प्रभाकर चैबे
कहानी को साहित्य से लगभग खारिज करने के प्रयास में जुटे कुछ लोगों ने कहानी पढ़ना भी बंद कर दिया है और हिन्दी कहानी पर साहित्यकार फतवा दे रहे हैं कि हिन्दी में अब अच्छी कहानियाँ नहीं लिखीं जा रही हैं। कविता को ही साहित्य मान लेने तथा मनवा लेने की जिद में कुछ हिन्दी के समीक्षक और साहित्य पर चिंतन में परेशान वे कहानी को कविता के बाजू में बिठाने के भी तैयार नहीं हैं। ऐसे समय में यह कहानी संग्रह एक पाव की जिन्दगी का आगमन निश्चय ही आश्चर्य भरा है, मन में हर्ष भर देता है। कहानी संग्रह में कसम गांधी की, स्वतंत्रते, दर्द का दर्द, संकल्प, पश्चाताप, सफर के साथी, आदि कहानियाँ न केवल पठनीय हैं वरन् सामाजिक बदलाव की गवाह भी हैं संकल्प एक सशक्त कहानी है, इसी तरह वर्चस्व, संघर्ष, एक चिरैया, दहेज भी अच्छी कहानियाँ हैं। भिखारिन कहानी स्वार्थी समुदाय के लिए अपनी सामाजिक वसीयत छोड़ने की निरर्थकता का खुलासा करती है।
संग्रह की कहानियाँ सामाजिक सरोकार की कहानियाँ हैं। समाज में व्याप्त विसंगतियों के कारणों की पड़ताल करती हैं, संग्रह की सभी कहानियाँ मार्मिक हैं। गिरा दो ये मीनारें, मचा दो इंकलाब, मेंआजादी की लड़ाई के दौरान मुल्क की जो तस्वीर संजोयी गई थी, उसे ध्वस्त होते देखते हुए नायक का आक्रोश है और उसके साथ पूरे देश की जनता का आक्रोश दिखाई देता है। यही इस कहानी की सफलता है। व्यक्तिगत आक्रोश को सर्वजनित,सर्वव्यापी सच प्रदान करना। उसका फैलाव करना। समर्पण कहानी में अर्पणा अपनी ननद के दहेज के लिए अपने सारे जेवर उतारकर सास के हाथ पर रख देती है। अर्पणा एक आदर्श मध्यवर्गीय परिवार का सही चित्रण करती है।बड़प्पन की बड़ी भाभी में करुण,दया,स्नेह और भारतीयनारी के वे पुरातन ताकतें सामने आतीं हैं।संग्रह की कहानियाँ मनुष्य की जद्दो जहद की कहानियाँ हैं। रिश्तों का दर्द,और वह रुक न सका, अनोखा बलिदान, पराजय कहानियाँ जीवन के किसी न किसी पक्ष को बड़ी सरलता से रखतीं हैं। वार्ड नम्बर पाँच, उस व्यवस्था को न केवल उजागर करती है जिसमें आदमी पेट पालने के लिए अपना खून बेचने का धंधा करने के लिए विवश होता है, बदलते समीकरण, यह जबर जस्त व्यंग्य है आज की व्यवस्था पर ।
इस संग्रह की कहानियाँ हमारे पुरानेपन को वापस लातीं हैं। पुरानापन विचारों और रूढ़ियों का नहीं ये तो इन्हें बुरी तरह से तोड़ती प्रतीत होतीं हैं। पुरानेपन की वापसी याने कि कहानी के अपने स्वरूप की वापसी।
श्री प्रभाकर चैबे
प्रसिद्ध व्यंग्यकार, पत्रकार एवं समीक्षक, रायपुर