बजा रहे कुछ गाल हैं.....
बजा रहे कुछ गाल हैं।
नेता माला-माल हैं ।।
झूम रहे चमचे सभी,
दे ठुमकी पर ताल हैं।
भ्रष्टाचारी नोंच रहे,
नेकनियत की खाल हैं।
खड़े विरोधी देखते, *
बिछा रहे कुछ जाल हैं।
सीमा पर प्रहरी खड़े,
माँ भारत के लाल हैं।
खेत और खलिहान में,
खड़े कृषक कंगाल हैं।
नेक राह कठिन लगतीं,*
खड़े-बड़े जंजाल हैं।
तेल बिना बाती जले,
लगते तन कंकाल हैं।
देव दूत बन आ खड़े,*
बने हुए कुछ ढाल हैं।
वर्षा का सुन आगमन,
झूम उठी चौपाल हैं ।
लगी मेघ की जब झड़ी,
प्रकृति ने ओढ़ी शाल हैं।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’