आदम युग का दौर चला है.....
आदम युग का दौर चला है।
गर्दन पर अब वार खला है।।
मजहब के बंदों को देखो,
मानवता का कटा गला है।
बाहर-बाहर प्रेम बरसता,
अंदर-अंदर खूब छला है।
रहे भटकते दिशा-भूल हम,
अब तक कितना हुआ भला है।
गंगा-जमुनी बातचीत में,
उन्मादी तेजाब डला है।
न्याय व्यवस्था संविधान पर ,
कुछ के दिल में साँप पला है।
सर्व-धर्म सद्भाव मनोरम,
फिर भी हमने हाथ मला है।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’