आँख से आँसू छलकते.....
आँख से आँसू छलकते, बुझ सकी कब आग दिल की।
ऊँट करवट ले चुका है, फिर सुनेंगे फाग दिल की।।
मोहनी बगिया उजाड़ी, अपनों के अहंकार ने।
प्रेम की वंशी न बजती, बेसुरी अनुराग दिल की।।*
टूट कर रोया बहुत दिल, बह गया खारा समुंदर।
फट चली है गोदड़ी अब, चल अभागे ताग दिल की।
किस तरह यह दिल्लगी की, मौन होकर देखता हूँ।
संकेत भी आया मगर, सुन सका न जाग दिल की।।
आस की किरणें सँजोए, द्वार में कबसे खड़ा था।
शुभ संदेशा आगमन का,दे गया फिर काग दिल की।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’