रक्तचाप
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
मैं अभी अपने काम को करने बैठा ही था कि सरला ने आकर मुझे याद दिलाया कि आज डाॅ. के पास चलना है। डाॅ. साहब ने आज पुनः दिखाने को कहा था।
मैंने सरला से कहा कि क्या बात है ! उनकी लिखी दवा से आपको आराम नहीं लगा ? हाँ कुछ ऐसी ही बात समझो मुझे चक्कर तो आ ही रहे है। सिर मैं भी दर्द है, रात में कोई परेशानी न खड़ी हो जाए इसीलिए में अभी डॅा. को दिखाना चाह रही थी।
मैंने अपने काम में पूर्ण विराम लगाया तुरंत खड़ा हो गया। चलो मेम साहिबा, मैं तो बिल्कुल तैयार हूँ। उधर सरला तैयार होने लगी। हालाकि मैं उनकी परेशानी और उनके सिर दर्द के कारण को भी अच्छी तरह से जानता था किन्तु हर पति अपनी पत्नी के सामने अज्ञानी ही होता है उसी तरह उनकी नजर में मैं भी था। उनकी समस्या का निराकरण व उपचार केवल डाॅ. ही कर सकता है। ऐसी स्थिति में पति की सलाह व्यर्थ में विवाद को ही जन्म देती है। यह सोचकर सीधे डाॅ. के पास ही जाना श्रेयस्कर समझा।
अब डाॅक्टरों के बारे में भी क्या कहें कान, नाक, गला, आँख, पेट, रीड़ की गुरियों, हड्डियों, हार्ट, नसों, सिर, साइकिलाजिस्ट, सर्जन, मेडिसिन, आदि याने मानव के हर अंगों के अलग अलग विशेषज्ञ होने लगे है। यहाँ तक कि स्त्री पुरूष रोग विशेषज्ञ भी अलग अलग। रोगी को यही समझ में नहीं आ पाता कि हमें किस को दिखाना चाहिये। इसलिए पहले तो हर रोगी डाॅक्टरों के बीच में फुटबाल जैसा घूमता रहता है, डाक्टर के बीच हर मरीज रोग का रिसर्च सेन्टर बन जाता है। तब कहीं अंतिम समय में सही डाॅ. के पास पहुँच पाता है, जब तक मालूम पड़ता कि उसका गलत इलाज हो गया। अब गलत हुए इलाज का पहले सही इलाज करवाना होगा। अब ऐसा समय आ गया है कि एक डाॅ. ऐसा हो जो फीस लेकर आपको यह बता सके कि आप को किस डाॅ. के पास इलाज के लिए जाना चाहिए जो आपके रोग का निदान कर सके। जिससे आपका पहली बार में ही सही उपचार हो सके। खैर मेरे मन में इन उठते विचारों तक सरला तैयार हो गयी थी।
डाॅ. के यहाँ जाकर नम्बर लगाया। डाॅ. ने मरीज को देखते ही उसकी कुशल क्षेम पूंछी । मैंने मुस्कराते हुए बीच में टोंक कर विनोदी स्वर में कहा- डाॅ. साहब आपने पिछले दिनों हमारी धर्मपत्नी को ऐसी दवाई लिखी कि इनको चक्कर और सिर दर्द भी होने लगा है। डाॅ. ने अपनी लिखी पर्ची को उलट पलट कर देखा फिर नकारात्मक सिर को हिला दिया। डाॅ. बीपी की मशीन लगा कर देखने लगा। देखा तो सरला का बीपी बढ़ा हुआ निकला।
डाॅ. ने तो असली जड़ समझ लिया किन्तु मरीज जब माने तब बात बने। सरला तो यह बात मानने को तैयार ही न थी। डाॅ. भी अपनी बात पर अडिग था। किन्तु डाॅ. कोई पति तो था नहीं, जो सहज अपने हथियार डाल दे और मेरी पत्नी की बात मान ले। वह अपनी पत्नी की ही बात को मानता होगा क्योंकि उसमें उसी की भलाई है। दोनों के बीच में तब असहाय मुझ जैसे पति को याद दिलाना पड़ता है। सरला आप डाॅ. साहब हैं उन्होंने बीपी की मशीन लगाकर देख लिया है कि आप का बीपी बढ़ा हुआ है। तब कहीं सरला समझौता करने को तैयार हो गयी। बीपी की दवाई की पर्ची लेकर डिस्पेंशनरी से बाहर निकलता हूँ।
डाॅ. की दवाई खरीद कर मैं सरला के बढ़े हुए रक्तचाप को कम करने के लिए अपनी मोटर साइकिल को एक मंदिर की ओर मोड़ देता हूँ। मैंने सोचा कि नवरात्रि का आज प्रथम दिवस है। बैठकी के दिन मंदिर में चहल पहल रहती है। भजन होते हैं। पूजन पाठ और भजन सरला को ज्यादा पसंद हैं। थोड़ी देर सरला वहाँ बैठेगी तो ध्यान बटेगा। मन को कुछ शांति मिलेगी, उसका बीपी स्वाभाविक तौर पर कुछ कम हो जाएगा। दिमाग के प्लानिंग के हिसाब से सरला मंदिर के गर्भ गृह में भजन मंडली में जाकर बैठ गयी। मैं बाहर पड़ी बैंच में जाकर बैठ गया। मंदिर में आने जाने वालों, बच्चों की धमाचैकड़ी को देखने लगा। साथ ही वहाँ बैठे लोगों की कभी वार्तालाप सुनकर तो कभी स्पीकर से आ रही भजन मंडली के भजनों का आनंद लेने लगा।
माईक पर एक महिला देवी गीत को बड़ी सुरीली आवाज में भावविभोर हो कर गा रही थी। कुछ महिलाएँ मातृ शक्ति आराधना में वाद्ययंत्रों को बजाने में मग्न थी तो कुछ भक्ति रस में तन्मय थी। ऐसे माहौल को देखमंदिर का पुजारी बाहर आकर टहलने लगा। बहुत देर से एक ही जगह बैठे बैठे उसके पैर अकड़ने से लगे थे। तभी एक महिला ने मंदिर के अंदर प्रवेश किया। उस महिला ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया, कपड़ों को बड़े ही सलीके से पहन रखा था। पीछे से मार्डन ब्लाउज उसके आधुनिक होने का संकेत दे रहा था। मुझे उसमें भक्ति भाव कम प्रदर्शन अधिक दिखाई दे रहा था। वह अंदर आकर एक किनारे बैठ गयी थी।
तभी अचानक स्पीकर से भजनों की जगह शोरगुल उभरने लगा। मैंने सोचा शायद देवी भक्तों के बीच किसी महिला को भाव आने लगे होंगे। पर मन ने नकार दिया अगर ऐसा होता तो भजनों में जोश ज्यादा बढ़ जाता है। गाने वाले दूने उत्साह से गाना गाने लगते हैं। तब कुछ और हुआ होगा। तभी मंदिर के अंदर से एक भक्त दौडता बाहर आया और पुजारी को बुला लाया। पुजारी को तेज कदमों से आता देख मेरे मन में कौतूहल जाग उठा। भजनों की जगह माईक पर संवाद गूँजने लगे।
ठहर चुड़ैल ठहर.... आज इसी मंदिर में सब के सामने तेरी असलियित उजागर कर दूँगी। बड़ी भजन गाने वाली बनती है देवी को मना रही है, जैसे देवी खुश होकर तेरे को वरदान दे देंगी। तेरे संग बैठी यह कुलच्छनी बुढ़िया बड़ी भक्ति में मगन है, सिर हिला हिलाकर ताली बजा रही थी। तब तक पुजारी के साथ लोगों का हुजूम अंदर आ गया था। दर्शको को देखकर वह और मुखर होती जा रही थी। उस रण चंडिका बनी आधुनिक महिला को देख किसी में उसे रोकने का साहस नहीं हो रहा था।
दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं। मालूम पड़ा वह जो मधुर कंठ से गा रही थी, वह उसकी देवरानी थी। वह बुढ़िया उन दोनों की सास थी। वह रण चंडी उसकी जिठानी थी। उसकी सास ने उसके इस स्वभाव की वजह से अपने घर से निकाल दिया था। वह अपने पति को साथ लेकर किराए के मकान में रह रही थी। संयोग से मंदिर की प्रसिद्धि सुनकर वह दर्शन को चली आयी थी। पहले तो उसने मंदिर आकर भजन सुनना चाहा। यह आवाज उसे जानी पहचानी भी लग रही थी। अंदर आकर अपनी सास और देवरानी को देखकर उसकी सारी भक्ति नदारत हो चुकी थी। उसके गाए भजनों की सम्मोहकता ने उसके दिल में आग में घी का काम कर दिया था। अपने दुश्मनों को पाकर काफी देर तक उबलती रही जब सहन नहीं हुआ तो वह मंदिर में भगवान के सामने ही रौद्र रूप धारण कर लिया। उसके इस अप्रत्याशित आक्रमण से सामने वाले को सम्हलने का मौका ही नहीं मिला। सास जरूर अपनी सफाई देती नजर आ रही थी। पर उसके क्रोध के आगे किसी की नहीं चल पायी। सभी के मन की शांति अशांति में बदल गयी थी। मंदिर में तनाव भरा वातावरण बन गया था। भक्ति मय वातावरण में खलल पड़ गया था और वहाँ सभी का रक्त चाप बढ़ गया था।
मैं अपनी पत्नी सरला के रक्त चाप को कम करने के लिए मंदिर आया था किन्तु निरर्थक हुआ। मैंने सरला की ओर इशारा कर चलने को कहा। वह बाहर आ गई। मैंने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि देखो कितना अच्छा वह भजन गा रही थी और सभी की मातृशक्ति की आराधना में खलल पड़ गया। कितना बुरा हुआ। बेचारी मधुर कंठ से भजन गा रही थी। सभी का मन सम्मोहित था। मंदिर में अद्भुत शांति मिल रही थी। किन्तु..... सरला ने पीछे मोटर साईकिल में बैठते हुए कहा -”हाँ आवाज तो सुरीली थी किन्तु बाद में वह ठीक से नहीं गा रही थी।”
मैंने कहा- “क्या करती बेचारी जब वह गा रही थी, उसकी जिठानी जो आ गयी थी। उसका भी ब्लड प्रेशर बढ़ गया होगा। रक्तचाप तो कभी भी किसी का भी बढ़ सकता है, मन पर काबू रखना आना चाहिए, सकारात्मक सोच ही एक मात्र उसका निदान है ........
मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”