सनातन कुमार बाजपेयी‘‘ सनातन’’
श्रीमती सरोज दुबे हिन्दी की श्रेष्ठ कहानी लेखिका हैं। महाराष्ट्र में आवास होते हुये भी राष्ट्रभाषा हिन्दी से उन्हें अत्यन्त प्रेम है। हिन्दी में अनेक श्रेष्ठ कहानियों एवं आलेखों का सृजन कर इस बात को प्रमाणित किया है।
श्रीमती सरोज दुबे कर्म से शिक्षिका रहीं हैं। वे एक आ्ष गृहणी, ममतामयी माँ, कुशल समाज सेविका एवं सृजनकार हैं। वे एक संवेदनशील लेखिका हैं समाज में फैले विविध रंगों का उन्होंने अत्यन्त सूक्ष्मता से निरीक्षण किया और अपनी कहानियों में उन्हीं रंगों को उकेरा है।
हिन्दी भाषा की अनेक राष्ट्रस्तरीय पत्र पत्रिकाओं में उनके द्वारा सृजित कहानियाँ एवं आलेख जब तब प्रकाशित होते रहे हैं। इनमें युगधर्म, मधुरिमा, आनंद, सारिका, मधुप्रिया, अनामा, सरिता एवं मुक्ता आदि प्रमुख हैं।
नारी सदैव से समाज के केन्द्र में रही है। हर युग में लेखकों, विचारकों एवं विद्वानों द्वारा नारियों की समस्याओं को लेकर कुछ न कुछ अवश्य कहा गया है। कहने को तो आजकल नारी जागरण को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कही जा रहीं हैं। किन्तु यदि अंदर घुस कर देखा जाये तो आज भी युगों पुराना नारी का वही रूप है। नेत्रों में आँसू, कृशकाय, सभी ओर से प्रताड़ित नारी का वही स्वरूप आज भी देखने मिल जाता है। कहीं सास, कहीं ननद, कहीं पति एवं कहीं समाज से अपमानित नारी के अश्रु हम देख सकते हैं। श्रीमती सरोज दुबे एक संवेदनशील लेखिका हैं। उनके द्वारा नारी के इन सभी रूपों को अपनी कहानियों में विषयवस्तु बनाया गया है।
प्रस्तुत संकलन में संग्रहीत कहानियों में समाज के विविध रंग तो हैं ही, इनमें दया है, ममता है, आत्मीयता है। मानवीय संवेदनायें हैं। पर दुख कातरता एवं परसेवा की उमंग भी है। प्रत्येक कहानी कोई न कोई अपना नया संदेश देते हुये हमारे सामने उपस्थित होती हैं।
‘‘दो उँगलियाँ’’ एक पुरस्कृत कहानी है। मूक माँ अपनी मरणासन्न अवस्था में अपनी दो उँगलियाँ दिखाकर कुछ संकेत देना चाहती है। जिसे कोई अंत तक समझ नहीं पाता। इसके पीछे माँ की कोई चाहना छिपी थी या आश्वासन । इस कहानी में मानव के मनोविज्ञान को उकेरती एक भाव प्रधान कहानी है।
‘‘जीत’’ कहानी मानवीय संवेदनाओं की कहानी है। कमला के पति अपना एक मकान एक जरूरतमंद शोमेश्वर को मात्र पैतीश हजार में बेचना चाहते हैं। कमला और उसका बेटा सेठ रामसहाय को पैंतालीस हजार में बेचने के पक्ष में हैं। पिता का सोचना था कि संसार में पैसा ही सभी कुछ नहीं होता। मनुष्यता भी कोई चीज है। घटनाक्रम में स्वार्थ और परमार्थ के बीच एक द्वंद्ध चलता है, अंत में जीत परमार्थ की होती है। पर आज कहाँ हैं ऐसे निष्प्रह एवं संवेदनशील मनुष्य ?
‘‘फेसरीडिंग’’ कहानी में ओवरसियर अशोक सक्सेना एक ईमानदार सच्चरित्र, सहज सरल व्यक्ति हैं। बच्चों से उन्हें अत्यधिक स्नेह है, बच्चे भी उनके इर्दगिर्द रहते हैं। वे अच्छे गायक के साथ बाँसुरी वादक भी हैं। अनेक गुण होते हुये भी एक फेसरीडिंग व्यक्ति द्वारा संदेह के बीज बो देने से एक लोकप्रिय पात्र भी समाज में किस तरह भ्रांतियों का शिकारग्रस्त हो जाता है। यह कहानी ऐसे समस्त भ्रांतियों को तोड़ने का संदेश देती नजर आती है।
श्रीमती सरोज दुबे की सभी कहानियों के कथानक समाज में यत्र-तत्र बिखरे हुये हैं। कहानियों के सभी पात्र हमारे आपके बीच के ही हैं । कल्पना जगत के नहीं। इन कहानियों में जीवन का यथार्थ है। कुछ ही कहानियों की यहाँ चर्चा की गईं हैं। उनकी सभी कहानियाँ एक से बढ़कर एक हैं। मैंने सभी कहानियाँ पढ़ी हैं सभी श्रेष्ठ हैं। ‘‘भ्रमर’’, ‘‘बदलते रंग’’, ‘‘चौथापन’’, ‘‘छोटे आदमी बड़े लोग’’, ‘‘मंगल बेला’’, ‘‘कैसी है सीमा’’, ‘‘दोपाटों के बीच’’, ‘‘शेष शर्त’’, ‘‘धुंध के उस पार’’, ‘‘चंदेल’’, ‘‘निर्जीव दीवारों का घर’’, ‘‘आस निराश भई’’ इन सभी कहानियों में कोई न कोई सामाजिक समस्या के समाधान के संकेत हैं।
कहानियों की भाषा सहज एवं सरल है। कहानियों में कसावट है। कहानियों में कोई न कोई संदेश है। श्रीमती सरोज दुबे की कहानियाँ हमारे आपके इर्दगिर्द की कहानियाँ हैं। उनके पात्र किसी काल्पनिक जगत के पात्र नहीं हैं। अपितु हमारे चारों ओर उनका जमघट है। कुछ कहानियाँ अवश्य डायरी शैली में लिखी गईं हैं।
कथानक, पात्र कथोपकथन, उद्देश्य आदि कहानी के मुख्य तत्व कहे जाते हैं। श्रीमती सरोज दुबे की कहानियों में इन तत्वों का पूर्ण रूपेण निर्वहन किया गया है। सभी कहानियाँ श्रेष्ठ हैं, पठनीय हैं एवं प्रेरणादायक हैं। एतद् बधाई।
• सनातन कुमार बाजपेयी ‘‘ सनातन’’
साहित्यकार एवं शिक्षाविद्
पुराना कछपुरा स्कूल के पास
गढ़ा, जबलपुर, म.प्र.