छाती में कुछ मूँग दल रहे.....
छाती में कुछ मूँग दल रहे।
घर में बैठे सब को छल रहे।
सेवा करने का दम भरते,
सबकी आँखों में अब खल रहे ।
हाथ जोड़ कर वोट-माँगते,
धकया वोटर आगे चल रहे।
राजनीति के मँजे खिलाड़ी,
तानके-सीना तेल मल रहे ।
आश्वासन की धूल झोंकते,
खुद के घर में चूल्हे जल रहे।
दया-धर्म की बातें करते,
छत के नीचे गुंडे पल रहे।
नेतागिरी दिखाने खातिर,
टूटी-चकिया दालें दल रहे।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’