बहुत पुरानी यह दुनिया है.....
बहुत पुरानी यह दुनिया है।
खाली पेट खड़ा बुधिया है।।
मानव है सुख का अभिलाषी,
परिवर्तन का ही पहिया है।
बता रहे जो अपनी चादर,
ईश्वर ही सबका मुखिया है।
जो जीते जीवन बहुरुपिया
खड़ी हुई उसकी खटिया है।
हर युग में है पीड़ा जन्मी,
मानव दिखा बड़ा दुखिया है।
अहंकार में जो भरमाया,
डूब गई उसकी लुटिया है।
हनुमत को सब कोई पूजे,
राम भक्त की इक कुटिया है ।
बेटा कुल का दीपक होता,
अँधियारे की बस बिटिया है।
राम राज का सपना देखें,
कहाँ बही सुख की नदिया है।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’