जीवन गुजरा रोने में.....
जीवन गुजरा रोने में।
बीते उमर न सोने में।।
कष्ट सहे माँ ने अनगिन,
जीवन जियो न बोने में ।
जीना सार्थक तब होता,
दिखता दम-खम होने में ।
काम करो जग में ऐसा,
पछताए फिर खोने में।
गहरे दाग लगें फिर भी,
मिट जाते सब धोने में।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’