चलो करें शुचिता की बातें.....
चलो करें शुचिता की बातें।
फिर गुजरेंगी अच्छी रातें।।
हर गरीब-तन कपड़ा चाहे।
मिलकर हम सब धागा कातें।।
चीख-चीख कर भाषण होते।
लोकतंत्र की बिछीं बिसातें।।
नगर-गाँव में आग लगी हो।
समझो अंदर उबली आतें।।
राजनीति की बजी दुंदुभी।
दल-दल में ही तनीं कनातें।।
विघ्न निशाचर बढ़े देश में।
करते मानवता पर घातें।।
नारों से अखबार रँग गए ।
खाली-स्याही की दावातें।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’