हरि ठाकुर
कथ्य को कहानी बनाना आसान काम नहींे है। इसके लिए गहरी संवेदनशीलता होना चाहिए। कहानीकार को व्यक्ति और समाज के बीच संबंधों की गहरी समझ होना चाहिए। मनुष्य अपने आप में एक पहेली है, उसे और उसके संबंधो को समझना बड़ा जटिल काम है। कथाकार को इसी जटिल काम को सुलझाना पड़ता है। उसे अपने कहानी में उतारना होता है।
इस संकलन में श्री रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’ की लगभग 24 कहानियाँ संकलित हैं। वे मंजे हुए कथाकार है और उनके पास जीवन का लम्बा अनुभव है। अतः कथ्य और पात्रों के चयन में उन्हें कुशलता प्राप्त है। उनकी कहानियों का ताना बाना यर्थाथ के धरातल पर बुने जाते हुए भी आदर्शोन्मुखी हैं। कहानियाँ आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पक्ष से भी संबंधित हैं, भाषा और शिल्प की दृष्टि से सभी कहानियाँ कसी हुईं हैं।
मनोज कुमार शुक्ल की जहाँ तक उनकी कहानियों का प्रश्न है, अपने कथाकार पिता के सच्चे उत्तराधिकरी हैं। कहानी के ट्रीटमेन्ट में वे अपेक्षाकृत अधिक आधुनिक लगते हैं किन्तु कथ्य के क्षेत्र में उनके पिता ही उनके आदर्श हैं। दो पीढ़ियों की संवेदनाओं को एक स्थान पर पा कर समय के अंतराल को समझने में सुविधा होती है। इसके बावजूद इन कहानियों में उनका अपना-अपना व्यक्तित्व है। उनका मूल्यांकन भी इसी रूप में होना चाहिए। आशा है, पाठक इन कहानियों में रस लेंगे।
हरिठाकुर प्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि, रायपुर