धरा करे शृंगार, वसंती बेला आई.....
धरा करे शृंगार, वसंती बेला आई।
प्रमुदित है संसार, वसंती बेला आई।।
ऋतु वर्षा ने हरित, पाँवड़े बिछा धरा पर।
कर स्वागत सत्कार, वसंती बेला आई।।
बागों में अब हुआ, सुखद भोरों का गुंजन।
सजा हुआ दरबार, वसंती बेला आई।।
पतझर पीछे गया, कोपलें-नव टहनी पर।
आया प्रकृति निखार, वसंती बेला आई।।
रँग विरंगी तितलीं, करें आकर्षित मनको।
लुटा रहीं हैं प्यार, वसंती बेला आई।।
पर फैला हँसे परिंदे, ऊँचे उड़ें गगन में।
सुषमा का संचार, वसंती बेला आई।।
चली हवा मदमस्त, मनुज सम्मोहित करती।
कामदेव अभिसार, वसंती बेला आई।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’