सनातन कुमार बाजपेयी ‘सनातन’
श्री रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’ एक श्रेष्ठ कहानी- कार थे उनका चिन्तन और मनन उच्चकोटि का होने के कारण उसका प्रभाव उनके लेखन में भी परिलक्षित होता है। उनके द्वारा सृजित कहानी संग्रह ‘एक पाव की जिन्दगी ’ जबलपुर के साथ ही राष्ट्र के श्रेष्ठ विद्वानों द्वारा अत्यन्त प्रशंसित हुई है।
‘‘यादों के झरोखे ’’में कई दृष्टांत कहाानियों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं। वर्णात्मक एवं कथोपकथन शैली के माध्यम से अपने विषय को आगे बढ़ाने में वे सफल रहे हैं। जो उनके एक कुशल कहानीकार होने के संकेत देते हैं। प्रस्तुत कृति में श्री रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’ ने अपने पूर्वजों के सीलोन ग्राम जिला छतरपुर से जबलपुर आगमन और यहाँ संस्थापित होने की संघर्षपूर्ण कहानी को एक मंजे हुए साहित्यकार की हैसियत से चित्रण किया है। यहाँ कथाकार अपने बड़े भाई की भूमिका में है। जो देश की आजादी के काल का सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक परिदृश्य का चित्रण करते हुए अपने परिवार के विकास की यात्रा को भी आगे बढ़ाता हुआ चलता है। और फिर वर्तमान परिवेश में पहुँचता है। जिसे उन्होंने काफी रोचकता के साथ आगे बढ़ाया है।
अपनी आर्थिक विपन्नता के बीच, संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा में ग्राम्य मेला दर्शन, अपनी बाल्यकाल की यादों का बाल चित्रण, अपनी शादी की रोचक संस्मरणों का वर्णन किया है। वे साम्प्रदायिक परिस्थितियों के बीच साम्प्रदायिक सद्भाव के अनेक दृष्टान्तों के माध्यम से कुशल डायरी लेखकों के श्रेणी में अपने आप को प्रतिष्ठिापित करते नजर आते हैं। अपने हर चित्रण में हताशा और निराशा के आगे उन्होंने कभी घुटने नहीं टेके हैं और न ही कभी विचलित हुए। इस सबके मूल में उन्होंने अपने पूर्वजों की छत्रछाया एवं उनके शुभाशीषों को ही श्रेय दिया है। क्योंकि पूर्वजों की सत्प्रेरणाओं, सद्गुणों और उनके शुभाशीषों से व्यक्ति अपने मंजिल की ओर बढ़ता है तो वह सदा सुखी होता है, उनका स्मरण रखकर निरंतर प्रगति की सही दिशा की ओर ही बढ़ता है।
श्री रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’ का जीवन वास्तव में उनके द्वारा किये गये श्रम पूर्ण अध्यवसाय एवं साधना की कहानी है जो पाठकों के लिए अत्यन्त प्रेरणादायी है। एक स्थान से विस्थापित व्यक्ति दूसरे स्थान पर जाकर किस प्रकार स्थापित होता है और फिर अपनी पहिचान बनाता है। प्रस्तुत कृति में यह सब कुछ दृष्टव्य है। कृतिकार अंग्रेजों के अत्याचारों के प्रत्यक्षदर्शी एवं भारत की आजादी के संघर्ष पूर्ण जीवन के प्रत्यक्ष दृष्टा हैं। नेताओं से संबंध होने के बाद भी उसका कभी जीवन में व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाया। राजनैतिक विसंगतियों को भी उन्होंने जब मौका मिला उनको रेखांकित किया है।
श्री रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’ ने अपनी इस कृति में अपने पूर्वजों का प्रमाणिक दस्तावेज ही प्रस्तुत नहीं किया। वरन् आजादी के पूर्व और बाद में राजनैतिक उठापटक एवं आम चुनावांे में जय पराजय का विश्लेषण कर अपने राष्ट्रप्रेम के सरोकार को भी हमारे सामने प्रस्तुत किया है। वे तो बधाई के पात्र हैं ही, वहीं दूसरी ओर अपने पिता की विरासत को कृति के स्वरूप में हम सभी के हाथों में पहुँचाने में उनके चि. मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’ भी उतने ही बधाई के पात्र हैं। जिन्होंने अपने पिता की इच्छा को मूर्तिमान स्वरूप प्रदान किया।
मेरी ओर से उनके प्रति अनन्त मंगल कामनाएॅं हैं।
सनातन कुमार बाजपेयी ‘सनातन’