोट जब, सहना हो दुश्वार।
घायल मन विक्षिप्त हो, रोता बारम्बार।।
49. चमत्कार
चमत्कार को देखकर, मानव होते दंग।
आस्था अरु विश्वास का, उन पर चढ़ता रंग।।
50. सदगति
सद्गति है सत्कर्म से, करें नेक ही काम।
लोक और परलोक में, हो जाता तब नाम।।
51. मोह
लोभ, मोह, आसक्ति सब, मानव के हैं दोष।
इनसे बचकर ही चलें, कभी न छाता रोष।।
52. अमंगल
कभी अमंगल मत करें, रखिए अच्छी सोच।
मंगल ही मंगल रहे, नहीं रहे संकोच।।
53. कुमार्ग
सही मार्ग पर ही चलें, मंजिल पहुंँचें आप।
जो चल पड़े कुमार्ग में, झेल रहे अभिशाप।।
54. प्रतिष्ठा
बढ़े प्रतिष्ठा देश की, मिलकर करें प्रयास।
मतभेदों को भूलकर, फसल उगाएँ खास।।
55. उत्कर्ष
जीवन में संघर्ष से, होता है उत्कर्ष।
कार्यसिध्दि मिलती सहज, मन में होता हर्ष।।
56. संज्ञान
मोदी के संज्ञान में, हर संकट का भान।
निराकरण में हैं जुटे, बनी विश्व पहचान।।
57. विश्राम
कर्मठ मानव के लिए, दिन हो चाहे रात।
कभी नहीं विश्राम है, जग में करें प्रभात।।
58. मर्यादा
मर्यादा में सब रहें, यही मंत्र है नेक।
लक्ष्मण-रेखा है खिंची, संकट हटें अनेक।।
59. वरदान
कोरोना के काल में, वैकसीन वरदान ।
भारत में निर्माण से, बढ़ी जगत में शान।।
60. संरचना
संरचना परिवार की, मिलजुल रहना साथ।
सुख-दुख आपस में बटें, कुशल चितेरे हाथ।।
61. भरोसा
करें भरोसा ईश पर, कर्म करें नित आप।
सभी कार्य होंगे सफल, मिट जाएँ संताप।।
62. उमंग
मन में भरें उमंग को, जीवन है सौगात।
छोटी सी है जिंदगी, व्यर्थ फिरे बौरात।।
63. जिज्ञासा
जिज्ञासा मन में रखें, बने सभी गुणवान।
पीढ़ी दर पीढ़ी चले, इससे बढ़ता ज्ञान।।
64. स्वाद
प्रभु ने जिह्वा को दिया, जिससे मिलता स्वाद।
तृप्ति बोध होता सदा, ब्रह्म ग्रंथि का नाद।।
65. हर्षित
हर्षित वातावरण से, हट जाता मन-भार।
जीवन खुशियों से भरा,तन-मन हो गुलजार।।
66. समास
दो शब्दों में अर्थ को, व्यापक करे समास।
सुनते ही हम जल्द से, सहज करें आभास।।
67. सोच
सोच समझकर बोलते, ज्ञानी अपनी बात।
अज्ञानी हर बात पर, खाते रहते मात।।
68. सेवा
सेवा फल मीठा रहे, प्रभु देते हैं साथ।
दीन दुखी की तृप्ति से, ऊँचा होता माथ।।
69. समय
समय बड़ा बलवान है, पल में देता मात।
किसकी किस्मत कब फिरे, किस घर करे प्रभात।।
70. सुरसा
महँगाई सुरसा हुई, मचा रखा उत्पात।
बलशाली हनुमत कृपा, निश्चित देंगे मात।।
71. घनश्याम
श्याम देह घनश्याम की, गोरी राधा संग।
दोनों में बस प्रेम का, छाया चोखा रंग।।
72. उपालम्भ (उलाहना)
उपालम्भ सुनते सदा, मातु यशोदा, नंद।
दधि माखन चोरी करे, करे सभी से द्वंद्व।।
73. संदेश
देश-प्रेम संदेश का, सभी करें सम्मान।
इसमें हित सबका निहित, बढ़ती जग में शान।।
74. गोपी
ग्वाल-बाल, गोपी रहे, द्वापर में ब्रज धाम।
बाल-सखा उनके रहे, जगत पिता घनश्याम।।
75. बाँसुरी
मुरलीधर की बाँसुरी, छेड़े मधुरिम तान।
तन-मन सम्मोहित करे, करती कष्ट निदान।।
76. अंतःकरण
मानव का अंतःकरण, करता सदा सचेत।
ज्ञानी जन सुनते सभी, रक्षित करें निकेत।।
77. शेर
सीमा पर चैकस रहें, प्रहरी दिन हो रात।
भारत मांँ के शेर हैं, दुश्मन को दें मात।।
78. सौजन्य
जब मिलते सौजन्य से, बढ़ जाता अनुराग।
मिले हाथ से हाथ जब, मतभेदों को त्याग।।
79. चित्र
चित्र उकेरो हृदय में, प्रभु का कर गुणगान।
वही सदा रक्षा करें, वही करें कल्यान।।
80. संगम
सेवा कर मांँ-बाप की, कुछ हो जाते धन्य।
संगम में डुबकी लगा, लूट रहे कुछ पुण्य।।
81. कलियुग
कलियुग के इस दौर में, कब होती नित भोर।
छल प्रपंच के जोर से, घिरा तमस चहुँ ओर।।
82. निराहार
निराहार जप-तप करें, इसका बड़ा महत्त्व।
निर्मल तन-मन से सधें, पूजन का अभिसत्त्व।।
83. पारस
नैतिकता जबसे गुमी, लोग बजाते बीन।
पारस मणि है खो गयी, कैसे बदले सीन।।
84. वैतरणी
तन-मन में शुचिता रहे, कलियुग का विश्वास।
यह वैतरणी पार हो, जब तक तन में श्वांस।।
85. बियाबान
जीव-जंतु बेहाल हैं, ढूँढ़ें सरिता-कूप।
बियाबान जंगल हुए, प्रकृति बदलती रूप।।
86. हलधर
हलधर श्री बलराम ने, देख-कृष्ण की ओर।
अब फिर से पकड़ा गया, क्यों रे माखन चोर।।
87. आंदोलन
आंदोलन कर सड़क को, बाधित करते लोग।
पथिक सभी अब कोसते, फैला कैसा रोग।।
88. उद्योग
दौर चला षड्यंत्र का, टाँग खींचते लोग।
ईश्वर खड़ा निहारता, कैसा यह उद्योग।।
89. अनमोल
देश, प्रेम अरु एकता, तीनों हैं अनमोल।
राष्ट्र सुरक्षा के लिए, इससे बड़ा न बोल।।
90. हिमालय
सदियों से अविचल खड़ा, श्वेत-कांत चितचोर।
तुंग हिमालय देखता, दुश्मन की ही ओर।।
91. उद्योग
मानव ने उद्योग कर, किए अनोखे काम।
यंत्रों का निर्माण कर, पाए नये मुकाम।।
92. परिधान
तन सजता परिधान से, बसे सभी की आंँख।
बगिया जन मन मोहती, लदे फूल से शाख।।
93. परिणाम
लोभ, मोह, विद्वेष छल, बुरे रहें परिणाम।
पास न इनके जाइए, हृदय बसेंगे राम।।
94. लक्ष्य
लक्ष्य साध कर जो बढ़े, मिले सफलता नेक।
दिशा हीनता में फंँसा, भटके राह अनेक।।
95. अनाथ
मात-पिता का साथ ही, आशीषों के द्वार।
विदा हुए जग से तभी, पड़े उठाना भार।।
96. देव
त्यागें जो माता-पिता, देव न देते साथ।
कुपित न इनको कीजिए, होगे नहीं अनाथ।।
97. अगहन
अगहन ने दस्तक दिया, हुआ शीत का जोर।
सूरज की किरणें लगें, मनभावन, चितचोर।।
98. आकाश
श्रम मानव का शौर्य है, खुला हुआ आकाश।
जितने पर फैला सको, उतना रहे प्रकाश ।।
99. अलाव
ठिठुरन कितनी भी रहे, अंदर जले अलाव।
आशाओं की ताप से, भरते जल्दी घाव।।
100. सागर
सागर से भयभीत सब, डगमग चलती नाव।
पर मानव का हौसला, भर देता हर घाव।।
101. कविता
कवि ने दिया समाज को, नव-चिंतन उपहार।
भावपूर्ण कविता लिखी, मन-दर्पण उद्गार।।
102. कामिनी
नव पल्लव, सी कामिनी, नारी की है देह।
जीवन की मधु यामिनी, प्रेम-प्रीत का गेह।।
103. खंजन
खंजन नयन चकोर है, चितवन करे धमाल।
रात चंद्रमा को तके, उस पर हुआ निहाल।।
104. कोकिला
कुहू-कुहू कर कोकिला, गाती मंगल गान।
स्वर लहरी में डूब कर, सबका खींचे ध्यान।।
105. सदाचार
सदाचार का पाठ ही, देता जग संदेश।
चरित्रवान जीवन जिएँ, सबके मिटते क्लेश।।
106. संकल्प
देश-भक्ति संकल्प लें, भारत के सब लोग।
उन्नति के घर में पहुँच, खाएँ छप्पन भोग।।
107. शुभकामना
संतति को शुभकामना, रहें सभी खुशहाल।
हर संकट टल जाऐंगे, बीतेगा दुष्काल।।
108. छाँव
मात-पिता की छांँव में, चहुँदिश था उल्लास।
बिछुड़ गए हमसे तभी, हम हैं बड़े उदास।।
109. बसंत
ऋतु बसंत फिर आ रही, लेकर के सौगात।
होली की फिर मस्तियांँ, रंगों की बरसात।।
110. मंत्र
मंत्र सफलता का यही, कर्म साधना योग।
विमुख रहे जो कर्म से, मांँगे मिले न भोग।।
111. सुरभि
प्रेम-सुरभि जग में भली, घर-घर बिखरे नेह।
अहंकार को त्यागिए, नश्वर है यह देह।।
112. कलेवर
वैक्सीन अब मिल गई, बीती काली रात।
नए कलेवर में जिएँ, होगा नया प्रभात।।
113. सविता
सविता ने झाँका विहँस, बिखराई नव भोर।
जड़-चेतन सब जग उठे, मन में नाचे मोर।।
114. अंतरिक्ष
अंतरिक्ष में छा गया, भारत का परिवेश।
कर्मठता ने दे दिया, जग को शुभ-संदेश।।
115. परिवेश
विश्व गुरू भारत बना, जग को है संदेश।
खुशियों की झोली भरें, तब बदले परिवेश।।
116. गरीबी
देख गरीबी रो पड़े, गोकुल के घनश्याम।
मित्र सुदामा को दिया, नगर सुदामा-धाम।।
117. दंभ
नेताओं में दंभ का, बढ़ा अनोखा रोग।
विनय भाव भूले सभी, सत्ता मद का योग।।
118. मुद्रा
मुद्रा के भंडार से, देश बने संपन्न।
कर्मशीलता से सभी, रहते नहीं विपन्न।।
119. गीता
गीता का उपदेश है, रखें कर्म पर ध्यान।
फल की इच्छा छोड़ दें, यही बड़ा है ज्ञान।।
120. पुनीत
मास्क लगाकर ही रहें, सबके लिए पुनीत।
कोरोना के काल में, क्यों होते भयभीत।।
121. माँ
माँ ममता की छाँव है, माँ का रूप अनूप।
संतानों को पालती, रंक रहे या भूप।।
122. ममता
मांँ की ममता है बड़ी, जिसका कभी न मोल।
सुख सुविधा कब मांँगती, चाहे मीठे बोल।।
123. शिक्षा
नैतिक शिक्षा है बड़ी, इस जग में अनमोल।
जीवन को सुखमय रखे, मार्ग प्रगति के खोल।।
124. सूर्याेदय
सूर्याेदय की रश्मियाँ, भर देतीं उत्साह।
सभी कर्म की राह में, चलते बेपरवाह।।
125. निर्माण
शिक्षा का उद्देश्य ही, मूल्यों का निर्माण।
देश प्रगति पथ पर बढ़े, हो सबका कल्याण।।
126. अनदेखी
अनदेखी जो कर रहे, जनता की फरियाद।
उनसे सत्ता छीन कर, कर देती बर्बाद।।
127. तिमिर
ज्ञानवान अज्ञान का, करता है उपचार।
दूर भगाता तिमिर को, फैलाता उजियार।।
128. ज्योतिर्मान
दीवाली की रात में, दीपक-ज्योतिर्मान।
रात अमावस की छटे, दीपक का अभियान।।
129. सूरज
सूरज नित ही ऊगता, देता है संदेश।
कर्म करें नित ही सभी, मिट जाएँगे क्लेश।।
130. बिजली
वैज्ञानिक इस सदी में, बिजली का उपयोग।
इसके बिन जीवन कठिन, करें सभी उपभोग।।
131. प्रमाद
नेताओं को है लगा, बस सत्ता का स्वाद।
कुर्सी पाते ही चढ़े, उनको गजब प्रमाद।।
132. रंक
राजा, रंक, फकीर का, लिखा गया है भाग्य।
जितने दिन जीवन मिले, यह उसका सौभाग्य।।
133. विचित्र
है विचित्र जनतंत्र में, जनहित का विश्वास।
भ्रष्टाचारी लिख रहे, एक नया इतिहास।।
134. शालीन
रावण के वंशज बढ़े, कैसी होगी भोर।
राम खड़े शालीन हैं, तिमिर बढ़ा चहुँ ओर।।
135. खेल
खेल रहा दानव अभी, लुका छुपी का खेल।
मानव पर संकट बढ़ा, कर ले ईश्वर मेल।।
136. दीपक
दीपक का संदेश है, दिल में भरें उजास।
घोर तिमिर का नाश हो, कोई हो न उदास।।
137. आलोक
सूरज का आलोक ही, भर देता संदेश।
कर्म सभी अपना करें, तो बदले परिवेश।।
138. उजास
घोर अमावस रात में, दीपक करे उजास।
जीवन का तम दूरकर, भरता है उल्लास।।
139. सौहार्द
मानवता का भाव ही, मानव पर उपकार।
मानव में सौहार्द हो, स्नेह प्रेम सत्कार।।
140. दीवाली
रामलला मंदिर बना, हर्षित हुआ समाज।
हर घर दीवाली मने, सुख का हो अब राज।।
141. सूर्य
सारे जग में सूर्य ही, निर्भय करे प्रकाश।
भोर करे नित धरा में, फिर निखरे आकाश।।
142. देहरी
बीच देहरी बैठकर, किया पाप का अंत।
बचा भक्त प्रहलाद को, बना दिया भगवंत।।
143. अटारी
बड़ी अटारी पर खड़ा, नेताओं का दम्भ।
जनता बेबस है खड़ी, आश्वासन है खम्भ।।
144. गंगा घाट
डुबकी गंगा घाट की, क्या कर देगी माफ।
मुख दमके इंसान का, कर्म करे जो साफ।।
145. पर्ण कुटी
पर्ण कुटी में शांति है, जप ले सीताराम।
महलों में रहकर कभी, नहीं मिले आराम।।
146. जुलाहा
तन पर कपड़े पहनना, गया जुलाहा भूल।
उसने धागे से बुना, अपने दिल का शूल।।
147. शांत
शांत सौम्य रघुकुल तिलक,त्रेता के श्री राम।
आदर्शों के प्राणधन, मर्यादा के धाम।।
148. वेदना
छद्म वेष धरकर करें, देश-प्रेम की बात।
मन में होती वेदना, राष्ट्र-कुठारा घात।।
149. कारावास
द्वापर युग अवतार ले, जन्में कारावास।
दुष्टों का संहार कर, बना गए इतिहास।।
150. बुद्ध
राजपाट सब त्याग कर, बन वैरागी शुद्ध।
तांडव-हिंसा देखकर, बन गए गौतम बुद्ध।।
151. उमंग
फागुन की रँगरेलियाँ, मन में भरे उमंग।
ले ढपली फिर हाथ में, सभी बजावें चंग।।
152. बाल्मीकि
बालमीकि भटके बहुत, तब उपजा है ज्ञान।
रामायण सदग्रंथ रच, बनी सुखद पहचान।।
153. मनुज
देव मनुज दानव सभी, ऋषि कश्यप संतान।
संस्कार के बीज से, अलग- अलग पहचान।।
154. घातें
कितनी घातें दे रहे, शत्रु-पड़ोसी देश।
छद्म रूप धर कर सदा, पहुँचाते हैं क्लेश।।
155. लिप्सा
राम गए वनवास को, पद लिप्सा को छोड़।
जन मानस में बस गए, आया तब शुभ मोड़।।
156. आयु
जीने की यह लालसा, इसका कभी न अंत।
खत्म हुई जब आयु तो, कोई बचा न संत।।
157. मोर
मोर बना जब बावला, देख प्रकृति का रूप।
झूम-झूम कर नाचता, लगता बड़ा अनूप।।
158. परिवार
भारत में परिवार का, सदियों का इतिहास।
रिश्ते-नातों में बसा, जीवन का मधुमास।।
159. संसार
यह संसार विचित्र है, भिन्न-भिन्न हैं भोग।
रहन-सहन, जीवन-मरण, भाँति-भांँति के लोग।।
160. दृष्टि
सबकी अपनी दृष्टि है, अपना सुख संसार।
जीवन जीते हैं सभी, जीने से ही प्यार।।
161. अंतरंग
सभी पड़ौसी से रखें, अंतरंग संबंध।
शांति और सदभाव से, बहती सुखद सुगंध।।
162. अभिव्यक्ति
प्रजातंत्र अभिव्यक्ति का, चला अनोखा दौर।
चाहे जो कुछ बोलना, मचा गजब का शोर।
163. वार्ता
वार्ता से ही सुलझते, समस्याओं के हल।
ठुकराएँ प्रस्ताव जब, मिले कहाँ से फल।।
164. हल्दी
बसंत पंचमी पर्व पर, फैली सरसों पीत।
हल्दी कुमकम को लगा, गाए सबने गीत।।
165. अर्पण
कविताएँ अर्पण सभी, सरस्वती के नाम।
ऐसी बुद्धि, विवेक दें, करें जगत हित काम।।
166. शैल पुत्री
प्रथम दिवस नवरात्रि का, सजे सती दरबार।
मातु शैलपुत्री बनीं, भोले-शिव का हार।।
167. श्रद्धा
पुण्य पर्व नवरात्रि का, श्रद्धा-जप का योग।
माँ की पूजा-अर्चना, भग जाते हैं रोग।।
168. नववर्ष
संवत्सर नववर्ष यह, खुशियों का आगाज।
हिन्दू संस्कृति का सुभग, नव-प्रभात शुभकाज।।
169. कोरोना
कोरोना को रोकना, हम सब का कत्र्तव्य।
मानवता रक्षित रहे, मंगलकारी हव्य।।
170. भारत माता
भारत माता देखती, उन पूतों की ओर।
जिनसे भारत देश में, खिले सुनहरी भोर।।
171. मित्र
मित्र वही है आपका, जो बनता निस्वार्थ।
दोष देख कर टोंकता, बन जाता है पार्थ।।
172. धर्म
धर्म कभी करता नहीं, भेद भाव अपमान।
पाखंडी खुद रूप धर, बन जाते भगवान।।
173. दर्पण
दर्पण जब हो सामने, करता सच उजियार।
झूठ नहीं वह बोलता, बदलो रूप हजार ।।
174. परिवार
टूट रही परिवार से, मात-पिता की डोर।
वृद्धाश्रम में रख रहे, नवयुग की यह भोर।।
175. शहीद
जो शहीद हो गए हैं, सीमाओं पर वीर।
हम सबका कत्र्तव्य है, बदलें घर-तकदीर।।
176. रक्तबीज
सूक्ष्म जीव का वायरस, रक्तबीज धर रूप।
कलयुग का दानव यही, डरते मानव-भूप।।
177. भारत
पूज्यनीय भारत रहा, देवों का यह धाम।
राम कृष्ण गौतम यहाँ, महावीर से नाम।।
178. भारतवंशी
देश-विदेशों में बसे, भारतवंशी लोग।
हृदय सभी का मोहते, करते सब सहयोग।।
179. विश्व
विश्व पटल पर छा गई, हिंदी देखो आज।
मोदी जी ने रख दिया, भारत के सिर ताज।।
180. अवसर
प्रभु देता अवसर सदा, रखिए इसका ध्यान।
चूक गए तो फिर नहीं, मिल पाता सम्मान।।
181. संकट
संकट का जब दौर हो, लें विवेक से काम।
घबराएँ बिल्कुल नहीं, करें काम निष्काम।।
182. धैर्य
कार्य कठिन होते नहीं, जप लें प्रभु का नाम।
संकट हो जब आप पर, करें धैर्य रख काम।।
183. गेह
गेह सभी हैं चाहते, जीव जन्तु अरु लोग।
जहाँ सदा मिलता रहे, स्वजनों का सहयोग।।
184. मातृभूमि
मातृ भूमि की चाहना, मानव मन का भाव।
जो इसके विपरीत हैं, करते वही छलाव।।
185. निदान
संकट हो जब देश में, मिल-जुल करें निदान।
हों सकुशल मानव सभी, राह तभी आसान।।
186. अनुग्रह
हुआ अनुग्रह राम का, पूर्ण हो रहे काज।
विश्व पटल पर छा गया, भारतवंशी राज।।
187. कत्र्तव्य
शासन का कत्र्तव्य है, हों विकास के काम।
देश हितों को घ्यान रख, मिले सुयश परिणाम।।
188. दस्यु
दस्यु समस्या अब नहीं, उसने बदला रूप।
अब गुंडों के वेश में, कुछ दिखते प्रतिरूप।।
189. भूकंप
जबलपूर भूकंप से, काँप चुका हर बार।
आज तलक भूले नहीं, उजड़े थे घर द्वार।।
190. कुटिया
कुटिया एक गरीब की, होती महल समान।
शाम ढले विश्राम कर, भोर-हुए बलवान।।
191. चैपाल
गाँवों की चैपाल में, जमता जब रस रंग।
झूम-झूम कर नाचते, हो जाते सब दंग।।
192. नवतपा
जेठ माह में नवतपा, बरसाता अंगार।
सड़कें सब वीरान सी, घर तब कारागार।।
193. पीर
मजदूरों की पीर को, पढ़ न सकी सरकार।
पैदल ही वे चल पड़े, स्वजनों की दरकार।।
194. साकेत
रामजन्म की आस्था, जन्मभूमि साकेत।
सबकी है यह चाहना, सुंदर बने निकेत।।
195. वाटिका
पुष्प वाटिका जनक की, बनी प्रेम की धाम।
जहाँ नेह की डोर से, बँधे स्वयं श्री राम।।
196. सरस
सरस सरल कविता लिखें, मिले सभी की दाद।
क्लिष्ट शब्द उसमें रखें, किसे रहे फिर याद।।
197. अनुदित
भाषा-भावों से परे, अनुदित हैं श्री राम।
मन मंदिर में जब रहें,बने हृदय सुख-धाम।।
198. बाँसुरी
द्वापर युग के कृष्ण की, बजे बाँसुरी आज।
हर मन की चाहत यही, सजे वही सुर साज।।
199. बेकल
अपने घर में बंद सब, कोरोना का राज।
मानव-मन बेकल हुआ, संकट छाया आज।।
200. समीर
वृक्ष सदा देते हवा, बहता मंद समीर।
जंगल में हर जीव को, मिलता निर्मल नीर।।
201. नीर
हरी-भरी वन सम्पदा, सुरभित बहे समीर।
जल स्तर घटता नहीं, निर्मल मिलता नीर।।
202. सागौन
धरा-अधर उंँगली धरे, कटा हरा सागौन।
निर्मम हत्या हो रही, सरकारें हैं मौन।।
203. संदेश
भारत का संदेश अब, गढ़ना नया समाज।
देश तरक्की पर बढ़े, होगा सिर पर ताज।।
204. प्राणवायु
प्राणवायु मिलती रहे, हो नित सुखद प्रभात।
जीवन में तब सजेगी, खुशियों की बारात।।
205. सर्जक
सर्जक बने समाज यह, गुणीजनों की खान।
हर विकास के पथ गढ़ें, सृजनशील गुणवान।।
206. अवगाहन
हर मन अवगाहन करे, मानवता की सोच।
दुष्ट भाव मन से भगें, कभी न आए मोच।।
207. अरिहंत
मन का अरि-मर्दन करे, कहलाता अरिहंत।
सच्चा मानव तब वही, बन जाता भगवंत।।
208. वैतरणी
वैतरणी के पार की, सबकी होती चाह।
सही राह पर ही चलें, सरल सहज है राह।।
209. सरोज
मुस्काता है कीच से, उठकर फूल सरोज।
लक्ष्मी को भाता वही, भक्त चढ़ाते रोज।।
210. जलधर
जलधर, नभचर, चर-अचर, होती सब में जान।
जन्म-मरण के खेल में, तजना पड़ते प्रान।।
211. संवाद
रिश्तों में मधु-चासनी, रहे सदा भरपूर।
बंद हुए संवाद जब, अपनों से फिर दूर।।
212. पेट
पेट कर्म की प्रेरणा, इसका बड़ा महत्त्व।
सब करते हैं साधना, यह जीवन का तत्त्व।।
213. पीठ
पेट पीठ से जब मिले, भूख करे अल्सेट।
दोनों में दूरी बढ़े, तृप्त रहे तब पेट।।
214. आपदा
करें प्रबंधन आपदा, संकट से हो मुक्ति।
बड़े बुजुर्गों से सदा, मिली हमें यह युक्ति।।
215. आशाएँ
आशाएंँ मन में जगें, फैलातीं उजियार।
विजयी होते हैं वही, रचता सुख संसार।।
216. उजियार
ज्ञानी अपने ज्ञान से, बिखराता उजियार।
अज्ञानी जग का सदा, करता बंटाढार।।
217. नेपथ्य
गूँज रही नेपथ्य से, खतरे की आवाज।
घर में ही अब बैठकर, सुख का पहनें ताज।।
218. प्रशस्ति
सद्कर्मों का मान हो, स्वागत मिले प्रशस्ति।
बदले मानव आचरण, यही देश की शक्ति।।
219. चंचलता
चंचलता मन में बसे, उस पर लगे लगाम।
जिसने वश में कर लिया, होता जग में नाम।।
220. नैतिकता
मानव ने यदि पढ़ा हो, नैतिकता का पाठ।
दिशा-हीनता रोकती, बढ़ जाते तब ठाठ।।
221. संस्कारों
नैतिकता की धूप से, नींव करें मजबूत।
सदाचार की राह से, भग जाएँगे भूत।।
222. मादकता
रीझ गया मानव अगर, मादकता की ओर।
जीवन में भटका वही, मुश्किल होती भोर।।
223. यौवन
यौवन में रहता सदा, मस्ती से गठजोड़।
प्रौढ़ अवस्था में तभी, आ जाता नव मोड़।।
224. मौलिकता
मौलिकता कृतिकार को, दिलवाती पहचान।
लोगों के दिल पहुँच कर, पाता वह सम्मान।।
225. लोलुपता
धन की लोलुपता बढ़ी, जग में चारों ओर।
नैतिकता को छोड़कर, बनें सुसज्जन चोर।।
226. आलोक
सत्त्कर्मों की राह में, मिलता कभी न शोक।
दिव्य शक्ति का आगमन, बिखराता आलोक।।
227. भागीरथी
भागीरथी प्रयास कर, भारत बना महान।
सभी समस्या खत्म कर, जीता सीना तान।।
228. पाखंडी
पाखंडी धरने लगे, साधु संत का रूप।
पोल खुली जब सामने, मुखड़ा दिखा कुरूप।।
229. वर्तिका
जली वर्तिका दीप की, बिखरा गया उजास।
तिमिर भगा जग से सभी, जगी हृदय में आस।।
230. कुंजी
श्रम की कुंजी है सही, खुलें प्रगति के द्वार।
कभी न जीवन में मिले, कर्मवीर को हार।।
231. परिमल
परिमल की बिखरे महक, हो जाता शृंगार।
प्रेम बसे मन आँगना, खुलें हृदय के द्वार।।
232. उपवास
रोटी नहीं नसीब में, पेट करे उपवास।
हर गरीब का बस यही, छोटा सा इतिहास।।
233. फसल
फसल पके जब खेत में, ताके-खड़ा किसान।
चिंता उसकी है यही, कटे- रखें खलिहान।।
234. कंचन
कंचन दाने देखकर, खुशी कृषक परिवार।
उचित दाम वह पा सके, जीवन बेड़ा पार।।
235. खेत
लहराती हर खेत में, उम्मीदों की आस।
स्वर्णमयी बालें हुईं, खुशियाँ आईं पास।।
236. माटी
माटी जग अनमोल है, वही कराती मेल।
माटी से उपजे फसल, माटी का ही खेल।।
237. उदास
लिप्साओं के जाल में, मानव हुआ उदास।
उच्च विचारों से बढ़े, अन्तस में विश्वास।।
238. लिप्सा
धन की लिप्सा बढ़ गई, भौतिकता की प्यास।
मानव का जीवन बना, यही गले की फाँस।।
239. वैभव
धन वैभव औ सम्पदा, नहीं रहा कुछ मोल।
जीवन ही इंसान का, होता है अनमोल।।
240. संकीर्ण
दृष्टि अगर संकीर्ण है, भोगे मानव कष्ट।
निज स्वार्थों में लिप्तता, जीवन होता भ्रष्ट।।
241. पुरुषार्थ
जीवन में पुरुषार्थ का, होता बड़ा महत्त्व।
मंजिल पाने के लिए, उचित यही है तत्त्व।।
242. चुनाव
मनुज यदि हर मोड़ पर, करते सही चुनाव।
भले-बुरे को भाँप ले, कभी न लगता घाव।।
243. शोषण
शोषण-शोषक हैं बुरे, दोनों बड़े कलंक ।
मिलकर देश समाज को, करते सदा निरंक।।
244. चंद्रमौलि
चंद्रमौलि संकट-हरण, सावन भादों माह ।
पूजन अर्चन से सदा, मिलता है उत्साह ।।
245. विष
चंद्रमौलि विष पी गए, जग की हर ली पीर।
जटा-जूट से है बहा, पाप मोचनी नीर।।
246. फुहार
मेघों का शुभ आगमन, जल की पड़े फुहार।
जड़-चेतन खुश हो उठे, लो आ गई बहार।।
247. परिमल
परिमल बिखरे बाग में, भौरों का गुंजार ।
मानव को हर्षित करे, खुशियों का संसार ।।
248. तुलसी
तुलसी का साहित्य है, सद्भावों का ग्रंथ।
हिंदु संस्कृति का यही, निर्मल पावन पंथ ।।
249. रश्मियाँ
सूर्य देव की रश्मियाँ, करतीं हैं नित भोर।
तमस हरे इस जगत का,हो प्रकाश चहुँ ओर।।
250. निनाद
राष्ट्र धर्म सबसे बड़ा, मत हो व्यर्थ विवाद।
सबका स्वर अब एक हो, गूंँजे यही निनाद।।
251. कुचक्र
पाक-चीन-नेपाल का, भू-विस्तार कुचक्र।
भारत की सरकार का, चला सुदर्शन चक्र।।
252. छल
छल-विद्या में निपुण हैं, राजनीति के लोग।
जनसेवक खुद को कहें, खाते छप्पन भोग।।
253. सौरभ
सौरभ सत्-साहित्य का, बिखरे चारों ओर।
पढ़ता-लिखता जो सदा, उसके जीवन भोर।।
254. फूल
फूल खिलें जब बाग में, महक उठे मकरंद।
मधुप गान करने लगें, कविगण लिखते छंद।।
255. सूरज
भोर हुई सूरज उगा, फैला गया उजास।
कर्म-पथिक आगे चलें, बढ़ जाता विश्वास।।
256. वैभव
भारत का वैभव रहा, शिल्प कला का ज्ञान।
एलोरा की गुफा हो, खजुराहो की शान।।
257. निपुण
हस्त शिल्प प्रस्तर कला, निपुण रहे हैं लोग।
मीनाक्षी तंजावरू, कर्म भक्ति अरु भोग।।
258. विपदा
विपदा की छाई घटा, चीन पाक नेपाल।
सीमा पर प्रहरी खड़े, नहीं झुकेगा भाल।।
259. पक्षपात
पक्षपात की नीतियाँ, पहुँचाती हैं क्लेष।
सामाजिक परिवेश में, बढ़ जाता विद्वेष।।
260. मायावी
मायावी कुछ शक्तियांँ, घृणित भ्रमित हैं जान।
इनसे बचना ही सदा, कर ईश्वर का ध्यान।।
261. आहत
सीमा पर दुश्मन खड़ा, आहत हुए जवान।
घर के ही कुछ भेदिए, घूमें सीना तान।।
262. परिवेश
चीन पड़ोसी दे रहा, सारे जग को क्लेश।
मानवता आहत करे, रोता है परिवेश।।
263. पछुवा
पूरब में पछुआ चली, संस्कृति पर आघात।
संस्कारों पर कर रही, क्षण प्रतिक्षण प्रतिघात।।
264. पड़ोसी
तीन पड़ोसी हो गए, अपने बैरी-देश।
सीमा पर आघात कर, पहुँचाते हैं क्लेश।।
265. विभोर
देख सुदामा मित्र को, मचा महल में शोर।
सुनी कृष्ण ने जब व्यथा, उनके घर में भोर।।
266. दहेज
कभी न हो पाया भला, जिसने लिया दहेज।
श्रम-साध्य ही श्रेष्ठ है, सुख की सजती सेज।।
267. आघात
वाणी में संयम रखें, नहीं करें प्रतिघात।
सबका हित इसमें सधे, कटुता को दें मात।।
268. नारी
देव मनुज दानव सभी, नारी की संतान।
नारी माँ के रूप में, खुद पाती सम्मान।।
269. मिटृटी
जीवन मिट्टी का घड़ा, शीतल जल भंडार।
जिस दिन फूटा, मिल गया, माटी में संसार।।
270. संबंध
जीवन में संबंध हों, प्राणवान गतिशील।
मानवता की राह में, कभी न चुभती कील।।
271. संकल्प
करते हैं संकल्प सब, नहीं करेंगे पाप।
समय गुजरते फिर वही, उसको देते नाप।।
272. चाबी
ताले की चाबी अलग, बुध्दिमान की खोज।
फिर भी दुर्जन खोलकर, चोरी करते रोज।।
273. व्याल
मनुज मनुजता त्याग कर, बना व्याल औ बाघ।
हिंसक पशु ने छोड़ दी, जो थे पहले घाघ ।।
274. पाप
पाप-पुण्य के फेर में, मानवता का लोप।
सज्जन मानव ही सदा, जग का झेलें कोप।।
275. प्रसंग
शुचि प्रसंग श्री राम के, देते हैं संदेश।
जीवन में अनुसरण से, कभी न छाएँ क्लेश।।
276. मानस
मानस अद्भुत ग्रंथ है, शुभ प्रसंग संदेश।
मानव के संकट छटें, प्रगति करे फिर देश।।
277. अनुपम
राम कथा संवाद के, अनुपम सभी प्रसंग।
ज्ञान और वैराग्य का, है रोचक सत्संग।।
278. विभूति
ज्ञान और विज्ञान में, पारंगत जो लोग।
इसकी परम विभूति से, हरता मानव रोग।।
279. झील
नदी बावली झील सब, ईश्वर के वरदान।
इनका संरक्षण करें, मिलता जीवन दान।।
280. आँचल
कष्टों में छलकें सदा, कृपा सिन्धु के नैन।
प्रभु का आँचल जीव को, देता है सुख चैन।।
281. अभिसार
प्रीत-मिलन तन-मन जगे, प्रेम भरा संसार।
ऋतु बसंत का आगमन, प्रियतम से अभिसार।।
282. अनुप्रास
छंदों में अनुप्रास का, करें उचित उपयोग।
अलंकार से जब सजें, तन्मय पढ़ते लोग।।
283. अजेय
साहस दृढ़ता से भरा, बनता वही अजेय।
संकट आने पर सदा, उनको मिलता श्रेय।।
284. अनिकेत
नैतिकता कहती यही, सब को मिले निकेत।
अर्ध-सदी पश्चात भी, भटक रहे अनिकेत।।
285. नवगीत
धरा प्रकृति मौसम हवा, शृंगारित नवगीत।
गीत दिलों में बस रहा, बन जाता मनमीत।।
286. पनघट
गाँवों के पनघट गुमे, मन में है संत्रास।
सुख-दुख की बातें गुमीे, बेमन हुए उदास।।
287. दिनमान
भुवन भास्कर आ गए, जब तक था दिनमान।
अस्ताचल को जब गये, बढ़ा चंद्र का मान।।
288. शिल्प
शिल्प कला के क्षेत्र में, भारत बड़ा महान।
मूर्ति शिल्प की दक्षता, जग जाहिर पहचान।।
289. परिमल {चंदन}
परिमल में लिपटे रहें, विषधर काले सर्प।
खुशबू सदा बिखेरता, कभी न करता दर्प।।
290. देश
महावीर गौतम यहाँ, जग में उनका मान।
देव धरा का देश यह, राम कृष्ण भगवान।।
291. वेश
भारत का परिवेश ही, मानवता का वेश।
कभी नहीं विचलित हुआ, सुखद सुपावन देश।।
292. आवेश
जन्म भूमि खातिर लड़े, त्याग क्रोध आवेश।
पाँच सदी बीतीं तभी, मिला कोर्ट आदेश।।
293. समावेश
समावेश सबको किया, रखा देश ने मान।
जाति, धर्म, मजहब भुला, सबका है सम्मान।।
294. परिवेश
सद्भावों की डोर से, गुथा हुआ परिवेश।
बंधन में है बँध गया, अपना भारत देश।।
295. अनुपम
सत्य, अहिंसा, कर्म का, सुंदर है परिवेश।
सारे जग में छा गया, अनुपम भारत देश।।
296. देह
पंचतत्त्व की देह है, क्षणभंगुर पहचान।
इठलाना इस पर नहीं, जलता है शमशान।।
297. मेह
मेह, क्षितिज में खो गए, नहीं हुई बरसात।
व्याकुल आँखें देखतीं, नहीं मिली सौगात।।
298. नेह
बादल बरसें नेह के, हुआ प्रकृति उपकार।
हरित चूनरी ओढ़कर, ऋतु का है सत्कार।।
299. गेह
संघर्षों के बाद ही, मिला राम को गेह।
जनमानस हर्षित हुआ, कलियुग का है नेह।।
300. अनुवाद
नयनों का अनुवाद कर, लिखते छंद सुजान ।
शृंगारिक कविता रचें, रस का करें बखान।।
301. चंदन
शीतल चंदन धारते, मस्तक पर हर संत।
वाणी के माधुर्य से, दुख का करते अंत।।
302. नदी
नदी सरोवर प्राण हैं, जीवन के आधार।
रखें सुरक्षित हम सभी, तब जीने का सार।।
303. आकाश
सूर्य, चंद्र, तारे सभी, देते सदा प्रकाश।
मानव उनको नाप कर, भ्रमण करे आकाश।।
304. सागर
सागर में नदियाँ मिलें, बदले में सौगात।
उदधि-नीर बादल भरें, करते फिर बरसात।।
305. पेड़
पेड़ काटकर खुश हुए, कुछ मूरख इंसान।
झुलसा गर्मी में तभी, हुआ उसे यह भान।।
306. रेगिस्तान
सूखी नदियाँ ताल सब, दिखते रेगिस्तान।
शोषण मानव ने किया, कैसा है इन्सान।।
307. गुलाब
काँटों में खिलता सदा, मोहक फूल गुलाब।
खुशबू से मन मोहता, लगता वही नवाब।।
308. प्रफुल्लित
हृदय प्रफुल्लित हो अगर, बने काम आसान।
हार कभी मिलती नहीं, झुकता सकल जहान।।
309. कमान
संकट की हर घड़ी में, राह बनी आसान।
सेना को जब से मिली, अंकुशरहित कमान।।
310. क्वाँर
क्वाँर माह नवरात्रि का, नवदुर्गा उपवास।
विजयादशमी का दिवस, हृदय भरे उल्लास।।
311. चकोर
चन्दा और चकोर का, बड़ा अजब संबंध।
इक टक उसे निहारता, कैसा है अनुबंध।।
312. विरोध
बदले चाल, चरित्र सब, राजनीति में आज।
बस विरोध के नाम पर, गूँज रही आवाज।।
313. अभियोग
राजनीति में लग रहे, मनचाहे अभियोग।
दाँव-पेंच में उलझकर, भटक रहे कुछ लोग।।
314. प्रबुद्ध
मानव देश, समाज हित, रहें द्वेष से दूर।
मन प्रबुद्ध होता तभी, फल मिलता भरपूर।।
315. निष्काम
कर्म सदा निष्काम हो, मिलती कभी न हार।
विद्वानों से है सुना, यह गीता का सार।।
316. लगाव
विषय वासना,मोह तज, निश्छल हुआ लगाव।
हरि चरणों में मन लगा, पूजन,भक्ति,जुड़ाव।।
317. कलम
कलम सदा चलती रहे, मन भावन सुविचार।
जहाँ दिखे मानव-अहित, करंे करारा वार।।
318. यामा
यामा को दे चाँदनी, जब उजली सौगात।
देख मुदित प्रेमी सभी, करें दुखों को मात।।
319. अनुराग
पीहर से बेटी गई, लेकर मन अनुराग।
प्रियतम से अठखेलियाँ, खुशियों का नव-भाग।।
320. आमंत्रण
आमंत्रण दिल से मिला, दौड़ पड़े हैं पाँव ।
कंटक पथ को भूलकर, लगे पास ही गाँव।।
321. नलिनी
रूप जलाशय का खिला, नलिनी के जब संग।
दिखती अनुपम छटा तब, प्रकृति उलीचे रंग।।
322. रोटी
रोटी जैसा ही लगे, पृथ्वी का भूगोल।
देश विदेशों में बने, होती है वह गोल।।
323. घाव
मन के घावों का कठिन, होता है उपचार।
तन के भरते घाव सब, वैद्य करे उपकार।।
324. पंछी
मन-पंछी बन बावरा, ऊँची भरे उड़ान।
लौटे पुनः जमीन पर, तब सच्ची पहचान।।
325. प्यास
कुआँ पास आता नहीं, जब लगती है प्यास।
हम जाते नजदीक जब, पूरण होती आस।।
326. पहाड़
सीना तानें हैं खड़े, जग में बड़े पहाड़।
पर मानव के कर्म ने, उनके तोड़े हाड़।।
327. दर्पण
मन दर्पण इंसान का, है सच्चा प्रतिरूप।
मानव की पहचान कर, कहते सभी अनूप।।
328. अनुवाद
करें नैन अनुवाद तो, हो जाता है ज्ञान।
प्रेम क्रोध विद्वेष का, करवाता है भान।।
329. उल्लास
प्रिय का सुनकर आगमन, झूम उठा संसार।
तन-मन में उल्लास का, हो जाता संचार।।
330. शिथिल
शिथिल पड़ें जब इंद्रियाँ, तन का है वनवास।
मन का हाल विचित्र है, बढ़ता दृढ़ विश्वास।।
331. अभिनव
अभिनव भारत रच रहा, एक नया इतिहास।
देख रहा सारा जगत, फैला हुआ उजास।।
332. पुरस्कार
पुरस्कार उनको मिलें, रहते जो बदनाम।
हर सरकारी तंत्र का, बड़ा अनोखा काम।।
333. नाम
कर्म पथिक का जगत में, हुआ हमेशा नाम।
पीढ़ी दर पीढ़ी सदा, करते हैं जो काम।।
334. शिखर
उच्च शिखर छू लीजिए, रखकर दृढ़ विश्वास।
जिसके अंदर यह नहीं, करें व्यर्थ ही आस।।
335. सामान
जोड़-जोड़ कर मर गए, हर सुख का सामान।
नियति नटी के सामने, बेबस है इंसान।।
336. समकालीन
कविता समकालीन की, भरती रंग अनेक।
सुगम बोध संदेश दे, राह दिखाती नेक।।
337. षड्यंत्र
दौर चला षड्यंत्र का, राजनीति में आज।
सत्ता सुख सब चाहते, करें निरंकुश राज।।
338. सैलाब
सूखा सावन ही गया, भादों में सैलाब।
बादल बरसे इस तरह, उफन पड़े तालाब।।
339. वामन
तम का बढ़ा प्रभाव जब, धर वामन का रूप।
तीन-पगों में नाप ली, तीन लोक, अरु भूप।।
340. नागिन
कोरोना से सब दुखी, डरे सभी हैं देश।
नागिन बनकर नाचता, जहर भरा परिवेश।।
341. कानून
समता का कानून ही, करता है कल्याण।
समरसता को बींधते, भेदभाव के बाण।।
342. कृष्ण
दिया कृष्ण ने जगत को, कर्म-योग उपहार।
फल की इच्छा छोड़ कर, कर्म करे संसार।।
343. राधा
राधा की आराधना, हरती तन-मन क्लेश।
प्रेम-शक्ति जग में बड़ी, द्वापर का संदेश।।
344. प्रेम
इस दुनिया में प्रेम ही, मजबूती की डोर।
एक बार जो बंँध गया, जीवन में है भोर।।
345. समर्पण
भाव समर्पण का रहे, पति-पत्नी के बीच।
सुखमय जीवन बेल को, नित्य नेह से सींच।।
346. त्याग
त्याग तपस्या से बने, मानव देव समान।
संस्कार आदर्श से, भारत बना महान।।
347. लोक कल्याण
लोक-भाव, कल्याण का, शासन का हो मंत्र।
उन्नति और विकास का, परिचायक है तंत्र।।
348. दुष्ट-दमन
दुष्ट-दमन, कलिमल हरण, प्रभु ही कृपा निधान।
भक्ति भाव से पूजिए, होंगे कष्ट निदान।।
349. धर्म
मानवता को मानिए, सब धर्मों का धर्म।
मानव हित को समझता, समझा उसने मर्म।।
350. कर्म
कर्म, धर्म से है बड़ा, उन्नति का सोपान।
देश प्रगति पथ पर बढ़े, जग करता सम्मान।।
351. ज्ञान
ज्ञान और विज्ञान से, बनता देश महान।
जितना व्यापक क्षेत्र हो, उतना है सम्मान।।
352. योग
योग-गुरू भारत बना, दिया जगत को ज्ञान।
सभी निरोगी ही रहें, मानव ले संज्ञान।।
353. भक्ति
भक्ति योग कहता सदा, जाग्रत रखो विवेक।
ईश्वर में रख आस्था, मानव बनता नेक।।
354. त्योहारों
हर त्योहारों की छटा, है संस्कृति की जान।
एक सूत्र में सब बँधे, यह भारत की शान।।
355. अक्षर
वेद ऋचाएँ मंत्र सब, अक्षर से निर्माण।
ज्ञान और विज्ञान का, हैं अचूक यह बाण।।
356. अवसर
अवसर आता एक दिन, सबके जीवन काल।
चूक हुयी तो शर्म से, झुक जाता है भाल।।
357. आदर
आदर देते आप जब, पाते हैं सम्मान।
कभी अनादर मत करें, दुगनी होती शान।।
358. दूभर
दृढ़ इच्छा से ही बनें, दूभर सबके काम।
ईश्वर देता साथ है, जग में होता नाम।।
359. उर
त्रेता से कलिकाल तक, सबके उर में राम।
नगर अयोध्या फिर सजा, उसका यह परिणाम।।
360. कोरोना
कोरोना का संक्रमण, फैला है चहुँ ओर।
छूने से यह बढ़ रहा, सचमुच आदम खोर।।
361. अँगड़ाइयाँ
खेत और खलिहान में, श्रम की है दरकार।
फसलें ले अँगड़ाइयाँ, देश करे सत्कार।।
362. अधिकार
आजादी अधिकार है, देशभक्ति कत्र्तव्य।
रक्षा में जो प्राण दें, है महानतम् हव्य।।
363. विश्वास
संकट के हर काल में, लगी सभी को आस।
भारत की सरकार पर, बढ़ा आज विश्वास।।
364. शारदा
मैहर की मांँ शारदा, सब पर कृपा निधान।
दर्शन करते भक्तगण, पूर्ण करे वरदान।।
365. नवरात्रि
दिव्य पर्व नवरात्रि में, मंदिर का निर्माण।
आज अयोध्या फिर सजी, जैसे तन में प्राण।।
366. सहनशीलता
सहनशीलता है भरी, भारत में भरपूर।
संघर्षों की राह चल,बना विश्व का नूर।।
367. कानून
अपराधी भी समझते, सज्जनता है मौन।
बने सभी कानून पर, अमल करेगा कौन।।
368. सरकार
चुनी हुई सरकार जब, करती अच्छे काम।
तब विरोध के नाम पर, कुछ नेता बदनाम।।
369. ललकार
संकट जब हो देश में, गूँज उठे ललकार।
देशभक्ति उर में जगे, धारदार तलवार।।
370. मशाल
जागरूक बनकर जिएँ, थामे रखें मशाल।
जनहित में सब काम हों, सद्गुण मालामाल।।
371. शृंगार
ऋतु बसंत ने कर दिया, वसुधा का शृंगार।
तन-मन पुलकित हो उठे, अद्भुत है उपहार।।
372. अभिसार
ऋतुराजा है आ गया, प्रीत मिलन अभिसार।
सरसों पीली खिल गई, बासंती मनुहार।।
373. दुश्वार
पिया गए परदेश में, रातें हैं दुश्वार।
संझा-बेरा आ गई, भुज बंधन अभिसार।।
374. वंदनवारे
वंदनवारे बँध गए, खुशियों की सौगात।
बेटी का मंडप सजा, घर आई बारात।।
375. तकदीर
कर्मठ मानव लिख रहा, खुद अपनी तकदीर।
बना रहा जो आलसी, भोग रहा वह पीर।।
376. प्राण
तन से निकले प्राण जब, तन का क्या है मोल।
हीरा माणिक व्यर्थ है, प्राण रहें अनमोल।।
377. मिश्री
प्रियतम प्यारे हैं लगें, यह जीवन अनमोल।
प्रेमी के मीठे वचन, लगते मिश्री-घोल।।
378. चंचरीक (भौंरा)
चंचरीक करने लगा, मधुवन में नव गान।
फूलों के मकरंद पर, छेड़ी उसने तान।।
379. पतझड़
पतझड़ के पहले सदा, आता है मधुमास।
नव पल्लव ज्यों झूम कर, मना रहे उल्लास।।
380. हरसिंगार
बगिया की छवि देखकर, हँसता हरसिंगार।
भौरों का गुंजन हुआ, लुटा दिया सब प्यार।।
381. बहार
मधुमासी ऋतु आ गई, छायी मस्त बहार।
कोयल की सुर तान सँग, बहती मधुर बयार।।
382. फागुन
फागुन का यौवन निरख, बौरा गया समीर।
गालों को छूकर गया, छलक उठा है नीर।।
383. पाटल (गुलाब)
सबके दिल को भा गई, मनमोहक मुस्कान।
उपवन में पाटल हँसा, गूँजा गुंजन गान।।
384. शिविका (डोली)
बाबुल अँगना छोड़ कर, चली पिया के देश।
घर से शिविका चल पड़ी, नव जीवन परिवेश।।
385. चषक (शराब प्याला)
स्वाद चषक का जब चढ़ा, भूला जीवन मोल।
मानव फिर बचता कहाँ, रह जाता बस खोल।।
386. सेमल
सेमल का जो वृक्ष है, औषिधियों की खान।
इसका जो सेवन करे, रखे स्वस्थ तन-जान।।
387. कामदेव
कामदेव के बाण से, मूर्छित हुआ समाज।
संयम सबके टूटते, नैतिकता नाराज।।
388. नैतिकता
नैतिकता के पाठ से, सुदृढ़ बने समाज।
कार्य अनैतिक जब करें, नहीं सुरक्षित ताज।।
389. प्रेम
प्रेम हृदय में जब बसे, जग को करे निहाल।
काम, वासना, क्रोध से, मानव खींचे खाल।।
390. ज्ञान
ज्ञान जगत में है बड़ा, उसका कहीं न छोर।
जितना उसे सहेजते, होती घर में भोर।।
391. उन्वान
सीमा में रक्षा करे, देश भक्ति उन्वान।
ऐसे जज्बे को नमन, जो देते बलिदान।।
392. संताप
मनाव खुद पैदा करे, रोग शोक संताप।
कर्मठ मानव जूझकर, उनको देता नाप।।
393. निर्मल
निर्मल-मन को चाहते, सबको है दरकार।
दूषित-मन से भागते, कौन करे सत्कार।।
394. नाहर
सीमा पर नाहर सदा, करते दुश्मन साफ।
शरणागत को देखकर, कर देते हैं माफ।।
395. नृप
सच्चा-नृप दिल में बसे, होता कृपा निधान।
जन-जन की पीड़ा हरे, दुख का करे निदान।।
396. नानक
नानक के संसार में, भाँति-भाँति के लोग।
कुछ रोगों को पालते, कुछ फैलाते रोग।।
397. निपुणता
दृढ़ निश्चय अरु लगन में, होती है जब वृद्धि।
सबसे आगे वह चले, मिले उसी को सिद्धि।।
398. निकेत
निर्धन को है कब मिला, अपना उसे निकेत।
नेता होते यदि सही, क्यों रहते अनिकेत।।
399. आराधना
करें ईश आराधना, समय कठिन है आज।
खुशहाली में सब जिएँ, सुखमय रहे समाज।।
400. वेदना
मानवता गुम हो गई, शोर मचा चहुँ ओर।
यही वेदना आज की, कैसी होगी भोर।।
401. चैतन्य
रहें सदा चैतन्य ही, जाग्रत रखें विवेक।
जीवन में निर्भय बढ़ें, राह मिलेगी नेक।।
402. संकल्प
कर्मयोग संकल्प से, हो जाते सब काम।
इसके बल पर ही बढ़ें, जग में सबके नाम।।
403. चेतना
सुप्त चेतना जब जगे, होती जीवन भोर।
तिमिर कभी छाता नहीं, नाचे जीवन मोर।।
404. पतवार
युवा देश की शक्ति हैं, थाम रखें पतवार।
पार लगे नैया सही, सच्चे खेवनहार।।
405. उपाय
चलो सभी मिल बैठकर, खोजें नये उपाय।
सद्भावों की डोर से, आपस में गुँथ जाँय।।
406. छंद
कविता है मंदाकिनी, मन होता खुशहाल।
छंद रूप में जब सजे, सबको करे निहाल।।
407. वनवास
कटा आज वनवास है, लौटे हैं श्री राम।
दीपों से है सज गया, सकल अयोध्या धाम।।
408. अभियान
छेड़ें मिल-जुलकर सभी, एक बड़ा अभियान।
जिससे भारत देश का, बढ़े जगत में मान।।
409. परिवार
सुसंस्कृत परिवार से, बनता नेक समाज।
यही देश निर्माण में, पहनाता है ताज।।
410. चूल्हा
चूल्हा कहता अग्नि से, हम दोनों का साथ।
कितने युग बदले मगर, कभी न छूटा हाथ।।
411. धुआँ
अम्मा का चूल्हा बुझा, मिली धुआँ से मुक्ति।
नव पीढ़ी ने खोज ली, गैस सिलेंडर युक्ति।।
412. चूल्हा
चूल्हा ने जग से कहा, बदला हमने रूप।
जंगल में मंगल रहे, ढले समय अनुरूप।।
413. उज्ज्वला
आज उज्ज्वला गैस ने, फैलाये हैं पैर।
अब हरियाली हँसेगी, नहीं प्रकृति से बैर।।
414. जीवन
जीव-जन्तु सब खुश हुये, सबने जोड़े हाथ।
अपना जीवन धन्य है, अब मानव का साथ।।
415. मजदूरी
मजदूरी मिलती नहीं, मानव खड़ा उदास।
घर की चिंता है उसे, काम नहीं कुछ पास।।
416. पहचान
मजदूरी से देश की, होती है पहचान।
आर्थिक उन्नति का यही, पैमाना है जान।।
417. मूलाधार
मजदूरी मजदूर की, जीवन का आधार।
रहन-सहन जीवन-मरण, सबका मूलाधार।।
418. निर्भय
श्रमिक-भलाई के लिए, मिलजुल करें प्रयास।
उन्नति के स्तंभ ये, होगा देश विकास।।
419. अस्मिता
नारी की अब अस्मिता, लुटे सरे बाजार।
अपराधी बेखौफ हैं, जागो अब सरकार।।
420. संवेदना
मानव की संवेदना, डूब मरी है आज।
मानवता रोती फिरे, नहीं किसी को लाज।।
421. ललकार
पाक रहा नापाक ही, बढ़ा रखी तकरार।
सीमा पर सैनिक उसे, खूब रहे ललकार।।
422. भोर
भोर सुनहरी आ गई, मधुवन छटा अनूप।
भँवरों का गुँजन हुआ, मौसम बदले रूप।।
423. क्षितिज
भोर क्षितिज से हँस रही, देख प्रकृति का रूप।
ईश्वर भी तब कह उठा, नव प्रभात ही भूप।।
424. ऊषा
ऊषा ने करवट बदल, झाँका खिड़की ओर।
इतनी जल्दी आ गया, कैसा है चितचोर।।
425. उजास
दीपक ने जग से कहा, होना नहीं उदास।
कदम-कदम पर साथ हूँ, मैं बिखराउँ उजास।।
426. सूर्य
सूर्य ठंड में दे रहा, तपस भरा आराम।
छोड़ रजाई चल निकल, अपने कर ले काम।।
427. नागफनी
मंदिर में तुलसी नहीं, नागफनी का राज।
भक्तों में श्रद्धा नहीं, लूट रहे हैं बाज।।
428. पाहुने
घर में आए पाहुने, चिंतित है परिवार।
बड़ी समस्या आ खड़ी, कैसे हो सत्कार।।
429. लक्ष्य
सुखमय जीवन सब जियें, आए नहीं विराम।
जीवन में बस लक्ष्य हो, जीतें दुख-संग्राम।।
430. कडवाहट
कडवाहट मन में भरे, पालें जो यह रोग।
खुद चिंता में जल मरें, करें न सुख का भोग।।
431. तकदीर
कर्म साधना से सभी, गढ़ते हैं तकदीर।
आओ मिलकर बदल दें, जीवन की तस्वीर।।
432. जल
जल जीवन मुस्कान है, समझो इसका अर्थ।
पानी बिन सब सून है, नहीं बहाओ व्यर्थ।।
433. साल
साल पुराना जा रहा, ‘नव’ देता संदेश।
गुजरी बातें भूल जा, तब बदले परिवेश।।
434. पसीना
नाच उठे सब गाँव में, ले ढपली औ ढोल।
बहा पसीना खेत में, फसल उगी अनमोल।।
435. धूप
वर्षा जल से हम भरें, ताल बाँध औ कूप।
साफ स्वच्छ इनको रखें, नहीं छलेगी धूप।।
436. उद्यम
मानव उद्यम जब करे, मिलता है सम्मान।
हाथ धरे बैठा रहे, घट जाता सब मान।।
437. कुंचन
यौवन की दहलीज को, पार करे जब नार।
लट-कुंचन अठखेलियाँ, झूमे बारम्बार ।।
438. वागीश
दिल सबका जो जीतता, कहलाता वागीश।
खुशियों से झोली भरे, हम सबका जगदीश।।
439. राघव
रघुकुल में राघव हुए, त्रेतायुग की शान।
उनको कलयुग पूजता, न्यौछावर हर-जान।।
440. चंचला
लक्ष्मी होती चंचला, करे तमस कब भोर।
मोहित सबको कर रही, लुभा रही चहुँ ओर।।
441. नारी
नारी को जग पूजता, वह माता का रूप।
देव, मनुज, दानव सभी, दिल से लगे अनूप।।
442. नारी
नारी नर की खान है, जाने जग संसार।
माँ, पत्नी, दुहिता बने, घर का बाँटे भार।।
443. पिपीलिका
नन्हीं एक पिपीलिका, देती श्रम संदेश।
मिलकर हम सब ठान लें, बदलेगा परिवेश।।
444. गैस कांड
गैस कांड की त्रासदी, जब भी आती याद।
जीवित रहते भी मरे, कहीं नहीं फरियाद।।
445. डाक्टर
लाशों के अंबार को, देख सभी हैरान।
डाक्टर सारे जुट गये, लगे बचाने प्रान।।
446. अंगार
दिल में जब अंगार हों, धधकेगा फिर देश।
प्रेम सृजन के भाव से, सजता है परिवेश।।
447. सरकार
जनहित के जब काम हों, तब अच्छी सरकार।
निजी स्वार्थ में डूबकर, हो जाती बेकार।।
448. न्याय
न्याय-प्रणाली उचित हो, मिले सभी को न्याय।
जनता जब संतुष्ट हो, तब स्वर्णिम अध्याय।।
449. मंच
ज्ञानी बैठे मंच पर, रहता सदा प्रकाश।
तिमिर सभी मन के मिटें, मन उड़ता आकाश।।
450. कानून
सदा कड़े कानून ही, करते हैं कल्यान।
अपराधी डर कर रहें, बाकी सीना तान।।
451. नैतिकता
नैतिकता स्वीकार्य ही, मानवता की शान।
मापदंड की श्रेष्ठता, सदा बढ़ाता मान।।
452. जीत
जीत सदा मिलती नहीं, जीवन में हर बार।
हार मिले तो सोचिये, कैसे करें सुधार।।
453. उल्लास
जीवन में उत्साह का, बना रहे बस साथ।
सारा जग तब साथ में, होते नहीं अनाथ।।
454. त्यौहार
आता जब त्योहार है, खुशियाँ लाता साथ।
मन हर्षित हो झूमता, गर्वित होता माथ।।
455. संयोग
मानव का सत्कर्म से, होता जब संयोग।
भाग्योदय होता तभी, पल में बनता योग।।
456. सत्य
सत्य हमेशा सत्य है, सदा रहा सिरमौर।
झूठ सदा टिकता नहीं, कहीं न इसका ठौर।।
457. भ्रमर
काम वासना से घिरे, भ्रमर हुए बदनाम।
बगिया अब बेचैन है, होती काली-शाम।।
458. स्वर्णिम
हम सबका दायित्व है, यह सबका है न्यास।
स्वर्णिम देश बना रहे, मिलजुल करें प्रयास।।
459. अंतस्
अंतस् मन की वेदना, क्यों है भ्रष्ट-समाज।
अंत करें तब ही भला, होगा स्वर्णिम राज।।
460. खादी
गांधी हुए अतीत के, भूला उसे समाज।
खादी का अब युग गया, छाया फैशन आज।।
461. जुगनू
जुगनू करती रोशनी, जाने सकल जहान।
अंधकार से लड़ रही, वह नन्हीं सी जान।।
462. उदार
राम कृष्ण की भूमि है, सदियों का इतिहास।
दिल उदार रखते यहाँ, सबको आता रास।।
463. अभिनंदन
देश प्रगति पथ पर चला, कभी न मानी हार।
उसका अभिनंदन करें, हम सब बारम्बार।।
464. कल्पना
देश भक्ति में डूबकर,नेक करें सब काज।
संविधान की कल्पना, सुदृढ़ बने समाज।।
465. तंत्र
भ्रष्टाचारी तंत्र ने, खो दी शर्मो-लाज।
अनाचार है बढ़ गया, रोता आज समाज।।
466. आखर
ढाई आखर प्रेम से, जीतें सब संसार।
दुश्मन को भी जीत कर, बना सकें किरदार।।
467. नेह
काम क्रोध अरु मोह से, रहता है जो दूर।
प्रेम सदा दिल में बसे, जीता वह भरपूर।।
468. उजास
अपनी संस्कृति है भली, इस पर बड़ा गुमान।
दिल में भरे उजास वह, जग जाहिर पहचान।।
469. मीत
जीवन सजता मीत से, सुर से है संगीत।
शब्द छंद में जब ढलें, बनता गीत पुनीत ।।
470. पंख
बेटी है परदेश में, नहीं मिला संदेश।
पंख नहीं कैसे उड़ूँ, मन में भारी क्लेश।।
471. हर्ष
निश्छल प्रेम रहे सदा, जीवन में हो हर्ष।
घर समाज अरु देश का, तब होता उत्कर्ष।।
472. रक्षक
गौरव गाथा रच गए, कर दुश्मन संहार।
रक्षक बनकर हैं खड़े, सीमा पहरेदार।।
473. प्राची
प्राची से सूरज निकल, जग में भरे उजास।
पश्चिम में वह डूबकर, होता मलिन उदास।।
474. चितचोर
सूरज प्राची दिशा से, पहले करता भोर।
सारा जग है बोलता, भारत को चितचोर।।
475. नवदौर
ज्ञान और विज्ञान का, आया है नव दौर।
अंधकार है छट रहा, तम का कहीं न ठौर।।
476. अन्वेष
वर्तमान इस सदी में, नित होते अन्वेष।
रूप बदलता जा रहा, वंचित रहें न शेष।।
477. पहचान
भारत की संस्कृति रही, जग में सदा महान।
संकट के हर दौर में, नहीं गुमी पहचान।।
478. लालिमा
नील गगन में लालिमा, करती भाव विभोर।
पंछी उड़ते झुंड में, मिलकर करते शोर।।
479. खगकुल
जग में खगकुल घूमते, देते हैं संदेश।
हम पक्षी सब एक कुल, अलग-अलग परिवेश।।
480. प्रभात
कष्ट सहे हैं बहुत अब, गुजर गई वह रात।
पंछी कलरव कर रहे, चल उठ हुआ प्रभात।।
481. लाली
लाली बिखरी भोर की, वन में नाचे मोर।
लोग काम पर चल पड़े, कल-पुर्जों का शोर।।
482. वोट
फ्री का लालच दे सभी, माँग रहे हैं वोट।
नेतागण क्यों कर रहे, कर्म घर्म पर चोट।।
483. प्रारब्ध
लिखा हुआ प्रारब्ध में, अमिट रहा है लेख।
मिटा नहीं है भाग्य से, रहा जगत है देख।।
484. अंतरिक्ष
अंतरिक्ष के क्षेत्र में, जग में किया धमाल।
भारत का झंडा गड़ा, सच में हुआ कमाल।।
485. संविधान
संविधान की आड़ ले, आग लगाते लोग।
पहन मुखोटा घूमते, मन में पाले रोग।।
486. संघर्ष
कैसा यह संघर्ष है, छल छद्मों का शोर।
आपस में हम लड़ रहे, कैसी होगी भोर।।
487. अन्तद्र्वन्द्व
सी. ए. ए. के नाम पर, मचा हुआ है द्वन्द्व।
कैसी यह आँधी चली, हर मन अन्तद्र्वन्द्व।।
488. फगुआ
फगुआ मिलकर गा रहे, चहुँ दिश उड़े गुलाल।
रंगों की बरसात से, भींग उठी चैपाल।।
489. फगुहारे
फगुहारे निकले सभी, मन-मस्ती में साथ।
होली का त्योहार है, लिए रंग हैं हाथ।।
490. भाँग
भाँग पिये कुछ घूमते, कुछ तो पिए शराब।
होली के त्योहार को, पीकर करें खराब।।
491. उन्मत्त
पीकर कुछ उन्मत्त हैं, बिगड़े उनके बोल।
गली-गली में घूमते, कब बज जाते ढोल।।
492. गुलमोहर
गुलमोहर के फूल ने, दिया प्रेम संदेश।
गाँव की पगडंडी का, शृंगारित परिवेश।।
493. अमराई
अमराई की छाँव में, गूँजी कोयल तान।
पवन-झकोरे दे गए, तन-मन में मुस्कान।।
494. चंचरीक
फूलों का विध्वंश कर, मधुवन किया कुरूप।
चंचरीक बौरा गए, यह कैसा है रूप।।
495. कचनार
फागुन में कचनार ने, बदला है परिवेश।
है मौसम ऋतुराज का, चलो पिया के देश।।
496. ऋतुराज
आया जब ऋतुराज तब, बहती मस्त बयार।
तन-मन में आनंद का, करती है संचार।।
497. लज्जा
गुलमोहर के फूल से, सुर्ख हुए हैं गाल।
लज्जा से हैं भर उठे, जैसे मला गुलाल।।
498. विश्वास
नेताओं से उठ गया, अब सबका विश्वास।
एक तुम्हीं से सर्वदा, लगी हुई प्रभु आस।।
499. अभिनव
मोदी की सरकार का, साहस-अभिनव-काम।
भारत को जग कर रहा, झुककर आज प्रणाम।।
500. अभियान
मानवता सबसे बड़ी, बस अपनी पहचान।
पाखंडों को छोड़ने, मिल छेड़ें अभियान।।
501. मयंक
नभ में खिले मयंक ने, फैलाया उजियार।
भगा अँधेरा घरों का, शीतल बही बयार।।
502. चाँदनी
चंदा की जब चाँदनी, निकली चूनर डाल।
देव मनुज मोहित हुए, मिलकर हुआ धमाल।।
503. आराधना
माता की आराधना, अद्भुत देती शक्ति।
जाति-पाँति को भूल कर, करते श्रृद्धा भक्ति।।
504. आयु
जीने की है लालसा, इसका कभी न अंत।
खत्म हुई जब आयु तो, राजा बचे न संत।।
505. मोर
मोर हुआ है बावला, देख प्रकृति का रूप।
मस्ती में जब नाचता, सबको लगे अनूप।।
506. रेवड़ी
रेवड़ी सबको बाँटते, सत्ता खातिर आज।
टैक्स प्रदाता देखते, राजनीति की खाज।।
507. संसार
रहन-सहन,जीवन-मरण,भाँति-भांँति के लोग।
यह संसार विचित्र है, अलग-अलग हैं भोग।।
508. दृष्टि
सबकी अपनी दृष्टि है, अपना है संसार।
जीवन जीते हैं सभी, जीने से है प्यार।।
509. अनुबंध
संविधान अनुबंध है, निर्भय रहते लोग।
ं लिखित नियम कानून का, परिपालन सहयोग।।
510. चकोर
शशि-चकोर की मित्रता, दुर्लभ है श्रीमान।
प्रिय को सदा निहारता, व्याकुल तजता प्रान।।
511. चाँदनी
रात चाँदनी ने कहा, सुन प्रिय मेरी बात।
घोर तिमिर की रात है, मिलकर देंगे मात।।
512. चितवन
चितवन नयन कटार से, नारी करती वार।
प्रेम-लेप उपचार से, पीड़ा का संहार।।
513. अक्षर
अक्षर-अक्षर बोलते, मन दर्पण के बोल।
अंतर्मन को झाँकते, शब्द-शब्द अनमोल।।
514. आँखें
आँखें अक्षर बाँचतीं, प्रिय पाती संदेश।
छिपे अर्थ को खोजतीं, रहे न कुछ भी शेष।।
515. किरण
आस-किरण मन में जगे, सिद्ध सभी हों काम।
तिमिर हटेंगे स्वयं ही, ऊँचा होगा नाम।।
516. नवप्रभात
नव प्रभात की किरण उग, देती है संदेश।
उठ रे मानव जाग अब, बदलेंगे परिवेश।।
517. मानसून
मानसून का आगमन, दे जाता उल्हास।
ग्रीष्म तपन के बाद ही, मेघा बरसें खास।।
518. चातक
स्वाति बूँद की चाह में, चातक रहे अधीर।
आँख उठाए देखता, उसकी कैसी पीर।।
519. उलझन
उलझन बढ़ती जा रही, कोरोना का रोग।
स्पर्श मात्र से बढ़ रहा, अलग-थलग हैं लोग।।
520. अरविंद
मंदिर में श्री कृष्ण की, छवि मोहक अरविंद।
मनकों की माला लिए, जपें सभी गोविंद।।
521. अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति के नाम पर, माँग रहे अधिकार।
राष्ट्र विरोधी बात कर, बने देश पर भार।।
522. अयोद्धा
नवमी तिथि को चैत्र में, जन्मे थे प्रभु राम।
नगर अयोध्या धन्य है, बना राम का धाम।।
523. रामायण
रामायण की है कथा, सभ्य सुसंस्कृति बात।
सामाजिक परिवेश का, सद्भावी सौगात।।
524. स्वर्णिम
चंद्रगुप्त के काल में, ऊँचा रहा कपाल।
ज्ञान औ विज्ञान का, स्वर्णिम था वह काल।।
525. अरविंद
मोहक चितवन ईश की, नेत्र युगल अरविंद।
मन मंदिर में बस गई, छवि मूरत गोविंद।।
526. शक्ति
कविता से मुझको मिली, अद्भुत जीवन शक्ति।
अंतस के हर भाव को, मिल जाती अभिव्यक्ति।।
527. हिम्मत
हिम्मत हो जब साथ में, ईश्वर देता साथ।
जीत उसी की है सदा, सबका झुकता माथ।।
528. दया
दया धर्म का मूल है, बाकी सब निर्मूल।
जिसके अंदर यह नहीं, बनकर चुभता शूल।।
529. कर्म
कर्म जगत में मुख्य है, यह जीवन का मर्म।
गीता का उपदेश पढ़, यही बड़ा है धर्म।।
530. रजनी
रजनी का संदेश है, कुछ कर ले विश्राम।
अगले दिन फिर भोर में, तुझको करना काम।।
531. दिनकर
पूरब से दिनकर चला, लिए उजाला साथ।
भोर हुई चल जाग रे, तेरे हैं दो हाथ।।
532. पर्वत
अक्सर जीवन में मिले, पर्वत जैसी पीर।
विजयी होते हैं वही, जो होते गंभीर।।
533. सरिता
सरिता सा मन में बहे, पावन र्निमल नीर।
जग में वही प्रणम्य है, होता है जो वीर।।
534. शक्ति
शक्ति भक्ति श्रद्धा सभी, भारत के हैं रंग।
जीने के ही ढंग ये, हैं संस्कृति के अंग।।
535. शारदा
मैहर की माँ शारदा, बैठीं उच्च पहाड़।
़द्वार खड़े दो सिंह हैं, रक्षा करें दहाड़।।
536. फागुन
फागुन की पुरवा बही, हँसी खुशी चहुँ ओर।
होली के रस रंग में, डूबे माखन चोर।।
537. महुआ
महुआ चढ़ा दिमाग में, भूला घर की राह।
दिन में तारे गिन रहा, जग से बेपरवाह।।
538. सुधा
चाहत सबके मन रहे, पिएँ सुधा रस आज।
पाकर हम अमृत्व को, सिर पर पहने ताज।।
539. मदन
हुआ मदन है बावला, ऋतु बसंत की भोर।
बाग बगीचे हँस रहे, मधुप मचाएँ शोर।।
540. बसंत
आहट सुनी बसंत की, मधुकर पहँुचे बाग।
स्वर लहरी में गा उठे, पुष्पों से अनुराग।।
541. पिचकारी
फागुन में राधा रँगी, मुरली रही निहार।
ले पिचकारी मारते, तक-तक बारम्बार।।
543. नूपुर
नूपुर पैरों में पहन, राधा छिपती ओट।
नूपुर-ध्वनि पहचानते, यही बड़ी थी खोट।।
544. सुदामा
बाँह पकड़ के कृष्ण ने, कहा सुदामा बोल।
छुप-छुप कर खाए चनें, करी पोटली गोल।।
545. शृंगार
नारी का शृंगार है, कुंतल अधर कपोल।
लज्जा रूप लुभावना, मन जाता है डोल।।
546. घूँघट
घूँघट के अंदर हँसे, मन भावन चितचोर।
मन के लड्डू खा रहे, नृत्य करे मन-मोर।।
547. प्रीति
प्रीति हुई श्री कृष्ण से, जगे भक्ति का नेह।
मीरा नाचीं मगन हो, छोड़ दिया निज गेह।।
548. कामिनी
ज्वार चढ़े जब प्रेम का, छोड़ चले घर द्वार।
मन भावन है कामिनी, बने गले का हार।।
549. नयन
चितवन नयन कटार से, घायल करती नार।
योगी सँग भोगी सभी, उसके हुए शिकार।।
550. दशहरा
महल दशानन का ढहा, वनवासी की जीत।
पर्व दशहरा ने रचे, खुशियों के नव गीत।।
551. सत्य
विजय सत्य की हो गई, जीत गए प्रभु राम।
लंकापति के हार से, गिरा असत्य धड़ाम।।
552. नवरात्रि
सजा हुआ नवरात्रि पर, माता का दरबार।
धूप-दीप-नैवेद्य से, सब करते मनुहार।।
553. शरद
हुआ शरद का आगमन, मौसम बदले रंग।
धूप सुहानी अब लगे, आग -रजाई संग।।
554. गरबा
गुजराती गरबा हुआ, इस जग में विख्यात।
माँ दुर्गा की भक्ति में, डूबंे जन दिन-रात।।
555. भाई
लक्ष्मण सम भाई नहीं, त्यागा था घर द्वार।
बड़े भ्रात के साथ में, रक्षा का धर भार।।
556. बहिन
चीर-हरण पर बहन का, संकट से उद्धार।
कृष्ण-द्रौपदी की कथा, भाई-बहन का प्यार।।
557. पुत्र
दशरथ के हर पुत्र में, पितृ भक्ति सम्मान।
राजपाट को छोड़कर, रखा वचन का मान।।
558. माता
माता है इस जगत में, सबकी तारण हार।
भक्ति भाव आराधना, धर्म सनातन सार।।
559. पिता
धर का मुखिया पिता है, उसका जीवन दाँव।
दुख दर्दों को भूलकर, देता सबको छाँव।।
560. जनमेदिनी
उमड़ पड़ी जनमेदिनी, नवदुर्गा में आज।
दर्शन का संकल्प ले, मातृ-भक्ति सुर-साज।।
561. प्रतिदान
स्नेह और आशीष है, मीठे अनुपम बोल।
मिले सदा प्रतिदान में, शक्ति-विजय अनमोल।।
562. वाणी
वाणी का माधुर्य ही, सम्मोहन का बाण।
कार्यकुशलता है बढ़े, हर संकट से त्राण।।
563. आह्वान
भारत का आह्वान है, जग का हो कल्याण।
मानव वादी सब रहें, लगंे न उस पर बाण।।
564. सुचिता
जग में सुख सद्भावना, भारत देश प्रमाण।
सुचिता का आह्वान हो, मानव का कल्याण।।
565. परिणाम
नेक कार्य करते रहें, बढ़ें सदा अविराम।
मंजिल सदा पुकारती, मिलें सुखद परिणाम।।
566. संकट
नेक-नियति मन में रखें, चलें सभी इस राह।
कभी न संकट आ सके, कभी न मिलती आह।।
567. क्वाँर
क्वाँर माह नवरात्रि को, नव दुर्गा का रूप।
शक्ति रूप आराधना, जप-तप करें अनूप।।
568. कार्तिक
कार्तिक में दीपावली, धन-लक्ष्मी का वास।
गहराता तम दूर हो, नव जीवन की आस।।
569. अगहन
अगहन मासी शरद ऋतु, देती यह संदेश।
मौसम ने ली करवटें, कट जाएँगें क्लेश।।
570. मुकुल
मुकुल खिलें जब बाग में, बिखरेगी मुस्कान।
भौरों का संगीत तब, छेड़े मधुरिम तान।।
571. मंजुल
मंजुल छवि श्री राम की, मन मंदिर की शान।
हृदय अयोध्या बन रहा, करें सभी गुणगान।।
572. आस्था
आस्था अरु विश्वास ही, ईश्वर से सत्संग।
सदाचार जीवन रहे, रख मानवता संग।।
573. शांति
सुख-दुख की ही सोच से, बनते हैं मनमीत।
विश्व शांति चहुँ ओर हो, मानवता की जीत।।
574. रूपसी
देख रूपसी नार को, मन होता बेजार।
घायल दिल तब चाहता,साथ बने उपचार।।
575. क्रंदन
तालिबान की सोच से, लहू बहा अफगान।
क्रंदन करता है मनुज, बन गया कब्रिस्तान।।
576. कलरव
वृक्षों पर कलरव करें, पक्षी सुबहो-शाम।
घर, आँगन में गूँजता, भक्ति-भाव हरिनाम।।
577. चंपा
पुष्प बड़े मोहक लगें, लगते सबको नेक।
चंपा के शृंगार से, होता प्रभु अभिषेक।।
578. परिमल
तन महके परिमल सरिस, वाणी में हो ओज।
सभ्य सुसंस्कृति सौम्यता, नित होती है खोज।।
579. मकरंद
फूलों में मकरंद रस, उपवन में चहुँ ओर।
बागों में कलरव हुआ, भौरों का है शोर।।
580. कली
वर्तमान दिखती कली, बनकर खिलता फूल।
डाली से मत तोड़िए, कभी न करिए भूल।।
581. प्रभात
कर्मयोग-पर्याय है, होती नई प्रभात।
भक्ति योग के संग में, तम को दे तू मात।।
582. भाषा
भावों की अभिव्यक्ति में, भाषा चतुर सुजान।
उसकी करते वंदना, भाषा-विद् विद्वान।।
583. संवाद
भाषा से संवाद है, संवादों से नेह।
वाणी की माधुर्यता, मधुर प्रेम का गेह।।
584. हिंदी
स्वर, व्यंजन लालित्य है, हिंदी का शृंगार।
वैज्ञानिक लिपि भी यही, कहता है संसार।।
585. शब्द
मिश्री जैसे शब्द हैं, नदिया जैसी धार।
हिंदी से अपनत्व का, महके अनुपम प्यार।।
586. अर्थ
शब्द-शब्द में अर्थ है, हिंदी सरल सुबोध।
लिखना पढ़ना एक सा, विद्वानों का शोध।।
587. देवनागरी
देवनागरी से हुआ, हिंदी का गठजोड़।
स्वर-शब्दों की तालिका, अनुपम है बेजोड़।।
588. अल्पना
रंग बिरंगी अल्पना, शृंगारित घर-द्वार।
आगत का स्वागत करें, संस्कारित परिवार।।
589. अवगाहन
जितना अवगाहन करें, उतनी होती खोज।
तभी सफलता है मिले, बढ़ता तन-मन ओज।।
590. अंबुज
मन का पंछी फिर उड़ा, जगी प्रेम की आस।
पोखर में अंबुज खिला, भगी विरह संत्रास।।
591. अस्ताचल
सूरज अस्ताचल चला, करने को विश्राम।
चंदा से कह कर गया, चलें हुई अब शाम ।।
592. अवलंब
वृद्धों का अवलंब ही, उसकी है संतान।
बस आश्रय ही चाहता, जब तन से हैरान।।
593. पहचान
सुयश गर्व सम्मान सँग, मुखड़े पर मुस्कान।
याद दिलाती है वही, जग में चिर पहचान।।
594. व्यास
वेद व्यास ने हैं रचे, अनुपम ग्रंथ महान।
पढ़ कऱ मानव कर रहा, नूतन अनुसंधान।।
595. रजनीगंधा
रजनीगंधा की महक, छा जाती चहुँ ओर।
मन मयूर सा नाचता, होकर भाव विभोर।।
596. कुंदन
मानव मन कुंदन बने, निर्मल रहे स्वभाव।
चिंता से तिरते रहें, ले चिंतन की नाव।।
597. संधान
भारत की गौरव कथा, भरती नवल उडा़न।
जड़ विहीन घाती बने, उन पर हो संधान।।
598. मुस्कान
मुखड़े पर मुस्कान हो, मिले सदा सम्मान।
सूरत-रोनी देख कर, गुम जाती पहचान।।
599. व्यास
वेद व्यास ने हैं लिखे, अनुपम वेद-पुरान।
ग्रंथ महाभारत रचा, लेखक बने महान।।
600. आश्वासन
आश्वासन की लिस्ट है, नेता जी के साथ।
पैसा खुद का है नहीं, कोष लुटाते हाथ।।
601. कर्म
कर्म-राह निर्माण की, नहीं चाहते लोग।
अजगर बन आराम से, खाते मोहन भोग।।
602. संधान
भारत की गौरव शिला, राणा हुए महान।
छद्म वेश बहुरूपिए, करें बाण संधान।।
603. राष्ट्र भक्त
राष्ट्र विरोधी ताकतें, चलतीं सीना तान।
राष्ट्र भक्त सब जानते, लें कैसे संज्ञान।।
604. प्रत्यंचा
प्रत्यंचा पर खींचकर, करें व्यंग्य संधान।
शब्द बाण से व्यथित हैं, राष्ट्र भक्त इंसान।।
605. कदाचरण
सबके हित की सोच से, लेखक बने महान।
कदाचरण से जो ग्रसित, विध्वंसक संधान।।
606. कानन
गिरि, कानन, सरिता, पवन, ठंडी बहे बयार।
मौसम की अठखेलियाँ, भर देती हैं प्यार।।
607. रघुनंदन
रघुनंदन हिय में बसें, निर्मल रहे स्वभाव।
लोभ-मोह की खोह से, बचकर चलती नाव।।
608. पनघट
पनघट प्यासा रह गया, सरिता रही उदास।
घट जल से वंचित रहा, बुझी न मन की प्यास।।
609. काजल
काजल आँजा आँख में, लगा डिठौना माथ।
आँचल की छाया मिली, माँ की ममता साथ।।
610. रक्षाबंधन
रक्षाबंधन पर्व यह, भ्रातृ-बहन का प्यार।
611. सौगात
रक्षाबंधन पर्व में, रक्षा की सौगात।
सुखद प्रेम की डोर है, सामाजिक जज्बात।।
612. कजरी
सावन में कजरी हुई, सुना मेघ मल्हार।
वर्षा में मन भींजता, कर प्रियतम शृंगार।।
613. सुरसरि
बहती है सुरसरि नदी, शिव का है वरदान।
मुक्ति-पाप संकट हरे, मानव का कल्यान।।
614. वर्तिका
दीप वर्तिका जब जले, तम का होता नाश।
राग द्वेष हिंसा भगे, कटें नाग के पाश।।
615. रक्षाबंधन
रक्षाबंधन आ गया, बहना करे दुलार।
बचपन की अठखेलियाँ, रचे नेह संसार।।
616. काजल
दिल को घायल कर गई, दारुण दुखद विछोह।
आँखों में काजल लगा, चितवन लेती मोह।।
617. राष्ट्र
राष्ट्र-धर्म सबसे बड़ा, हो सबको संज्ञान।
शेष धर्म निजिता रहे, यही सूत्र है जान।।
618. तिरंगा
आजादी की शान है, भारत की पहचान।
बना तिरंगा विश्व में, सुख शांति की खान।।
619. गान
राष्ट्र-गान जब भी चले, सभी करें सम्मान।
देश भक्ति कहते इसे, हो सबको यह भान।।
620. जनगण
जनगण-मंगल हो सदा, प्रजातंत्र की नींव।
सुख-सुविधा सबको मिले, खुशी रहे हर जीव।।
621. जनता
लोकतंत्र अवधारणा, जनमत की सरकार।
मत देकर वह चुन रही, उस पर हो उपकार।।
622. अवतार
पाप धरा पर जब बढ़े , प्रभु लेते अवतार।
आकर अरि-मर्दन करें, जग के तारणहार।।
623. चमत्कार
चमत्कार की है घड़ी, टीके का निर्माण।
कोविड का संकट टला, सबसे बड़ा प्रमाण।।
624. समाधि
गर्वितमन सबका हुआ, देखी अटल समाधि।
राष्ट्र समर्पण भाव था, भारत रत्न उपाधि।।
625. उजागर
तालिबान को देखकर, हुई उजागर बात।
आश्रित होकर जो जिया,मिला सदा आघात।।
626. अंतर्मन
अंतर्मन की यह व्यथा, भाई है परदेश।
राखी उसे निहारती, मन में भारी क्लेश।।
627. बदरी
बदरी बरसी झूमकर, नाचे जंगल मोर।
हरी भरी हैं वादियाँ, पशु-पक्षी का शोर।।
628. बिजली
बिजली चमकी गगन में, वर्षा का संकेत।
दादुर झींगुर गा उठे, हरियाएँगे खेत।।
629. मेघ
उठे मेघ आकाश में, बही हवाएँ तेज।
गोरी रस्ता देखती, लेटी अपने सेज।।
630. चैमास
हँसा देख चैमास को, मुरझाया जो फूल।
मुख की रंगत बढ़ गई, तन की झाड़ी धूल।।
631. ताल
ताल तलैयाँ बावली, छलके यौवन रूप।
बहती नदिया बावरी, प्रेम भरे रस-कूप।।
632. मुस्कान
अधरों में मुस्कान हो, प्रियतम का हो साथ।
जीवन जीने की कला, समय चूमता माथ।।
633. किलकार
बच्चों की किलकार से, हँसता है घर द्वार।
सारे दुख हैं भागते, वैभव सुख परिवार।।
634. सावन
सावन में राखी बँधी, भाई बहन का प्यार।
बचपन की अठखेलियाँ, गढ़ता नव संसार।।
635. नदियाँ
वर्षा में नदियाँ हुईं, सागर सी विकराल।
पृथ्वी डूबी जलज में, आईं बनकर काल।।
636. बौछार
दुख की जब बौछार हो, प्रभु का जपलें नाम।
छाए संकट सब हटें, बिगड़े बनते काम।।
637. क्रांति
मानव पर संकट बढ़ें, सहन शक्ति हो पार।
क्रांति बने उद्घोष तब, रचें नया संसार।।
638. वीरगति
अंग्रेजों के काल में, कब शुभ होती भोर।
संघर्षों में वीरगति, जुल्म हुए घनघोर।।
639. कृतज्ञ
हम कृतज्ञ हैं देश के, हम सब पर अहसान।
जन्म दिवस से आज तक, मिला हमें सम्मान।।
640. स्वतंत्र
जनता सभी स्वतंत्र है, नैतिक हो यह ज्ञान।
कत्र्तव्यों का बोध हो, अधिकारों का भान।।
641. देशभक्ति
संकट कभी न आ सके, जग में रहा प्रमाण।
देशभक्ति मन में बसे, तभी राष्ट्र निर्माण।।
642. अरि
देश भक्ति की भावना, भरती रग-रग जोश।
राष्ट्र सुरक्षा की घड़ी, अरि के उड़ते होश।।
643. परावलम्बी
परावलम्बी जो हुआ, तालिबान आधीन।
साहस धीरज आत्मबल, कभी न बनता दीन।।
644. धानी
धानी चूनर ओढ़ कर, चढ़ा केसरी रंग।
झंडा वंदन हो रहा, देश-प्रेम-सत्संग।।
645. यामा (रात)
यामा में इूबी धरा, घन गरजा आकाश।
बिजली चमकी साथ में, हुआ कंस का नाश।।
646. घनश्याम
श्याम वर्ण घनश्याम का, राधा गोरी-रंग।
प्रेम सरोवर में बसें, आदि काल से संग।।
647. चातुर्मास
भक्ति कर्म आराधना, ज्ञान, ध्यान, सत्संग।
शुभ दिन चातुर्मास के, पावन सुभग प्रसंग।।
648. महादेव
महादेव की है कृपा, चार-मास त्योहार।
गौरी सुत की वंदना, कान्हा का अवतार।।
649. पावस
पावस का स्वागत हुआ, गुमी उमस की छोर।
सारे दुख हैं हट गए, खुशियों की हिलकोर।।
650. सावन
सावन-भादों में चली, मेघों की बारात।
हरियाली घोड़े चढ़ी, पावस की सौगात।।
651. बरसात
भीगा तन बरसात में, नाच उठा मन मोर।
पड़ी फुहारें धरा में, बदला मौसम शोर।।
652. धान
सावन की बौछार ने, भरे खेत के पेट।
रोपे-धान किसान ने, था जो मटिया-मेट।।
653. नदिया
मेघों से अमृत मिला, नदियाँ र्हुइं अधीर।
मीठे जल को ले चलीं, बदली है तकदीर।।
654. किलोल
साँझ-सबेरे वृक्ष पर, पंछी करें किलोल।
परामर्श यह कर रहे, जीवन है अनमोल।।
655. किलकार
सरकस में जोकर दिखा, गूँज उठी किलकार।
भगी उदासी छोड़कर, हँसी-खुशी तकरार।।
656. वाचाल
नेता जी वाचाल हैं, जनता रहती मूक।
इसी विरोधाभास से, हो जाती है चूक।।
657. नदिया
नदिया प्यासी बह रही, सागर रहा पुकार।
दोनों का फिर से मिलन, कैसे हो साकार।।
658. बौछार
मेघों ने बौछार कर, दिया धरा को सींच।
दूब हरित हो खिल उठी, रही दिलों को खींच।।
659. आचमन
पूजन अर्चन आचमन, सँग करता जो भक्ति।
ईश्वर की आराधना, सबको मिलती शक्ति।।
660. मेघ
मेघ कहीं दिखते नहीं, राह गए हैं भूल।
अंतर्मन में चुभ रहे, मौसम के अब शूल।।
661. पुरवाई
उल्टी पुरवाई बही, खेत हुए वीरान।
कृषक देखता मेघ को, रोपें कैसे धान।।
662. मानसून
मानसून को देखकर, कृषक हुए बेचैन।
खेत यहाँ सूखे पड़े, उत्तर-दिश है रैन।।
663. पगडंडी
सूरत बदली गाँव की, बिछा दिये पाषाण।
पगडंडी अब है कहाँ, सड़कों का निर्माण।।
664. प्रेम
डोर प्रेम की थाम कर, नभ में भरें उड़ान।
सृजन करें हम राष्ट्रहित, बढ़े जगत में मान।।
665. विश्वास
प्रेम और विश्वास से, बनती सुदृढ-नीव।
अंतर्मन की भावना, विकसित-पुष्पित जीव।।
666. प्रतीक्षा
करे प्रतीक्षा आपकी, मत कर तू परवाह।
मंजिल खड़ी निहारती, चलो कर्म की राह।।
667. परीक्षा
घड़ी परीक्षा की यही, रहें सुरक्षित आप।
जब तक वायरस न हटे, दो गज दूरी नाप।।
668. अलगाव
आतंकी अलगाव का, नित गाते हैं राग।
बहा खून निर्दाेष का, खेल रहे हैं फाग।।
669. मिलन
उम्र गुजरती जा रही, लगी मिलन की आस।
प्रभु से है यह प्रार्थना, चरणों में विश्वास।।
670. घात
घात और प्रतिघात से, पहुँचाते आघात।
मित्र कभी न बन सकें, बनती कभी न बात।।
671. आषाढ़
जेठ गया आषाढ़ ने, मन में भरी उमंग।
पहुनाई फिर सावनी, मौसम बदले रंग।।
672. उमस
उमस बढ़ी आषाढ़ में, चिन्तित हुए किसान।
खाद बीज घर में रखे, कैसे दुखद विहान।।
673. चक्रवात
चक्रवात उठने लगे, बढ़ा हवा का वेग।
उमड़-घुमड़ कर मेघ ने, दिया धरा को नेग।।
674. कजरी
कजरी ठुमकी दादरा, गायन के है हार।
वर्षा में संगीत की, बहती है रसधार।।
675. घनश्याम
प्रकट हुए घनश्याम अब, बदलेंगे परिवेश।
नभ में बिजली कौंधती, वर्षा का संदेश।।
676. कुवलय
पोखर में कुवलय खिले, देख सभी हैं दंग।
केशव को अर्पित करें, नील वर्ण है रंग।।
677. कुमुदबंधु
खिलते हैं जब झील में, रंग-बिरंगे फूल।
कुमुद-बंधु को देख कर, दुखड़े जाते भूल।।
678. वाचक
वाचक अपने ज्ञान से, देता सदा प्रकाश।
दोषों से वह मुक्ति दे, करता तम का नाश।।
679. विरहित
दुर्याेधन विरहित रहे, कुल के बुझे चिराग।
द्वापर का युग कह रहा, दुहराएँ मत राग।।
680. वापिका
जीव-जन्तु निर्जीव के, जीवन पर है शोध।
प्यास बुझाती वापिका, छट जाते अवरोध।।
681. प्राणायाम
करें सुबह उठ कर सभी, प्राणायाम-विहार।
साँसों से जीवन-मरण, रहता दिल गुलजार।।
682. संकटकाल
गुजरा संकट काल यह, आया है इक्कीस।
वैक्सीन है आ गई, देख भगा वह बीस।।
683. चकोरी
नयन चकोरी देखती, कैसी अनबुझ प्यास।
देख चंद्रमा हँस उठा, फिर भी हटी न आस।।
684. हिलकोर
तन-मन जैसे नाचता, ज्यों जंगल में मोर।
शांत सरोवर में उठी, खुशियों की हिलकोर।।
685. प्रसून
अमरित बूँदों ने किया, नव जीवन संचार।
नव-प्रसून हैं खिल उठे, उनका है सत्कार।।
686. पावस
पावस में झरने बहें, भरें जलाशय कूप।
अमृत पीकर खिल उठे, जंगल लगे अनूप।।
687. दादुर
रिमझिम वारिश से हुई, खुशियों की बरसात।
दादुर झींगुर मगन हो, सुर को देते मात।।
688. आनंद
उमस पसीने तपन से, मिली हमें सौगात।
मेघ झरें आनंद के, खुशियों की बरसात।।
689. वर्षा
वर्षा-जल संचय करें, व्यर्थ न जाए नीर।
यह सबकी चिंता हरे, मिट जाती हर-पीर।।
690. जलधार
आँखों की जलधार ने, बड़े किए हर काम।
हृदय द्रवित जब हो उठे, पहुँचें उचित मुकाम।।
691. कवच
टीकाकरण ही कवच है, कोरोना के काल।
निर्भय हो लगवाइए, तन-मन हो खुशहाल।।
692. राहत
राहत है इस बात पर, जग में घटे मरीज।
रहें सुरक्षित हम सभी, कोरोना नाचीज।।
693. उड़ान
जीवन भरे उड़ान अब, प्रगति रहे गतिमान।
सुख वैभव समृद्धि से, भारत हो धनवान।।
694. व्यवसाय
पटरी पर चलता रहे, सबका हर व्यवसाय।
कर्म साधना सब करें, दुगनी हो फिर आय।।
695. ललित
ललित कला में दक्ष सब, कौशल का हो भाव।
अविरल उन्नति धार में, बढ़े हमारी नाव।।
696. गिलोेय
बरगद, पीपल, आँवला, तुलसी, शमी, गिलोय।
जीवन में अनमोल हैं, रोगी कभी न होय ।।
697. बरगद
जीवन के निर्माण में, हर बचपन की आस।
बरगद सी छाया मिले, मातु-पिता के पास।।
698. पीपल
पीपल की छाया सुखद, सबको देती छाँव।
अतिथि देव कहकर सदा, पीड़ा हरता गाँव।।
699. आँवला
आँवला नवमी तिथि को, शुभ पूजन का योग।
परिवारों के साथ में, मिलता मोहन भोग।।
700. तुलसी
तुलसी की हैं पत्तियाँ, देतीं अमरित-घोल।
घर-घर में सब पूजते, औषधि में अनमोल।।
701. शमी
बनी रहे शनि की कृपा, पूजन की दरकार।
शमी औषधी खान है, हरती वात-विकार।।
702. मुहूर्त
सदियों लटका मामला, मिला कोर्ट से त्राण।
शुभ मुहूर्त पूजा हुई, अब मंदिर निर्माण।।
703. प्रियता
प्रियता से दूरी बने, कष्टों की भरमार।
सम्बंधों को साधिए, घट जाएँगे भार।।
704. कोरोना
करें प्रतीक्षा हम सभी, कोरोना हो दूर।
मिटे अमंगल की घड़ी, जीना हो भरपूर।।
705. पत्र
पत्र लिखे हमने बहुत, भेजे उनके पास।
पहुँच न पाए उन तलक, टूट गई फिर आस।।
706. अनमोल
प्यार बड़ा अनमोल है, बढ़े जगत में मान।
जितना भी हम बाँटते, खुद की बढ़ती शान।।
707. प्रतिवाद
वाद और प्रतिवाद ही, नेताओं का कर्म।
कर्म भाव लोपित किया, भूल गए निज धर्म।।
708. मुक्ति
मुक्ति सभी हैं चाहते, करते रहते जाप ।
लोक और परलोक में, मिटें सभी संताप।।
709. दुत्कार
अज्ञानी के भाग्य में, जीवन भर दुत्कार।
ज्ञानी को मिलता सदा, प्रेम भरा सत्कार।।
710. नेपथ्य
रंग-मंच के पात्र सब, डोरी प्रभु के हाथ।
जब गूँजे नेपथ्य से, छोड़े जग का साथ।।
711. मिर्च
सदा मिर्च तीखी लगे, कटु वाणी मत बोल।
मीठी वाणी बोलिए, जो अमरित का घोल।।
712. अनुभव
अनुभव कहता है यही, बने वही हमराज।
सोचे समझें परख लें, तभी बचेगी लाज।।
713. अनुभूति
शांति और उत्साह से, दिल के जुड़ते तार।
कर्मठता अनुभूति से, मन से हटता भार।।
714. अनुकृति
ईश्वर की अनुकृति बना, पूजा करते लोग।
मन मैला,तन स्वच्छ हो, कभी न बनता योग।।
715. अनुमान
मंजिल पाने के लिये, मापदंड अनुमान।
निकल पड़े जब राह में, बन जाओ हनुमान।।
716. पीर
कृषक खड़ा है राह पर, उसके मन की पीर।
मौसम की जब मार हो, पाँवों में जंजीर।।
717. जनता
जनता चुनती ही रही, लोकतंत्र सरकार।
आशाओं को ध्वस्त कर, फिर बन जाती भार।।
718. जगत
गुण-अवगुण हर काल में,,सबको इसका भान।
रहे जगत खुशहाल जब, रखें गुणों का मान।।
719. जीवन
जीवन हमको है मिला, जीने का अधिकार।
सबको अवसर मिल सके, इसकी है दरकार।।
720. जीव
जीव वनस्पति ये सभी, हैं ईश्वर के रूप।
सबका ही कल्याण हो, होती प्रकृति अनूप।।
721. जन्म
जन्म-मरण के बीच का, होता छोटा काल।
कुछ जीने के काल में, करते बड़ा कमाल।।
722. तुंग
तुंग हिमालय है खड़ा, भारत का सिरमौर।
सागर रक्षक है बना, नित शुभ होती भोर।।
723. कौड़ी
फूटी कौड़ी है नहीं, बनते राजा भोज।
स्वप्न महल के देखते, सुबह-शाम ही रोज।।
724. इष्ट
इष्ट देव आराधना, प्रतिदिन प्रातः-शाम।
कपटी-मन, तन में बसे, मिलते कैसे राम।।
725. अर्गला
पाठ अर्गला कीजिए, सप्तशती का रोज।
माँ दुर्गा रक्षा करें, नौ-कन्या को भोज।।
726. मुद्रा
मुद्रा के भंडार सँग, करुणा का हो भाव।
दोनों के सत्संग से, चलती जग में नाव।।
727. कागा
छत पर कागा बैठ कर, देता है संदेश।
देख पाहुने आ रहे, बदलेगा परिवेश।।
728. सेवा
सेवा को तत्पर रहें, यही राह अब नेक।
हर मन में करुणा बसे, मानवता है एक।।
729. उमंग
आतंकी है वायरस, कौन बचा हे नाथ।
अब उमंग उत्साह से, छूट रहा है साथ।।
730. कीर्तन
मंदिर में कीर्तन जमीं, प्रभु से जुड़ा लगाव।
छाया संकट दूर हो, भरें सभी के घाव।।
731. अक्षर
कविता अक्षर-धाम हैं, अक्षर-अक्षर मंत्र।
जप-तप है आराधना, संकट का है यंत्र।।
732. स्वप्न
स्वप्न सलोने खो रहे, छायी तम की रात।
प्रभु सबका कल्याण कर, आए सुखद प्रभात।।
733. प्रभात
गहरा तम जग से हटे, नव प्रभात की चाह।
यह आशा विश्वास ही, है जीवन की राह।।
734. महावीर
संकट जब हो सामने, होते नहीं अधीर।
महावीर उसको कहें, बाहुबली से वीर।।
735. संजीवनी
कोरोना संजीवनी, आई घर-घर आज।
टीका सबको ही लगे, तभी करेंगे राज।।
736. शोक
शोक घरों में छा रहा, रहें सुरक्षित आप।
मास्क लगाकर ही चलें, दो गज दूरी नाप।।
737. समाधान
समाधान की राह ही, करती संकट दूर।
मिलकर उसे तलाशिए, कहलाएँगे शूर।।
738. प्रत्याशा
प्रत्याशा बढ़ने लगी, मिली दवाई नेक।
टीका लगने पर लगा, काटेंगे फिर केक।।
739. झरोखा
आँख झरोखा बन गए, झाँक सके तो झाँक।
अंतर्मन के भाव को, सहज-भाव से आँक।।
740. खिड़की
मानव का कद जब बढ़े, तब छूता आकाश।
दिल की खिड़की खोल कर, मन में भरें प्रकाश।।
741. अटारी
बहा पसीना श्रमिक का, सुंदर बना मकान।
बनी अटारी कह रही, क्यों श्रम से अनजान।।
742. आँगन
आँगन सारे मिट गए, दिखतीं हैं दीवार।
डुप्लेक्सों में जी रहे, जीवन की दरकार।।
743. दहलीज
पार किया दहलीज को, प्राणों पर है भार।
मास्क लगाकर ही रहें, यदि जीवन से प्यार।।
744. संवत्सर
ब्रह्माजी की सृष्टि की, गणना की आरम्भ।
संवत्सर की यह कथा, सतयुग से प्रारम्भ ।।
745. नववर्ष
सनातनी नववर्ष का, खुशी भरा यह मास।
धरा प्रफुल्लित हो रही, आया है मधुमास।।
746. देवियाँ
शक्ति रूप में देवियाँ, पाती हैं सम्मान।
आराधक बन पूजता, सारा हिन्दुस्तान।।
747. चैत्र
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, आता है नव वर्ष।
धरा प्रकृति मौसम हवा, मन को करता हर्ष।।
748. माता
माता का आँचल सुखद, सबको मिलती छाँव।
दमके जीवन स्वर्ण सम, शहर बसें या गाँव।।
749. नटखट
नटखट कृष्णा छिप गए, आते देखा मात।
खड़ी गोपियों ने कहा, वहाँ छिपे हो तात।।
750. मीरा
मीरा ने है कर लिया, प्रेम मगन विष पान।
विष को अमृत बना कर, रखा प्रेम का मान।।
751. शूल
शूल चुभे हैं अनगिनत, नहीं किया परवाह।
आज तभी मंजिल दिखी, मिली हमें है राह।।
752. स्वर्ण
जीवन दमके स्वर्ण सम, सबके मन की चाह।
मेहनत ही वह रास्ता, जो दिखलाती राह।।
753. कुंतल
कुंतल में उलझे रहे, प्रभु का लिया न नाम।
चैथापन जब आ खड़ा, तब जपते हो राम।।
754. शृंगार
अक्षय-मन शृंगार हो, तन का होता व्यर्थ।
मन से मन जब है मिले, तब जीने का अर्थ।।
755. अभिसार
प्रियतम के बिन शून्य है, निकले हर पल आह।
कठिन डगर अभिसार की, हर पल ढूँढ़े राह।।
756. वंदनवार
द्वारे वंदनवार हैं, मंडप में ज्योनार।
बाबुल की आँखें भरीे, डोली है तैयार।।
757. मनुहार
ईश्वर से मनुहार कर, व्यापे कभी न रोग।
प्रभु से करे मनौतियाँ, और चढ़ावें भोग।।
758. प्राण
तन में प्राण अमोल है, सब हैं मालामाल।
दुर्जन की मत पूछिए, हरने को बेहाल।।
759. पिचकारी
पिचकारी ले हाथ में, किशन खड़े हैं ओट।
पीछे राधा आ गईं, उनको देने चोट।।
760. अबीर
झोली भरे अबीर की, ब्रज का नंदकिशोर।
ग्वालों की टोली बना, गुँजा रहा हर छोर।।
761. गुलाल
माथे लगा गुलाल जब, होली की सौगात।
भूले सभी मलाल को, बनती बिगड़ी बात।।
762. होली
रंगों में डूबे सभी, होली की हुड़दंग।
मौसम है बौरा गया, जैसे पी हो भंग।।
763. फाग
टिमकी गूँजी गाँव में, चला फाग का शोर।
हुरियारों की फाग को, देख रही है भोर।।
764. चैपाल
नहीं रही चैपाल अब, सुलझें जहाँ बवाल।
जुम्मन से रंजिश मिटे, गले मिले हर साल।।
765. टकसाल
आतंकी टकसाल पर, कसा शिकंजा आज।
नजरबंद नेता किए, मिटा दहशती राज।।
766. धमाल
होली की हुड़दंग में, होगा नहीं धमाल।
कोरोना का आगमन, बंदिश रही कमाल।।
767. उछाल
आया बड़ा उछाल फिर, व्यापारिक परिवेश।
साहस धीरज ने दिया, उन्नति का संदेश।।
768. मालामाल
वैकसीन निर्माण में, भारत मालामाल।
संकट के इस दौर में, जग को किया निहाल।।
769. कस्तूरी
कस्तूरी है नाभि में, फिर भी मृग अनजान।
सुख-दुख अंदर झाँक ले, क्यों भटके नादान।।
770. फागुन
स्वर्णिम बालें झुक गईं, संभले अब न भार।
फागुन की पुरवा बही, खिली धूप कचनार।।
771. महुआ
बहक रहा मन बावरा, कोई कहे बुखार।
मौसम महुआ का हुआ, सबको चढ़ा खुमार।।
772. किंशुक (पलाश)
किंशुक ने बिखरा दिया, अधरों की मुस्कान।
बाँहों में भरकर प्रकृति, झूम उठी स्वर-तान।।
773. गुलमुहर
खिला गुलमुहर बाग में, गूँजा मंगलगान।
शिवरात्रि की है घड़ी, सब करते शिव ध्यान।।
774. फसल
खेतों में फसलें खड़ी, लगे सुहाना दृश्य।
झूम-झूम लहरा रहीं, सुन्दर लगे भविष्य।।
775. किसान
फसलें देख किसान का, ऊँचा उठता भाल।
माथे से संकट टला, सबको करें निहाल।।
776. खेत
कर्म भूमि ही खेत है, नैतिकता है बीज।
जितना इसको बो सकें, अद्भुत है यह चीज।।
777. माटी
मेहनत करते श्रमिक जो, खाते छप्पन भोग।
माटी की खुशबू गजब, जुड़े अनेकों लोग।।
778. खलिहान
उपज रखें खालिहान में, जब श्रमवीर किसान।
मन आनंदित हो उठे, चलते सीना तान।।
779. सुधा
गरलकंठ धारण किया, कर शिव ने कल्यान।
सभी देवगण ने किया, कलश-सुधा रस पान।।
780. सुगंध
परिणय बंधन में बँधें, युगल-प्रणय अनुबंध।
पति-पत्नी बन प्रेम हो, वातावरण सुगंध।।
781. सितार
झंकृत हुआ सितार जब, धरा छेड़ती तान।
मंद पवन बहला रही, छा जाती मुस्कान।।
782. सरसों
ऋतु बसंत का आगमन, धरा बदलती वेश।
पीली सरसों फूलती, स्वर्ण-प्रभा संदेश।।
783. स्वर्ण
स्वर्ण-प्रभा आभा लिए, आया सूरज भोर।
पंक्षी कलरव कर रहे, खुशियों का है शोर।।
784. कान
कान कृष्ण के सुन रहे, नूपुर में थी खोट।
राधा छिप जाती कहीं, काम न आती ओट।।
785. कुटी
न्यारी कुटी बनाइए, जहाँ विराजें राम।
दया प्रेम सद्भावना, सही बड़े हैं धाम।।
786. कुटीर
लघु-कुटीर उद्योग हैं, उन्नति के सोपान।
काम मिले हर हाथ को, जीवन जीते शान।।
787. गृहस्थी
सुखद गृहस्थी में सदा, प्रेम शांति का वास।
हिलमिलकर रहते सभी, कटुता का है नास।।
788. नारी
नारी का सम्मान हो, सिखलाता हर धर्म।
जहाँ उपेक्षित हो रहीं, आएगी कब शर्म।।
789. सुंदरता
सुंदरता की चाह में,, गवाँ दिया सुख चैन।
कोयल जैसी कूक को, तरस गए दिन-रैन।।
790. मुखड़ा
मुखड़ा सुंदर देखकर, मोहित है संसार।
कोयल-कागा परखने, बुद्धि की दरकार।।
791. कोमलता
कोमलता मन में भरें, यह जीवन रस रंग।
प्रेम कलश छलके सदा, मादक लगते अंग।।
792. अंतरंग
शांति और सद्भाव से, बहती प्रगति सुगंध।
सदा पड़ोसी से रहें, अंतरंग संबंध।।
793. अभिव्यक्ति
प्रजातंत्र-अभिव्यक्ति का, ढपली ले कर शोर।
छù वेषधर गा रहे, कैसे होगी भोर।।
794. प्रस्ताव
वार्ता से ही सुलझते, समस्याओं के हल।
ठुकराएँ प्रस्ताव जब, कैसे मिलेगा फल।।
795. हल्दी
हल्दी कुमकुम सी लगी, मौसम-माथे प्रीत।
बसंत पंचमी पर्व में, फैली सरसों पीत।।
796. पीड़ा
पीड़ा जिसके भाग में, लिख देता भगवान।
कर्मठ मानव जूझकर, पाता सदा निदान।।
797. अर्पण
अर्पण कविताएँ सभी, सरस्वती के नाम।
ज्ञान-बुद्धि देती रहें, करें जगत हित काम।।
798. आराधना
माता की आराधना, अद्भुत देती शक्ति।
भेद-भाव को भूल कर, करते हैं सब भक्ति।।
799. अपराधी
अपराधी अपराध कर, निर्भय घूमें आज।
निरअपराधी बंद हैं, थाने का अब राज।।
800. झील
झील रही निर्मल सदा, दूषित करते लोग।
कूड़ा-करकट डालकर, तन में पालें रोग।।
801. अलाव
गाँवों की चैपाल में, फिर से जला अलाव।
मिलकर सबजन बैठते, दिखा नहीं अलगाव।।
802. किलकार
गूँज रही किलकार है घर आँगन में आज।
शहनाई जो बज रही, खुशियाँ हैं सरताज।।
803. मेला
चंडी का मेला भरा, झूलों की भरमार।
चाट-चटौनी बिक रही, गले मिले सब यार।।
804. खलिहान
खुश होते खलिहान हैं, बढ़ती पैदावार।
अपने अंक समेटकर, रखता है भंडार।।
805. उजियार
दीपक जलकर सदा से, फैलाता उजियार।
तमस भगाकर मनुज पर, करता है उपकार।।
806. मदिर
मदिर-नयन है रस-भरे, तेज चलाती बाण।
दिल को घायल कर रही, सबको देती त्राण।।
807. अंगूरी
अंगूरी छलका रही, बहती मधुमय धार।
पीने वाले पी रहे, नयनन चले कटार।।
808. समय
समय बड़ा बलवान है,क्या राजा क्या रंक।
पल में वही पछाड़ता, करता वही निशंक।।
809. पल
पल दो पल की जिंदगी, हँसी-खुशी से जीत।
समय दुबारा कब मिले, बिछड़़ेंगे हर-मीत।।
810. क्षण
प्रेम-क्षमा की डोर में, बँधकर पा सम्मान।
क्षण भंगुर यह देह है, मत कर तू अभिमान।।
811. भावी
क्षण में सब बदले यहाँ, वर्तमान अरु भूत।
भावी ले जाए कहाँ, कथा बाँचता सूत।।
812. काल
काल खड़ा जब द्वार में, नहीं दिखेगी भोर।
ईश्वर का तू ध्यान कर, पकड़ अभी से छोर।।
813. साँस
काल करे सो आज कर, कल को मत दे छूट।
किसको कल का है पता, साँस न जाए टूट।।
814. निमिष
निमिष-निमिष हम बढ़़ रहे,मंजिल की ही ओर।
खड़ा विश्व फिर सुन रहा, जगत-गुरू का शोर।।
815. घाव
कोरोना के घाव ने, दिया हमें आघात।
प्राण-निमिष जाते रहे, भारत ने दी मात।।
816. पतिव्रता
पतिव्रता परिकल्पना, प्रेम समर्पण भाव।
आपस में सद्भावना, जीवन की है नाव।।
ं817. दिव्य-पुरुष
दिव्य पुरुष में शक्तियाँ, मुखड़े पर आलोक।
अनगिन होतीं खूबियाँ, कभी न फटके शोक।।
818. धरा
सहनशील है यह धरा, पाले मातु समान।
कितना ही दूषित करें, रखे सभी का घ्यान।।
819. पहाड़
ईश्वर से कुछ माँगने, ऊँचे चढ़े पहाड़।
दूषित-मन लेकर गए, केवल तोड़े हाड़।।
820. बिम्ब
दया-प्रेम का बिम्ब ही, ईश्वर का प्रतिरूप।
दौड़ पड़े सब उस दिशा, जहाँ खिली हो धूप।।
821. अनुराग
चैथेपन में बढ़ गई, प्रभु जी से अब आस।
द्वेष मोह सब भूलकर, ईश्वर के हैं दास।।
822. अनूप
झरने नदी पहाड़ से, लगती प्रकृति अनूप।
सदियों से मोहित करे, मानव को यह रूप।।
823. मनमोहक
मनमोहक छवि देखने, सहते ठंडक धूप।
मन को शांति कब मिली, भटके मंदिर-कूप।।
824. परस
मानव परिणय में बँधे, मूक-प्रणय संवाद।
दरस-परस से कर रहे, दुनिया को आबाद।।
825. परिणय
मंगल-परिणय की घड़ी, फिर आई इस वर्ष।
भगा करोना देश से, चहुँ दिश छाया हर्ष।।
826. प्रणय
प्रणय निवेदन कर रहा, मौसम फिर से आज।
समय पर्यटन भ्रमण का, चलो देखने ताज।।
827. प्रियतमा
स्वागत में अब पाँवड़े, बिछा रहे नित छोर।
सुंदर लगती प्रियतमा, उठती प्रेम हिलोर।।
828. प्रीति
प्रीति-डोर में बँध गए, जो कल थे अनजान।
हाथों में अब हाथ ले, चलते सीना तान।।
829. आँचल
बसें किसी भी देश में, शहर रहे या गाँव।
ममता का आँचल सदा, देता सबको छाँव।।
830. पीयूष
आँचल-ढक पीयूष से, देती जीवन दान।
करें मातृ की वंदना, वही बचाती जान।।
831. सैनिक
सैनिक फिर से चल दिए, पूछ न पाए हाल।
सैन्य-बुलावा आ गया, था संकट का काल।।
832. बुखार
अर्थ व्यवस्था देखकर, अरि को चढ़ा बुखार।
याचक बनकर है खड़ा, अब करना व्यापार।।
833. बीमार
कोरोना की मार से, हुआ विश्व बीमार।
साहस दृढ़ता धर्य से, उबरा अब बाजार।।
834. चोट
चोट लगी गहरी मगर, टूटा अरि का मोह।
घाटी में अब शांति है, खत्म हुआ विद्रोह।।
835. औषधि
कड़वी औषधि ही सही, करती है उपचार।
दवा समझ कर पीजिए, तन का मिटे विकार।।
836. उपचार
संकट जब हो देश पर, करना है उपकार।
राष्ट्रवाद की सोच से, हो जाता उपचार।।
837. संजीवनी
भेज रहे संजीवनी, यह भारत की शान।
फँसे हुए यूक्रेन में, छात्र न हों हैरान।।
838. पीड़ा
जननी की पीड़ा यही, पैदा किया सपूत।
कालांतर में फिर वही, डरवाते बन भूत।।
839. संवाद
कैसे हो संवाद अब, टूट गई हर आस।
लड़ने को आतुर दिखें, रहते हांे जब पास।।
840. मन्मथ
मन्मथ ने बिखरा रखी, चारों ओर बहार।
मुदित धरा भी देखती, उछले नदिया धार।।
841. दुकूल
मौसम ने ली करवटें, दमके टेसू फूल।
स्वागत सबका कर रहे, ओढ़े खड़े दुकूल।।
842. लंकापति
लंकापति के राज्य से, दुखी रहा संसार।
करके दर्शन राम का, जीवन से उद्धार।।
843. अलकें
अलकें छू कर गाल को, देतीं प्रिय संदेश।
धैर्य रखो प्राणेश्वरी, बदलेगा परिवेश।।
844. बिंदिया
अलकें बिंदिया चूमकर, करती है सम्मान।
नारी की महिमा बड़ी, करता जग गुणगान।।
845. आँखें
आँखें राह निहारतीं, प्रियतम की हर रोज।
दर्शन-कर फिर दीखता, मुख मंडल में ओज।।
846. व्यवहार
माँ की आँखें देखतीं, पुत्रों का व्यवहार।
नन्हें पैरों से घिसट, आते-पाने प्यार।।
847. अधर
अधर फड़कते रह गए, बुझी न दिल की प्यास।
सीमाओं पर चल दिए, जगा गए फिर आस।।
848. मुरली
मुरली साजे अधर में, सजती ब्रज की रास।
राधा-गोपी नाचतीं, छाता ज्यों मधुमास।।
849. निष्फल
निष्फल रहे प्रयास सब, नहीं सुधरते लोग।
सद्कर्माें से भटक कर, पाते दुख का भोग।।
850. कविता
कविता देती है सदा, नेक नियति संदेश।
तुलसी और कबीर ने, बदल दिया परिवेश।।
851. सारस्वत
ज्ञान तत्त्व जो बाँटता, फैलाता उजियार।
सारस्वत वह देवता, हरता कलुष विचार।।
852. प्रदर्शन
लोग प्रदर्शन कर रहे, भूल गए कत्र्तव्य।
अधिकारों के लिए ही, चाह रहे हैं हव्य।।
853. मकरंद
फूलों के मकरंद पर, भौंरे लिखते छंद।
बागों में गुंजन करें, गाते नित हैं बंद।।
854. पवन
पवन लटों से खेलता, उलझाता हर बार।
परेशान लट कह उठी, हमने मानी हार।।
855. सिहरन
पावस की बूँदें गिरीं, गोरी के जब गाल।
सिहरन तन-मन में हुई, जैसे मली गुलाल।।
856. उपहार
सजनी का साजन खड़ा, माँग रहा है प्यार।
गालों पर धर-अधर ने, दिया प्रेम उपहार।।
857. प्रेम
प्रेम बड़ा अनमोल है, भूला नहीं गरीब।
जीवन जीने की कला, दिल के बड़़े करीब।।
858. प्रतीक
अधरों ने छेड़ी गजल, दीपक प्रेम प्रतीक।
नयन शरम से झुक गए, दृश्य हुआ रमणीक।।
859. प्रतिबिंब
अपने ही प्रतिबिंब को, हुआ देख हैरान।
सज्जनता का रूप धर, हँसता है शैतान।।
860. प्रतीति
सुख-प्रतीति में जी रहे, नेताओं के संग।
उनकी ही हर बात पर, जग पर चढ़ता रंग।।
861. अवनि
सजी ओस की बूँद हैं, तरुवर तृण मकरंद।
हर्षित अवनि बिखेरती, मणि-मोती सानंद।।
862. अंबर
अंबर में है बैठकर, सूरज करता जाप।
अधरों की मुस्कान से, हर लेता संताप।।
863. पूस
पूस माह के दिवस सब, जाड़े की सौगात।
तन-मन को है नापती, करती सबको मात।।
864. अगहन
अगहन दस्तक दे रहा, ठंडी बहे बयार।
टँगी रजाई अरगनी, करती है मनुहार।।
865. फसल
फसल खड़ी है खेत में, चिंतित रहे किसान।
पके-कटे पैसा मिले, पहनें तब परिधान।।
866. नार
भारत की यह नार है, बाँध-पीठ में लाल।
कर्म भूमि या समर हो, नहीं झुका है भाल।।
867. मजदूरनी
मेहनतकश मजदूरनी, देती जग को मात।
ममता का भी ध्यान रख, भोजन दे दिन रात।।
868. वियोग
देशभक्त सेना प्रमुख, असमय हुआ वियोग।
सी डी यस रावत विपिन, दुखद रहा संयोग।।
869. ऋद्धांजलि
ऋद्धांजलि हम दे रहे, हाथ जोड़ कर आज।
रावत जी पर नाज है, किए देश हित काज।।
870. थरथर
काँप रहा थरथर बदन, बढ़ा ठंड का जोर।
शीत लहर ऐसी बही, हो जा अब तो भोर।।
871. मार्गशीर्ष
मार्गशीर्ष के माह में, होती श्रद्धा भक्ति।
भक्तगणों को मिल रही, इससे अद्भुत शक्ति।।
872. कंबल
कंबल ओढ़े सो गए, फिर भी कटे न रात।
ओढ़ रजाई बावले, बन जाएगी बात।।
873. ठंड
ठंड कड़ाके की पड़ी, घर में जले अलाव।
फिर भी भगती है नहीं, लगता बड़ा दुराव।।
874. ठिठुर
पारा गिरता जा रहा, ठिठुर रहे हैं लोग।
बदले मौसम को सभी, सुना रहे हैं भोग।।
875. अंगीठी
जली अंगीठी बीच में, दिल में जगी हिलोर।
समय गुजरता ही गया, देख हो गई भोर।।
876. आँच
आँच आग की तापते, नित्य श्रमिक मजदूर।
सड़क किनारे रह रहे, बेघर हैं मजदूर।।
877. कुनकुना
नीर कुनकुना पीजिए, ठंडी का है जोर।
स्वस्थ रहे तन-मन सभी, लगे सुहानी भोर।।
878. धूप
धूप, दीप नैवेद्य से, करते सब आराध्य।
भक्ति भाव से पूजते, पूजन के हैं साध्य।।
879. कुहासा
दुर्घटना से बच रहे, जीवन है अनमोल।
देख कुहासा सड़क पर, चालक बोले बोल।।
880. स्वेटर
स्वेटर बुनतीं नारियाँ, दिखे समर्पण भाव।
परिवारों के प्रति दिखे, उनका नेह लगाव।।
881. शाल
शाल उढ़ाकर अतिथि का, किया उचित सम्मान।
संस्कृति अपनी है यही, कहलाता भगवान।।
882. कंबल
ओढ़े कंबल चल दिए, कृषक और मजदूर।
कर्मजगत ही श्रेष्ठ है, नहीं रहा मजबूर।।
883. रजाई
ओढ़ रजाई खाट में, दादा जी का रंग।
सुना रहे हैं ठंड के, रोचक भरे प्रसंग।।
884. अंगीठी
बीच अंगीठी जब जले, वार्तालापी भाव।
मौसम के इस दौर में, बढ़ता बड़ा लगाव।।
885. पूस
पूस माह की ठंड यह, काँपें सबके हाड़।
सूरज की जब तपन हो, भागे तब ही जाड़।।
886. ठंड
जाड़े में ओले गिरें, बढ़ती जाती ठंड।
पट्टी में बैठा हुआ, भोग रहा है दंड।।
887. ऊन
ऊन लिए है हाथ में, रखी सिलाई पास।
माँ की ममता ने बुने, स्वेटर कुछ हैं खास।।
888. धूप
वर्षा ऋतु का आगमन, जंगल नाचें मोर।
देख धूप है झाँकती, मनभावन चितचोर।।
889. आँगन
आँगन में बैठे सभी, जला अंगीठी ताप।
दुख दर्दों को बाँटते, दिल को लेते नाप।।
890. शशि
शीतल-शशि की रश्मियाँ, जग को करें निहाल।
देती हैं संदेश यह, जीवन हो खुशहाल।।
891. आलोक
भारत को गौरव मिला, जग में हुआ महान।
बिखर गया आलोक अब, फिर पाया सम्मान।।
892. तारक
तारक जग के राम हैं, सबके पालनहार।
संकट में रक्षा करें, लगे न जीवन भार।।
893. भुवन
देव प्रभाकर भुवन में, बिखरा गए प्रकाश।
उठो बावले चल पड़ो, होते नहीं निराश।।
894. पुंज
ज्योति पुंज दीपावली, करे तिमिर का नाश।
विस्तारित होता रहे, खुशियों का आकाश।।
895. योग
योग-गुरू भारत बना, दिया जगत संदेश।
स्वस्थ निरोगी हांे सभी, बदलेगा परिवेश।।
896. विवेकानंद
युवा विवेकानंद ने, विश्व शांति पैगाम।
भारत की पहचान दे, किया अनोखा काम।।
897. श्वास
तन में जब तक श्वास है, जीवन की है आस।
जिस दिन हमसे रूठती, मृत्यु नाचती पास।।
898. अनुलोम
तन-योगी साधक बना, कर अनुलोम-विलोम।
हर्षित-मन जग में जिया, स्वस्थ निरोगी व्योम।।
899. प्राणायाम
करते प्राणयाम जो, होते स्वस्थ निरोग।
दीर्घ आयु होते तभी, बनते सभी सुयोग।।
900. मंजरी
मातु यशोदा मथ रही, मथनी से पय सार।
लटकी जो मंजीर है, बजती बारम्बार।।
901. बारूद
कट्टरता की सोच ही, मानवता पर भार।
बैठी है बारूद पर, दुनियाँ की सरकार।।
902. मेदनी
निकल पड़ी जन-मेदनी, विंध्याचल को आज।
नव-दुर्गा का पर्व यह, सभी बनेंगे काज।।
903. चीवर
गेरू-चीवर पहनकर, चले राम वनवास।
अनुज लखन सीता चलीं, दशरथ हुए उदास।।
904. कलिका
कोमल कलिका देखकर, हर्षित पालनहार।
फूल खिलेगा बाग में, खुश होगा संसार।।
905. संविधान
संविधान वह ग्रंथ है, पावन सुखद पुनीत।
अधिकारों कर्तव्य का, अनुबंधित यह मीत।।
906. गणतंत्र
भारत के गणतंत्र का, करता जग यशगान।
जनता के हित साधकर, सबका रखता मान।।
907. राष्ट्रगान
राष्ट्रगान हर देश का, गरिमा-शाली मंत्र।
आराधक हम नागरिक, राष्ट्र समर्पण तंत्र।।
908. तिरंगा
हाथ तिरंगा ले चले, राष्ट्रभक्त चहुँ ओर।
गणतंत्री त्यौहार यह, लहराता है भोर।।
909. सौगंध
सेना की सौगंध है, झुके न भारत भाल।
हो दुश्मन कितना बड़ा, होगी सफल न चाल।।
910. रागनी
प्रेम रागनी बह चली, नव युगालों के बीच।
मधुरिम रात गुजर गई, प्रिय स्मृतियाँ सींच।।
911. राग-रागनी
राग-रागनी में बसे, प्रेम भाव का वास।
पूजन अर्चन संग में, प्रभु को आता रास।।
912. मयूर
हर्षित हुआ मयूर है, चला प्रेम संवाद।
देख मयूरी नाचती, मेघों का है नाद।।
913. पुष्पज
वासंती ऋतु आ गई, भौरों का मधु गान।
पुष्पज पर गुंजन करें, किया झूम रस पान।।
914. अंगना (स्त्री)
अंगना के पजना बजे, खुशियों के बरसात।
घर आई नव पाहुनी, शुभ मुहूर्त की रात।।
915. पर्जन्य
बरस उठे पर्जन्य हैं, गरज-धरज के साथ।
झूम उठी है यह धरा, बढ़े कृषक के हाथ।।
916. कुसुमाकर
कुसुमाकर प्रिय आ गया, लेकर मस्त बहार।
गली-गली में झूमते, मस्ती में नर-नार।।
917. वसंत
ऋतु वसंत की धूम है, बाग हुए गुलजार।
रंग-बिरंगे फूल खिल, लुटा रहे हैं प्यार।।
918. पलाश
हँस पलाश कहने लगा, फागुन आया द्वार।
राधा खड़ी उदास है, कान्हा से तकरार।।
919. महुआ
चखा नहीं फिर भी चढ़ा, मादकता का जोर।
महुआ मन में आ बसा, तन में उठी हिलोर।।
920. खुमार
वासंती मौसम हुआ, तन-मन चढ़ा खुमार।
मादक महुआ सा लगे, होली का त्यौहार।।
921. सेमल
सेमल का यह वृक्ष है, गुणकारी भरपूर।
मानव का हित कर रहा, औषधि में है नूर।।
922. संझा
संझा बिरिया बीतती, ईश्वर से मनुहार।
द्वारे-बैठ निहारती, प्रियतम से है प्यार।।
923. पतंग
आशाओं की डोर हो, नित जीवन की भोर।
मन की उड़े पतंग जब, पकड़ रखो हर छोर।।
924. माघ
माघ माह की पूर्णिमा, होती पुण्य महान।
नदी किनारे पर करें, डुबकी-कर फिर दान।।
925. किंशुक (पलाश)
मौसम में किंशुक खिले, मधुमासी त्योहार।
प्रेम-प्रणय की चाहना, प्रकृति करे मनुहार।।
926. वसंत
है बसंत द्वारे खड़ा, ले कर रंग गुलाल।
बैर बुराई अलविदा, जग से हटें मलाल।।
927. टेसू
टेसू ने बिखरा दिए, लाल रेशमी रंग।
परछी में है पिस रही, सिल-बट्टे से भंग।।
928. ऋतुराज
स्वागत है ऋतुराज का, सबके मन को हर्ष।
पीली सरसों खिल उठी, मिलकर करें विमर्ष।।
929. मध्वासव
मध्वासव-मधुमास में, छाया है चहुँ ओर।
बिन पीये ही मगन हैं, होती ऐसी भोर।।
930. विजया (दुर्गा)
विजया से वरदान का, झुका रहे यह शीश।
बनी रहे सब पर कृपा, फल देते जगदीश।।
931. चाहत
मन में चाहत हों बड़ी, ऊँची भरो उड़ान।
अपने पर फैला उड़ो, जग में बढ़ती शान।।
932. नेक
नेक काम सब ही करें, जग में होता नाम।
याद रखे पीढ़ी सदा, देश बनेगा धाम।।
933. फसल
हरित क्रांति है आ गई, भारत है धनवान।
फसल उगाकर भर रहा, पेट और खलिहान।।
934. मिट्टी
मिट्टी की महिमा अलग, सभी झुकाते माथ।
जनम मरण शुभ कार्य में, हरदम रहता साथ।।
935. खलिहान
कृषक भरें खलिहान को, रक्षा करें जवान।
खुशहाली है देश में, जगत करे यशगान।।
836. अन्न
अन्न उपजता खेत में, श्रम जीवी परिणाम।
बहा पसीना कृषक का, प्रातकाल से शाम।।
937. किसान
कुछ किसान दुख में जिएँ, कष्टों की भरमार।
उपज मूल्य अच्छा मिले, मिलकर करें विचार।।
938. बरजोरी
बरजोरी हैं कर रहे, ग्वालबाल प्रिय संग।
श्यामलला भी मल रहे, गालों पर हैं रंग।।
939. चूनर
चूनर भीगी रंग से, कान्हा से तकरार।
राधा भी करने लगीं, रंगों की बौछार।।
940. अँगिया
फागुन का सुन आगमन, होती अँगिया तंग।
उठी हिलोरें प्रेम की, चारों ओर उमंग।।
941. रसिया
रसिया ने फिर छेड़ दी, ढपली लेकर तान।
ब्रज में होरी जल गई, गले मिले वृजभान।।
942. गुलाल
रंगों की बरसात में, उड़ती रही गुलाल।
गले मिल रहे हैं सभी, करने लगे धमाल।।
943. बरसे
गाँवों की चैपाल में, बरसे है रस-रंग।
बारे-बूढ़े झूमकर, करते सबको दंग।।
944. होलिका
जली होलिका रात में, हुआ तमस का अंत।
अपनी संस्कृति को बचा, बने जगत के कंत।।
945. होली
कवियों की होली हुई, चले व्यंग्य के बाण।
हास और परिहास सुन, मिला गमों से त्राण।।
946. बाँह
बाँह थाम कर चल पड़े, मोदी जी के साथ।
देश प्रगति पथ पर चला, बढ़े सभी के हाथ।।
947. छैला
छैला बनकर घूमते, गाँव-गली पर भार।
बनें मुसीबत हर घड़ी, कैसे हो उद्धार।।
948. महान
हाथ जोड़कर कह रहा, भारत देश महान।
शांति और सद्भाव से, है मानव कल्यान।।
949. ग्रीष्म
ग्रीष्म-तप रहा मार्च से, कमर कसे है जून।
जब आएगा नव तपा, तपन बढ़ेगी दून।।
950. चिरैया
पतझर में तरु झर गए, ग्रीष्म मचाए शोर।
उड़ीं चिरैया देखकर, कल को यहाँ न भोर।।
951. गौरैया
गौरैया दिखती नहीं, ममता देखे राह।
दाना रोज बिखेरती, रही अधूरी चाह।।
952. लू
भरी दुपहरी में लगे, लू की गरम थपेड़।
कर्मवीर अब कृषक भी, दिखते सभी अधेड़।।
953. तपन
सूरज की अब तपन का, दिखा रौद्र अवतार।
सूख रहे सरवर कुआँ, सबको चढ़ा बुखार।।
954. पनघट
पनघट बिछुड़े गाँव से, टूटा घर-संवाद।
सुख दुख की टूटी कड़ी, घर-घर में अवसाद।।
955. कुआँ
कुआँ नहीं अब शहर में, ट्यूबबैल हैं गाँव।
पीने को पानी नहीं, दिखती कहीं न छाँव।।
956. जेठ
जेठ दुपहरी की तपन, दिन हो चाहे रात।
उमस बढ़ाती जा रही, पहुँचाती आघात।।
957. ताल
ताल सभी बेहाल अब, नदी गई है सूख।
तरुवर झरकर ठूँठ से, दिखे नहीं वे रूख।।
958. पंछी
प्रकृति हुई अब बावली, बदला है परिवेश।
पंछी का कलरव कहाँ, चले गए परदेश।।
959. यश-अपयश
यश-अपयश की डोर है, हर मानव के हाथ।
जितना उसे सहेजता, फल मिलता है साथ।।
960. विचार
जीवन कैसा जी रहे, मिलकर करो विचार।
लोक और परलोक में, मिलें पुष्प के हार।।
961. अभिमान
हमसे अच्छा कौन है, करो न यह अभिमान।
कूएँ के मेंढक सदा, रखें यही बस शान।।
962. सच्चा-साथी
मन सच्चा-साथी बने, समझो नहीं अनाथ।
निर्भय होकर तुम बढ़ो, हरदम रहता साथ।।
963. समय
चलो समय के साथ में, समय बड़ा अनमोल।
गुजरा समय न लौटता, ज्ञानी जन के बोल।।
964. राह
राह चुनो अच्छी सदा, जीवन में है भोर।
गलत राह में जब बढं़े, तम का बढ़ता जोर।।
965. मोहन-भोग
दिखे जगत में बहुत से, भाँति-भाँति के लोग।
तृप्त-पेट को ही भरें, देते मोहन भोग।।
966. अकड़
अकड़ दिखाते जो बहुत, पागल हैं वे लोग।
विनम्र भाव से जो जिएँ, घेरे कभी न रोग।।
967. सच्चा-रिश्ता
चलो आपके साथ हैं, कदम बढ़ाते साथ।
सच्चा-रिश्ता है वही, थामे हरदम हाथ।।
968. मन-मंदिर
मन-मंदिर में राम हों, रक्षक तब हनुमान।
सीता रूपी शांति से, सुखद-सुयश धनवान।।
969. रामराज्य
रामराज्य का आसरा, राजनीति की डोर।
देख पतंगें गगन में, पकड़ न पाते छोर।।
970. अनुभव
अनुभव कहता है यही, दुख में जो दे साथ।
सच्चा मानव है वही, कभी न छोड़ें हाथ।।
971. दोहा
दोहा में देश हो, भाषा, सरल, सुबोध।
सहज भाव में ही लिखें, दिखे नहीं अवरोघ।।
972. ताल
ताल हुए बेताल अब, नीर गया है सूख।
सूरज की गर्मी विकट, उजड़ रहे हैं रूख।।
973. नदी
नदी हुई है बावली, पकड़ी सकरी राह।
सूना तट है देखता, जीवन की फिर चाह।।
974. पोखर
पोखर दिखते घाव से, तड़प उठे हैं जीव।
उपचारों के नाम पर, खड़ी कर रहे नीव।।
975. झील
झील हुई ओझल अभी, नाव सो रही रेत।
तरबूजे, सब्जी उगीं, झील हो गई खेत।।
976. झरने
हरियाली गुम हो रही, सूरज करता दाह।
प्यासे झरने है खड़े, दर्शक भूले राह।।
977. अतिक्रमण
बढ़ा अतिक्रमण देश में, खड़ी कर रहा खाट।
राष्ट्र-सृजन के दौर में, बुलडोजर के ठाट।।
978. बुलडोजर
बुलडोजर से पथ बनें, बुलडोजर से बाँध।
पर्वत को भी तोड़ता, बने प्रगति का काँध।।
979. वेदांत
शांति और सौहार्द से, आच्छादित वेदांत।
धर्म ध्वजा की शान यह, सदा रहा सिद्धांत।।
980. विहान
आभा बिखरी क्षितिज में, खुशियों की सौगात।
नव विहान अब आ गया, बीती तम की रात।।
981. संविधान
संविधान से झाँकती, मानवता की बात।
दलगत की मजबूरियाँ, पहुँचाती आघात।।
982. ओजस्वी
मन ओजस्वी जब रहे, कहते तभी मनोज।
सरवर के अंतस उगंे, मोहक लगें सरोज।।
983. आराधना
देवों की आराधना, करते हैं सब लोग।
कृपा रहे उनकी सदा, भगें व्याधि अरु रोग।।
984. अमीर
दिल से बने अमीर सब, कब धन आया काम।
साथ नहीं ले जा सकें, हो जाती जब शाम।।
985. अमर
नाम अमर होता वही, बड़ा करे जो काम।
परहित में जो प्राण दे, बने उसी का धाम।।
986. महल
महल अटारी हों बड़ी, दिल का छोटा द्वार।
स्वार्थ करे अठखेलियाँ, बिछुड़ें पालनहार।।
987. घर
छोटा-घर पर दिल बड़ा, हँसी खुशी किल्लोल।
जीवन सुखमय से कटे, होता यह अनमोल।।
988. ममता
माँ की ममता ढूँढ़ती, वापस मिले दुलार।
वृद्धावस्था के समय, बसे दिलों में प्यार।।
989. वृद्धाश्रम
बेटों के संसार में, वृद्धों का क्या काम।
वृद्धाश्रम में रख दिया, वही हुए बदनाम।।
990. सूरज
आँख दिखा सूरज चला, अस्ताचल की ओर।
चंदा ने शीतल किया, धरती का हर छोर।।
991. धरती
धरती की पीड़ा यही, उजड़ा घर संसार।
खनिज-संपदा लुट गई, वृक्षों का संहार।।
992. गगन
नील गगन में उड़ रहे, पंछी संग जहाज।
मानव के पर उग गए, समय कर रहा नाज।।
993. पारा
सूरज का पारा चढ़ा, बढ़ा ग्रीष्म का रूप।
धरती तप कर कह उठी, बदरी लगे अनूप।।
994. पखेरू
प्राण पखेरू उड़ गए, तन हो गया निढाल।
अर्थी सज कर चल पड़ी, रिश्ते सब बेहाल।।
995. अनिकेत
पुत्र मोह कैकेई घिरी, वर माँगे अभिप्रेत।
चले राम सिय लखन संग, हुए राम अनिकेत।।
996. पंछी
प्रात पखेरू उड़ चले, दानों की है खोज।
नन्हें-पंछी डाल पर, राह निहारें रोज।।
997. नई सदी
नई सदी अब आ गई, चैराहे हर ओर।
भ्रमित हो रहे हैं सभी, पकड़ें किसका छोर।।
998. सागर
सागर की लहरें सदा, करतीं आत्मविभोर।
जीवन के संघर्ष में, प्रेरक हैं हिलकोर।।
999. सरोवर
शांत सरोवर दे रहा, जग को यह संदेश।
अंतस से उगते कमल, छवि मोहक परिवेश।।
1000. हुंकार
सागर की सिंह गर्जना, भरती है हुंकार।
लड़ें चुनौती से सभी, कभी न मिलती हार।।
1001. छंद
छंदबद्ध कविता लिखें, पाठक पढ़ें प्रवीण ।
गायक गाएँ मधुर स्वर, समझें हर ग्रामीण।।
1002. शब्द
शब्द शब्द में ओज है, शब्द शब्द माधुर्य।
हिन्दी में लालित्य है, कविता का चातुर्य।।
1003. ग्रंथ
ग्रंथ अनेकों हैं लिखे, ऋषि मुनियों के काल।
विश्व जगत में आज हम, सबसे मालामाल ।।
1004. संवाद
परम्परा संवाद की, रही हमारे देश।
द्वापर में श्रीकृष्ण का, शांति-दूत संदेश ।।
1005. भाषा
भाषा में संवाद ही, कहलाता अनमोल ।
वाणी में हो मधुरता, लगते अमरित बोल।।
1006. वाणी
मीठी वाणी बोलिए, करिए प्रिय संवाद।
सुखद रहे वातावरण, कभी न हो अवसाद।।
1007. व्याकरण
भाषा में है व्याकरण, अभिव्यक्ति की जान।
सक्षम हिन्दी कह रही, हमको बड़ा गुमान।।
1008. वृष्टि
ग्रीष्म काल के बाद ही, होती अमरित ’वृष्टि’।
धरा स्वयं शृंगार कर, रचे अनोखी सृष्टि।।
1009. धाराधर
इन्द्र देव ने ले रखा, ’धाराधर’ का भार।
प्राणी हैं निश्चिंत सब, ईश्वर ही आधार।।
1010. बरसात
यह मौसम ’बरसात’ का, करता है फरियाद।
प्रियतम का हो साथ तब, दूर हटें अवसाद।।
1011. प्यास
’प्यास’ अधूरी रह गयी,बिछुड़ गए फिर श्याम।
ब्रज की रज व्याकुल हुई, छोड़ चले ब्रजधाम।।
1012. पुष्करिणी
’पुष्करिणी’ के ताल में, खिलें कमल अनमोल।
नंदी के मुख से बहे, अविरल अमरित घोल।।
1013. पावस
पावस का सुन आगमन,दिल में उठे हिलोर।
धरा गगन हर्षित हुआ, नाच उठा मन मोर ।।
1014. अनुभूति
पावस देती है सुखद, हरियाली अनुभूति।
करें मंत्रणा हम सभी, जल-संरक्षण नीति।।
1015. बरसा
मेघों ने बरसा दिया, जल की अमरित बूँद।
चलो सहेजें मिल अभी, आँखों को मत मूँद।।
1016. धन
धन की बरसा हो रही, हुआ देश धनवान।
खड़ा पड़ोसी रो रहा, देखो पाकिस्तान।।
1017. फुहार
बरखा ने जब कर दिया, अमरित की बौछार।
ग्रीष्म हुआअब अलविदा,तन-मन पड़ीं फुहार।।
1018. खेत
बरसा की बूँदें गिरीं, हर्षित हुआ किसान।
चला खेत की ओर फिर, करने नया विहान।।
1019. पसीना
खेत और खलिहान में, फिर झाँकी मुस्कान।
बहे पसीना कृषक का, पहने तब परिधान।।
1020. बीज
बरखा की बूँदें गिरीं, हर्षित माटी-बीज।
कृषक देखता है उसे, फिर आएँगे तीज।।
1021. किस्मत
बीज अंकुरित हो गए, देखे विहँस किसान।
ईश्वर ने किस्मत लिखी, होगा नया विहान।।
1022. बदरी
बदरी नभ में छा गई, लुभा रही चितचोर।
पानी की बूँदें गिरें, तब नाचे मन मोर।।
1023. बिजली
बिजली चमकी गगन में, लरज रहे हैं नैन।
प्रियतम को पाती लिखी, लौटो घर तब चैन।।
1024. मेघ
गरज चमक कर मेघ ने, भेजी है सौगात।
शीतल करने आ रही, मनभावन बरसात।।
1025. चौमास
जब आया चौमास यह, है पुलकित मधुमास।
धरा प्रफुल्लित हो उठी, मिलकर खेलें रास।।
1026. ताल
चौमासे का आगमन, सुनकर हैं खुशहाल।
ताल तलैया बावली, नाच उठी दे ताल।।
1027. पसीना
देख पसीना बह रहा, कृषक खड़ा है खेत।
जेठ पूस सावन-झरे, हर फसलों को सेत।।
1028. जेठ
जेठ उगलता आग है, श्रमिक रहा है ताप।
अग्नि पेट की शांत हो, करे कर्म का जाप।।
1029. अग्नि
अग्नि-परीक्षा की घड़ी, करो विवेकी बात।
आपस में मिलकर रहें, दुश्मन को दें मात।।
1030. ज्वाला
मरघट में ज्वाला जली, दे जाती संदेश।
मानव की गति है यही, छोड़ चला वह वेश।।
1031. आतप
सूरज का आतप बड़ा, दे जाता संताप।
वर्षा ऋतु ही रोकती, सबका रुदन-प्रलाप।।
1032. भूख
खुश होता है वह श्रमिक, उसको मिले रसूख।
उसके घर चूल्हा जले, मिटे पेट की भूख।।
1033. मनमीत
मन से मन का हो मिलन, बन जाता मनमीत।
शब्दों की माला बने, मोहक बनता गीत।।
1034. पारिजात
इन्द्रप्रस्थ उद्यान की, पारिजात थी जान।
स्वर्ग धरा से वृक्ष यह, लाए कृपा निधान।।
1035. प्रपात
संगमरमर की वादियाँ, भेड़ाघाट प्रपात।
शरद पूर्णिमा रात में, करे स्वर्ग को मात।।
1036. अंगार
जेठ माह में नव तपा, उगले मुख अंगार।
धरती को व्याकुल करे, हो कैसे उद्धार।।
1037. उपवास
तन-मन की शुद्धि करे, जो करता उपवास।
दीर्घायु जीवन जिए, स्वस्थ निरोगी आस।।
1038. बिजली
बिजली कड़की गगन में, मेघा छाए भोर।
सूरज की गर्मी गई, मानसून का शोर।।
1039. पानी
जीवन पानी-बुलबुला, जीने का हो ढंग।
समझा जिसने है इसे, झूमा पी कर भंग।।
1040. हवा
शुद्ध हवा बहती यहाँ, वृक्षों की भरमार।
इठलाती नदियाँ बहें, न्याग्रा-सी जलधार।।
1041. तूफान
मानव साहस से भरा, कभी न मानी हार।
जीवन में तूफान सब, हैं बेबस लाचार।।
1045. आँधी
घाव दिया आँधी गई, छोड़ा जख्म निशान।
उपचारों से भर गया, फिर से उगा विहान।।
1046. तपस्या
करें तपस्या साधना, सुखमय जीवन मंत्र।
सतकर्मों की राह से, सुखद सिद्धि का तंत्र।।
1047. निर्भीक
मन होता निर्भीक जब, जग भी देता साथ।
राह दिखाता जगत को, सबका झुकता माथ।।
1048. आचरण
नेक आचरण हैं उचित, मिले सफलता नेक।
नीति नियम परिपालना, जाग्रत रखें विवेक।।
1049. मंत्र
शिक्षक देते मंत्र हैं, करें साधना-जाप।
कदम चूमता तब समय, सफल तभी हैं आप।।
1050. गूँज
मन मंदिर में गूँजती, ऋद्धा की वह डोर।
गूँज रही संसार में, होती तब शुभ-भोर।।
1051. अलौकिक
अलौकिक प्रतिभा लिए, कुछ जन्में हैं लोग।
उनके पुण्य प्रताप से, मिलता सबको भोग।।
1052. संस्कार
वृक्षों की पूजा करी, भूले सब संस्कार।
हाथ कुल्हाड़ी थाम ली, काटा मूलाधार।।
1053. प्रियतम
हरी-भरी है यह धरा, प्राण-वायु चहुँ ओर।
मन आनंदित है यहाँ, लगता प्रिय हर छोर।।
1054. धरती
धरती कहती गगन से, कितना है विस्तार।
तेरा तो कुछ है नहीं, बस सूना संसार।।
1055. गगन
मेघ गगन में छा रहे, सबको लगी है आस।
जेठ गया आषाढ़ अब, सुखद हुआ आभास।।
1056. पाताल
सूख गया पाताल अब, रोता कृषक निराश।
इन्द्र देव वर्षा करें, प्रकृति का न हो नाश।।
1057. त्रिलोक
गूँजे सुखद त्रिलोक में, प्रभु की जय जयकार।
भक्तजनों की धूम है, लीला अपरंपार।।
1058. त्रिभुवन
शिवशंकर त्रिभुवन बसे, काशी शिव का धाम।
सोमवार का शुभ दिवस, विश्वनाथ का नाम।।
1059. अधर
अधर फड़कते रह गए, प्रियतम आए द्वार।
प्रेम-पियासे ही रहे, मिला न कुछ उपहार।।
1060. अलता
रच-हाथों में मेहँदी, बाँधा बिखरे -केश।
पावों में अलता लगा, चली सजन के देश।।
1061. अलकें
अलकें लटकीं गाल पर, सपन सलोना रूप।
आँखों में साजन बसे, ऋतु बसंत की धूप।।
1062. ओष्ठ
कंपन करते ओष्ठ हैं, पिया-सेज-शृंगार।
नव जीवन की कल्पना, खड़े प्रेम के द्वार।।
1063. अलि
अलि ने कानों में कहा, जाती बाबुल देश।
रक्षाबंधन आ रहा, भाई का संदेश।।
1064. आरंभ
करें कार्य आरंभ शुभ, लेकर प्रभु का नाम।
मिले सफलता आपको, पूरण होते काम।।
1065. प्रारब्ध
मिलता है सबको वही, लिखता प्रभु प्रारब्ध।
अधिक न इससे पा सके, कितना हो उपलब्ध।।
1066. आदि
आदि शक्ति दुर्गा बनीं, जग की तारण हार।
शत्रुदलन कलिमल हरण, रक्षक पालनहार।।
1067. अंत
अंत भला तो सब भला, कहते गुणी सुजान।
कर्म करें नित नेक सब, मदद करें भगवान।।
1068. मध्य
मध्य रात्रि शारद-निशा, खिला चाँद आकाश।
तारागण झिलमिल करें, बिखरा गए प्रकाश।।
1069. प्रपंच
छल-प्रपंच का दौर यह, चला देश में आज।
समझदार जनता हुई, कैसे चले सुराज।।
1070. पावस
पावस की बूँदें गिरीं, हर्षित फिर खलिहान।
धरा प्रफुल्लित हो उठी, हरित क्रांति अनुमान।।
1071. पपीहा
गूँज पपीहा की सुनी, अब तक बुझी न प्यास।
आम्र कुंज में बैठकर, स्वाति बूँद की आस।।
1072. मेघ
मेघ गरज कर चल दिए, देकर यह संदेश।
बरसेंगे उस देश में, भक्ति कृष्ण -अवधेश।।
1073. हरियाली
शिव की अब आराधना, हरियाली की धूम।
काँवड़ यात्रा चल पड़ी, आया सावन झूम।।
1074. घटा
छाई सावन की घटा, रिमझिम पड़ी फुहार।
भीगा तन उल्हास से, उमड़ा मन में प्यार।।
1075. पाती
पाती लिखकर भेजती, बाबुल आँगन देश।
दरस-बरस अँखियन बसी, सावन का उन्मेश।।
1076. बाबुल
सावन आया है सखी, चल बाबुल के देश।
आँगन में झूले पड़े, बदलेंगे परिवेश।।
1077. कजरी
झूला सावन में लगें, गले मिलें मनमीत।
कजरी की धुन में सभी, गातीं महिला गीत।
1078. देवी
देवी की आराधना, कजरी-सावन-गीत।
नारी करतीं प्रार्थना, जीवन-पथ में जीत।।
1079. त्योहार
सावन-भादों माह में, पड़ें तीज-त्यौहार।
संसाधन कैसे जुटें, महँगाई की मार।।
1080. तीज
भाद्र माह कृष्ण पक्ष को, आती तृतिया तीज ।
महिला निर्जल वृत करें, दीर्घ आयु ताबीज।।
1082. सिंदूर
लाड़ो चूड़ी पहन कर, भर माथे िसंदूर।
चली पराए देश में, मात-पिता मजबूर।।
1083. चूड़ी
शृंगारित परिधान में, चूड़ी ही अनमोल।
रंग बिरंगी चूड़ियाँ, खनकातीं कुछ बोल।।
1084. मेहँदी
सपनों की डोली सजा, आई पति के पास।
हाथों में रच-मेहँदी, पिया मिलन की आस।।
1085. मनभावनी
लालरँग मेहँदी रची, आकर्षित सब लोग।
प्रियतम के मनभावनी, मिलते अनुपम भोग।।
1086. झूला
सावन की प्यारी घटा, लुभा रही चितचोर।
झूला झूलें चल सखी, हरियाली चहुँ ओर।।
1087. जन्माष्टमी
सावन में झूला सजें, कृष्ण रहे हैं झूल।
भारत में जन्माष्टमी, मना रहे अनुकूल।।
1088. अतिवृष्टि
अल्प-वृष्टि, अति-वृष्टि से, जूझ रहा संसार।
पर्यावरण बचाइए, तब होगा उद्धार।।
1089. पर्व
भारत में जन्माष्टमी, पर्व मनाते लोग।
पूजन अर्चन संग में, लगते लड्डू भोग।।
1090. सखी
हाथों में रच मेहँदी, छाईं खुशियाँ भोर।
झूला झूलें दो सखी, नभ का नाँपें छोर।।
1091. साजन
रचा हाथ में मेहँदी, दुल्हन का शृंगार।
सपनों में साजन बसे, छोड़ा घर संसार।।
1092. परहित
अपने हित की चाह में, मानव बना पिशाच।
परहित सेवा भाव से, कभी न आती आँच।।
1093. अधर
अधर फड़कते रह गए, प्रियतम आए द्वार।
प्रेम पियासे ही रहे, मिला न कुछ उपहार।।
1094. अलता
रच-हाथों में मेहँदी, बाँधा बिखरे केश।
पाँवों में अलता सजा, चली सजन के देश।।
1095. अलकें
अलकें लटकीं गाल पर, सपन सलोना रूप।
आँखों में साजन बसे, ऋतु बसंत की धूप।।
1096. ओष्ठ
कंपन करते ओष्ठ जब, पिया-सेज-शृंगार।
नव जीवन की कल्पना, खड़े प्रेम के द्वार।।
1097. अलि
अलि ने कानों में कहा, जाती बाबुल देश।
रक्षाबंधन आ गया, भाई का संदेश।।
1098. पराग
कण-पराग के चुन रहे, भ्रमर कर रहे गान।
कली झूमतीं दिख रही, प्रकृति करे अभिमान।।
1099. काजल
नयनों में काजल लगा, देख रही सुकुमार।
चितवन गोरा रंग ले, लगे मोहनी नार।।
1100. किताब
खोली प्रेम किताब की, सभी हो गए धन्य।
नेह सरोवर डूबकर, फिर बरसें पर्जन्य।।
1101. फुहार
तन पर पड़ी फुहार जब, वर्षा का संकेत।
सावन की बरसात में, कजरी का समवेत।।
1102. गौरैया
गौरैया दिखती नहीं, राह गईं हैं भूल।
घर-आँगन सूने पड़े, हर मन चुभते शूल।।
1103. झरोखा
स्वयं झरोखा झाँकिए, अन्तर्मन में आप।
दूषित भाव नकारिए, दूर करें संताप।।
1104. क्षीर (दूध)
नीर-क्षीर का भेदकर, हटा अँधेरी रात।
हर मानस में हँस है, रखें विवेकी बात।।
1105. छीर (वस्त्र)
भूख गरीबी में पिसा, किसने समझी पीर।
अश्रु बहे इतने सुनो, भींग चुके हर छीर।।
1106. तीर
कर्कश वाणी तीर सम, उतरे दिल के पार।
मीठी वाणी बन शहद, सदा करे उपचार।।
1107. बिजना
बिजना डोले हाथ में, तपी दुपहरी धूप।
चाहत निर्मल नीर की, घर-आँगन में कूप।।
1108. मौका
मौका कभी न चूकिए, हिस्से में शुभ काम।
ईश्वर का वरदान यह, जग में रोशन नाम।।
1109. अक्षत
रोली-अक्षत का तिलक, झुका रहे सब शीश।
सुख वैभव बरसे सदा, कृपा करें जगदीश।।
1110. अक्षर
सरस्वती आराधना, मंदिर अक्षर धाम।
ज्ञानार्जन की साधना, ज्ञानी करें प्रणाम।।
1111. अंकुर
अंकुर निकसे धरा से, दिया जगत को ज्ञान।
यही हमारी मातु है, करें सभी गुणगान ।।
1112. अंजन
आँखों में अंजन लगा, चली पिया के देश।
सपनों की दुनिया दिखे, बुला रहा परिवेश।।
1113. अधीर
मानव हुआ अधीर अब, रामराज्य की आस।
दौर-विसंगति का बढ़ा, चुभी गले में फाँस ।।
1114. अंतर्मन
अंतर्मन में नेह का, बिखरे प्रेम प्रकाश।
मानव जीवन सुखद हो, हर मानव की आश।।
1115. ऊर्जा
शांति प्रेम सौहार्द को, सच्चे मन से खोज।
भारत की ऊर्जा यही, मन में रहता ओज।।
1116. वातायन (खिड़की)
उर-वातायन खुली रख, ताने नया वितान।
जीवन सुखमय तब बने, होगा सुखद विहान।।
1117. वितान (टेंट)
अंतर्मन की यह व्यथा, किससे करें बखान।
फुटपाथों पर सो रहे, सिर पर नहीं वितान।।
1118. विहान (सुबह)
खड़ा है सीना तानकर, भारत देश महान।
सदी बीसवीं कह रही, होगा नवल विहान।।
1119. विवान (सूरज की किरणें)
अंधकार को चीर कर, निकलीं सुबह विवान।
जग को किया प्रकाशमय, फिर भी नहीं गुमान।।
1120. व्रत
ब्रह्मचर्य-व्रत-साधना, रहा देवव्रत नाम।
श्री शांतनु के पुत्र थे, अटल प्रतिज्ञा-धाम।।
1121. उपवास
तन-मन को निर्मल रखे, पूजन व्रत उपवास।
जीवन सुखद बनाइए, हटें सभी संत्रास।।
1122. फल
फल की इच्छा छोड़कर, कर्म करें अविराम।
गीता में श्री कृष्ण का, सार-तत्व अभिराम।।
1123. निर्जल
तीजा के त्यौहार में, निर्जल व्रत उपवास।
शिव की है आराधना, पावन भादों मास।।
1124. मौन
विजयी होता क्रोध पर, जिसने सीखा मौन।
सुखमय जीवन ही जिया, व्यर्थ लड़ा है कौन।।
1125. संस्कृति
देश-विदेशों में रहे, कभी न उतरा रंग।
अनुष्ठान व्रत जप सभी, संस्कृति के हैं अंग।
1126. आराधना
ईश्वर की आराधना, निर्मल-मन उपवास।
भक्ति-भाव की भावना, सहज सरल है खास।।
1127. फल
फल की सबको कामना, वृक्षों का उपकार।
पालें-पोसें घर-धरा, उनका हो सत्कार।।
1128. निर्मल
निर्जल जीवन कष्टमय, चाहत निर्मल नीर।
जीवन का आधार यह, कब सुलझेगी पीर।।
1129. शक्ति
बड़ी शक्ति है मौन में, कहता रहा मनोज।
रखता संकट काल में, अंतर्मन में ओज।।
1130. अंजन
आँखों में अंजन लगा, माँ ने किया दुलार।
कोई नजर न लग सके, किया मातु उपचार।।
1131. आनन
आनन-फानन चल दिए, पूँछ न पाए हाल।
सीमा पर वापस गए, चूमा माँ का भाल।।
1132. आनन (चेहरा)
आनन पढ़ना यदि सभी, लेते मिलकर सीख।
दश-आनन को द्वार से, कभी न मिलती भीख।।
1133. आनन
गज-आनन की वंदना, करती बुद्धि विकास।
दुख की हटती पोटली, बिखरे ज्ञान उजास।।
1134. आमंत्रण
आमंत्रण है आपको, खुला हुआ है द्वार।
प्रेम पत्रिका है प्रिये, करता हूँ मनुहार।।
1135. आँचल
गाँवों का आँचल सुखद, मिले सभी को छाँव।
हरियाली से है घिरा, श्रमिकजनो का गाँव।।
1136. अलकें
घुँघराली अलकें लटक, चूमें अधर कपोल।
कान्हा खड़े निहारते, झूल रहीं हिंडोल।।
1137. अक्षत
रोली-अक्षत का तिलक, लगा रहे प्रभु-शीश।
सुख वैभव बरसे सदा, कृपा करें जगदीश।।
1138. अक्षर
सरस्वती आराधना, मंदिर अक्षर धाम।
ज्ञानार्जन की साधना, ज्ञानी करें प्रणाम।।
1139. अंकुर
अंकुर निकसे धरा से, दिया जगत को ज्ञान।
यही हमारी मातु है, करें सभी गुणगान।।
1140. अंजन
आँखों में अंजन लगा, चली पिया के देश।
सपनों की दुनिया दिखे, बुला रहा परिवेश।।
1141. अधीर
मानव हुआ अधीर अब, रामराज्य की आस।
दौर-विसंगति का बढ़ा, चुभी गले में फाँस।।
1142. श्रेष्ठ
भारत जग में श्रेष्ठ है, मिलते जहाँ सुमित्र।
धर्माें का संगम यहाँ, नदियाँ मिलें पवित्र।।
1143. छाँव
माँ का आँचल है सुखद, मिले सदा ही छाँव।
कष्टों से जब भी घिरा, मिली गोद में ठाँव।।
1144. कृतार्थ
मन कृतार्थ तब हो गया, देखस मित्र संदेश।
याद किया परदेश में, मिला सुखद परिवेश।।
1145. कलकंठी
कलकंठी-आवाज सुन, दिल आनंद विभोर।
वन-उपवन में गूँजता, नाच उठा मनमोर।।
1146. कुंदन
दमक रहा कुंदन सरिस, मुखड़ा चंद्र किशोर।
यौवन का यह रूप है, आत्ममुग्ध चहुँ ओर।।
1147. गुंजार
चीता का सुन आगमन, भारत में उन्मेश।
कोयल की गुंजार से, झंकृत मध्यप्रदेश।।
1148. घनमाला
घनमाला आकाश में, छाई है चहुँ ओर।
बरस रहे हैं भूमि पर, जैसे आत्मविभोर।।
1149. नेकी
नेकी खड़ी उदास है, लालच का बाजार।
मानवता मूरत बनी, दिखी बहुत लाचार।।
1150. परिधान
बैठ गया यजमान जब, पहन नया परिधान।
देख रहा ईश्वर उसे, मन में है अभिमान।।
1151. अनाथ
देखो किसी अनाथ को, उसका दे दो साथ।
अगर सहारा मिल गया, होगा नहीं अनाथ।।
1152. सौजन्य
सही मित्र सौजन्य से, मिलते हैं हर बार।
दुश्मन खड़े निहारते, मन में पाले खार।।
1153. सरपंच
गाँवों के सरपंच ने, दिया सभी को ज्ञान।
फसलों की रक्षा करें, प्राण यही भगवान।।
1154. तृषा,(प्यास)
मानव की यह तृषा ही, करवाती नित खोज।
संसाधन को जोड़कर, भरती मन में ओज।।
1155. मृदा,(मिट्टी)
कृषक मृदा पहचानता, बोता फिर है बीज।
लापरवाही यदि हुई, वह रोया नाचीज।।
1156. मृणाल,(कमल, की जड़)
कीचड़-बीच मृणाल ने, दिखलाया वह रूप।
पोखर सम्मानित हुआ, सबको लगा अनूप।।
1157. तृषित
तृषित रहे जनता अगर, नेता वह बेकार।
स्वार्थी नेता डूबते, फँसे नाव मँझधार ।।
1158. मृषा (झूठ-मूठ)
नयन मृषा कब बोलते, मुख से निकलें बोल।
सच्चाई को परखने, दोनों को लें तौल।।
1159. मृषा
प्रिये मृषा मत बोलिए, बनती नहीं है बात।
पछताते हम उम्र भर, बस रोते दिन-रात।।
1160. पोखर
पोखर में मृणाल खिले, मुग्ध हुआ संसार।
सूरज का पारा चढ़ा, प्रकृति करे मनुहार।।
1161. दीपक
मानवता की ज्योत से, नव प्रकाश की पूर्ति।
सबके अन्तर्मन जगे, मंगल-दीपक-मूर्ति।।
1162. वर्तिका
जले वर्तिका दीप की, फैलाती उजियार।
राह दिखाती जगत को, संकट से उद्धार।।
1163. दीवाली
रात अमावस की रही, घिरा तमस चहुँ ओर।
राम अयोध्या आ गए, दीवाली की भ् ाोर।।
1164. रजनी
रजनी का घूँघट उठा, दीपक आत्म विभोर।
जीवन साथी मिल गया , बना वही चितचोर।।
1165. रंगोली
रंगोली द्वारे सजे, आए जब त्यौहार।
रंग बिरंगे पर्व सब, खुशियाँ भरें हजार।।
1166. रोशनी
दीवाली की रोशनी, बिखराती उजियार।
प्रखर रश्मियाँ दीप की, करे तमस संहार ।।
1167. उजियार
हिन्दू-संस्कृति है भली, नहीं किसी से बैर।
फैलाती उजियार को, माँगे सबकी खैर।।
1168. जगमग
जगमग दीवाली दिखी, देश कनाडा यार।
आतिशबाजी देख कर, सही लगा त्यौहार।।
1169. तम
तम घिरता ही जा रहा, सीमा के उस पार।
चीन-पाक आतंक का, कैसे हो उपचार।।
1170. दीप
दीप-मालिके कर कृपा, फैला दे उजियार।
सद्भावों की भोर हो, खुलें प्रगति के द्वार।।
1171. साँसें
गिनती की साँसें मिली, जीवन है अनमोल।
सद्कर्मों पर ध्यान दें, सब धर्मों के बोल।।
1172. आँखें
आँखें फटी निहारतीं, कलियुग की करतूत।
प्रेमी हत्या कर रहे, धोएँ सभी सबूत।।
1173. बातें
खत्म नहीं बातें हुईं, बीत गई जब रात।
प्रेमी ने हँस कर कहा, कल फिर होगी बात।।
1174. रातें
रातें अब छोटी हुईं, दिन हो गए जवान।
बिस्तर पर करवट बदल, बैठा हिन्दुस्तान।।
1175. घातें
कितनी घातें दे रहे, शत्रु-पड़ोसी देश।
छद्म रूप धर कर सदा, पहुँचाते हैं क्लेश।।
1176. अवसर
प्रभु देता अवसर सदा, रखिए इसका ध्यान।
चूक गए तो फिर नहीं, मिल पाता सम्मान।।
1177. अनुग्रह
हुआ अनुग्रह राम का, पूर्ण हुए सब काज।
विश्व पटल पर छा गया, भारतवंशी राज।।
1178. आपदा
करें प्रबंधन आपदा, संकट से हो मुक्ति।
बड़े बुजुर्गों से सदा, मिली हमें यह युक्ति।।
1179. प्रशस्ति
सद्कर्मों का मान हो, स्वागत मिले प्रशस्ति।
बदले मानव आचरण, यही देश की शक्ति।।
1180. प्रतिष्ठा
बढ़े प्रतिष्ठा देश की, मिलकर करें प्रयास।
मतभेदों को भूलकर, फसल उगाएँ खास।।
1181. ललाम
मोहक छवि श्री राम की, द्वापर युग घनश्याम।
दर्शन पाकर धन्य सब, मंजुल ललित ललाम।।
1182. लावण्य
नारी के लावण्य पर, मुग्ध हुए सब लोग।
मन दर्पण में झाँकिए, मिलें सुखों के भोग।।
1183. लौकिक
लौकिक परलौकिक सभी, सुख पाता इंसान।
प्रेम भक्ति में जो मगन, वही रहा धनवान।।
1184. लतिका
लतिका है मनभावनी, बँधे नेह की डोर।
लिपटे प्रेम से अंग में, रहती भाव विभोर।।
1185. ललक
जीवन जीने की ललक, हर प्राणी की चाह।
मिलकर सुखद बनाइए, यही नेक है राह।।
1186. शीत
शीत-लहर से काँपता, तन-मन पात समान।
ओढ़ रजाई बावले, क्यों बनता नादान।।
1187. शरद
शरद सुहानी छा गई, करती हर्ष विभोर।
रंगबिरंगी तितलियाँ, भ्रमर मचाते शोर।।
1188. माघ
माघ-पूस की रात में, सड़कें सब सुनसान।
शीत हवा बहती विकट, काँपें सबके प्रान।।
1189. पूस
कहा माघ ने पूस से, तेरी क्या औकात।
अभी तुझे बतला रहा, दूँगा निश्चित मात।।
1190. कुहासा
बढ़ा कुहासा ओस का, गाड़ी चलतीं लेट।
प्लेट-फार्म में बैठकर, प्रिय कब होगी भेंट।।
1191. चाँदनी
रात चाँदनी में मिले, प्रेमी युगल चकोर।
प्रणय गीत में मग्न हो, नाच उठा मन मोर।।
1192. स्वप्न
स्वप्न देखता रह गया, लोकतंत्र का भोर।
वर्ष गुजरते ही गए, शेष रह गया शोर।।
1193. परीक्षा
घड़ी परीक्षा की यही, दुख में जो दे साथ।
अवरोधों को दूर कर, थामें प्रिय का हाथ।।
1194. विलगाव
घाटी के विलगाव में, नेतागण कुछ लिप्त।
उनके कारण देश यह, हुआ बहुत अभिशप्त।।
1195. मिलन
प्रणय मिलन की है घड़ी, गुजरी तम की रात।
मिटी दूरियाँ हैं सभी, नेह प्रेम की बात।।
1196. आमंत्रण
आमंत्रण नव वर्ष को, बजे सुखद संगीत।
रूठे बिछुड़े जो खड़े, गले मिलें मनमीत।।
1197. अभ्यर्थना
प्रभु से कर अभ्यर्थना, सफल करें सब काज।
रक्षा जीवन की करें, सुखद शांति का राज।।
1198. आचमन
बुरे कर्म का आचमन, करना मिलकर मीत।
जीवन होगा तब सफल, गाएँगे मिल गीत।।
1199. अंचन
आँखों में अंजन लगा, निकली प्रिय चितचोर।
प्रेमी जन हैं रीझते, मन में नाचे मोर।।
1200. अंगीकार
तुमने अंगीकार कर, जगा दिया सौभाग्य।
जीवन के दुख हर लिए, भगा दिया वैराग्य।।
1201. विग्रह
विग्रह शालिगराम का, देव विष्णु प्रतिरूप।
पूजन अर्चन हम करें, दर्शन सुखद अनूप।।
1202. वितान
उड़ने को आकाश है, फैला हुआ वितान।
पंछी पर फैला उड़े, मानव उड़ें विमान।।
1203. विहंग
उड़ते दिखें विहंग हैं, नापें नभ का छोर।
शाखों पर विश्राम कर, उड़ते फिर नित भोर।।
1204. विहान
नव विहान अब हो रहा, भारत में फिर आज।
विश्व पटल पर छा गया, सिर में पहने ताज।।
1205. विवान
किरणें बिखरा चल पड़ा, रथ आरूढ़ विवान।
प्राणी को आश्वस्त कर, गढ़ने नया विहान।।
1206. अंत
अंत भला तो सब भला, सुखमय आती नींद।
शुभारंभ कर ध्यान से, सफल रहे उम्मीद ।।
1207. अनंत
श्रम अनंत आकाश है, उड़ने भर की देर।
जिसने पर फैला रखे, वही समय का शेर।।
1208. आकाश
पक्षी उड़ें आकाश में, नापें सकल जहान।
मानव अब पीछे नहीं, भरने लगा उड़ान।।
1209. अवनि
अवनि प्रकृति अंबर मिला, प्रभु का आशीर्वाद।
धर्म समझ कर कर्म कर, मत चिंता को लाद।।
1210. अचल
अचल रही है यह धरा, आते जाते लोग।
अर्थी पर सब लेटते, सिर्फ करें उपभोग।।
1211. धूप
बदला मौसम कह रहा, ठंडी का है राज।
धूप सुहानी लग रही,इस अगहन में आज।।
1212. धवल
धुआँधार में नर्मदा, निर्मल धवल पुनीत।
गंदे नाले मिल गए, बदला मुखड़ा पीत।।
1213. धनिक
धनिक तनिक भी सोचते, कर देते उद्धार।
कृष्ण सखा संवाद कर, हरते उसका भार।।
1214. धरती
धरती कहती गगन से, तेरा है विस्तार।
रखो मुझे सम्हाल के, उठा रखा है भार।।
1215. धरित्री
जीव धरित्री के ऋणी, उस पर जीवन भार।
रखें सुरक्षित हम सभी, हम सबका उद्धार।।
1216. परिवर्तन
परिवर्तन से देश में, िदखने लगा उजास।
शत्रु पड़ोसी देख कर, मन में बड़ा उदास।।
1217. भूजल
भूजल पर्यावरण अब, देता है संदेश।
हरित क्रांति लाना हमें, तब बदले परिवेश।।
1218. फसल
फसल खड़ी है खेत में, आनन पर मुस्कान।
पल पल रहा निहारता, बैठा कृषक मचान।।
1219. सोना
सोना उपजे खेत में, कृषक बने धनवान।
यही शिला श्रम की सुखद, मिले सदा सम्मान।।
1220. कृषक
कृषक आधुनिक हो गया, ट्रैक्टर कृषि संयंत्र।
बदल रहे हैं गाँव अब, बिगुल बजाता तंत्र।।
1221. खेत
कृषक ला रहे खेत में, नित नूतन कृषि यंत्र।
इन उपकरणों ने दिया, उन्नति के नवमंत्र।।
1222. कुसुम
कुसुम खिले हैं बाग में, सुरभित हुई बयार।
मुग्ध हो रहे लोग सब, बाग हुए गुलजार ।।
1223. बसंत
ऋतु बसंत की पाहुनी, स्वागत करें मनोज।
बाग बगीचे खेत में, दिखता चहुँ दिश ओज।।
1224. अलसी
अलसी से कपड़े बने, बीजों से है तेल।
जो खाते इस बीज को, स्वस्थ निरोगी मेल।।
1225. सरसों
खेतों में सरसों खिली, चूनर ओढ़ी पीत।
बासंती ऋतु आ गई, झूम उठे मनमीत।।
1226. खेत
खेत सभी हर्षित हुए, फसलें हुईं जवान।
श्रम की सिद्धि हो गई, ऊगा नया विहान।।
1227. खलिहान
फसल काट खलिहान तक, बना स्वयं मजदूर।
कोठी में धन-धान्य रख, नहीं हुआ मजबूर।।
1228. फागुन
देख माघ मुस्का रहा, फाग खड़ा दहलीज।
रंग गाल में मल गया, राधा आँखें मींज।।
1229. सूत्र
माह जनवरी छब्बीस, बासंती गणतंत्र।
संविधान के सूत्र से, संचालन का यंत्र।।
1230. बसंत
ऋतु बसंत की धूम फिर, बाग हुए गुलजार।
रंग-बिरंगे फूल खिल, बाँट रहे हैं प्यार।।
1231. शिशिर
शिशिर काल में ठंड ने, दिखलाया वह रूप।
नदी जलाशय जम गए, तृण हिमपात अनूप।।
1232. ऋतु
स्वागत है ऋतु-राज का, छाया मन में हर्ष।
पीली सरसों बिछ गई, मिलकर करें विमर्ष।।
1233. बहार
आम्रकुंज बौरें दिखीं, करे प्रकृति शृंगार।
कूक रही कोयल मधुर, छाई मस्त बहार।।
1234. राह
चटृटानों को चीर कर, नदी बनाती राह।
मानव मन यदि ठान ले, पूरण होती चाह।।
1235. हित
हित सबका हम चाहते, जनता देश समाज।
जुड़ें सभी अब देश हित,सुख यश वैभव राज।।
1236. केतकी
श्वेत पीत यह केतकी, लगा सुगंधित फूल।
आकर्षक मन भावनी, ओढ़े खड़ी दुकूल।।
1237. कचनार
बवासीर मधुमेह में, औषधि से भरपूर।
पौधा यह कचनार का, लता बिखेरे नूर।।
1238. रसाल
मौसम आया द्वार में, करना नहीं मलाल।
आम्रकुंज में दिख रहा, मोहक पीत रसाल।।
1239. ऋतुराज
ऋतुओं का ऋतुराज है, मनमोहक मधुमास।
प्रकृति हवा सँग झूमती,दिल को आता रास।।
1240. किंशुक
सुग्गे जैसी चोंच ले, लगता किंशुक फूल।
विरही को समझा रहा, विरह वेदना शूल।।
1241. फागुन
फागुन का यह मास अब, लगता मुझे विचित्र।
छोड़ चला संसार को, परम हमारा मित्र।।
1242. फाग
उमर गुजरती जा रही, फाग न आती रास।
प्रियतम छूटा साथ जब, उमर लगे वनवास।।
1243. पलास
रास न आते हैं अभी, अब पलास के फूल।
बनकर दिल में चुभ रहे, काँटों से वे शूल।।
1244. वन
वन में झरे पलास जब, दिखें गिरे अंगार।
आग लगाने को विकल, लीलेंगे संसार।।
1245. जोगी
धर जोगी का रूप दिल, चला छोड़ संसार।
तन बेसुध सा है पड़ा, जला रहा अंगार।।
1246. रामचरित मानस
राम चरित मानस बृहद, यह अनुपम है ग्रंथ।
संस्कृति का प्रतिबिंब यह,सकल सुमंगल पंथ।।
1247. रहल
सुखद रहल पावन पवित्र, तुलसी का साहित्य।
जीवन में अनमोल यह, करें अनुसरण नित्य।।
1248. अतुल्य
अतुल्य हमारा देश यह, सब देशों से देश ।
देश विदेशों में रहा, यहाँ नहीं कुछ क्लेश।।
1249. राष्ट्रधर्म
राष्ट्रधर्म सबसे बड़ा, हो इसका आभास।
प्रगति राह पर सब बढ़ें, मानवता को रास।।
1250. परिवेश
समझोतों में हल छिपा, भागे हैं हर क्लेश।
सुखमय जीवन की घड़ी,नेक सुखद उपदेश।।
1251. भाषा
सहज सरल भाषा लिखी, साधारण परिवेश।
दोहे लिखे मनोज ने, भाव पूर्ण संदेश।।
1252. अज्ञान
छंदो का ज्ञाता नहीं, मैं बिल्कुल अग्यान।
मुझसे जैसा बन सका, लिखता गया सुजान।।
1253. आभार
साहित्यकार, कवि दोस्त, सबके प्रति आभार।
सानिध्य-मिला लिख सका, हृदय भाव उद्गार।।
1254. क्षितिज
क्षितिज नापने उड़ चला, पंछी नित ही भोर।
शाम देख कर फिर मुड़े, सुनने कलरव शोर ।।
1255. वायुयान
वायुयान में बैठ कर, उड़े कनाडा देश।
अंतहीन इस क्षितिज का, समझ न पाया वेश।।
1256. पलाश
मन में खिला पलाश है, होली का त्यौहार।
साजन रूठे हैं पड़े, सुबह-सुबह तकरार।।
1257. भूषित
धरा वि-भूषित वृक्ष से, करती है शृँगार।
प्राणवायु देती सुखद, जीवन हर्ष अपार।।
1258. उन्मेश
भूषित प्रकृति संपदा, दर्शन का उन्मेश।
पर्यटक आते देखने, मिटते मन के क्लेश।।
1259. अबीर
ऋतु बसंत में बह रही, मादक-मंद समीर।
हुई प्रकृति है बावली, माथे लगा अबीर।।
1260. मुखड़ा
मुखड़ा चितवन पर लगा, सेमल-लाल अबीर।
सुधबुध भूली मोहनी, प्रियतम हृदय अधीर।।
1261. सुकुमार
लखन राम सुकुमार सिय, चले कौशलाधीश।
मातु-पिता आशीष ले, बढ़े नवा कर शीश।।
1262. राधिका
प्रेम राधिका का अमर, जग करता नित याद।
भक्त सभी जपते सदा, जब आता अवसाद।।
1263. उपवास
तन-मन को निर्मल करे, जो करता उपवास।
रोग शोक व्यापे नहीं, जीवन भर मधुमास।।
1264. लोचन
लोचन हैं राजीव के, श्याम वर्ण अभिराम।
द्वापर में फिर आ गए, अवतारी घन-श्याम।।
1265. मिठास
वाणी सिक्त मिठास की, होती है अनमोल।
जीवन भर जो स्वाद ले, बोले मिश्री घोल।।
1266. रोटी
रोटी दुनिया से कहे, धर्म-कर्म-ईमान।
मुझसे ही संसार यह, गुँथा हुआ है जान।।
1267. गुलाब
मुखड़ा सुर्ख गुलाब-सा, नयन झील कचनार।
ओंठ रसीले मद भरे, घायल-दिल भरमार।।
1268. मुँडेर
कागा बैठ मुँडेर पर, सुना गया संदेश।
खुशियाँ घर में आ रहीं, मिट जाएँगे क्लेश।।
1269. पाती
पाती लिखकर भेजती, प्रियतम को परदेश।
होली हम पर हँस रही, रूठा सा परिवेश।।
1270. साक्षी
सनकी प्रेमी दे गया, सबके मन को दाह।
दृश्य-कैमरा सामने, साक्षी बनी गवाह।।
1271. शृंगार
नारी मन शृंगार का, पौरुष पुरुष प्रधान।
दोनों के ही मेल से, रिश्तों का सम्मान।।
1272. पाणिग्रहण
संस्कृति में पाणिग्रहण, नव जीवन अध्याय।
शुभाशीष देते सभी, होते देव सहाय।।
1273. वेदी
अग्निहोत्र वेदी सजी, करें हवन मिल लोग।
ईश्वर को नैवेद्य फिर, सबको मिलता भोग।।
1274. विवाह
मौसम दिखे विवाह का, सज-धज निकलें लोग।
मंगलकारी कामना, उपहारों का योग।।
1275. जंगल
जंगल सारे कट गए, नहीं मिली जब छाँव।
सारे पक्षी दुबक कर, बैठ गए लघु ठाँव।।
1276. गर्मी
बैरन गर्मी ने किया, सबको है बेचैन।
दुबके पंछी छाँव में, नीर ढूँढ़ते नैन।।
1277. मिथ्या
मिथ्या वादे कर रहे, राजनीति के लोग।
मिली जीत फिर भूलते, खाते छप्पन भोग।।
1278. छलना
छलना है संसार को, कैसा पाकिस्तान।
पहन मुखौटे घूमता, माँगे बस अनुदान।।
1279. सर्प
सर्प बिलों में छिप गए, स्वर्ग हुआ आबाद।
काश्मीर पर्यटन बढ़ा, खत्म हुआ उन्माद।।
1280. मछुआरा
मछुआरा तट बैठकर, देख रहा जलधार।
मीन फँसेगी जाल में, सुखमय तब परिवार।।
1281. जाल
मोह जाल में उलझकर, मन होता बेचैन।
सजे चिता की सेज फिर, पथरा जाते नैन।।
1282. लू
ज्येष्ठ माह का नवतपा, बरसाता है आग।
लू-लपटों से घिर चुके, सभी रहे हैं भाग।।
1283. लपट
झुलस रहे हैं लपट से, शहर गाँव खलिहान।
श्रमजीवी श्रम कर रहे, पहिन फटी बनियान।।
1284. ग्रीष्म
ग्रीष्म काल में चल पड़ा, पर्यटन का है शोर।
हिल स्टेशन फुल हुए, लगे सुहानी भोर।।
1285. प्रचण्ड
सूरज प्रचण्ड तप रहा, जेठ लगा जब माह।
आएगा आषाढ़ तब, खतम करेगा दाह।।
1286. अग्नि
सूरज अग्नि उगल रहा, सूख गये मृत-पात।
फिर नवपल्लव ऊगते, खाद बनें हर्षात ।।
1287. पथिक
जीवन के हम हैं पथिक, चलें नेक ही राह।
चलते-चलते रुक गए, तन-मन दारुण दाह।।
1288. मझधार
जीवन-सरि मझधार में, प्रियजन जाते छोड़।
सबके जीवन काल में, आता है यह मोड़।।
1289. आभार
जो जितना सँग में चला, उनके प्रति आभार।
हृदय कृतघ्न न हो कभी, यह जीवन का सार।।
1290. उत्सव
जीवन उत्सव की तरह, हों खुशियाँ भरपूर।
दुख, पीड़ा, संकटघड़ी, खरे उतरते शूर।।
1291. छाँव
धूप-छाँव-जीवन-मरण, हैं जीवन के अंग।
मानव मन-संवेदना, दिखलाते बहु रंग।।
1292. आभार
सबके प्रति आभार है, दिखलाई जो राह।
कवितातल तक जा सका, नाप सका कुछ थाह।।
1293. बाँसुरी
हिंदी रचनाकारों से, हुआ पटल धनवान।
गद्य-पद्य की बाँसुरी, मोहक लगे सुजान।।
1294. सजल
छंद, गीत, मुक्तक, सजल, पढ़कर बनो महान।
सिद्ध हस्त कवि वृंद जन, जुड़े सभी गुणवान।।
1295. आभारी
आभारी हम आपके, सबके प्रति आभार।
विसंगतियों से आपने, मुझको लिया उबार।।
1296. प्रणम्य
सबरे पटल प्रणम्य हैं, जो जग करे प्रकाश।
हिंदी ध्वज फहरा रहे, बड़ी लगी है आश।।
1297. कोंपल
कोंपल खिली डगाल पर, हर्षाया वट वृक्ष।
स्वागत आगत कर रहा, वर्षों से वह दक्ष।।
1298. कलगी
झूमी कलगी शीश पर, मुर्गे ने दी बाँग।
चला जगाने जगत को, पीकर सोए भाँग।।
1299. कुसुम
कुसुम फूल के फायदे, औषधि गुण भरपूर।
उदर रोग का शमन कर, आँखों का है नूर।।
1300. डाली
डाली झूमी वृक्ष की, पत्तों से संवाद।
पथिक थका-हारा सुनो, चखा फलों का स्वाद।।
1301. विटप
धरा विटप को पालती, प्रकृति लुटाती प्यार।
वायु प्रदूषण रोकती, जीव जगत उपकार।।
1302. आभार
सबके प्रति आभार है, दिखलाई जो राह।
कवितातल तक जा सका,नाप सका कुछ थाह।।
1303. ज्वार
ज्वार बाजरा खाइए, मिटें उदर के रोग।
न्यूट्रीशन तन को मिले, होता उत्तम भोग।।
1304. सुकुमार
बाल्यकाल सुकुमार है, रखें सदा ही ख्याल।
संस्कारों की उम्र यह, होता उन्नत भाल।।
1305. पुलकन
मन की पुलकन बढ़ गई, मिली खबर चितचोर।
बेटी का घर आगमन, बाजी ढोलक भोर ।।
1306. चितवन
चितवन झाँकी राम की, राधा सँग घनश्याम।
आभा मुख की निरखते, हृदय बसें श्री राम।।
1307. कस्तूरी
मृग कस्तूरी ढूँढ़ता, व्यर्थ हुआ बेचैन।
अंदर तन में है रखा, ढूँढ़ न पाए नैन।।
1308. कबूतर
बोल कबूतर गुटरगूँ, क्या देगा संदेश।
चैट मेल अब भेजते, बदल गया परिवेश।।
1309. खेत
फसलों का निर्यात कर, हुआ देश विख्यात।
खेत सभी हरिया उठे, हरे भूख दिन रात।।
1310. अशोक
खड़ा विश्व के सामने, भारत हुआ अशोक।
शत्रु पड़ोसी देश भी, उन्नति सके न रोक।।
1311. दृष्टि
दूर-दृष्टि का अर्थ ही, मोदी जी का नाम।
किए अनोखे कार्य हैं, दुर्लभ निपटे काम।।
1312. धूप
तेज धूप में झुलसता, मानव का हर अंग।
छाँव-छाँव में ही चलें, पानी-बाटल संग।।
1313. कपोल
लाली बढ़ी कपोल की, पड़ी तेज जब धूप।
मुखड़े की वह लालिमा, लगती बड़ी अनूप।।
1314. आखेट
आँखों के आखेट से, लगे दिलों पर तीर ।
मृगनयनी घायल करे, कितना भी हो वीर।।
1315. प्रतिदान
मानवता कहती यही, करें सुखद प्रतिदान।
बैर बुराई छोड़ कर, प्रस्थापित प्रतिमान ।।
1316. निकुंज
आम्र-निकुंज में डालियाँ, झुककर करें प्रणाम।
आगत का स्वागत करें, चखें स्वाद चहुँ याम।।
1317. आजादी
कैसे कुछ इंसान हैं, मचा रखी है लूट।
आजादी के नाम पर, समझें बम्फर छूट।।
1318. उत्कर्ष
सही दिशा में अब बढ़े, भारत का उत्कर्ष।
प्रगति और उत्थान से, जन मानस में हर्ष।।
1319. लोकतंत्र
लोकतंत्र बहुमूल्य यह, समझें इसका मूल्य।
राष्ट्र धर्म के सामने, होता सब कुछ शून्य।।
1320. भारत
भारत ऐसा देश यह, सदियों रहा गुलाम।
किन्तु ज्ञान विज्ञान से, पाया विश्व मुकाम।।
1321. तिरंगा
हाथ तिरंगा थामकर, गूँजी जय-जयकार।
राष्ट्र भक्ति सँग एकता, जनमानस का प्यार।।
1322. सावन
आया सावन झूम कर, हरियाली हर ओर।
पीहर में झूलें सखी, कजरी का है शोर।।
1323. फुहार
सावन लगता है मधुर, रिमझिम पड़े फुहार।
कोयल राग अलापता, करता है मनुहार।।
1324. झूले
बाबुल का संदेश है, आ जा बेटी पास।
झूला डाले बाग में, सखियाँ आईं खास।।
1325. सखी
यौवन में झूलें सखी, बचपन लौटा पास।
मन गोरी का बावला, सावन पावस खास।।
1326. कजली
चौपालों में गूँजता, कजली का स्वर रोज।
कोयल के संगीत से, नवप्रभात सा ओज ।।
1327. परदेश
चला ऊँट का काफिला, पिया चले परदेश।
नजरें उसे निहारतीं, छूट रहा परिवेश।।
1328. मेघ
मेघ बरसते हैं वहाँ, जहाँ प्रकृति की जीत।
वृक्ष उगाकर बन रहे, मानव-जग के मीत।।
1329. हलधर
पानी खेतों में भरा, हर्षित हुआ किसान।
रोपे-पौधे खेत में, मिला उसे वरदान।।
1330. हरियाली
हरियाली को मिल गया, पावस का संदेश।
सावन-भादों बरसते, बदलेंगे परिवेश।।
1331. छतरी
मेघों की छतरी तनी, खुश हैं सभी किसान।
माटी की सौंधी महक, चलते सीना तान।।
1332. नाव
हिचकोलें लेकर बढ़े, सबकी जीवन-नाव।
ईश्वर की सब कृपा है, हों कृतज्ञ के भाव।।
1333. अंकुर
अंकुर निकसे प्रेम का, प्रियतम का आधार।
नेह-बाग में जब उगे, लगे सुखद संसार ।।
1334. मंजूषा
प्रेम-मंजूषा ले चली, सजनी-पिय के द्वार।
बाबुल का घर छोड़कर, बसा नवल संसार।।
1335. भंगिमा
भाव-भंगिमा से दिखें, मानव-मन उद्गार।
नवरस रंगों से सजा, अन्तर्मन शृंगार।।
1336. पड़ाव
संयम दृढ़ता धैर्यता, मंजिल तीन पड़ाव ।
मानव उड़े आकाश में, मन से हटें तनाव।।
1337. मुलाकात
मुलाकात के क्षण सुखद, मन में रखें सहेज।
स्मृतियाँ पावन बनें, बिछे सुखों की सेज।।
1338. दर्पण
नित-दर्पण में झाँकिए, निरखें अपना रूप।
अंदर-बाहर एक से, गुण हों सुखद अनूप।।
1339. उपहार
दिया सुखद उपहार है, ईश्वर ने अनमोल।
मानव रूपी धर्म से, चखते अमरत घोल।।
1340. विराम
सभी विवादों पर लगा, अब तो पूर्ण विराम।
कश्मीरी परिक्षेत्र में, हुए सृजन के काम।।
1341. हरा-भरा
हरा-भरा यह देश है, इसका रखना ख्याल।
सबका ही कर्तव्य है, बढ़ें न व्यर्थ बवाल।।
1342. समीर
धरा प्रफुल्लित हो गई, ऋतु आई बरसात।
बहने लगा समीर है, मिली मधुर सौगात।।
1343. अंबुद
उमड़-घुमड़ अंबुद चले, हाथों में जलपान।
प्यासों को पानी पिला, पाया शुभ वरदान।।
1344. नटखट
नटखट बादल खेलते,लुका-छिपी का खेल।
कहीं तृप्त धरती करें, कहीं सुखाते बेल।।
1345. प्रार्थना
यही प्रार्थना कर रहे, धरती के इंसान।
जल-वर्षा इतनी करो, धरा न जन हैरान।।
1346. चारुता
प्रकृति चारुता से भरी, झूम उठे तालाब।
मेघों ने बौछार कर, खोली कर्म-किताब।।
1347. अभिसार
वर्षा-ऋतु का आगमन, नदियाँ हैं बेताब।
उदधि-प्रेम अभिसार में, उफनातीं सैलाब।।
1348. सावन
सावन के त्यौहार हैं, पूजन-पाठ प्रसंग।
रक्षाबंधन-सूत्र से, चढ़ें नेह के रंग।।
1349. बादल
उमड़-घुमड़ बादल चले, लेकर प्रेम फुहार।
तनमन अभिसिंचित करें,जड़चेतन उपकार।।
1350. मेघ
मेघ बरसते हैं वहाँ, जहाँ प्रभु घनश्याम।
उनकी कृपा अनंत है, मानव मन विश्राम।।
1351. झड़ी
झड़ी लगी आनंद की, गिरिजा-शिव परिवार।
सावन-भादों घर रहें, महिमा अपरंपार।।
1352. चौमास
कर्म-धर्म का योग ले, आया है चौमास।
मंगलमय खुशहाल का, माह रहा है खास।।
1353. बूँदाबाँदी
बूँदाबाँदी ने भरा, तन-मन में उल्लास।
जेठ माह की ज्वाल से,मन था बड़ा उदास।।
1354. बरसात
धरा मुदित हो कह उठी, लो आई बरसात।
अनुपम छटा बिखेर दी, गर्मी को दी मात।।
1355. धाराधार
रूठे बादल घिर गए, बरसे धाराधार।
ग्रीष्म काल दुश्वारियाँ, बदल गया संसार।।
1356. पावस
प्रिय पावस की यह घड़ी,लगती सबको नेक।
नव अंकुर निकले विहँस, मुस्कानें हैं एक।।
1357. चातुर्मास
भक्ति भाव आराधना, आया चातुर्मास।
धर्म धुरंधर कह गए, माह यही हैं खास।।
1358. धार
नदिया के तट बैठकर, देखी उसकी धार।
मीन करे अठखेलियाँ, कभी न मानी हार।।
1359. लहर
सुखदुख की उठती लहर,हर दिन होती भोर।
सफल वही तैराक जो, पार करे बिन शोर।।
1360. प्रवाह
नद-प्रवाह जीवनमधुर, सागर का जलक्षार।
कंठ प्यास की कब बुझी,यह जीवन का सार।।
1361. भँवर
मानव फँसता भँवर में, बचकर निकले वीर।
संयम दृढ़ता धैर्य से, बन जाते रघुवीर।।
1362. कलकल
कलकल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।
तनमन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।
1363. सच्चाई
सच्चाई परिधान वह, श्वेत हंस चितचोर।
धारण करता जो सदा, आँगन नाचे मोर।।
1364. परिधान
नवल पहन परिधान सब, चले बराती संग।
द्वार-चार में हैं खड़े, स्वागत के नव रंग।।
1365. सौभाग्य
कर्म अटल सौभाग्य है, बनता जीव महान।
फसल काट समृद्धि से, जीता सीना तान।।
1366. बदनाम
मानव को सत्कर्म से, मिल जाते हैं राम।
फँसता जो दुष्कर्म में, हो जाता बदनाम।।
1367. आहत
सरल देह-उपचार है, औषधि दे परिणाम।
आहत मन के घाव को, भरना मुश्किल काम।।
1368. यात्रा
अंतिम यात्रा चल पड़ी, समझो पूर्ण विराम।
मुक्तिधाम का सफर ही, सबका अंतिम धाम।।
1369. झकोर
उमस पूर्ण वातावरण,आई पवन झकोर।
शीतलता सुख दे गई, मन आनंद विभोर।।
1370. विभोर
मानस की चौपाइयाँ, तन-मन करे विभोर।
तुलसी जी का ग्रंथ चहुँ, लुभा रहा चितचोर।।
1371. चकोर
प्रेमी के मन में बसा, प्रियतम चाँद चकोर।
चंद्रयान ने कर दिया, अंत-भ्रमित का शोर।।
1372. चितचोर
आंतरिक्ष में रच दिया, भारत ने इतिहास।
बना विश्व चितचोर यह, अनुसंधानी खास।।
1373. हिलोर
चंद्रयान थ्री ने दिया, विश्व जगत में मान।
उठती हृदय हिलोर है, भारत हुआ महान।।
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प्रिये हुआ मन *अनमना*, चली गई तुम छोड़।
सूना-सूना घर लगे, अजब लगा यह मोड़।।
*अकथ* परिश्रम कर रहे, मोदी जी श्री मान।
पार चार सौ चाहते, माँगा था वरदान।।
गिरे हमारे *आचरण*, का हो अब प्रतिरोध।
सभी प्रगति के पथ बढ़ें, यही हमारा शोध।।
दिखतीं न *अमराईयाँ*, कटे हमारे पेड़।
कहाँ गईं हरियालियाँ, चाट गईं हैं भेड़।।
अधिक नहीं *अनुपात* में, है भोजन का तथ्य।
अनुशासित जीवन जिएँ, यही हमारा कथ्य।।
मनोजकुमार शुक्ल *मनोज*
🙏🙏🙏🙏
*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*सिकंदर,मतलबी,किल्लत,सद्ग्रंथ,राजनीति*
बना *सिकंदर* है वही, जिसने किया प्रयास।
कुआँ किनारे बैठकर, किसकी बुझती प्यास।।
अखबारों में छप रहे, बहुत *मतलबी* लोग।
कर्म साधना में जुटे, मिले न उनको योग।।
उत्पादक उपभोक्ता, बीचों-बीच दलाल।
*किल्लत* कर बाजार में, कमा रहा है माल।।
बहुत पढ़े *सद्ग्रंथ* हैं, पर हैं कोसों दूर।
प्रवचन में ही दीखते, खुद को माने शूर।।
दौंदा बड़ा लबार का, *राजनीति* में योग।
भक्त बने बगुला सभी, लुका-छिपी का भोग।।
मनोजकुमार शुक्ल "मनोज "
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आँखों से जब भी बहा, मोती बनकर *नीर*।
बालमीकि के मन जगी, मानवता की पीर।।
*नदी* जलाशय बावली, जीवन अमरित-कुंड।
ग्रंन्थों में हैं लिख गए, ऋषिवर कागभुशुंड।।
*धरती* की पीड़ा बढ़ी, कटे वृक्ष के पाँव।
सूरज की किरणें प्रखर, नहीं मिले अब छाँव।।
फटी *बिवाई* पाँव में, वही समझता पीर।
लाचारी की दुख व्यथा, बहे आँख से नीर।।
*ताल* तलैया सूखते, सूखे नद जल-कूप।
उदासीन दिखते सभी, क्या जनता क्या भूप।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*परिमल,पुष्प,कस्तूरी,किसलय,कोकिला*
मात-पिता सानिध्य से, मिलता *परिमल* गंध।
ईश्वर की आराधना, मन का है अनुबंध।।
*पुष्प* खिलें जब बाग में, बगिया हो गुलजार।
ईश्वर पर जब हैं चढ़ें, मिलें कृपा के हार।।
*कस्तूरी* की लालसा, लेकर भटका कौन।
अंतर्मन में झाँक लें, देख छिपा वह मौन।।
कोमल *किसलय* झूमते, झरे पुराने पात।
शाखों पर मुस्कान की, मिली नई सौगात।।
कंठ-*कोकिला* सा लिए, जन्मी भारत देश।
स्वर साम्राज्ञी लता जी, आकर्षित परिवेश।।
मनोजकुमार शुक्ल "मनोज "
🙏🙏🙏🙏
*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*चिरैया,जीव,धरती,दरार,ग्रीष्म*
उड़ी *चिरैया* प्राण की, तन है पड़ा निढाल।
रिश्ते-नाते रो रहे, आश्रित हैं बेहाल।।
*जीव* धरा पर अवतरित, करें काम प्रत्येक ।
देख भाल करती सदा, धरती माता नेक।।
गरमी से है तप रहा, *धरती* का हर छोर।
आशा से वह देखती, बादल-छा घनघोर।।
दिल में उठी *दरार* को, भरना मुश्किल काम।
ज्ञानी जन ही भर सकें, उनको सदा प्रणाम।।
*ग्रीष्म* तपिश से झर रहे, वृक्षों के सब पात।
नव-पल्लव का आगमन, देता शुभ्र-प्रभात।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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दोहे
ज्वाल
फिर धधकी वह ज्वाल है, जब भी रहें चुनाव।
मरहम नहीं लगा रहे, बढ़ा रहे नित-घाव।।
शीतलता
नित बरगद की छाँव में, तन-मन रहे प्रसन्न।
शीतलता सबको करे, जो थे तृषित-विपन्न।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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1 विधान
विधि का यही विधान है, करते जैसा कर्म।
प्रतिफल वैसा ही मिले, जाना हमने मर्म।।
2 जहाज
जीवन एक जहाज है, सुखद लगे उस पार।
सद्कर्मों की नदी में, फँसें नहीं मझधार।।
3 पलक
पलक पाँवड़े बिछ गए, राम-लला के द्वार।
दर्शन के व्याकुल नयन, पहुँच रहे दरबार।।
4 संदूक
पाँच सदी पश्चात यह, आया शुभ दिन आज।
न्यौछावर संदूक हैं, भव्य राम का काज।।
5 मरुथल
नदियों का गठजोड़ यह, दिशा दिखाता नेक।
मरुथल में अब हरितमा, उचित कदम है एक।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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*दोहा-सृजन हेतु शब्द--*
*संविधान,सरकार,गणतंत्र,सरपंच,राष्ट्र-पताका,*
1 संविधान
संविधान चलता तभी, चरित्र करें निर्माण।
जनता का हित साधकर, शोषित का कल्याण।।
2 सरकार
जन सेवक सरकार ही, करती है कल्याण।
यश अर्चन सम्मान सँग,करे प्रगति-निर्माण।।
3 गणतंत्र
गणतंत्र दिवस की घड़ी, सजी देहरी आज।
जनमानस हर्षित हुआ, बने राम के काज ।।
4 सरपंच
बनें गाँव सरपंच तब, करें अनोखे काम।
देश तरक्की कर सके, जग जाहिर हो नाम।।
5 राष्ट्र-पताका
राष्ट्र-पताका देश की, बनी हुई सिरमौर।
सोने की चिड़िया बने, आएगा नव-दौर।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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1 नया साल
नया साल यह आ गया, लेकर खुशी अपार।
जन-मन हर्षित आज है, झूम उठा संसार।।
2 नववर्ष
स्वागत है नव वर्ष का, देश हुआ खुशहाल।
विश्व जगत में अग्रणी, उन्नत-भारत-भाल।।
3 शुभकामना
मोदी की शुभकामना, मिले सभी को मान।
देश तरक्की पर बढ़े, बने विश्व पहचान ।।
4 दो हजार चौबीस
लेकर खुशियाँ आ रहा, दो हजार चौबीस । भूलो अब तेईस को, मिला राम आसीस।।
5 अभिनंदन
अभिनंदन है आपका, नए वर्ष पर आज।
कार्य सभी संपन्न हों, बिगड़ें कभी न काज।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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*दोहा-सृजन हेतु शब्द--*
*धुंध, कुहासा, कोहरा, बर्फ, शरद
1 धुंध
धुंध बढ़ रहा इस कदर, दिखे न सच्ची राह।
राजनीति में बढ़ रही, धन-लिप्सा की चाह।।
2 कुहासा
घोर कुहासा रात भर, पथ में सोते लोग।
मानवता को ढूँढ़ते, आश्रय का शुभ-योग।।
3 कोहरा
मीलों छाया कोहरा, नहीं सूझती राह ।
प्रियतम-बाट निहारती, घर जाने की चाह।।
4 बर्फ
जमती रिश्तों में बर्फ, हटे बने जब बात।
रिश्तों में हो ताजगी, अच्छी गुजरे रात।।
5 शरद
शरद-काल मनमोहता, पंछी करें किलोल।
फूल-खिलें बगिया-हँसे, प्रकृति लगे अनमोल।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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*रतजगा, प्रहरी, मलीन, उमंग, चुपचाप*
1 रतजगा
सैनिक करता रतजगा, सीमा पर है आज।
दो तरफा दुश्मन खड़े, खतरे में है ताज।।
2 प्रहरी
उत्तर में प्रहरी बना, खड़ा हिमालय राज।
दक्षिण में चहुँ ओर से, सागर पर है नाज।।
3 मलीन
मुख-मलीन मत कर प्रिये,चल नव देख प्रभात।
जीवन में दुख-सुख सभी, घिर आते अनुपात।।
4 उमंग
पुणे शहर की यह धरा, मन में भरे उमंग।
किला सिंहगढ़ का यहाँ, विजयी-शिवा तरंग।।
5 चुपचाप
महानगर में आ गए, हम फिर से चुपचाप।
देख रहे बहुमंजिला, गगन चुंबकी नाप ।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
🙏🙏🙏🙏🙏
*दोहा-सृजन हेतु शब्द--*
*मार्गशीर्ष, हेमंत, अदरक, चाय, रजाई*
1 मार्गशीर्ष
मार्गशीर्ष शुभ मास यह, मिलता प्रभु सानिध्य।
भक्ति भाव पूजन हवन, ईश्वर का आतिथ्य ।।
2 हेमंत
छाई ऋतु हेमंत की, बहती मस्त बयार।
मोहक लगता आगमन, झूम रहा संसार।।
3 अदरक
अदरक औषधि में निपुण, वात पित्त कफ रोग।
तन को रखे निरोग वह, कर मानव उपयोग।।
4 चाय
विकट ठंड में चाय की, सबको रहती चाह।
अदरक वाली यदि मिले, सब करते हैं वाह।।
5 रजाई
गया रजाई का समय, हल्के कंबल देख।
ठंड नहीं अब शहर में, मौसम बदले रेख।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
पुणे, 🙏🙏🙏🙏
*दोहा-सृजन हेतु शब्द--*
*रंगबिरंगी, रमणीय,व्यंजना,प्रस्ताव, संकेत*
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1 रंगबिरंगी
रंगबिरंगी वादियाँ, हरतीं मन का क्लेश।
गिरि कानन सरिता सुमन, सुगढ़ रहे परिवेश।।
2 रमणीय
महल दिखा रमणीय जब, मन आनंद विभोर।
घर का ही पर आँगना, लगता है चितचोर।।
3 व्यंजना
काव्य व्यंजना रस पगी, चखें सभी सुस्वाद।
बिखराए स्वागत सुमन, मिले दिलों से दाद।।
4 प्रस्ताव
प्रेम भरा प्रस्ताव पा, खुशियाँ मिलें अपार।
धरा उतरते ही लगा, कुछ को जीवन भार।।
5 संकेत
समझ गया संकेत से, प्रियतम के उर भाव।
आलिंगन में कस लिया, सूखे दिल के घाव ।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
🙏🙏🙏🙏
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
🙏🙏🙏🙏🙏
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मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "