जिज्ञासा
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
अभी पूर्ण रूप से सूर्योदय नहीं हुआ था, पर बादलों के पीछे से सूर्य की किरणें अपना उजेला बिखेरने को तत्पर हो रही थीं। इस तरह वह सारी प्रकृति को भोर होने का संकेत दे रही थी। कमलेश, “दादा दादी-नाना नानी पार्क” में अपने मित्रों के साथ भोर में बह रही पुरवाई का आनंद ले रहा था। मार्निग वाक में वह मित्रों से कुछ आगे निकल आया था। तभी जेब में रखे मोबाईल की घंटी ने उसे चैंका दिया। उसने तुरंत मोबाईल निकाल कर देखा कि उसके छोटे बेटे का मुम्बई से फोन था। उसने अपने कान के पास सटा कर हलो बोला ही था कि दूसरी तरफ से आवाज आयी।... “पापा हैप्पी बर्थ डे, पापा ...आपको पैंसठवें जन्म दिन की बधाई पापा ...”
थैंक्यू बेटे ...थैंक्यू... प्रत्युत्तर में कमलेश ने कहा।
सभी मित्रों की निगाहें उसकी ओर अब तक लग चुकीं थी। ‘थेंक्यू बेटे’ शब्द ने सभी के मन में जानने की उत्कंठा जगा दी थी। बात खत्म होते ही सभी कमलेश के पीछे पड़ गए। ऐसी कौन सी खुशखबरी तुम्हारे बेटे ने दी है? कमलेश ने पहले तो टालना चाहा किन्तु मित्रों से पीछा छुड़ाना इतना आसान काम नहीं होता। उसने अपने जन्म दिन का समाचार जैसे ही सबको सुनाया, सभी ने उनको ढेर सारी बधाईयाँ से नवाज दिया। और जन्म दिन पर मिठाई खाने की माँग करने लगे। इतनी सुबह कहाँ मिठाई की दुकान खुली मिलेगी कह कर बात को दूसरे दिन पर टाल दिया। सभी को उसकी बात उचित लगी और कल प्रतीक्षा करेंगे। कह कर बात कल पर चली गई।
घर आकर उसने अपने मार्निंग वाॅक वाले कपड़ों को उतारा। उतारते ही उसे पसीने की बू उन कपड़ों से आने लगी। उसने कपड़ों के हैंगर पर नजर डाली, दो जोड़ी कपड़े धुलने का और इंतजार कर रहे थे। उसने जेबों को टटोला और खाली कर एक बाल्टी में कुछ पानी में सोप पावडर डाला उसे हिलाया और उन कपड़ों को डुबोकर रख दिया। ताकि आधे घंटे बाद उनको धोया जा सके। इस आधे घंटे के समय को पूरा करने के लिए वह अपने कम्प्यूटर में व्यस्त हो गया। काम में इतना खो गया कि वह दो घंटे बाद भूल गया कि उसने तीन जोड़ी कपड़े पानी में धोने के लिए डुबो के रखे हुए हैं।
नीचे किचिन से खाना खाने के लिए पत्नी विभा की आवाज ने उसे चैंका दिया। घड़ी पर नजर गई तो देखा दोपहर के साढ़े बारह बज गये थे। काफी लेट हो गया था। शुगर पेशेंट होने की वजह से दोनों सुबह दस बजे ही खाना खा लिया करते थे। आज तो काफी लेट हो गया था। जब तक मैं नहीं खाऊँगा वह भी नहीं खा सकती। तुरंत ही कार्य को समेटा और बाथरूम की ओर दौड़ लगा दी। नहाया और कपड़े पहन कर पूजा करने को बैठ गया। पन्द्रह मिनिट बाद ही खाने की डायनिंग टेबिल पर बैठ गया।
उस दिन रात्रि में उसे याद आया कि उसने तीन जोड़ी कपड़े धुलने के लिए बाल्टी में डुबोए थे। वह मन ही मन अपनी याद दास्त को कोसने लगा। उम्र बढ़ने के साथ स्मरण शक्ति भी क्षीण होने लगती है। वह उठा और पानी में डूबे कपड़ों को तलाश करने लगा। दोनों बाथरूम में तलाशा पर वह बाल्टी नहीं मिली। पत्नी विभा तो कपड़े धोने से रही। ऐसा नहीं कि वह कपड़े नहीं धोती थी। किन्तु जब से उसकी रीड़ की हड्डी का आपरेशन हुआ तब से उसे दिक्कत होने लगी थी। ऊपर से गठियावाद ने रही सही कसर और निकाल दी। वह चाह कर भी नहीं कर सकती थी। फिर भी क्या भरोसा शायद आज उसने साहस करके हिम्मत दिखा दी हो। पर उसका मन नहीं मान रहा था। उसने बैड रूम में विभा के प्रवेश करते ही पूँछ लिया कि- ‘मेरे कपड़े आज क्या तुमने धो दिए?’ विभा ने कहा- ‘क्या बात करते हो? मेरे से मेरे कपड़े तो बड़ी मुश्किल से धुलते हैं। तुम्हारे फुलपेंट मेरे से कहाँ धुलेंगे?’ कहकर वह बिस्तर पर थकी हारी लेट गई। उससे अब कुछ बात करना उचित नहीं लगा। रात्रि के ग्यारह भी बजने को आए थे। उसने करवट बदली और उसकी ओर पीठ करके सोने की मुद्रा में आ गया। लाईट तो बंद हो गयी थी, पर नींद तो जैसे उड़ गई थी।
उसने सोचा शायद बेटे ने कपड़े धोने वाली बाई को दे दिया होगा। शायद बेटे को पिता पर तरस आया होगा। आखिर वह उसका ही तो बेटा है। बहू पर काम का बोझ आ पड़ा था। बेटे को बड़ी मुश्किल से एक काम वाली बाई मिली थी। काम वाली बाई रोज एक टाईम घर के बर्तन मांजती और झाड़ू पौंछा करती फिर बेटे बहू और बच्चों के कपड़े भी धोती थी।
बेटा ने तो चाहा था कि खाना बनाने वाली बाई को भी लगा लिया जाए किन्तु शहर में तो जैसे काम वाली बाईयों का अकाल सा पड़ गया था। दोपहर के बाद के लिए तो मिलीं किन्तु सुबह खाना बनाने वाली बाई नहीं मिल पायी। घर में बड़े कुल चार प्राणी और दो छोटे बच्चे थे। छोटी उम्र के नाती और नातिन जिनके स्कूल की तैयारी और उनके होमवर्क करवाने में बहू का समय ऐसा गुजर जाता कि घर के काम अन्य काम नहीं हो पाते। उसकी व्यस्तता दिन भर बनी रहती। उसकी पत्नी विभा को भी जुटना होता तब कहीं रोज घर का काम खत्म हो पाता। कभी कभी वह भी सहयोग दे देता आखिर रिटायरमेंट के बाद लोगों को क्या काम होता है। अगर यह नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? सरकार ने इसीलिए तो एक उम्र के बाद रिटायर करने का कानून बना दिया है।
उसने अंधेरे में तकिया के पास रखे मोबाईल को आन कर देखा कि रात्रि के एक बज गये थे। नींद तो उचट गई थी। तीन जोड़ी कपड़े की धुलाई ने आज उसकी नींद ही उड़ा दी थी। इसके पूर्व वह हमेशा अपने कई जोड़ी कपड़ों की धुलाई करता था, तब कभी ऐसा नहीं हुआ था। उसने सिर को हल्का सा झटका दिया और करवट को बदला शायद करवट बदलने से नींद आ जाए। पर नींद तो आने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसके मन ने कहा यह भी तो हो सकता है कि बहू को आज बाई से धुलाने को कपड़े नहीं होंगे तो उसने सोचा होगा कि चलो आज पापा जी के कपड़ों को ही धुला दिया जाए। बेचारे रोज कपड़े अपने हाथों से धोते रहते हैं। आखिर बहू भी तो उसकी है।
दो वर्ष पूर्व जिस दिन घर में काम करने वाली बाई आई थी, हम सभी का खुशी का पारावार न था तुरंत उसने और विभा ने अपने कपड़े धोने के लिए सर्फ के पानी में डुबो दिए थे। बहू ने यह आतुरता देखकर कहा कि- आप लोगों को जो कपड़े धुलवाना हों, उनको अलग से रख दिया करो। उनको मैं धुलाई के कपड़े देखकर बाई को दिया करूँगी। कह कर सतर्क कर दिया। सही बात थी किन्तु मुझे लगा शायद बाई को अतिरेक कपड़े की धुलाई में परेशानी हो सकती है। तो मैंने और विभा ने अपने कपड़े स्वयं धोने का निर्णय ले लिया। इससे शरीर भी स्वस्थ रहेगा और एक्सरसाईज भी होती रहेगी। दूसरी तरफ से भी कभी आग्रह नहीं हुआ तो अपना निर्णय व सोच सही लगा।
इन फितूर के विचारों ने सुबह के पाँच बजा दिए। तुरंत कपड़े पहन कर मार्निंग वाॅक पर निकल गए। पर मन भी बड़ा बदमाश होता है। शंका का समाधान जब तक न हो जाए वह भटकता ही रहता है। सुबह सात बजे घर आकर रात्रि की थकान को उतारने के लिए बिस्तर पर लेट गया। छपकी लग गई।
सुबह साढ़े नौ बजे घर की बाई कमरे की सफाई करने आ गई थी। पौंछा लगाते समय कुर्सी के हटाते ही उसकी आवाज से मेरी नींद खुल गई। झटपट उठ बैठा। मेरी गहरी नींद में खलल के लिए काम करने वाली बाई को पछतावा होने लगा। बाबू जी माफ करना आपकी नींद उचट गई। लगता है पापाजी, आज आप घूमने नहीं गये?
उसने नींद में खलल से मुझे खुश करने के लिहाज से कहा - पापा जी आपके कल बाल्टी में रखे कपड़े मैंने धो दिए थे। मैंने सोचा आप बुजुर्ग हैं, मेरे पिता के सामान हैं। मुझे आपकी सेवा करके कुछ पुण्य मिल जाएगा। आप हमेशा अपने हाथ से अपना सब कार्य करते हैं यहाँ तक कि कपड़े भी धोते रहते हैं। कल से आप पानी में डुबोकर रख दिया करो...! मैं धो दिया करूँगी....!!
मैं उसके चेहरे को लगातार देखे जा रहा था। उसके मन में आए तरस पर मैं आश्चर्य चकित था। मेरा अशांत मन अब पूर्ण रूप से शांत हो गया था। रात भर उमड़ रहे मेरे सारे प्रश्नों के उत्तर जो मिल गये थे ...
मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”