चाहा सभी भगा दें संशय.....
चाहा सभी भगा दें संशय।
फिर हो जाते दुगने संचय।।
विचलित मन को समझाता हूँ,
पर अतीत घिर आता असमय।
नजर सदा मन पर रखता हूँ,
उससे करता रहता अनुनय।
कष्टों के हैं दुखद थपेड़े,
मुरझा जाते नूतन किसलय।
एकाकीपन जूझे मानव ,
करता है नारी से परिणय ।
जीवन ही रणक्षेत्र सरीखा ।
बैठा दूर बताता संजय।
अंकुश मन पर जब लग जाता,
हो जाती जीवन में जय जय।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’