बहुत याद आते हैं हमको, मेरे प्यारे पापा जी.....
बहुत याद आते हैं हमको, मेरे प्यारे पापा जी।
कुँभकार बन गढ़ा है मुझको, मेरे प्यारे पापा जी।।
उँगली पकड़ चलाया उनने, संग खड़े हर पल पाया।
जीवन-भोर दिखाई चहको,मेरे प्यारे पापा जी।।
कुर्ते के अंदर से झाँके, झिनी हुई गंजी-बंडी।
कपड़े लाकर देते सबको, मेरे प्यारे पापा जी।।
बड़ा लाड़ला था मैं उनका, आशाएँ उनने पालीं।
दिशा बताई थी मत भटको, मेरे प्यारे पापा जी।।
लिख पढ़ कर जग को पहचाना, भाई-बहिन को बड़ा किया।
सत् साहित्य पढ़ाया दमको, मेरे प्यारे पापा जी।।
जब भी खड़ी समस्या सिर पर, आँखों में झाँका छटपट।
सुलझा गए बिगड़ती लटको, मेरे प्यारे पापा जी।।
अनुजों के तुम पिता तुल्य हो, सीख सिखाई थी उनने।
समझ न पाए कुछ तो तुमको, मेरे प्यारे पापा जी।।
हर संकट का किया सामना, दिवा स्वप्न साकार किए।
समझा दोस्त सदा ही हमको,मेरे प्यारे पापा जी।।
आदर्शों की बाँध पोटली, अब भी चलता रहता हूँ।
भुला नहीं पाया उस पलको,मेरे प्यारे पापा जी।।
करें याद हर घड़ी तुम्हारी, सच्चे मन से ईश्वर से।
पितर पक्ष में ही क्यों भटको, मेरे प्यारे पापा जी।।
लिखीं कहानी उपन्यास अरु, संस्मरण भी लिख डाले।
रामनाथ श्रीनाथ को परखो, मेरे प्यारे पापा जी।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’