डाॅ. राजेश्वर गुरू
एक पाव की जिंदगी वयोवृद्ध साहित्यकार श्री रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’ एवं उनके पुत्र श्री मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’ की कहानियों का संग्रह है। श्री रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’ की कहानियाँ पांचवे दशक तक की हैं और श्री मनोज कुमार शुक्ल की कहानियाँ का समय आठवें दशक के प्रारम्भ से आद्यदन हैं।
इस प्रकार ये कहानियाँ दो पीढ़ियों की कथा यात्रा को दर्शातीं है। इनमें स्वतंत्रता प्राप्ति के वर्षों से लेकर आज तक की विभिन्न स्थितियों और समस्याओं का चित्रण मिलता है।
प्रेमचन्द तक आधुनिक हिन्दी कहानी समाजापेक्षी और आदर्शोन्मुखी हो चुकी थीं। उसमें यथार्थ के धरातल पर जीवन की समस्याओं को व्यक्त करने की क्षमता आ गई थी। प्रेमचन्द के बाद हिन्दी कहानी अनेकोें प्रयोगों के माध्यम से गुजरीं। परिणामतः वह नए नए विषयों की ओर उन्मुख हुई और अभिव्यक्ति के नए नए तरीके आ गये। व्यक्तिवाद, मनोविज्ञान, यथार्थवाद आदि तत्वों के मेल से आ गये परिवर्तनों के कारण उसे नए नए नामों से पुकारा जाने लगा, जैसे व्यक्तिवादी कहानी, मनोवैज्ञानिक कहानी, नई कहानी, अकहानी, सचेतन कहानी।
परिवर्तनों के दौर से गुजरती हुई इस कथा यात्रा में पुराने कहानीकार भी शामिल हुये और नए कहानीकार भी जुड़े। प्रेमचन्दोत्तर कहानी में व्यक्ति, परिवार, समाज और जीवन को देखने का नजरिया बदल गया और तेजी से बदलते हुए राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवेश से पहले भिन्न परिस्थितियों और समस्याओं से सामना हुआ। कहानीकार का दायित्व भी बदला अब वह मात्र चितेरा नहीं रह गया। उसके तेवर आक्रामक हो गये। वह उस सबसे जूझने की मुद्रा में आ गया, जो समाज विरोधी था, जीवन विरोधी था, जो सत्य के विपरीत था। अब कहानीकार के कहने के ढंग में भी बदलाव आ गया। शैली के नये नये समीकरण देखने को मिलने लगे।
इस प्रस्तावना के साथ यह कहा जाये कि यदि ‘एक पाव की जिंदगी’ की कहानी अपने समय के आमआदमी के साथ उसके सुखदुख में भागीदारी करती है, उसके साथ उसकी समस्याओं से जूझती है, तो यह संग्रह की कहानियों का सही परिचय होगा। दो पीढ़ियों का सुदीर्घ अन्तराल इन कहानियों में सजीव हो उठा है। अनेक कहानियाँ हैं, जो बरबस आपका ध्यान खींचतीं हैं। श्री रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’की ‘अंधेरे के गम, उजाले के आँसू’ और ‘दहेज’ कहानियाँ बहुत सशक्त हैं। उनकी ‘सफर के साथी’ कहानी की प्रासंगर्भिता आपको आनंद प्रदान करती है। संघर्ष कहानी में शोषक और शोषित के सम्बन्ध में एक नया पक्ष सामने आ जाता है। यथार्थ को फेंटेंसी के रूप में ‘एक चिरैया’ कहानी में प्रस्तुत किया गया है। ‘स्वतंत्रते’ उस पीढ़ी के भोगे गये यथार्थ की दर्दनाक तस्वीर है।
श्री मनोज कुमार शुक्ल की कहानियों में मिलने वाला युगबोध संत्रास की लम्बी गाथा है। इन कहानियों में आजादी के बाद नये जीवन के सपनों के बिखर जाने की वेदना परिलक्षित होती है। इन कहानियों में आक्रोश भी है और पीड़ा भी। अनेक कहानियों में पारिवारिक जीवन के अछूते चित्र हैं। परिवार में रोज अनेक घटनायें घटती हैं किन्तु इनके साथ कहानीकार की संवेदना किस रूप में जुड़ती है, यह महत्वपूर्ण है। ‘अंघेरे और उजाले’ ऐसी कहानी है। ‘बड़प्पन’ कहानी प्रेमचंद की बड़े घर की बेटी कहानी की याद दिलाती है। ‘दौड़ एक अंतहीन’ हृदयहीन समाज की बेदर्दी को उजागर करती है। ‘अनोखा बलिदान’ आप को आज के समाज की विभीषिका पर विचार करने के लिए विवश कर देगी। पूवार्ध में जैसे ‘सफर के साथी’ कहानी है वैसी ही इस भाग में ‘बदलते समीकरण’ एक व्यंग्य विधा में लिखा गया है। ‘वार्ड नम्बर पाँच’ और ‘पथराई आँखें’ कहानियाँ आज के समाज पर प्रश्न चिन्ह लगातीं हैं।
सब मिलाकर संग्रह के दोनों भागों की कहानियाँ जैसे एक दूसरे के पूरक हैं, जिनमें जीवन के सुख दुख की सजीव तसवीर मिलती है। यद्यपि तसवीरों के रूप अलग अलग हैं, किन्तु दर्द दोंनों का आधार है। ये कहानियाँ आपको उद्वेलित व भाव विह्नल करती हैं, सोचने के लिए विवश करती हैं। कर्म के लिए प्रेरित करती हैं। कहानी संग्रह पाठकों को रुचेगा, यह आशा है।
डाॅ. राजेश्वर गुरू
प्रख्यात साहित्यकार, कवि एवं शिक्षाविद्
रायपुर , छत्तीसगढ़ वर्ष-1997