आँधियों की उठ रही संभावना है.....
आँधियों की उठ रही संभावना है।
खो गई इंसानियत दिल अनमना है।।
पैर तो जकड़े हुए हैं बेड़ियों से,
सामने बहती नदी को लाँघना है।
धर्मांधता के अटपटे हैं कुछ नियम,
ओंठ पर उँगली रखे ही बोलना है।
नेह की बगिया खड़ी है ठूँठ बनकर,
आँसुओं की धार से फिर सींचना है।
हमास का चेहरा हुआ रक्तरंजित,
इजराल ने कसम ले मुट्ठी तना है।
यह लड़ाई हो रही किस बात के खातिर,
जो प्रगति की राह का रोड़ा बना है।
पैर फैलाए जगत में आत-तायी,
हो सुखद हर भोर प्रभु से वंदना है।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’