डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
किस्सागोई सहस्राब्दियों से जनमानस का अभिन्न अंग है। चार साल के बच्चे भी माँ-दादी-नानी से सोने के पूर्व कहानी किस्सा सुनाने का आग्रह करते हैं। समाज में रची-बसी इस गद्य विधा में अनवरत प्रचुर लेखन होता आ रहा है। कहानी रसिक-वृंद की बहुल रुचि भी इसकी लोकप्रियता दर्शाती है। श्रव्य, दृश्य एवं अंतरजालीय व्यापकता के उपरांत आज भी कहानी का अहम स्थान है। इस विधा में महिलाओं एवं पुरुषों की दक्षता किसी से कमतर नहीं है। देश की लब्ध-प्रतिष्ठित सरिता, गृहशोभा, जाह्नवी, मधुप्रिया, मुक्ता, युगधर्म जैसी पत्र-पत्रिकाओं ने भी कहानियों को प्रमुखता से स्थान दिया है। खासतौर पर कहानी की परिपक्वता मात्र साहित्यिक ज्ञान से नहीं होती, इसके लिए व्यवहारिक, सामाजिक, धार्मिक, पारंपरिक अनुभव के अतिरिक्त वैश्विक, भौगोलिक एवं सामान्य ज्ञान का भी योगदान होता है। कहानी लेखन में समाज के प्रति दृष्टिकोण तथा मानवीय दिशाबोध भी कहानीकार को विशिष्ट स्थान दिलाता है। इन्हीं गुणों की संवाहक आदरणीया सरोज दुबे जी का कहानी संग्रह‘‘धुंध के उस पार’’ विगत दिनों मुझे पढ़ने-गुनने का अवसर मिला।
भाषाई तौर पर समृद्ध, परिस्थितिजन्य सटीक बिंब प्रस्तुत करने की सामथ्र्य एवं बहु-आयामी सोच का अनुपम गुलदस्ता है यह कहानी संग्रह ‘‘धुंध के उस पार’’। इसमें 80 एवं 90 दशक की दो दर्जन से अधिक कहानियों का समावेश है। इस संग्रह की महती विशेषता यह है कि इस में निहित अधिकांश कहानियों को अनेक पत्र पत्रिकाएँ पूर्व में ही प्रकाशित कर चुकी हैं। अपनी निजी शैली, रोचकता, पात्रानुकूल नाटकीयता के साथ हमारे इर्द-गिर्द देखे और भोगे गए विषयों पर आधारित लेखन ने एक बड़े पाठक वर्ग को आकर्षित किया है। आपकी अनेक कहानियाँ व्याख्यात्मक न होकर संवादपरक हैं, जिन्हें आम पाठक भी आसानी से समझ जाता है। कटाक्ष, मुहावरे अलंकार, स्थानीय शब्द, सहजग्राह्य अहिन्दी शब्दों का प्रयोग बेहिचक किया गया है। तत्सम शब्दों को सयास थोपा नहीं गया। अपने वृहद व्यवहारिक अनुभव तथा तार्किक ज्ञान से कहानियों को रोचक एवं यथार्थ के निकट लाने में सरोज जी सफल हुई हैं। इनकी कहानियाँ संवादों के माध्यम से आगे तो बढ़ती ही हैं, हमें अपने निकट खड़े पात्र जैसा आभास भी दिलाती हैं। निम्न एवं सामान्य वर्ग के चरित्रों के निर्माण भी सूझ-बूझ के साथ किए गए हैं। कत्र्तव्य, ममता, स्नेह, विवाहेतर प्रेमसंबंध, पारिवारिक रिश्ते, सम्बन्धों की गंभीरता, चारित्रिक भावों का उथलापन, झूठ-द्वेष, विश्वास-अविश्वास, छल-कपट, उत्पीड़न-प्रताड़ना जैसे विषयों से भरी संग्रह की कहानियों में सामान्य पाठकों को वह सारी पठनीय सामग्री मिल जाएगी जिसे वह रुचिपूर्वक पूर्वक पढ़ना चाहता है। कहानियों को पढ़कर पाठकों का भाव विभोर होना, क्रोधित होना, घृणा करना, कुछ सीख मिलना भी प्रदर्शित करता है कि सरोज जी अपने उद्देश्य में सफल हुई हैं।
घर, परिवार, गाँव, शहर, पर्यटन स्थल, विद्यालय, कार्यालय, बाजार आदि स्थलों से चयनित माँ-बाप, भाई-बहन, पति-पत्नी, शिक्षक, कर्मचारी, अधिकारी, बच्चे-बूढ़े, महिलाओं, पड़ोसियों को विविध किरदारों के रूप में प्रस्तुत कर सरोज जी ने अपना स्वयं का एक रचना संसार बनाया है, जहाँ क्रोध है, घृणा है। अपनत्व और वे सारे रिश्ते-नाते भी हैं, जिनमें यह वर्तमान समाज जी रहा है।
‘कबाब में हड्डी’ शीर्षक कहानी में बेटा माँ को कश्मीर घुमाने नहीं ले जाता परंतु जब उसका भाई वहाँ ले जाता है तो दुनिया कहती है की भाभी भैया के साथ जाकर कबाब में हड्डी बनी, जो हमारी चेतना को झकझोरने में सफल होती है। दूसरी ओर ‘फेसरीडिंग’ में अशोक अंकल के चरित्र को लेकर भ्रांतियों तथा पारिवारिक कलह को प्रस्तुत किया गया है। ‘‘धुंध के उस पार ’’कहानी भी परिस्थिति जन्य घटनाओं, आत्मग्लानि, पारस्परिक विश्वास-अविश्वास तथा रिश्तों में उत्पन्न में दरार दर्शाती विशिष्ट कहानी बन गई है। इनके अतिरिक्त इस संग्रह की अन्य कहानियाँ भी अपनी-अपनी विशिष्टता लिए हुए हमें कुछ न कुछ सिखाती जरूर हैं। सभी कहानियों के शिल्प अलग-अलग हैं। विषय अलग-अलग हैं। उनके परिवेश और काल भी अलग-अलग हैं किन्तु उन सबका उद्देश्य यही है कि समाज बुराईयों से ऊपर उठे और सकारात्मक सोच को बढ़ावा मिले।
संकलन की सभी कहानियों को पढ़ने के उपरांत निष्कर्ष यह निकलता है कि सरोज जी ने अपनी कहानियों में सामाजिक व्यवस्थाओं, अच्छे-बुरे रिश्तों, विभिन्न सरोकारों एवं बेबाक संवादशैली के माध्यम से जहाँ एक पूरा का पूरा शोषित, प्रताड़ित और कष्टप्रद शब्दजगत का सृजन किया है, वहीं खुशियों उत्साह सफलताओं प्रशंसाओं की सुखद-शीतल रसवर्षा भी की है।
माननीया सरोज दुबे ने बहुविषयक, बहुआयामी कहानियों में जितने भी बिम्ब प्रस्तुत किए हैं, जितने भी विषय उठाए हैं, इन पर चिंतन किया जाए तो पता चलेगा कि सारा समाज इन्हीं विषयों के तानाबाना में उलझा रहता है। मेरा मानना है कि कहानियों के कथ्य एवं उद्देश्य समाज को सार्थक दिशा चुनने में भी मददगार होंगे। एक ही संग्रह में समाज के इतने विविध रूप अन्यत्र कम ही दिखाई देंगे। नारी प्रधान कहानियों का बहुतायत में सृजन कर श्रीमती दुबे ने एक महिला कहानीकार के दायित्व का भी निर्वहन किया है।
मेरी दृष्टि से आदरणीया श्रीमती सरोज जी द्वारा सीधी बात करने का अंदाज, उनकी सरल भाषा, निजी अनुभव एवं कल्पना शक्ति का सही उपयोग ही इनकी कहानियों की सफलता का रहस्य है। उनके इस प्रथम कहानी संग्रह ‘‘धुंध के उस पार’’ के प्रकाशन पर हमारी आत्मीय शुभकामनाएँ। सृजनपथ पर नए कीर्तिमान स्थापित करने हेतु मंगल भाव।
डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’
साहित्यकार, पत्रकार एवं ब्लागर
डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’
साहित्यकार, पत्रकार एवं ब्लागर