अहसास
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
जानकी रमण महाविद्यालय में एक विशेष विषय को लेकर शोध प्रस्तुत किये जा रहे थे। विभिन्न कालेजों के लेक्चरर एवं प्रोफेसर अपने अपने शोध पत्रों का वाचन कर रहे थे। मैं एक साहित्यिक अभिरूचि वाला व्यक्ति भी उस शोध पत्रों के वाचन को बड़ी तन्मयता से सुन रहा था। कार्यक्रम का हाल श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था।
मेरे बगल मैं बैठे एक सज्जन पुरूष जिनकी चाँद निकली हुई थी। टेंशन में वे बार बार अपनी चाँद पर हाथ फेरे जा रहे थे। शायद उनके शोध पत्र पढ़ने का नम्बर आने वाला था। दूसरी ओर उनका सीना गर्व से तना हुआ भी था। वे कनखियों से बार बार मुझे देखे जा रहे थे। शायद अपनी गौरव पूर्ण उपस्थिति का अहसास कराना चाह रहे थे और मुझसे कुछ पूँछने की अपेक्षा भी कर रहे थे। मुझसे उनकी व्याकुलता देखी नहीं गई। वार्तालाप करने की दृष्टि से मैंने उनसे परिचय जानना चाहा। मालूम हुआ कि वे शहर के जी.एस. काॅलेज में हिन्दी पढ़ाते हैं। शहर का यह बड़ा कालेज माना जाता है। मैने उनको बधाई दी और उनकी तारीफ भी की। मेरी तारीफ के बाद उन्होंने मेरा भी परिचय जानना चाहा। मुझे उनके कालेज का नाम सुनकर पहले ही बड़ी आत्मीयता का बोध हो चुका था। उनसे मुखातिब होकर कहा। महाशय, मैं भी कभी आपके कालेज का विद्यार्थी रहा हूँ उन्होंने फिर अपने सिर पर हाथ फेरकर कहा - अच्छा आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई।
गर्व से सीना फुलाते हुए प्रोफेसर साहब खुशी की मुद्रा में आ गये थे। फिर बोले -बहुत खूब .... खुशी हुई....आप मेरे कालेज में पढ़े हैं। अच्छा.... आपने कालेज कब ज्वाइन किया था।
मैंने अपने दिमाग पर जोर डालते हुये कहा कि शायद मैंने सन् 1967 में मेट्रिक करने के बाद, सन् 1968 में कालेज ज्वाईन किया था।
उन्होंने सकपका कर अपने बगल वाले व्यक्ति को देखा और फिर सम्हल कर बोले सर, उस समय तो मेरा जन्म भी नहीं हुआ था।
उनके यह बोलते ही मुझे अपनी बढ़ी हुई उम्र का अहसास हो गया। कि क्या मेरा समय इतना आगे खिसक गया है। मुझे अपने बढ़ी हुई उम्र का अहसास हो चुका था। मैंने आज तक यह सोचा ही नहीं था। जिस कालेज में, मैं कभी पढ़ा था। उस कालेज में आज हमारे पास बैठे महाशय पढ़ा रहे हैं। इनका उस समय तो जन्म ही नहीं हुआ था। अंदर से मेरा मन मानने को कतई तैयार नहीं था। अरे भाई .....अभी कुछ समय पहिले की ही तो बात थी। जब मैं कालेज में पढ़ने जाया करता था। बैंक में नौकरी करते हुए..... अन्दर से उम्र ने हँसकर कहा- महोदय, आप इस भुलावे में मत रहना। क्या गुणा भाग कर लेखा जोखा लगाने बैठ गये। अरे भाई साहब, ......आपको रिटायर हुए भी चार वर्ष हो गये है। ....आपके सभी बच्चों की शादी हो गयी है।... उनके भी बच्चे हो गये हैं।.... आप दादा और नाना भी बन चुके हैं।.... आप कब तक कम वय के बने रहोगे ....?
सचमुच मुझे आज ही अपनी बढ़ती उम्र का अहसास हुआ था। समय सचमुच कितना आगे निकल चुका था ....
बगल वाले बैठे हुए सज्जन पुरूष की आवाज मेरे कानों में पुनः गूँजी सर, आपकी उम्र तो ....इतनी हो गयी, देख कर लगता तो नहीं। विस्मयता के साथ वह मुझे बार बार बढ़ती हुयी उम्र का अहसास करा रहे थे ...। और अब मैं उन्हें एक अपने बेटे की तरह से देख रहा था .... सोच रहा था, उम्र भी कितनी जल्दी गुजर जाती है .....
मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”