आंँधियों से जूझ कर.....
आंँधियों से जूझ कर ही वह तना है।
काटना उस वृक्ष को बिल्कुल मना है।।
छा गईं हरियालियाँ देखो चतुर्दिक
जिंदगी को साँस देने तरु बना है ।
पीढ़ियों को दे रहा जो फल निरंतर,
वह कुल्हाड़ी देखकरअब अनमना है।
तप रही धरती उबलते तापक्रम से
रोपना है पौधों को बस कामना है।
जब धरा की गोद का शृंगार होगा,
स्वस्थ होगी यह प्रकृति सद्भावना है।
घूमने आते हैं पर्यटक देश में,
विरासतें बिखरी हुई सहेजना है ।
ऋतुओं का वरदान हमको है मिला,
बहते पानी को हमें अब रोकना है ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’