चलो ढूँढ़ते मोती उजले.....
चलो ढूँढ़ते मोती उजले।
चाहे पाँव भले ही फिसले।
कठिन राह पर चलना होगा,
तभी भाग्य सोना है उगले
नहीं तैरना यदि आता हो।
सोच-समझ कर चलना उथले।
अमृतकाल चल रहा प्यारे,
मत फेकों तुम उमले-जुमले।
सोने की चिड़िया अब बनना,
वतन छोड़ कर भागें पगले।
कर्म भूमि से जुड़ें सभी जन,
फिर क्यों पाथ रहे कुछ उपले।
नैतिकता का पाठ पढ़ाओ,
मिट जाऐंगे सारे घपले।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’